http://web.archive.org/web/20140420082855/http://hindini.com/fursatiya/archives/4663
पता चला कि इधर रुपये के हाल नासाज हैं। गिर रहा है डालर के मुकाबले। गिर तो खैर पहले भी रहा था लेकिन इधर जरा ज्यादा तेजी से गिर रहा है। गिरता ही चला जा रहा है। मान ही नहीं रहा है। इत्ता कि मीडिया चैनलों के लिये चिन्ता का विषय हो गया है। चैनलों की चिन्ता और चिन्तन का स्तर इस बात से समझिये कि ’देश का अगला प्रधानमंत्री कौन’ तक पर बहस छोड़कर रुपया चिंतन करने लगे हैं।
मजे की बात हमको पिछले दो-तीन दिन में चैनल और अखबार छोड़कर और कोई गिरते रुपये पर चिन्ता करते नहीं दिखा। कल शाम कानपुर आने के लिये स्टेशन के लिये चले तब ड्राइवर ने लगातार बरसते पानी पर चिन्ता व्यक्त की। लेकिन गिरते रुपये के बारे में कोई चर्चा नहीं की। टी.टी. ने टिकट चेक करने के अलावा कोई बात नहीं की। सहयात्रियों में से कईयों ने बार-बार कम्बल से मुंह निकालकर यह पूछा कि गाड़ी कहां पहुंची? किसी के मुंह से हमने यह नहीं सुना कि रुपया कहां पहुंचा?
सबेरे अपनी गाड़ी से ही हमने देखा कि बगल की मालगाड़ी का ड्राइवर सिग्नल के इंतजार में मालगाड़ी के पैनल पर पैर धरे , जैसे दफ़्तर में कुर्सी पर बैठे बाबू लोग मेज पर धरते हैं, अखबार पढ़ रहा था। मालगाड़ी में कोयला लदा था। मन किया कि उससे पूछें कि इसमें कहीं कोयला मंत्रालय की खोयी फ़ाइलें तो नहीं हैं लेकिन तब तक मालगाड़ी ने सीटी बजा दी। फ़िर चल दी।
प्लेटफ़ार्म पर उतरे तो देखा कि एक आदमी दो गदहों को साथ लिये चला जा रहा था। मन में सोचा कि क्या प्लेटफ़ार्म पर गदहे आ सकते हैं? क्या इनको भी प्लेटफ़ार्म टिकट लेना होता है? लेकिन फ़िर यह सोचकर कि जब गाड़ी और आदमी प्लेटफ़ार्म पर आ सकते हैं तो ये गदहे क्यों नहीं? आगे एक बाबा अकेले बैठे थे। आजकल दिन की रोशनी में किसी बाबा का अकेले रहना बड़ा अटपटा लगता है। लगा कि ये बाबा कोई महंत होते तो इनकी सुबह इतनी अकेली नहीं होती। गदहे, उसके मालिक और बाबा में से किसी ने भी मुझसे रूपये के अवमूल्यन पर चर्चा नहीं की। सब इस राष्ट्रीय समस्या से उदासीन दिखे।
आगे चले तो देखा कि पटरी पर जाती गाड़ी के गुजर जाने का इंतजार करते हुये एक दूधिया अपने दूध के पीपे को स्टूल सरीखा बनाये बैठा था। सर नीचे झुकाये कुछ सोचता सा दिखा वह। लेकिन उसके सोचने के अंदाज से यह कत्तई नहीं लगा कि वह गिरते रुपये को देखकर हलकान है।
बाहर निकलते ही एक ऑटो वाले ने हमको लपक लिया। किराया उत्ता ही बताया जित्ता उस समय बताया था जब डॉलर 54 रुपये पर थी। आज डॉलर के 68 रुपये पर पहुंचने पर भी किराया वही था। हमने सोचा कि शायद मांग भले न रहा लेकिन गिरते रुपये से कुछ तो चिन्तित होगा अगला। लेकिन उसने गिरते रुपये पर कोई चिन्ता जाहिर नहीं की।निश्चिन्तता से मुंह ऊपर उठाकर आंख मूंदकर मसाला मुंह के हवाले किया और झटके से ऑटो स्टार्ट कर दिया।
रास्ते में हमने ऑटो वाले को उसके मसाला खाने की आदत पर टोंका। बताया कि नुकसान करता है। उसने कहा कि ऑटो लाइन में बिना मसाले के गुजारा नहीं। आदत पड़ जाती है। लेकिन हम माने नहीं। उसको समझाते ही रहे कि मसाला नुकसान करता है। वो नहीं माना तो उसके बच्चों को घसीट लिया बातचीत में। कहा- मसाला खाने से तुम्हें कुछ हो गया तो बच्चों को कौन देखेगा। बच्चों की बात आने पर वह मेरे तर्क से पसीज सा गया। उसने आश्वासन दिया कि वह मेरी बात पर गौर करेगा। यह वायदा उसने उसी अधबने ओवरब्रिज के पास किया जो पिछले तीन-चार साल से अधबना है और जिसके ’इसी साल पूरा हो जाने’ की घोषणा यदा कदा लोग करते रहते हैं। घर पहुंचने तक ऑटो वाले ने न मंहगाई का जिक्र किया और न ही रुपये के अवमूल्यन का।
घर में भी किसी ने गिरते रुपये पर चिन्ता नहीं की। अलबत्ता आशाराम को जरूर गरियाया जाते सुना मैंने जब टीवी पर उनका चेहरा दिखा। हमारे घर वालों तक को पता है कि आशाराम का पैसा कहां-कहां लगा है। क्या-क्या लीलायें करता रहतें है ये संतई की आड़ में।
शाम को फ़िर जब प्राइमटाइम पर गिरते रुपये की चर्चा सुनी तो लगा कि और चैनलों के अलावा कोई क्यों नहीं चिन्तित है गिरते रुपये के बारे में?
कहीं यह चैनल वालों की ’देश का अगला प्रधानमंत्री कौन’ विषय को पीछे धकेलने की साजिश तो नहीं?
सोचने को तो हम यह भी सोचने लगे कि रूपये के अवमूल्यन का कारण यह है कि देश को चलाने वाले उसे गदहा समझ कर हांक रहे हैं, संपन्न लोग निठल्ले बाबाओं के आश्रम में शांति तलाश रहे हैं और आम जनता रेल की पटरी के किनारे सर पर हाथ धरे बैठे दूधिये की तरह इस इंतजार में है कभी तो लाइन क्लियर होगी। कभी तो यह कलयुग निपटेगा।
यह सोचते-सोचते बगल के कमरे से आवाज आई- आओ कृष्ण का जनम होने वाला है। पूजा करो। घंटा बजाओ। आरती उतारो।
हमें लगता है कृष्ण भी गिरते रुपये को अपनी उंगली पर गोवर्धन पर्वन की तरह थाम लेने की मंशा से आये हैं।
आपको क्या लगता है?
गिरता रुपया होता चिन्तन
By फ़ुरसतिया on August 28, 2013
पता चला कि इधर रुपये के हाल नासाज हैं। गिर रहा है डालर के मुकाबले। गिर तो खैर पहले भी रहा था लेकिन इधर जरा ज्यादा तेजी से गिर रहा है। गिरता ही चला जा रहा है। मान ही नहीं रहा है। इत्ता कि मीडिया चैनलों के लिये चिन्ता का विषय हो गया है। चैनलों की चिन्ता और चिन्तन का स्तर इस बात से समझिये कि ’देश का अगला प्रधानमंत्री कौन’ तक पर बहस छोड़कर रुपया चिंतन करने लगे हैं।
मजे की बात हमको पिछले दो-तीन दिन में चैनल और अखबार छोड़कर और कोई गिरते रुपये पर चिन्ता करते नहीं दिखा। कल शाम कानपुर आने के लिये स्टेशन के लिये चले तब ड्राइवर ने लगातार बरसते पानी पर चिन्ता व्यक्त की। लेकिन गिरते रुपये के बारे में कोई चर्चा नहीं की। टी.टी. ने टिकट चेक करने के अलावा कोई बात नहीं की। सहयात्रियों में से कईयों ने बार-बार कम्बल से मुंह निकालकर यह पूछा कि गाड़ी कहां पहुंची? किसी के मुंह से हमने यह नहीं सुना कि रुपया कहां पहुंचा?
सबेरे अपनी गाड़ी से ही हमने देखा कि बगल की मालगाड़ी का ड्राइवर सिग्नल के इंतजार में मालगाड़ी के पैनल पर पैर धरे , जैसे दफ़्तर में कुर्सी पर बैठे बाबू लोग मेज पर धरते हैं, अखबार पढ़ रहा था। मालगाड़ी में कोयला लदा था। मन किया कि उससे पूछें कि इसमें कहीं कोयला मंत्रालय की खोयी फ़ाइलें तो नहीं हैं लेकिन तब तक मालगाड़ी ने सीटी बजा दी। फ़िर चल दी।
प्लेटफ़ार्म पर उतरे तो देखा कि एक आदमी दो गदहों को साथ लिये चला जा रहा था। मन में सोचा कि क्या प्लेटफ़ार्म पर गदहे आ सकते हैं? क्या इनको भी प्लेटफ़ार्म टिकट लेना होता है? लेकिन फ़िर यह सोचकर कि जब गाड़ी और आदमी प्लेटफ़ार्म पर आ सकते हैं तो ये गदहे क्यों नहीं? आगे एक बाबा अकेले बैठे थे। आजकल दिन की रोशनी में किसी बाबा का अकेले रहना बड़ा अटपटा लगता है। लगा कि ये बाबा कोई महंत होते तो इनकी सुबह इतनी अकेली नहीं होती। गदहे, उसके मालिक और बाबा में से किसी ने भी मुझसे रूपये के अवमूल्यन पर चर्चा नहीं की। सब इस राष्ट्रीय समस्या से उदासीन दिखे।
आगे चले तो देखा कि पटरी पर जाती गाड़ी के गुजर जाने का इंतजार करते हुये एक दूधिया अपने दूध के पीपे को स्टूल सरीखा बनाये बैठा था। सर नीचे झुकाये कुछ सोचता सा दिखा वह। लेकिन उसके सोचने के अंदाज से यह कत्तई नहीं लगा कि वह गिरते रुपये को देखकर हलकान है।
बाहर निकलते ही एक ऑटो वाले ने हमको लपक लिया। किराया उत्ता ही बताया जित्ता उस समय बताया था जब डॉलर 54 रुपये पर थी। आज डॉलर के 68 रुपये पर पहुंचने पर भी किराया वही था। हमने सोचा कि शायद मांग भले न रहा लेकिन गिरते रुपये से कुछ तो चिन्तित होगा अगला। लेकिन उसने गिरते रुपये पर कोई चिन्ता जाहिर नहीं की।निश्चिन्तता से मुंह ऊपर उठाकर आंख मूंदकर मसाला मुंह के हवाले किया और झटके से ऑटो स्टार्ट कर दिया।
रास्ते में हमने ऑटो वाले को उसके मसाला खाने की आदत पर टोंका। बताया कि नुकसान करता है। उसने कहा कि ऑटो लाइन में बिना मसाले के गुजारा नहीं। आदत पड़ जाती है। लेकिन हम माने नहीं। उसको समझाते ही रहे कि मसाला नुकसान करता है। वो नहीं माना तो उसके बच्चों को घसीट लिया बातचीत में। कहा- मसाला खाने से तुम्हें कुछ हो गया तो बच्चों को कौन देखेगा। बच्चों की बात आने पर वह मेरे तर्क से पसीज सा गया। उसने आश्वासन दिया कि वह मेरी बात पर गौर करेगा। यह वायदा उसने उसी अधबने ओवरब्रिज के पास किया जो पिछले तीन-चार साल से अधबना है और जिसके ’इसी साल पूरा हो जाने’ की घोषणा यदा कदा लोग करते रहते हैं। घर पहुंचने तक ऑटो वाले ने न मंहगाई का जिक्र किया और न ही रुपये के अवमूल्यन का।
घर में भी किसी ने गिरते रुपये पर चिन्ता नहीं की। अलबत्ता आशाराम को जरूर गरियाया जाते सुना मैंने जब टीवी पर उनका चेहरा दिखा। हमारे घर वालों तक को पता है कि आशाराम का पैसा कहां-कहां लगा है। क्या-क्या लीलायें करता रहतें है ये संतई की आड़ में।
शाम को फ़िर जब प्राइमटाइम पर गिरते रुपये की चर्चा सुनी तो लगा कि और चैनलों के अलावा कोई क्यों नहीं चिन्तित है गिरते रुपये के बारे में?
कहीं यह चैनल वालों की ’देश का अगला प्रधानमंत्री कौन’ विषय को पीछे धकेलने की साजिश तो नहीं?
सोचने को तो हम यह भी सोचने लगे कि रूपये के अवमूल्यन का कारण यह है कि देश को चलाने वाले उसे गदहा समझ कर हांक रहे हैं, संपन्न लोग निठल्ले बाबाओं के आश्रम में शांति तलाश रहे हैं और आम जनता रेल की पटरी के किनारे सर पर हाथ धरे बैठे दूधिये की तरह इस इंतजार में है कभी तो लाइन क्लियर होगी। कभी तो यह कलयुग निपटेगा।
यह सोचते-सोचते बगल के कमरे से आवाज आई- आओ कृष्ण का जनम होने वाला है। पूजा करो। घंटा बजाओ। आरती उतारो।
हमें लगता है कृष्ण भी गिरते रुपये को अपनी उंगली पर गोवर्धन पर्वन की तरह थाम लेने की मंशा से आये हैं।
आपको क्या लगता है?
Posted in बस यूं ही | 20 Responses
हम सब हमेशा की तरह वेटिंग मोड में हैं , कुछ दिनों में या तो रुपया सुधर जाएगा या सिधार जाएगा
देवांशु निगम की हालिया प्रविष्टी..१५ अगस्त का तोड़ू-फोड़ू दिन !!!
प्रवीण पाण्डेय की हालिया प्रविष्टी..पर्यटन, रेल और नीरज जाट
दो चार दिनों में सब फरिया जाएगा घबराईये मत !
arvind mishra की हालिया प्रविष्टी..गोरे रंग पर ना गुमान कर.…
पंछी की हालिया प्रविष्टी..Poem on Janmashtami in Hindi
काहे पान वाले पे, नज़रें जमीं है !
जीवन की शिक्षा तुम्हें सीखना हो
हमें दूधिये की, बेफिक्री लगी है !
सतीश सक्सेना की हालिया प्रविष्टी..कौन किसे सम्मानित करता,खूब जानते मेरे गीत -सतीश सक्सेना
कट्टा कानपुरी असली वाले की हालिया प्रविष्टी..कौन किसे सम्मानित करता,खूब जानते मेरे गीत -सतीश सक्सेना
रूपये के गिरने में कहीं विदेशी हाथ तो नहीं .:)
दीपक बाबा की हालिया प्रविष्टी..सब मिथ्या… सब माया… सब बकवास/गल्प….
.
.उम्दा।