आजकल खबरों में सच और झूठ , अफवाह और वास्तविकता इस कदर घुली मिली है कि असलियत पता नहीं चलती। लुटने वाला चोर साबित हो रहा है, जिसको जुतियाया जाना चाहिए उसकी जय बोली जा रही है। यह सब क्या है -'हमारे एक मित्र भन्नाते हुए बोले।'
यह जादुई यथार्थवाद है। मार्खेज का नाम सुने हो? जादुई यथार्थवाद उसी के नाम पर चला है। हजार साल पहले की बात आज घटती हुई बताता है। आज की बात को हजार साल पहले घटी बताता है। सब गड्ड-मड्ड। मार्खेज तो लिखकर चला गया, हमारा समाज उसको जी रहा है। यह जो हो रहा है न , वह जादुई यथार्थवाद है। हमारा समाज जादुई यथार्थवाद जी रहा है। हमारे दोस्त ने अंगड़ाई लेते हुए बताया।
हम जिस दोस्त को बुड़बक समझते थे वह सुबह-सुबह इतने ज्ञान की बात कह गया। हम समझ नहीं पा रहे कि क्या कहे? मन कह रहा है कि धृतराष्ट्र की तरह आंख मिचमिचा के पूछें - यह क्या हो रहा है?
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