पिछले हफ्ते शाम को माल रोड से घर लौट रहे थे। पैदल। देखा कि एल आई सी बिल्डिंग के पास भागते हुए एक लड़के को कुछ लोगों ने दबोच लिया और थपड़ियाने लगे। लड़के की उम्र होगी यही कोई 14-15 साल। बाल हल्के भूरे। सीढ़ीदार स्टाइल में कटे। चेहरे से गरीब घर का ही लग रहा था।
गरीबी को इश्तहार की जरूरत नहीं होती। दूर से ही दिख जाती है।
सड़क पर पिटाई होते देख लोग जमा होते गए। आते-जाते कुछ लोग बिना पूछे और कुछ पूछकर लड़के को एकाध थप्पड़ जमाते जाते।
लड़के की पिटाई से सहमकर हम चुपचाप वहां खड़े हो गए। हिम्मत करके पूछा -'क्या हो गया?'
'ये मोबाइल छीनकर भाग रहा था। बहन जी का था। वो तो कहो पकड़ लिया वरना गया था मोबाइल'-लड़के का गिरेबान पकड़े हुए उसे थपड़ियाते हुए भाई साहब बोले। जबाब देने में लगे समय में जो थप्पड़ कम मार पाए वो उन्होंने बाद में तेजी से थपड़ियाते हुये लगा दिए।
इस बीच एक महिला तेजी से चलते हुए आई और आते ही पूरे गाल पर पूरी हथेली वाला थप्पड़ रसीद किया। लड़के की गर्दन घूम गयी। उन्होंने दो-तीन थप्पड़ और पूरी ताकत से मारे और फिर फोन करके किसी को बुलाने लगीं। पीटने का काम दूसरे लोगों ने संभाल लिया।
सड़क पर आता-जाता हर चौथा-पांचवा आदमी लड़के को पीटता जा रहा था। लड़का पिट रहा था। चुपचाप। कुछ बोलने की कोशिश करता तो अगले थप्पड़ में चुप हो जाता।
लोग पीटते हुए पूछ रहे थे -'साले मोबाइल चुराता है।'
इस बीच किसी ने बताया कि उसका साथी भी पकड़ गया है। उसको भी पकड़कर ला रहे हैं वहीं।
पास ही पुलिस चौकी है। महिला वहां गई। पुलिस वाले खुद वहां टहलते हुए चले आये। उनको पता चल गया कि लड़का मोबाइल चुराकर भागा था। पकड़ गया। इसीलिए लोग पीट रहे हैं।
पुलिस वाला लड़के को पकड़कर चौकी की तरफ ले गया। लोग इधर-उधर हो गए। महिला चौकी में बैठकर अपने जिसको बुलाया था , उसका इंतजार करने लगी। पुलिस कारवाई होने लगी।
पुलिस ने लड़के को एक कोने में बैठा दिया। लड़का सर झुकाए चुपचाप बैठ गया। क्या पता क्या सोच रहा हो। शायद अफसोस कर रहा हो, शायद सोच रहा हो -पकड़ कैसे गए, छूटेंगे कैसे। घर के बारे में सोच रहा हो शायद या कुछ और।
पुलिस वाले ने चौकी का दरवाजा बंद कर लिया। लोग इधर-उधर हो गए। हम भी चले आये।
आगे का किस्सा पता नहीं चला कि क्या हुआ। शायद पुलिस वालों ने पीट-पाटकर लड़के को छोड़ दिया हो। रिपोर्ट लिखी हो। लड़के को जेल भेजा हो या और कोई कार्रवाई की हो।
तीन-चार दिन पहले हुई अपने सामने घटी यह घटना बार-बार याद आ रही है। लड़का मोबाइल छीनकर भागा। पकड़ा गया। चोरी का अपराध है। पता नहीं कितनी सजा तय है इसके लिए। सम्भव है उम्र से नाबालिग हो। बाल सुधार गृह भेज दिया जाए।
सोच यह भी रहा था मैं कि अगर लड़का अदालत में अपनी चोरी कुबूल कर लेता है और कहता है -'मैंने चोरी की उसकी सजा मुझे मंजूर है। लेकिन इन-इन लोगों ने मुझे बेहिसाब पीटा। इनके खिलाफ कार्रवाई करें हुजूर।' तो अदालत क्या करेंगी?
किसी का मोबाइल आजकल बहुत जरूरी और मूल्यवान चीज हो गया है। सब कुछ मोबाइल से सन्चालित होने लगा है। मोबाइल इधर-उधर होते ही लोगों की धड़कने बढ़ जाती हैं। लेकिन उसके चोर के साथ जिस तरह की पिटाई होते देखी उसमें अगर पुलिस न आ जाती वहां तो न जाने क्या गत बनती लड़के की। क्या पता कोई नस फट जाती। बहरा हो जाता या और कोई हादसा हो जाता।
एक मोबाइल किसी की भी जिंदगी से ज्यादा कीमती नहीं होना चाहिए।
आज यह लिखते हुए मुझे ज्यां जेने की किताब ' चोर का रोजनामचा' याद आ रही है।
‘चोर का रोज़नामचा’ ज्याँ जेने की सर्वाधिक लोकप्रिय पुस्तकों में एक है। कथा और आत्मकथा के सटीक मिश्रण से तैयार इस पुस्तक में लेखक ने 1930 के दशक में अपनी यूरोप-यात्रा का वर्णन किया है। भूख, उपेक्षा, थकान और दुराचार को झेलते और चिथड़े पहने उन्होंने स्पेन, इटली, ऑस्ट्रिया, चेकोस्लोवाकिया, पोलैंड, जर्मनी आदि की यात्रा की और तत्कालीन जन-जीवन के एक उपेक्षित पहलू को अपनी भाषा में वाणी दी।
इसी सिलसिले में फिराक साहब से जुड़ा एक किस्सा याद आ गया:
"एक बार फिराक साहब के घर में चोर घुस आया. फिराक साब बैंक रोड पर विश्वविद्यालय के मकान में रहते थे. ऐसा लगता था उन मकानों की बनावट चोरों की सहूलियत के लिए ही हुयी थी, वहां आएदिन चोरियाँ होतीं. फिराक साब को रात में ठीक से नींद नहीं आती थी. आहट से वे जाग गये. चोर इस जगार के लिए तैयार नहीं था. उसने अपने साफे में से चाकू निकाल कर फिराक के आगे घुमाया. फिराक बोले, “तुम चोरी करने आये हो या कत्ल करने. पहले मेरी बात सुन लो.”
चोर ने कहा, “फालतू बात नहीं, माल कहाँ रखा है?”
फिराक बोले, “पहले चक्कू तो हटाओ, तभी तो बताऊंगा.”
फ़िर उन्होंने अपने नौकर पन्ना को आवाज़ दी, “अरे भई पन्ना उठो, देखो मेहमान आये हैं, चाय वाय बनाओ.”
पन्ना नींद में बड़बडाता हुआ उठा, “ये न सोते हैं न सोने देते हैं.”
चोर अब तक काफी शर्मिंदा हो चुका था. घर में एक की जगह दो आदमियों को देखकर उसका हौसला भी पस्त हो गया. वह जाने को हुआ तो फिराक ने कहा, ” दिन निकाल जाए तब जाना, आधी रात में कहाँ हलकान होगे.” चोर को चाय पिलाई गई. फिराक जायज़ा लेने लगे कि इस काम में कितनी कमाई हो जाती है, बाल बच्चों का गुज़ारा होता है कि नहीं. पुलिस कितना हिस्सा लेती है और अब तक कै बार पकड़े गये.
चोर आया था पिछवाड़े से लेकिन फिराक साहब ने उसे सामने के दरवाजे से रवाना किया यह कहते हुए, “अब जान पहचान हो गई है भई आते जाते रहा करो.”
अलग-अलग समय में चोरी से जुड़ी घटनाएं चोर के साथ अलग-अलग अंदाज में बर्ताव करती हैं। एक में जान-पहचान हो जाने पर आते-जाते रहने का निमंत्रण है, दूसरी में बिना जान-पहचान आते-जाते पीटने वाले लोग। यह हमारी मनोवृत्ति पर है कि हम कौन सी नजीर का अनुसरण करते हैं।
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