Tuesday, February 07, 2023

पुणे की चमकदार सुबह



कल पुणे आये। शाम को आते ही मुनिशन्स इंडिया के कारपोरेट आफिस गए। आयुध निर्माणी बोर्ड के कई साथियों से बात हुई। मुनिशन्स इंडिया का खुला-खुला, खिला-खिला, आफिस देखकर हाल ही में अमेरिका में देखा गूगल का आफिस याद आया। तुलना की कोई बात नहीं लेकिन याद आना कोई अपराध भी नहीं। 🙂
गूगल आफिस के तमाम फोटो लिये लेकिन अपने ही मुनिशन्स इंडिया का कोई फोटो न ले पाए। फिर सही।
शाम को कॉलेज के साथी-सीनियर शुक्ला दम्पति से मुलाकात हुई। बातों में इतना डूबे कि फोटो खींचने की याद ही नहीं आई। चलते समय वापस आकर फोटो खींची गईं। Jyoti Shukla कभी कविताएं भी लिखतीं थीं। अब तो खाली पढ़ने और तारीफ करने वाली उदार पाठिका भर रह गईं हैं। सुकुल जी की हॉस्टल के तिमंजिले कमरे में बातों के साथ घोंटकर पिलाई काफी फिर याद आई।
सुबह-सुबह बेटे Anany का घुमक्कड़ी के लिए उकसाता वीडियो देखा -निकल बेवजह। (वीडियो लिंक कमेंट बॉक्स में ) वीडियो का असर हुआ और चाय के लिए होटल के गर्म पानी और टी बैग के इंतजाम को ठुकराकर बाहर चाय पीने निकले। सड़क पार चाय की कई दुकानें थीं। यह सीन अमेरिका में मिस किया। लपक लिए सड़क पर करने को।
लाल सिग्नल होने के कारण ट्राफिक रुका था। लेकिन कुछ स्कूटी सवार जल्दी में थे। वे सिग्नल को अनदेखा करके सरपट भागे। मानो छोटे बच्चों पर टिकट न लगने की तर्ज पर छोटी गाड़ियों पर ट्राफिक नियम नहीं लगता।
चाय की कई दुकानों में से एक पर बेंच लगी रही फुटपाथ पर। 'भट्टी चाय' दुकान का नाम। चाय कटिंग के दाम 7 रुपये और फूल चाय के दाम दस रुपये। फूल चाय का ग्लास भी कटिंग जैसा ही दिखा। गुलिवर को लिलिपुट के लोगों की तरह छोटे ग्लास । चाय के साथ बिस्कुट और बातचीत का आनंद लिया। यह बतरस भी अमेरिका में दुर्लभ था।
भट्टी चाय वाले ने बताया कि उसकी आठ ब्रांच हैं पुणे में। कई जगह के नाम गिनाए। हम सुनते गए, भूलते गए। सात साल से चालू दुकान पर करीब 300 चाय की बिक्री हो जाती है रोज।
बगल में अखबार की गुमटी। हिंदी अखबार लिया -नवभारत। दाम छह रुपये। बहुत दिन बाद पैसे देकर अखबार खरीदा। घर में अखबार आता है। महीने में भुगतान होता है। याद नहीं कितने का आता है। लेकिन यहां छह रुपये का अखबार देखकर ऐसा लगा जैसे बहुत दिन बात कोई मित्र/रिश्तेदार का बच्चा मिले और उसको देखकर लगे -'अरे इतने बड़े हो गए बेटा।'
अखबार बेंचने वाले रामचन्द्र साठे फुटपाथ पर झाड़ू लगा रहे थे। बोले -'साफ सफाई तो रखना होता है न।' बताया कि कोरोना के बाद अखबार की बिक्री कम हो गयी।'
सड़क पर गाड़ियां तेज गति से भाग रहीं थीं। तेज भागती गाड़ियों को देखकर कल एयरपोर्ट पर सामान आने में देरी पर कही बात याद आई। बैगेज कलेक्शन में उसका बैग देर तक इंतजार करने के बाद भी नहीं आया तो बोली -'यहां पुणे में सब कुछ धीरे चलता है।'
हमने उससे कहा-'तुम्हारी बात से कोई पुणे निवासी मराठी मानुष नाराज हो सकता है।'
वह बोली -'कोई नाराज नहीं होगा। मैं खुद मराठी हूँ।'
बात की बात से याद आया कि कल प्लेन से उतरते हुए एक लड़का अपने दोस्त से कह रहा था -'दफ्तर में लोग काम बढ़ाते जाते हैं, तनख्वाह कभी नहीं बढ़ाते।' उसके बयान में अंतरंग चलताऊ गालियां भी थीं वो आप अपने हिसाब से सोच लीजिए।
सुबह हो गयी। सूरज भाई खिड़की से झांककर कह रहे हैं - 'उठो समय हो गया। निकलो काम पर।'
हम निकल रहे हैं। आप मजे से रहिए।

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