Tuesday, July 23, 2024

हावड़ा रेलवे स्टेशन पर ‘मानुष नदी’



कोलकता से लौट आये। इस बार हफ़्ता भर रहे कोलकता। तीन किलो वजन बढ़ा कोलकता यात्रा में। इससे समझा जा सकता है कि कितना सुखद प्रवास रहा होगा।
कोलकता रहने दौरान हावड़ा पुल कई बार देखा।इसके बारे में विस्तार से पढ़ा। इसका नाम भले रवींद्र सेतु रख दिया गया हो लेकिन लोग जानते इसे हावड़ा ब्रिज के नाम से ही हैं।
यह भी जाना कि रोज़ रात को बारह बजे हावड़ा ब्रिज कुछ देर के लिए बंद कर दिया जाता है। पुल के ऊपर कोई वाहन नहीं चलता, नीचे कोई नाव नहीं चलती। माना जाता है कि ऐसा करने से पुल को ख़तरा है।
यह लिखते हुए याद आया कि पहली बार जब आये थे कोलकता 1983 में पुल के पास ही 52, स्ट्रैंड रोड पर स्थित Indra Awasthi के घर रुके थे। पुल देखने के कौतुक में रात को आये थे। वहाँ मौजूद पुलिस वाले ने डांटकर भगा दिया था। उसको लगा होगा कि ये रहेगा तो पुल का बारह बज जाएगा।
पुल को बनाने में लगने वाले स्टील का बड़ा हिस्सा टाटा स्टील्स से मिला था। बनते समय दुनिया का तीसरा सबसे लंबा कैंटीलीवर पुल था। बाद में छठवाँ हो गया। लंबाई की बात अलग लेकिन जब से बना तब से मिथक के रूप में भारतीय समाज में प्रचलित है हावड़ा ब्रिज।
लाखों लोग रोज़ गुजरते हैं इस पर से।
पुल के बाद हावड़ा स्टेशन अपने में अलग कौतूहल का विषय है। गाड़ी प्लेटफ़ॉर्म तक चली जाती है। कोई प्लेटफ़ॉर्म टिकट नहीं पड़ता। रोचक क़िस्सा पता चला कि कोलकता स्टेशन पर एक प्लेटफ़ार्म ग़ायब है। प्लेटफ़ॉर्म नंबर 16 है ही नहीं। कभी मरम्मत के सिलसिले में हटा तो ग़ायब ही हो गया।
देश का सबसे व्यस्त रेलवे स्टेशन है हावड़ा स्टेशन। देश का सबसे ज़्यादा प्लेटफ़ॉर्म (23 ) वाला स्टेशन है हावड़ा स्टेशन। रोज़ 600 गाड़ियाँ आती-जाती हैं यहाँ। दस लाख यात्री गुजरते हैं हावड़ा स्टेशन से रोज़। यात्रियों और ट्रेनों के इस संगम के चलते हावड़ा रेलवे स्टेशन को ‘रेल नगर’ भी कहा जाता है।
पहली बार आये तो हावड़ा स्टेशन तो लोगों की भीड़ देखकर ताज्जुब हुआ। प्लेटफ़ॉर्म से बाहर निकलने वाले रास्ते में लोगों की भीड़ इस तरह उतरती जा रही थी जैसे बरसात में किसी सड़क का पानी बड़ी तेज़ी से मैनहोल में तेज़ी से घुसा जा रहा हो। लोग इसकी दूसरी उपमा यह भी देते हैं कि हावड़ा ब्रिज पर लोगों की भीड़ देखकर ऐसा लगता है मानों कोई आलू का बोरा उलट दिया गया हो।
इस बार शांतिनिकेतन जाने के लिए हावड़ा स्टेशन जाना हुआ। जिस प्लेटफ़ॉर्म पर हमारी ट्रेन आनी थी उसके बग़ल वाले प्लेटफ़ार्म पर कोई ट्रेन आयी थी शायद। यात्री एक के पीछे एक करके आते दिखे। उनको देखकर लगा कि प्लेटफ़ार्म पर कोई ‘मानुष नदी’ बह रही हो। एक के पीछे एक बिना धक्का-मुक्की किए तरल जलधार की तरह बहती मानुष नदी। बिना जाति, धर्म , गोत्र का बिल्ला लगाये चलते इंसानों की नदी। यह ‘मानुष नदी’प्लेटफ़ॉर्म से बाहर निकलकर हावड़ा पुल से होती हुई कोलकता के ‘मानुष सागर’ में मिल जाती होगी।

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