किसी शहर में अगर दो-चार दिन रुकना हो तो लगता है पूरा शहर नाप लिया जाए। लेकिन ऐसा होता कहाँ है आम तौर पर? हो भी नहीं पाता। अपना ही शहर नहीं देख पाते अच्छी तरह से। सोचते हैं देख लेंगे कभी आराम से। कौन कोई उठाये लिए जा रहा है शहर की जगहों को।
कानपुर में ही अनगिनत जगहें हैं जो अनदेखी है। ऐतिहासिक और तमाम नई इमारतें है जो हमारे इन्तजार में पलक पांवड़े बिछाए इन्तजार करते हुए दिन पर दिन बुजुर्गियाती जा रही हैं।
कालीघाट मंदिर कोलकाता के सबसे पवित्र स्थलों में से एक है और यह एक शीर्ष पर्यटन स्थल है। ऐसा माना जाता है कि कलकत्ता नाम कालीघाट से ही लिया गया है। इसे सभी 52 मार्गों में सबसे पवित्र पीठ के रूप में जाना जाता है।
कोलकता और काली देवी जी का संबंध में बचपन से उद्घोष सुनते आये हैं -‘जय माँ काली कलकत्ते वाली, तेरा वचन न जाये ख़ाली।’
हर दिन हज़ारों काली भक्त मंदिर में आते हैं और पूजा अर्चना करते हैं। यह एक शक्ति पीठ है। कालीघाट मंदिर उस स्थान पर बनाया गया है जहाँ देवी सती के दाहिने पैर की उंगलियाँ गिरी थीं। वर्तमान मंदिर लगभग 200 साल पुराना है । यह बात तो लिखा-पढी की लेकिन मंदिर में मौजूद एक व्यक्ति ने बताया कि मंदिर में स्थित कालीजी मूर्ति 2000 साल पुरानी है । दोनों ही बातों को चुपचाप मान लेने के सिवा हमारे पास कोई और उपाय नहीं है ।
मंदिर के लिए सुबह जल्दी निकलने का फरमान हुआ था । सुबह सात बजे ही निकल लिए । रास्ते एकदम साफ़ था । जल्दी ही मंदिर पहुँच गए। हल्की बारिश शुरू हो गयी थी । लेकिन सड़क से मंदिर बहुत पास ही थी । इसलिए कोई ज्यादा फरक नहीं पड़ा । बिना ज्यादा भीगे मंदिर पहुँच गए ।
मंदिर में वीआइपी दर्शन की व्यवस्था थी । वीआइपी दर्शन में मतलब लाइन में लगे बिना दर्शन । लाइन में नहीं लगे लेकिन घुसे पीछे से । कोई भी वीआईपी मामला पिछवाड़े से ही आने-जाने का होता है । साथ में गए साथी ने वहां मौजूद सुरक्षा कर्मचारी के माध्यम वीआईपी दर्शन कराये । सुरक्षा कर्मचारी में मौजूद महिला पुलिस का मुंह कनपुरिया पान मसाले से भरा हुआ था । मतलब कोलकता में भी –झाडे रहो कलट्टरगंज ।
मंदिर में काली जी की प्रतिमा की भव्यता और आकर्षण की अनेक कथाएँ प्रचलित हैं। काली जी जब दुष्टों का संहार करते आगे बढ़ रहीं थीं। हाहाकार मचा था। उनको रोकने के लिए शंकर जी काली जी के रास्ते में लेट गये। कालीजी का पैर शंकर जी की छाती पर पड़ा तो आश्चर्य और अफ़सोस से उनकी जीभ बाहर निकल आई। शायद इसी क्षण की कल्पना करके काली जी की मूर्ति बनी होगी।
मंदिर में दर्शन के बाद बाहर निकले । मुख्य मंदिर के पास ही एक छुटका मंदिर दिखा । लोगों ने बताया कि यहाँ बलि दी जाती है । पास ही एक छोटा बकरा रस्सी से बंधा मिमिया सा रहा था । शायद उसको एहसास हो गया होगा कि उसकी बलि दी जानी है । बकरे के बारे में सोचते हुए लगा कि दुनिया में न जाने कितने लोग ऐसी जिन्दगी जीते हैं, शायद इससे भी गयी-गुज़री । उनको जीने के लिए रोज मरना होता है । किस्तों में मरना । तमाम लोग तो जिन्दगी भर मरते हुए जीते हैं ।
मंदिर के बाहर ही फूलों की दूकाने थीं । लाल लाल फूल । गुडहल और कमल के फूल। गुड़हल के फूलों की मालायें लोग लेकर चढ़ा रहे थे । कमल के फूल मात्रा में बहुत कम –पश्चिम बंगाल में भारतीय जनता पार्टी की उपस्थिति की तरह ।
मंदिर से बाहर निकलते हुए बारिश थोड़ी तेज हो गयी थी । हमको बाहर आते देखकर मंदिर के बाहर मौजूद माँगने वाले अपना चाय पीना स्थगित करके माँगने के लिए लपके । चाय से ज्यादा काम जरुरी । सरकारी/दफ़्तरी कर्मचारी की तरह नहीं कि काम के लिए चाय छोड़ दें ।
तेज होती बारिश ने माँगने वालों को कुछ देने की दुविधा से हमको उबारा । हम लोग लपककर गाड़ियों में बैठे और दक्षिणेश्वर मंदिर देखने निकल लिए ।
https://www.facebook.com/share/p/3qzYPMainZDTXbUB/
No comments:
Post a Comment