वास्तविकता यह है कि आज मजहब भी पूंजीपतियों ने पूंजी के बल पर अपने अधीन कर लिया है। ऐसे में ईश्वर का सच्चा धर्म शेष नहीं रहता। सच्चा ईश्वरीय धर्म तो प्राणियों की सेवा, प्रेम, मोहब्बत, इंसाफ वफादारी और ईमानदारी है। उसमें ईश्वर के प्राणियों का हित और लाभ है। यह आज आप जो कुछ देख रहे हैं, यह पूंजीपतियों ने केवल अपने उद्देश्य पूरे करने के लिए धर्म के नाम पर एक खेल बनाया है। यह वर्तमान मजहब तो मात्र कुछ लोगों के ऐशो आराम के लिए है। ईश्वर के प्राणियों के आराम के लिए नहीं है। जब धर्म स्वार्थी लोगों के हाथों में चला जाता है तो यही हाल होता है। कुरान तो यह कहती है कि मुसलमान वही है जिसे कुर्रान पर विश्वास हो और इससे पहले जो किताबें ईश्वर की ओर से आई हैं उन पर भी। हम नहीं समझते कि दुनिया में धर्म के नाम पर ये झगड़े और लड़ाई क्यों और कैसे पैदा हुई?
लेबल
अमेरिका यात्रा
(75)
अम्मा
(11)
आलोक पुराणिक
(13)
इंकब्लॉगिंग
(2)
कट्टा कानपुरी
(119)
कविता
(65)
कश्मीर
(40)
कानपुर
(305)
गुड मार्निंग
(44)
जबलपुर
(6)
जिज्ञासु यायावर
(17)
नेपाल
(8)
पंचबैंक
(179)
परसाई
(2)
परसाई जी
(129)
पाडकास्टिंग
(3)
पुलिया
(175)
पुस्तक समीक्षा
(4)
बस यूं ही
(276)
बातचीत
(27)
रोजनामचा
(896)
लेख
(36)
लेहलद्दाख़
(12)
वीडियो
(7)
व्यंग्य की जुगलबंदी
(35)
शरद जोशी
(22)
शाहजहाँ
(1)
शाहजहाँपुर
(141)
श्रीलाल शुक्ल
(3)
संस्मरण
(48)
सूरज भाई
(167)
हास्य/व्यंग्य
(399)
Tuesday, July 13, 2021
आज मजहब भी पूंजीपतियों ने पूंजी के बल पर अपने अधीन कर लिया है
-अब्दुल गफ्फार खान की आत्मकथा 'मेरा जीवन मेरा सँघर्ष' से
Labels:
संस्मरण
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment