कल ब्लागर दोस्तों के साथ बतकही हुई। क्लबहाउस कोई नया बतकही का अड्डा है। उसमें जुड़ने में ही समय निकल गया। अड्डे पर पहुंचे तो दोस्त लोग बतियाने में जुटे थे। ब्लागिंग से जुड़ी यादें , बहुत दिन बाद मायके पहुंची सहेलियों की तरह साझा कर रहे थे।
ब्लागिंग में अपन 2004 में आये। 2010 तक सक्रिय रहे। इसके बाद फेसबुक पर आ गए। ब्लाग अनियमित हो गया। लेकिन अभी भी जब भी मौका मिलता है फेसबुक की पोस्ट्स ब्लाग पर डालते रहते हैं ताकि सनद रहे और सुरक्षित रहें। फेसबुक पर पुरानी पोस्ट्स को खोजना मुश्किल है, ब्लाग के मुकाबले। ब्लाग पर लिंक करना, फोटो लगाना, ऑडियो , वीडियो सब फेसबुक के मुकाबले बेहतर है। लेकिन फेसबुक पर एक मॉल की तरह की तेजी है। एक के बाद एक बहुत सारी पोस्ट्स देख सकते हैं, लाइक, टिप्पणी कर सकते हैं। ब्लॉग पर एक समय में एक ब्लॉग पर रहना होता है।
लेकिन ब्लागिंग के समय जो दोस्तों से जुड़ाव हुआ वह आगे फिर दूसरे माध्यमों में नहीं हुआ, या कहे कम हुआ। ब्लॉग हम लोगों की पहचान थी। हमको लोग अनूप शुक्ल से ज्यादा फुरसतिया के नाम से जानते हैं। समीरलाल उड़नतश्तरी ज्यादा लोगों के लिए हैं। पूजा उपाध्याय लहरें वाली पूजा हैं। देवांशु अगड़म-बगड़म-स्वाहा। अभिषेक ओझा उवाच हैं।
लगभग सभी लोगों ने बताया कि उनकी जिंदगी में ब्लागिंग ने बहुत अहम किरदार निभाया। अपन की तो सारी लिखाई ही ब्लागिंग की देन है।
बातचीत के दौरान अशोक पांडेय Ashok Pande के कबाड़खाना की याद कई लोगों ने की। रवीश कुमार Ravish Kumar के कस्बा बलाग के भी किस्से आये। Vineet Kumar की हुंकार भी आई चर्चा में। पंकज उपाध्याय, दर्पण शाह , संजय व्यास , मनीष भट्ट , कमल ने अनेक यादें साझा कीं। अपन ने सबके बलाग खोलकर देखे। मन किया कि ब्लॉग नियमित लिखेंगे। मौका मिलने पर चिट्ठाचर्चा भी करेंगे।
ढाई घण्टे चली इस चर्चा में न जाने क्या-क्या बातें हुईं। जो याद रहीं वो यहां लिख दीं। बाकी याद आने पर।
देखते हैं क्या होता है।
https://www.facebook.com/anup.shukla.14/posts/10222525781506753
अच्छी जानकारी !! आपकी अगली पोस्ट का इंतजार नहीं कर सकता!
ReplyDeletegreetings from malaysia