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जे न मित्र दुख होंहि दुखारी
By फ़ुरसतिया on August 4, 2013
आज
मित्रता दिवस है। सब जगह मित्र भाव की बाढ़ आई है। अखबार, सोशल मीडिया सब
जगह ’फ़ेंडशिप’ का झण्डा फ़हरा रहा है। मोबाइल और मेलबॉक्स पर मित्र संदेशों
की मिसाइलें मार कर रही हैं। जिधर देखो उधर मित्रता का सागर लहरा रहा है।
लोग अपने मित्रों को शुभकामनायें दे रहे हैं। मित्रों का जीवन सुखी, सम्पन्न रहे इसकी दुआ कर रहे हैं।
कोई मित्र अगर सुख कामना कर रहा है तो इसका क्या मतलब लगाया जाये? क्या यह कि मित्र अपने मित्र का भला चाहता है? आज के जमाने में ,जहां फ़ेसबुक पर मित्रता और अमित्रता के बीच मात्र एक क्लिक का फ़ासला है, क्या यह मानना सही होगा कि लोग एक दूसरे की इतनी भलाई चाहें कि सुबह उठते ही दूसरे की भलाई कामना में जुट जाये।
इसका जबाब रामचरित मानस में मिलता है। रामचरितमानस में तुलसीदास जी राम के मुंह से सुग्रीव से कहलवाते हैं:
लेकिन रामराज में मित्रता के लिये संकट की स्थिति पैदा हो गयी थी। रामराज में किसी को कोई कष्ट था ही नहीं। तुलसीदास लिखते हैं:
रामराज में शुरु हुई मित्रता की यह व्यवस्था आज तक चली आ रही है। सच्चा मित्र अगर देखता है कि उसके मित्र के पास कोई दुख नहीं है तो वह उसके लिये दुख का इंतजाम करता है। उसके दुख से दुखी होता है। मित्रता धर्म का निर्वाह करता है।
दफ़्तर में अगर आपका साथी आपकी चुगली करके या आपके खिलाफ़ शिकायत करके आपकी परेशानी का इंतजाम कर रहा है तो समझिये वह मित्र धर्म की नींव रख रहा है। उसका प्रयास है कि आप किसी परेशानी में फ़ंसकर दुख हों ताकि वह आपके दुख में दुखी होकर मित्र धर्म निवाह सके।
पडोसी अगर आपके लिये परेशानी पैदा कर रहा है तो समझिये कि वह आपको दुखी करके खुद के लिये दुख का इंतजाम कर रहा है।
आपका बॉस अगर आपको बिना कारण परेशान करता है तो इसका कारण यह हो सकता है कि वह आपको अपना अधीनस्थ नहीं, मित्र मानता है और आपके लिये दुख का इंतजाम कर रहा है ताकि वह भी दुखी होकर मित्रता का निर्वाह कर सके।
कोई लेखक अगर अपने साथी लेखक के लेखन को पीठ पीछे दो कौड़ी का बताता है तो इसका मतलब यही है कि वह अपने लेखक मित्र के लिये दुख का इंतजाम करके उसके दुख में दुखी होने की व्यवस्था कर रहा होता है।
आज मित्रता दिवस के दिन आपको यह लेख पढवाते हुये मैं सोच रहा हूं कि कहीं आप इससे बोर होकर दुखी न हो रहे हों। अगर ऐसा है तो मुझे बता दीजियेगा ताकि मैं भी आपके दुख में दुखी हो सकूं। क्योंकि जैसा तुलसीदास जी ने लिखा है:
“जे न मित्र दुख होहिं दुखारी। तिन्हहि बिलोकत पातक भारी॥”
*ऊपर फ़ोटो में हमारे साथ हमारे मित्र प्रवीन महाजन जिनसे काफ़ी दिन बाद मिलना हुआ आज।
लोग अपने मित्रों को शुभकामनायें दे रहे हैं। मित्रों का जीवन सुखी, सम्पन्न रहे इसकी दुआ कर रहे हैं।
कोई मित्र अगर सुख कामना कर रहा है तो इसका क्या मतलब लगाया जाये? क्या यह कि मित्र अपने मित्र का भला चाहता है? आज के जमाने में ,जहां फ़ेसबुक पर मित्रता और अमित्रता के बीच मात्र एक क्लिक का फ़ासला है, क्या यह मानना सही होगा कि लोग एक दूसरे की इतनी भलाई चाहें कि सुबह उठते ही दूसरे की भलाई कामना में जुट जाये।
इसका जबाब रामचरित मानस में मिलता है। रामचरितमानस में तुलसीदास जी राम के मुंह से सुग्रीव से कहलवाते हैं:
जे न मित्र दुख होहिं दुखारी। तिन्हहि बिलोकत पातक भारी॥लोग मित्र के दुख से दुखी नहीं होते। बल्कि इसलिये दुखी होते हैं कि अगर वे मित्र के दुख से दुखी न हुये तो वे लोग उनका मुंह देखना बंद कर देगें क्यों उससे उनको भयंकर पाप लगेगा। मित्र के दुख से अधिक लोगों को अपनी चिंता रहती है। लोग सोचते हैं कि मित्र के दुख से दुखी हो जाओ बवाल कटे।
“जो लोग मित्र के दुःख से दुःखी नहीं होते, उन्हें देखने से ही बड़ा पाप लगता है।”
लेकिन रामराज में मित्रता के लिये संकट की स्थिति पैदा हो गयी थी। रामराज में किसी को कोई कष्ट था ही नहीं। तुलसीदास लिखते हैं:
“नहिं दरिद्र कोऊ, दुखी न दीना। नहिं कोऊ अबुध न लच्छन हीना॥रामराज में किसी को कोई दुख ही नहीं था। मित्र लोगों को समझ में नहीं आता होता होगा कि मित्रता कैसे निभायें। मित्रता के लिये संकट की स्थिति आ गयी होगी। तब शायद किसी ने सुझाया हो कि मित्र धर्म का निर्वाह चूंकि मित्र के दुख को देखकर दुखी होने से हो सकता है अत: सबसे मुफ़ीद तो यही रहेगा कि मित्र के लिये दुख की व्यवस्था की जाये और उसके दुख से दुखी हुआ जाये।
दैहिक, दैविक, भौतिक तापा । रामराज नहिं काहुहिं व्यापा॥”
रामराज में शुरु हुई मित्रता की यह व्यवस्था आज तक चली आ रही है। सच्चा मित्र अगर देखता है कि उसके मित्र के पास कोई दुख नहीं है तो वह उसके लिये दुख का इंतजाम करता है। उसके दुख से दुखी होता है। मित्रता धर्म का निर्वाह करता है।
दफ़्तर में अगर आपका साथी आपकी चुगली करके या आपके खिलाफ़ शिकायत करके आपकी परेशानी का इंतजाम कर रहा है तो समझिये वह मित्र धर्म की नींव रख रहा है। उसका प्रयास है कि आप किसी परेशानी में फ़ंसकर दुख हों ताकि वह आपके दुख में दुखी होकर मित्र धर्म निवाह सके।
पडोसी अगर आपके लिये परेशानी पैदा कर रहा है तो समझिये कि वह आपको दुखी करके खुद के लिये दुख का इंतजाम कर रहा है।
आपका बॉस अगर आपको बिना कारण परेशान करता है तो इसका कारण यह हो सकता है कि वह आपको अपना अधीनस्थ नहीं, मित्र मानता है और आपके लिये दुख का इंतजाम कर रहा है ताकि वह भी दुखी होकर मित्रता का निर्वाह कर सके।
कोई लेखक अगर अपने साथी लेखक के लेखन को पीठ पीछे दो कौड़ी का बताता है तो इसका मतलब यही है कि वह अपने लेखक मित्र के लिये दुख का इंतजाम करके उसके दुख में दुखी होने की व्यवस्था कर रहा होता है।
आज मित्रता दिवस के दिन आपको यह लेख पढवाते हुये मैं सोच रहा हूं कि कहीं आप इससे बोर होकर दुखी न हो रहे हों। अगर ऐसा है तो मुझे बता दीजियेगा ताकि मैं भी आपके दुख में दुखी हो सकूं। क्योंकि जैसा तुलसीदास जी ने लिखा है:
“जे न मित्र दुख होहिं दुखारी। तिन्हहि बिलोकत पातक भारी॥”
*ऊपर फ़ोटो में हमारे साथ हमारे मित्र प्रवीन महाजन जिनसे काफ़ी दिन बाद मिलना हुआ आज।
Posted in बस यूं ही | 9 Responses
फोटो बहुत चकाचक है , शर्ट जम रही है आप पर
हैप्पी वाला फ्रेंडशिप डे
देवांशु निगम की हालिया प्रविष्टी..बस ऐसे ही…
दुश्मनों की भी राय ली जाए,
मौत का ज़हर है फ़िज़ाओं में,
अब कहाँ जा कर साँस ली जाए,
बस इसी सोच में हूँ डूबा हुआ,
ये नदी कैसे पार की जाए,
मेरे माज़ी के ज़ख़्म भरने लगे,
आज फिर कोई भूल की जाए,
बोतलें खोल के तो पी बरसों,
आज दिल खोल के भी पी जाए…राहत इंदौरी
कोई बताए तो अपना दुख…!
मेरे इस दुख से दुखी होकर आपका काम तो चल ही जाएगा।
हमारी मित्रता जिन्दाबाद।
निकट भविष्य में कुछ मित्रों के दुखी होने का इन्तजाम करने वाला हूँ। ब-रास्ते वर्धा वि.वि.।
सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी की हालिया प्रविष्टी..वर्धा में फिर होगा महामंथन
दुखी मित्र पर घातक होय।
प्रवीण पाण्डेय की हालिया प्रविष्टी..संकटमोचक मंगलवार