कल सुबह देर तक धूप नहीं निकली। शायद बादलों ने अपने बरसने का प्रोग्राम सूरज भाई को व्हाट्सएप कर दिया होगा। अपने पानी के पीपे खाली करने की परमिशन मांगी होगी। सूरज भाई ने भी कह दिया होगा, बरस लो, कर लो मन के अरमान पूरे।
किरणें, रश्मियां भले न आई लेकिन उजाले की तो ड्यूटी लगी थी। उसको आना पड़ा। स्कूल बंद होने पर भी मास्टरों को तो आना ही पड़ता है।
सड़क पर लोग कम थे। बच्चे ज्यादातर क्रिकेट खेल रहे थे। रामलीला मैदान में और सामने कैंट मैदान में भी। कुछ लोग योग भी करते दिखे। कुछ लोग जल्दी-जल्दी टहलते दिखे। ऐसे गोया कुछ देर में ही टहलने में टैक्स लगने वाला हो। टैक्स लगने के पहले जितना सम्भव हो मुफ्त में टहल लिया जाए।
एक मार्निंग वाकर कदमताल करते हुए सड़क के बीचों-बीच सर उठाये, गर्वीली मुद्रा में कदमताल करता चला जा रहा था। ऐसे जैसे कोई रोड रोलर बीच सड़क पर चला जा रहा हो। वो तो कहो कोई गाड़ी उसके सामने आई नहीं, आती तो टकरा के क्षतिग्रस्त हो जाती।
खेलकर लौटते हुए एक बच्चे ने बल्ले से गेंद को जोर से हिट किया। गेंद ऊंचे उछलते हुए पीछे मैदान पर जाकर गिरी। उसके साथियों ने उसे हड़काते हुए गेंद उठाकर लाने के लिए दौड़ाया। वह झेंपी हुई बहादुरी के साथ दौड़ता हुआ गया और गेंद उठा लाया। आगे बढ़ गए अपने साथियो के साथ मिल गया।
एक महिला बीच सड़क पर खड़े सेल्फी ली रही थी। कामकाजी महिला थी। बच्चे , पति दूसरे शहर में रहते हैं। सुबह-सुबह सेल्फी भेजकर परिवार के साथ होने के एहसास को जीने की कोशिश कर रही थी।
दो सफाई कर्मचारी सड़क साफ करके वापस जाते दिखे। झाड़ूओं को बल्लम की तरह हाथ में पकड़े हिलाते चले जा रहे थे। झाड़ू सफाई कर्मियों का हथियार ही तो होती है, जिससे वे दुश्मन कूड़े का संहार करते हैं।
लौटते में सड़क किनारे बेंच पर दो लोग बैठे दिखे। दोनों दिहाड़ी मजदूर। काम की तलाश में गए थे। काम मिला नहीं। घर वापस लौट रहे थे। पास के गांव में रहते हैं।
गांव में थोड़ी बहुत खेती है। लेकिन उससे गुजारा नहीं होता। इसलिए बाजार जाते हैं काम की तलाश में। कभी-कभी काम मिल भी जाता है। लेकिन अक्सर नहीं मिलता। बहुत मिला तो महीने में दस दिन। कोरोना के बाद तो और भी कम हो गया है।
गांव में कोरोना हुआ किसी को पूछने पर बताया रामसेवक ने -मजदूरों, मेहनत करने वालों को नहीं होता कोरोना। ये सब पैसे वालों को और काम न करने वालों को होता है। जो लोग पाप करते हैं, उनको होता है। गांव में किसी को नहीं हुआ।
रामसेवक ने बताया -'मेहनत करने वालों को कोरोना नहीं होता।' शायद इसीलिए तमाम गरीबों को मरने पर कोरोना से मरने के प्रमाणपत्र नहीं मिले।
रामसेवक नाम हाथ में गुदा हुआ था। उसकी भी कहानी बताई -'मेला में एक जगह भीड़ लगी थी। लोग अपना नाम गुदवा लिया। पिछले साल तो हुआ नहीं मेला, इस बार भी होना मुश्किल।'
रामसेवक के साथ बच्चे का नाम मनोज बताया शायद। 18 साल की उम्र। पिता रहे नहीं। मां और छोटा भाई है। बहन की शादी हो गयी। बाली उम्र में जिम्मेदारी का बोझ। स्कूल न जाने कब छूट गया। मेहनत-मजदूरी करके जिंदगी के स्कूल की पढ़ाई चल रही है।
'मजदूरी कभी मिलती है, कभी नहीं मिलती। तो दूसरा कोई काम क्यों नहीं सीखते। सिलाई ही सीख लो। काम मिलता रहेगा' - हमने कहा।
सिलाई कौन सिखाएगा? कहां से सीखेंगे? काम कहाँ मिलेगा? इसी तरह के सवाल में सलाह उड़ गई हमारी।
'अठारह साल के हो गए । अब शादी वाले आने लगे होंगे। शादी करोगे कुछ दिन में?'- हमने पूछा।
इस सवाल का जबाब रामसेवक की तरफ से आया।-' होएगी शादी। कोई ठीक रिश्ता मिला तो हो जाएगी शादी।'
किसी प्रेम प्रसंग की बात पूछने पर मनोज ने अपने शरीफ बच्चे होने की ताकीद रामसेवक से करवाते हुए कहा -'हम उस तरह की लड़के नहीं।'
और भी तमाम बातें हुई। सबसे ज्यादा इस बात पर कि रोजगार कम होते जा रहे हैं, मंहगाई बढ़ रही है। सबके बावजूद कोई बहुत खास तल्खी नहीं दिखी दोनों के लहजे में।
श्रीलाल शुक्ल फिर याद आये -'अपने समाज में कष्ट सहने की अपार क्षमता है। कोई बड़ा बदलाव निकट भविष्य में सम्भव नहीं लगता। सब कुछ ऐसे ही चलता रहेगा।'
शाम को झमाझम बारिश हुई। सारे मैदान तालाबों में बदल गए।
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