कॉलेज स्ट्रीट ( लेख का लिंक टिप्पणी में) में एक किताब की दुकान दिखी दास गुप्ता एंड कंपनी। स्थापना वर्ष 1886 मतलब 138 साल पुरानी दुकान। इतनी पुरानी दुकान देखकर ताज्जुब हुआ। तफ़सील जानने के लिए अंदर घुसे।
हमने उनसे पूछा किं क्या आपकी दुकान यहाँ की सबसे पुरानी किताब की दुकान है? इस पर वे बोले -‘ ये तो नहीं बोलने सकता। लेकिन हमारा दुकान सबसे पुराने दुकान में से एक है।’
बाद में मुझे याद आया कि कॉलेज स्ट्रीट में किताबों की दुकानों की शुरुआत 1817 में हुई। उसके लगभग सत्तर साल बाद खुली दुकान शायद यहाँ की सबसे पुरानी दुकान न हो।
दास गुप्ता एंड कंपनी दुकान के इतिहास के बारे में छपे लेख के अनुसार इस दुकान की शुरुआत अब के बांग्लादेश में स्थित कालिग्राम गाँव से आये गिरीश चंद्र दास गुप्ता ने की थी। उन दिनों कोलकाता देश की राजधानी थी।
कॉलेज स्ट्रीट पर कोलकता विश्वविद्यालय और अन्य प्रमुख शिक्षण संस्थान होने के कारण दास गुप्ता एंड कंपनी के पनपने का प्रमुख कारण रहा।
दुकान की प्रसिद्धि का अन्दाज़ इस बात से लगाया जा सकता है कि प्रख्यात लेखक शरत चन्द्र चटर्जी , पूर्व राष्ट्रपति सर्वपल्ली राधाकृष्णन और प्रसिद्ध वैज्ञानिक मेघनाथ साहा यहाँ नियमित रूप से आया करते थे। नोबेल पुरस्कार विजेता अमर्त्य सेन भी यहाँ आ चुके हैं।
दुकान के बारे में वहाँ मौजूद आँकड़े के अनुसार 138 वर्ष में दुकान औसतन साल में 280 दिन खुली। रोज़ लगभग 400 लोग दुकान आये और 31 मई, 2024 तक कुल 154,560,00 लोग मतलब देश की आबादी के करीब दस प्रतिशत लोग दुकान में आये।
दुकान के बारे में प्रचलित किस्से के अनुसार एक बार शरत चन्द्र चट्टोपाध्याय जी ने दुकान के संस्थापक गिरीश चंद्र दास गुप्ता से 35 रुपये उधार माँगे। बदले में अपने उपन्यास गृहदाह की पांडुलिपि देने की बात कही। गिरीश चन्द्र दास गुप्ता जी ने पैसे तो दे दिये लेकिन उपन्यास की पांडुलिपि लेने से यह कहते हुए इंकार कर दिया कि इस उपन्यास के लिये 35 रुपये की रॉयल्टी बहुत कम है।
दुकान तीन मंज़िला है। पहली दो मंजिलों पर किताबें ही किताबें हैं। तीसरी मंज़िल पर बच्चों के लिए बैठकर पढ़ने की व्यवस्था हो रही है।
हमको दुकान दिखाने वाले मुजफ्फरपुर , बिहार से आये प्रभु महंतो ने बताया -‘ वे यहाँ 1986 में आये। तब यहाँ 46 लोग काम करते थे। आज मालिकों को मिलाकर 10 लोग हैं दुकान में । यह भी बताया कि आठ-दस फ़िल्मों की शूटिंग भी हो चुकी है दुकान में। एक बार दुकान में आग भी लग चुकी है। दुकान में मौजूद गणेश प्रतिमा सौ साल से अधिक पुरानी है। जब आग लगी थी तो इस प्रतिमा से आगे नहीं बढ़ी।’
कॉलेज स्ट्रीट के शुरुआती दिनों की चर्चा करते हुए दुकान में मौजूद लोगों में से एक ने बताया -‘तब एक डिक्शनरी बिक जाता था तो लोग कहता था चलो आज का बिक्री हो गया।’
किताबों के व्यवसाय में नक़ली किताबों के चलन ने भी नकारात्मक भूमिका अदा की है। प्रकाशक किताबों के दाम कम करके इससे मुक़ाबला करने की कोशिश करते हैं लेकिन मुक़ाबला कठिन है।
दुकान के दूसरे मालिक अरविंद गुप्ता की उम्र 79 वर्ष है। 1970 से दुकान से जुड़ गये। उन दिनों नक्सल आंदोलन के दिन थे। कुछ दिन उनका भी जुड़ाव रहा आंदोलन से जुड़े लोगों से। लेकिन जल्द ही मोहभंग हो गया। आंदोलन से जुड़े लोगों को शुरुआत में लगता था कि बदलाव होगा लेकिन जब सौ पचास रुपये के लिए गरीब लोगों की ही हत्याएँ होने लगी तो लोगों का मोहभंग हुआ। आंदोलन भटक गया।
प्रभु महंतो ने बताया था कि अरविंद दास गुप्ता जी की बेटी गूगल में काम करती है।
अरविंद दास गुप्ता जी का पुस्तक मेला में प्रकाशकों द्वारा किताबों को पुस्तक संस्कृति के प्रसार के ख़िलाफ़ बताते हैं। उनका कहना है कि साल भर प्रकाशक हमारे माध्यम से किताबें बेचते हैं। लेकिन पुस्तक मेले में ख़ुद भारी छूट के साथ किताबें बेचते हैं। यह अनैतिक है। पुस्तक मेले में प्रकाशकों को किताबें बेचने की बजाय सिर्फ़ पुस्तक प्रदर्शन की अनुमति होनी चाहिये जैसी कि दुनिया के दूसरे देशों में होता है। पुस्तक संस्कृति के बने रहने के लिए यह ज़रूरी है।
दुकान पर दास गुप्ता एंड कंपनी के पाँचवीं पीढ़ी के अनुत्तम गुप्ता से भी मुलाक़ात हुई। उनके नाम पर चर्चा हुई। हमने कहा -‘अनुत्तम का अर्थ तो यह हुआ कि जो उत्तम न हो। यह तो नकारात्मक नाम हुआ।’ इस पर अनुत्तम ने कहा -‘नहीं। अनुत्तम का मतलब है सबसे उत्तम।’ हमने कहा -‘ फिर तो तुम्हारा नाम होना चाहिये अत्युत्तम।’ लेकिन अपना नाम और उसका मतलब बदलने से अनुत्तम ने साफ़ मना कर दिया।
अनुत्तम ने हाल ही में कोलकता आये अमर्त्य सेन के साथ अपनी फ़ोटो दिखाई। एक फ़ोटो में अपनी दुकान से संबंधित किताब अमर्त्य सेन को भेंट कर रहे हैं अनुत्तम। किताब में दुकान से जुड़े कई समाचार और फ़ोटो हैं। मेरे कहने पर फ़ोटो भी भेज दिये मुझे अनुत्तम ने।
दुनिया के पुरानी पुस्तकों के सबसे बड़े बाज़ार कॉलेज स्ट्रीट के
एक कोने में स्थित दुकान दास गुप्ता एंड कंपनी में गुजारा समय 138 साल के इतिहास को महसूस करने का रहा। अनगिनत घटनाओं की गवाह रही होगी यह दुकान। इस ऐतिहासिक संस्थान में कुछ समय गुज़ारना भी एक ख़ुशनुमा अनुभव रहा।
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