सबेरे जल्दी जगे। जल्दी कहें तो मुंह अंधेरे। मुंह अंधेरे शायद उस सुबह को कहते होंगे जब जगने पर मुंह न दिखाई दे। जैसे पड़ोस में फरमान हुआ है कि महिलाएं मुंह ढंक के रहें। तो इस लिहाज से वहां की महिलाओं के लिए सबेरा हुआ है- 'मुंह अंधेरा सबेरा।'
कहां की बात कहां ले गए अपन भी। बात यहां मुंह अंधेरे जगने की हुई और पहुंच गए परदेश। परदेश मतलब पराया देश। कुछ जनप्रतिनिधि अपने प्रदेश को भी परदेश समझकर काम करते हैं। इसी लिए उनके प्रदेश पिछड़ जाते होंगे।
फिर बहक गए। हां तो सुबह जगे तो सोचा कि जिन लोगों ने जन्मदिन की बधाई दी थी उनको व्यक्तिगत रूप से भी धन्यवाद दे दिया जाए। कल करीब 400 लोगों को धन्यवाद दिया। करीब 200 लोग बच गए थे। रात को ही टिप्पणी जानी बन्द हों गयीं। शायद ज्यादा हो गयीं इसलिए। हमने सोचा होगी कोई लिमिट एक दिन में टिप्पणियों की। सुबह करेंगे।
सुबह जब टिप्पणी की तो वही लफड़ा। फेसबुक बोला -'बहुत टिप्पणी कर चुके। अब और नहीं।' मतलब आभार प्रदर्शन में भी राशनिंग। शराफत पर बैन।
तकनीक और कृत्तिम बुद्धि के उपयोग से फेसबुक ने व्यवस्था की होगी कि अधिक कमेंट न कर सकें। दुरुपयोग न हो। लेकिन सोचिए तो कितना गड़बड़ है यह 'धन्यवाद नियोजन'। हमारे धन्यवादों की नशबंदी कर दी नामुराद फेसबुक ने। लेकिन हम कर भी क्या सकते हैं। फेसबुक हमारा कोई मातहत तो है नहीं जिसे हम हड़का सकें -'अबे फेसबुक के बच्चे, ये हमारा धन्यवाद क्यों नहीं पहुंचाता दोस्तों तक?' वैसे यह भाषा तो हम मातहत के लिए भी इस्तेमाल नहीं करते। फेसबुक के लिए भी कर थोड़ी रहे हैं बस ऐसे ही बता रहे हैं।
कृत्तिम बुद्धि संवेदना के स्तर पर धृतराष्ट्र होती है। दृष्टि दिव्यांग। उसको टिप्पणियों की भावना नहीं दिखी होगी। यही दिखा होगा चार सौ कमेंट आ रहे इस खाते। इत्ते कमेंट एक साथ उसको अपनी तरफ आती मिसाइलों की तरह लगे होंगें। उसका मिसाइल रोधी सिस्टम सक्रिय हो गया होगा और उसने रोक दी होंगी हमारी टिप्पणियां।
कभी शिकायत करेंगे और उसको मिल भी जाएंगी तो सॉरी बोलकर छुट्टी कर लेगा जैसे अभी अमेरिका ने अफगानिस्तान में किया। कई मासूम बच्चे आतंकवादी समझकर मार दिए ड्रोन हमले से। वाहवाही लूटी फिर जब पता चला और हल्ला हुआ कि मरने वाले आतंकवादी नहीं बच्चे थे तो सॉरी बोल दिया। एक सॉरी के साबुन के टुकड़े से कई बच्चों के खून के दाग धूल गए।
जिस तरह कृत्तिम बुद्धि का हल्ला और प्रयोग बढ़ता जा रहा है उससे लगता है कि आने वाले समय में दुनिया कृत्तिम बुद्धि के हवाले हो जाएगी। सब कुछ कृत्तिम बुद्धि से चलेगा। किसी देश के कम्प्यूटर सिस्टम को लगेगा कि कोई दूसरा देश उस पर हमला करने वाला है तो फौरन मिसाइल चलने लगेंगी। इसी तरह की तमाम बातें और भी होंगी।
कल्पना कीजिये कुछ लोग खुशी में नाच रहे हों तो उस देश की कृत्तिम बुद्धि के भरोसे वाली सुरक्षा व्यवस्था यह समझकर कि ये हाथ ऊपर करके रॉकेट लांचर फेंकने वाले हैं उनपर मिसाइल से हमला कर दे। तमाम लोगों के निपटने के बाद उस देश का प्रवक्ता बयान जारी करके मामला निपटा दे -'हमें अफसोस है, कम्प्यूटर सिस्टम की गलती से कुछ लोग मारे गए।'
इसके बाद शायद इस तरह की घटनाओं की पुनरावृत्ति रोकने के लिए बिना अनुमति और पूर्वसूचना के नाचने पर प्रतिबंध लग जाये। प्रगति की कीमत तो चुकानी पड़ेगी भाई।
कृत्तिम बुद्धि मने बनावटी अक्ल के चलते हमारे 399/- रुपये अटके हुए हैं। दैनिक हिंदुस्तान अखबार अपने शहर का तो हम मंगा के पूरा पढ़ लेते हैं। लेकिन बाकी शहरों का ऑनलाइन केवल तीन पेज पढ़ पाते हैं। आगे के लिए पैसे मांगता है। हम सोचते हैं कि क्या खर्चना। लेकिन पिछले हफ्ते हमने ताव में आकर 399/- खर्च कर दिए। पइसे जमा करने के बाद सन्देश आया -'अखबार पढ़ना शुरू करिये।' किया तो फिर तीन पेज पर अटक गया। बोला -'पैसे देव तो आगे पढ़ो।' कितनी बार दें भाई पैसा।
मेल किया तो बोला मेल ब्लॉक है। मने पैसा झटककर गोल हो गयी कृत्तिम बुद्धि। कृत्तिम बुद्धि मतलब बनावटी अक्ल के साइड इफेक्ट हैं ये। अब लगना पड़ेगा पीछे कि क्या लोचा है।
बात हिंदुस्तान अखबार की हो रही है तो बताते चले कि सोमवार को जीने की राह स्तम्भ हम जरूर पढ़ते हैं। इसमें अक्सर पूनम जैन Poonam Jain के लेख आते हैं। कई बार वे बहुत अच्छी सलाह देती हैं। उनको अपने इन लेखों का संकलन छपवाना चाहिए ।
आज उन्होंने आराम की महत्ता पर लिखा है। वे बताती हैं -"जब काम व्यवस्थित होते हैं तो थोड़ी देर का आराम भी हमें तरोताजा कर देता है। शोध कहते हैं कि एक घण्टे पर हमें करीब 17 मिनट का ब्रेक लेना चाहिए।"
अगर इस शोध की माने तो 8 घण्टे के काम में 136 मिनट मतलब करीब सवा दो घण्टे ब्रेक लेना चाहिए। कुछ जगह तो यह व्यवस्था उलटे रूप में लागू है। घण्टे भर में 17 मिनट काम।
बहरहाल घण्टे भर हो गए टाइप करते हुये। अब अपना तो ब्रेक बनता है।
आपका दिन चकाचक बीते।
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