Monday, October 08, 2007

मुंबई से आया मेरा दोस्त…

http://web.archive.org/web/20140419215803/http://hindini.com/fursatiya/archives/349

मुंबई से आया मेरा दोस्त…


फ़ूल खिले हैं गुलशन-गुलशन

अभय तिवारी
कल इतवार का दिन होने के कारण आराम से सोने की आदत है। लेकिन आज भी हमारी दुकान खुली थी इसलिये उठने की सोच ही रहे थे कि फोन घनघनाया। फोन पर निर्मलमना अभय तिवारी थे। हम समझ गये सवारी दिल्ली में साथियों को छोड़कर कानपुर आ गई है। पता लगा कि दो दिन पहले आ चुके थे। तय हुआ कि दोपहर बाद मिलना होगा। जगह के बारे में तय हुआ कि वे हमारे घर आ जायेंगे। हमने राजीव टंडनजी को भी इत्तला दे दी कि आयें सत्संग-सुख लूटें आकर।
दोपहर को हमारी श्रीमतीजी की भी एक सहेली अपने पति के साथ आयीं थी।उनके जाने का समय हुआ उसी समय तक अभयजी अपने साले साहब नीलेंदु के साथ घर आ गये। हमने तुरंत राजीव टंडन जी को फोनियाया कि आयें सभा शुरू की जाये। वे बोले- ऐसे कैसे क्या गाड़ी बेफ़ोर टाइम आ गई?
नीलेंदुजी कुछ ही देर में विदा हो गये।उनके जाते ही अभयजी हमारे घर की हरियाली देखकर हरे-हरे हो गये। वे एक-एक पेड़-पौधे, साग-सब्जी का मौका मुआयना करते हुये हमको कोसते रहे कि मैं उन सब के बारे में अपने ब्लाग में न लिखकर बेफ़जूल की बातें लिखता रहता हूं। हमारे घर में कुछ धान भी लगे हैं। उनको देखकर अभयजी बोले- ये इतनी बड़ी-बड़ी घास काहे खड़ी कर रखी है। हमने जब बताया कि ये धान है तो वे और खुश हो गये। तय हुआ कि अबाकी जब धान कटेगा तब उनको भी भेजा जायेगा। ये होता है मुआयने का नजराना। :)
राजीव टंडनजी के आने के बाद बातें ब्लाग-ब्लागर-ब्लागिंग की भी होने लगीं। इस बीच हमारी श्रीमतीजी भी घटना स्थल पर उपस्थित हो गयीं। ऐसे में जैसा होता है दोनों लोग हमारी श्रीमती को भी ब्लाग लिखने के लिये उकसाने लगे। यह भी बयान जारी करवाने की प्रयास किया कि मेरे कारण वे ब्लाग नहीं लिख पातीं या मैं उनके रास्ते की बाधा हूं। अब चूंकि श्रीमती जी को यह पता था कि ये जो हमारे दोस्त आये हैं वे भी ब्लागर हैं सो शिष्टाचार वश यह तो कहा नहीं कि इस फ़ालतू काम में समय बरबाद करने का उनका मन नहीं है। बहरहाल, जो भी बातें उकसाने वालों और हमारी श्रीमतीजी के बीच हुईं उनका लब्बोलुआब मुझे यही लगा कि हमारे घर के कम्प्यूटर पर अभी निकट भविष्य में हमारा ही एकछत्र राज्य रहेगा। इसी सिलेसिले में जोड़े से ब्लागिंग करने वाले ब्लागरों के कम्प्यूटर के साथ आचरण पर भी विचार हुआ, विमर्श भी हुआ।

अनूप,अभय,राजीव
कुछ देर घर में बतियाते रहने के बाद हम् लोग घर से निकलकर बाहर आ गये। हमारे घर के सामने लान में मेरा बच्चा अपने एक दोस्त के साथ क्रिकेट खेल रहा था। अभय तिवारी ने गेंद अपने हाथ में कब्जियायी और हमारे बच्चे के साथ अंडरआर्म कि ओवरआर्मपूछकर गेंदबाजी करने लगे। कुछ देर बाद गेंद हमारे द्सरे के घर में चली गयी। उसे अभयजी ने आउट साबित करना चाहा लेकिन स्थानीय खिलाडियों ने बताया इसे यहां छ्क्का कहा जाता है। इस दौरान गेंद् गुम भी हुयी जिसे कि खिलाडियों ने मिलकर खोजा। हम मैच रेफ़री की तरह किनारे से तमाशा देखते रहे।
क्रिकेट में उनकी तन्मयता देखकर ऐसा लगा मानों वे आलोक पुराणिक के इस मत का खंडन करने की मंशा बनाये हुये हैं कि मैच जीतने के लिये http://चीयरलीडरानियों की उपस्थिति अनिवार्य है। उनके बालिंग एक्शन से लग रहा था कि वे अगर भारत की तरफ़ से बालिंग करें तो आस्ट्रेलिया सौ रन भी न बना पाये।

मोरनी
इस बीच हमारे घर के बाहर अभयजी को और राजीवजी को एक मोर का जोड़ा दिखाई दिया। दोनों जोड़े से जोड़े के पीछे लग लिये कैमरा लेकर। फोटो खींचने के लिये उस जोड़े की ‘प्राइवेसी डिस्टर्ब’ करते रहे। मोर दम्पति कैमरे से बचने के भरसक प्रयास करता रहा लेकिन ये लोग उसकी फोटो खींचने से चूके नहीं। अगर पक्षी भी ब्लागिंग करते होते तो मोर अब तक निश्चित अपने ब्लाग में इस डिस्डर्बिंग घट्ना के लिये इन लोगों की लानत-मलानत कर चुका होता कि आप लोगों से अच्छे तो ये फ़ुरसतिया हैं जिनके पास भी कैमरा है, और भी साधन हैं लेकिन आजतक कब्भी भी हमें डिस्टर्ब नहीं करके दिया।
मोर के बाद राजीवजी अपने कैमरे की गन फूलों की तरफ़ घुमाई। इसके बाद हमारे ऊपर कैमरा तान दिया। हमें तुरन्त याद आया वह डायलाग कि अगर आपके पड़ोसी का घर लुट रहा है और आप चुप हैं तो समझ लीजिये कल आपका भी लुटेगा। आप यहां तस्वीर में देख सकते हैं कि दोनों कैमरा मैनों के कैमरे कितनी क्रूरता से हमारे ऊपर तने हैं। ये हमारी फोटो नहीं हमें खींच रहे थे। एक भी तस्वीर हमारी अच्छी नहीं खींच पाये , सब स्वाभाविक फोटो बस्स!

खींच लो फोटो जाने न पाये
हमने इस बीच अपना लैपटाप बाहर मंगा लिया। हमने कहा आइये आपको कुछ अच्छी कवितायें सुनाते हैं। अभयतिवारी सुनते ही भड़क गये। बोले हमने आपके साथ मुंबई में तो ऐसा व्यवहार किया नहीं था। आप हमारे साथ ऐसा कैसे कर सकते हैं? हमने कहा – भाई हम अपनी कोई नहीं झेलायेंगे। दूसरों की अच्छी कवितायें सुनायेंगे। लेकिन अभयतिवारी जी ने हमारी बात का भरोसा नहीं किया। बल्कि जब हमने अपने लैपटाप पर एक कविता बजाने शुरू की तो अभयजी सविनय अवज्ञा आन्दोलन की मुद्रा में कुर्सी तक त्यागकर लान में टहलने लगे। उनके इस गांधीवादी रवैये से घबड़ाकर हमने कवितागीरी बंद कर दी।
हमने बाद में सोचा कि ऐसा कैसे हुआ कि अभयजी कुछ भी सुनने से बच क्यों रहे थे? हम तो उनको मुंबई मेंअच्छा-खासा छोड़ आये थे। हमें लगा कि दिल्ली में कुछ ज्यादा सुन-सुना गये होंगे इसीलिये अब दूध का जला छाछ से भी बिदक रहा है। :)
बाहर बैठे-बैठे ही हमारे लैपटाप का मेडिकल हुआ। बताया गया कि बहुत धीमा है। तमाम फ़ालतू के प्रोग्राम भरे पड़े हैं। साफ़ करना होगा। यह भी एक बवाल है। कचरा भी हम ही फ़ैलायें फिर साफ़ भी हमें ही करना पड़े तो फ़ायदा क्या?
वहीं से हमने ज्ञानजी को फोनियाया और उनकी अभयजी से वार्ता स्थापित हुयी। आने-जाने के वायदे भी हुये। फोन तो हमने प्रमोदजी को भी मिलाया लेकिन वह मिलने के लिये तैयार न हुआ।
शाम हो गयी तो अभयजी घर जाने के लिये उठ खड़े हुये। चलते-चलते उन्होंने एक बार हमारी श्रीमतीजी को ब्लागिंग के लिये उकसाने का प्रयास किया\ इस बीच एक घंटे की नींद से उनका दिमाग तरोताजा हो चुका था सो उन्होंने इस बीच बड़ा धांसू डायलाग सोच रखा था। बोली -भाईसाहब हमारी प्राथमिकता हमारे बच्चे हैं। वे कुछ बन जायें तब और कुछ करने की सोचें। अभय तिवारी इस जबाब से इत्ता हड़बड़ा गये कि बोलने लगे- हां, आप सही कहती हैं। बच्चों के लिये तो सब कुछ करना चाहिये। अनूपजी को ब्लागिंग में टाइम बरबाद करने की बजाय बच्चों की पढ़ाई पर ध्यान देना चाहिये।
मित्रों, यह मैं इसलिये बता रहा हूं कि आप नोट कर लें कि अगर कल को हम ब्लाग जगत से विदा लेते हैं तो उसमें अभयतिवारीजी के इस सद्भावनापूर्ण उकसावे की भी भूमिका जरूर होगी।

क्या बालिंग है!
अभयजी को छोड़ने के लिये हमे स्वरूप नगर जाना था। उनको साथ में लेकर हम राजीव टंडन के घर गये। वहां अपनी फ़टफ़टिया रखी। फिर हम तीनो लोग राजीवजी की सवारी में सवार होकर मोतीझील की बनारसी चायवाले की दुकान पर चायपान करने गये। कानपुर की बहुत पुरानी इस चाय की दुकान पर दूर-दूर से लोग चाय पीने आते हैं। हम भी गये। वहां अभयजी अपना कैमरा चमकाने लगे। एक आदमी बार-बार कैमरे के सामने आ रहा था कि उसकी फोटो आ जाये। बाद में उसने पूछा भी कि आप लोग कहां से आये हो? हमने कहा ये जो फोटो खींच रहे हैं(अभयजी) वे अमेरिका से आये हैं।यहां सूटिंग के लिये जगह छांट रहे हैं। लेकिन उसने मेरी बात का भरोसा नहीं किया। अभयजी के चेहरे से निर्मल आनन्द टपक रहा था कहीं से अमेरिकीपन नहीं दिख रहा था। बात यहीं तक होती तो ठीक थी लेकिन बाद में हमारी मुंबई से आने और टेलिविजन के लिये सूटिंग करने की बाद को भी अभयजी ने अपनी हंसी पटरा कर दिया। ले-देकर हम अपने को अमेरिकी, मुंबइया साबित करने की कोशिश करते हुये ठेठ कनपुरिया बन के रह गये। :)
चाय के बाद अभयजी को वहां छोड़ा गया जहां कि अभयजी स्कूटर खड़ा था। जैसे तमाम बातों के बाद असली बातें घर के दरवाजे पर होती हैं वैसे ही विदा होने के पहले ब्लागिंग के बारे में गुफ़्तगू हुई। तमाम ब्लागरों क जिक्र आया। यह भी कि सारथीजी के ब्लाग पर कैसे इतने कम समय में लाखों हिट्स हो जाती हैं जबकि हम दिन भर में कुलजमा दो सौ हिट्स पाकर ही ठंडा पानी पी लेते हैं। हमलोग इस बात पर एक मत हुये कि शास्त्रीजी महान हैं। इसके हमें टंडनजी ने राजदाराना अंदाज में बताया कि उनके पास एक तरकीब है जिससे कि जिस दिन से कोई अपना ब्लाग चालू करे उसी दिन से एक लाख से ज्यादा हिटस पाने लग सकता है। हम लोग लाख पूछते रहे कि हमें भी बताओ भाई लेकिन उन्होंने बतायी नहीं। हमें एक बार फ़िर लगा कि ये तकनीक के जानकार जितना बताते हैं उससे ज्यादा छिपाते हैं। अगर राजीव टंडन बता देते तो उनका क्या चला जाता? हम उनके हिट्स अपने ब्लाग में लगाकर कुछ अमीर थोड़ी ही बन जाते। हमारे यहां तो विज्ञापन भी नहीं लगे हैं। अच्छा आप ही बताओ क्या ऐसा संभव है कि किसी तरकीब से पहले दिन से ही ब्लाग में एक लाख हिट्स होने लगें?
जब मैं अभयजी को और राजीव से विदा लेकर घर वापस पहुंचा तो श्रीमतीजी से दोस्तों के बारे में बतियाने लगे। वे बोली- ये लड़का (अभय तिवारी) तो स्मार्ट लगता है। हमने बताया कि उनकी स्मार्टनेस से हमें कोई एतराज नहीं है लेकिन लड़का शादीद्शुदा है। वे हमारी बात मानने को तैयार नहीं हुयीं। यह तब जबकि अभयतिवारी उनको बातचीत के दौरान बता चुके थे कि उनकी श्रीमतीजी मुंबई में टेलिविजन में सीरियल (फिलहाल तीन बहूरानियां) संबद्ध हैं। यह ध्यान दिलाये जाने के बाद उन्होंने यह तो मान लिया कि लड़का शादीशुदा है लेकिन उसकी उमर उन्होंने 25 साल से अधिक मानने से मनाकर दिया है। यह भी पूछा है कि वे दुबारा आकर बतायें कि इस सेहत का राज क्या है?
अभी अभयतिवारी कुछ दिन और कानपुर में हैं। उनसे फ़िर मुलाकत होगी। तब शायद वे अपनी स्मार्टनेस के राज बतायें। तब तक शायद राजीव टंडनजी भी कुछ बतायें कि कैसे पहले दिन से ही एक लाख हिट्स पाये जा सकते है। :)

शानदार फ़ील्डिंग

अभयतिवारी

23 responses to “मुंबई से आया मेरा दोस्त…”

  1. Neeraj Rohilla
    अच्छी जानकारी मिली इस पोस्ट से, हम आपसे मिलने आयेंगे तो केवल चाय-नाश्ता करने के लिए उसे ब्लॉगर मीट समझकर कवितायेँ न सुनाने लग जाइयेगा :-)
    कवितायेँ सुनने का वायदा तो हमने समीर जी से कर रखा है, आपसे तो अन्य मुद्दों पर हल्की-फुल्की बातें ही अच्छी रहेंगी :-)
    वैसे विवरण पढ़कर काफी अच्छा लगा, ये भी पता चला की आपको बागवानी का भी शौक है | तस्वीरें सभी चका-चक आयीं हैं |
  2. श्रीश शर्मा
    सुबह-सुबह यह मिलन प्रसंग सुना कर आपने हम गप प्रेमी हिन्दुस्तानियों पर बहुत उपकार किया है। अब जरा स्वामी निर्मलानन्द जी भी रिपोर्ट करें आप कितना सच बोले और कितना झूठ।
    आभार! :)
  3. Gyan Dutt Pandey
    अभय के बारे में यह जान कर कि वे मैरिज क्षेत्र में उपलब्ध नहीं हैं – बहुत सी लड़कियों के पिताओं को निराशा हुई होगी! :-)
    अभय प्रिय व्यक्तित्व हैं – उन्हे “बस कलम की मजदूरी” जैसी सोच से निजात पाना चाहिये। He must understand the richness and abundance in life and on earth.
  4. अनिल रघुराज
    मजा नहीं आया। तीन ब्लॉगर, ऊपर से कनपुरिया। फिर भी सीधी-सीधी बातें हुईं। कुछ तो लमतड़ानी होनी चाहिए थी। यह क्या कि सुदर सा लॉन, ऊपर से मोर-मोरिनी की तस्वीरें…यह सब हमें दिखाके जलाके रख दिया। अभय जी आपसे ऐसी उम्मीद नहीं थी।
  5. मनीष
    शुक्रिया इस मजेदार रपट के लिए !
  6. alok puranik
    भई भौत भड़िया।
    अभय तिवारीजी सिर्फ लेखन में क्या कर रहे हैं, एक्टिंग में हाथ आजमायें। मामला झक्कास जमेगा।
    आपका घऱ ही हमें सूटिंग स्थल लग रहा है।
    हमें तो गलतफहमी थी कि कनपुरिया चिरकुट पालते हैं, पर जी अब पता लग गया कि मोर भी पालते हैं।
    ये दिल मांगे मोर
    अब आपके यहां आना पड़ेगा।
  7. Shiv Kumar Mishra
    दोस्त को सलाम.
  8. संजय बेंगाणी
    “निर्मल आनन्द टपक रहा था कहीं से अमेरिकीपन नहीं दिख रहा था।” वाह! क्या व्यंग्य है.
    लम्म्बा विवरण, मगर मजा आया. हरियाली देख हरे हो गए.
  9. अफ़लातून
    अभय पर पूँजीवाद-सामन्तवाद व ब्राह्मणवाद के हमले ! बचना ऐ हसीन !
  10. chavanni
    baat-mulaqaat rochak lagi.chaliye…kabhi kanpur mein milte hain fursat se.
  11. abhay tiwari
    जितना हम अनूप जीं से मिल के इम्प्रेस नहीं हुए उतना ये रपट पढ़ के हो गए .. कमाल की ऑब्जेक्टविटी है भाई .. और yaad daashta bhee..सब कुछ लिख देते हैं ..
    अनूप जीं बड़े भाग्यशाली आदमी हैं ये एहसास उनके रहन सहन और परिवार को मिल देख के huaa.. बच्चो को बहुत अच्छे संस्कार देके पाला है शुक्ला दम्पति ने.. उनका जीवन इस से भी खुशहाल हो.. ऎसी मेरी कामना है
    ये कमेन्ट ज्ञान भाई के टूल का उपयोग कर के लिखा गया है.. उन्हें धन्यवाद..
  12. Sanjeet Tripathi
    बहुत बढ़िया विवरण!!
    शुक्रिया, अभय जी के विवरण का इंतजार रहेगा!!
  13. बोधिसत्व
    अभय को देख कर आनन्द आया। अनूप जी एक फोटो भाभी जी का भी लगा देते । तो ……..
  14. Amit
    खूब, बाकी सब तो ठीक है अनूप जी, जब अपन आएँगे तो क्रिकेट अपन भी खेल लेंगे आपके बच्चे के साथ, लेकिन कविताएँ नहीं सुनेंगे पहले बताए देते हैं, कविता अपने को समझ नहीं आती, बाउंसर निकल जाती है!! :)
  15. उन्मुक्त
    पढ़ कर अच्छा लगा।
  16. राजीव
    रिपोर्ट बिलकुल सटीक है, हाँ एक बात स्पष्ट कर दी जाय
    ये जो हमारे दोस्त आये हैं वे भी ब्लागर हैं सो शिष्टाचार वश यह तो कहा नहीं कि इस फ़ालतू काम में समय बरबाद करने का उनका मन नहीं है।
    यदि उन्होंने कहीँ शिष्टाचार भंग ही कर दिया होता तो सच में हम भी शिष्टाचार भंग कर उनकी बात का समर्थन ही करते ;)
    (इस स्माईली को सीरियस स्माईली माना जाय)
    एकाध और व ज़ूम कर सकने योग्य तस्वीरें यहाँ भी लगा दी गयी हैं
    http://picasaweb.google.co.uk/rajeev.tandon/2007OCT07
  17. आभा
    आप लोगों की मस्ती देख कर और पझड कर मुझे बहुत मजा आया…..अच्छी पोस्ट के लिए आभार
  18. समीर लाल
    यह भी खूब निर्मल मिलन रहा. बाग बगिया मोर सब तो है इसमें. इससे निर्मल और क्या होगा-खास तो पर जब निर्मलानन्द अभय तिवारी खुद उपस्थित हों. अच्छा लगा पढ़ना और तस्वीरें देखना. आभार.
  19. अजित वडनेरकर
    गुड गुड लगा अनूपभाई पढ़कर। अभयजी की बात सौ टंच सच है कि कमाल की याददाश्त है आपकी । सारा वृतांत क्या लगे हाथ टाईप करते जा रहे थे जब घट रहा था ? मज़ा आया पढ़कर। संजीतजी सही कह रहे हैं, अब अभयजी के लिखे का इंतजार रहेगा.
  20. प्रमेन्‍द्र प्रताप सिंह
    हमें आपके यहॉं क्रिकेट न खेल पाने का ग़म है, फिर ट्राई करेगें तैयार रहिएगा।
    काफी अच्‍छा लगा पढ़कर
  21. फुरसतिया » आओ तुमको एक गीत सुनाते हैं
    [...] प्रमोद तिवारी के बारे में मैंने विस्तार से पहले भी लिखा है। जो लिखा उसे आप यहां पढ़ सकते हैं। इसके बाद यह कविता उनकी आवाज में सुनें। जानकारी के लिये बता दें कि यही वह कविता है जिसे मैंने अभय तिवारी को जबरियन सुनाने की कोशिश की थी कानपुर में। बहरहाल आप कविता सुनें और साथ में पढ़ते भी जायें। कैसी लगी यह कविता बतायें। [...]
  22. : कलामे रूमी एक बेहतरीन काव्य रूपान्तरण
    [...] कानपुर में कई बार मिले। कानपुर में मिलने आये तो हमारी श्रीमतीजी ने उनकी उमर पच्चीस [...]
  23. : फ़ुरसतिया-पुराने लेखhttp//hindini.com/fursatiya/archives/176
    [...] मुंबई से आया मेरा दोस्त… [...]


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