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गरीब माफ़िया की हाय
By फ़ुरसतिया on August 14, 2013
हाल
में एक आई.ए.एस. अधिकारी का निलम्बन हो गया। लोकतंत्र में निलम्बन तो आम
बात है। कुछ लोग तो जानबूझकर निलम्बित होते रहते हैं ताकि आधी तन्ख्वाह
लेते हुये अपने दूसरे धन्धे निपटा सकें। लोग बहुत जुगाड़ लगाते हैं
’सस्पेंड’ होने के लिये।
लेकिन इस निलम्बन पर हल्ला जरा ज्यादा हो रहा है। लोग तरह-तरह की बातें बना रहे हैं। कोई कह रहा है कि किसी छुटभैये ने निलम्बन कराया। कोई कह रहा है कि इसके पीछे माफ़िया की ताकत है। कोई अल्पसंख्यक तुष्टीकरण की बात कर रहा है।
पता नहीं असलियत क्या है। जो होगी जांच में दब जायेगी। आम तौर पर जांच का मकसद ही असलियत पर पर्दा डालना होता है। लेकिन मुझे इसके पीछे ’गरीब माफ़िया की हाय’ का हाथ लग रहा है। बचपन में पढ़ा दोहा याद आ रहा है:
माफ़िया बेचारा नदी की जूठन, रेत, को खोद-खाद के, बेंच-बांच के कुछ कमाई-धमाई करता है, लोग इस मेहनती काम को अवैध ठहरा देते हैं तो मजबूरन उसे यह काम अंधेरे-उजाले करना पड़ता है। थोड़ी बहुत जो कमाई होती है उसमें तमाम लोगों को हिस्सा देना पड़ता है। नेता, गुंडा, पुलिस सबका बंधा है। मेहनत माफ़िया की लेकिन कमाई सबकी। जो थोड़ा बहुत बचता है उसमें ही पेट पलता है बेचारा माफ़िया का। पेट पालने के साथ-साथ पकड़े जाने पर जमानत मुकदमें के लिये भी कुछ बचत करनी पड़ती है। माफ़ियागीरी चमकने पर राजनीति में आने की तमन्ना पूरी करने के लिये भी कुछ इंतजाम करना पड़ता है।
अब इसमें भी अगर कोई अधिकारी सिस्टम का उसूल तोड़कर धरपकड़ करेगा तो उसको कष्ट तो होगा न। जब माफ़िया के पेट पर लात पड़ेगी तो न चाहते हुये भी उसके मुंह से हाय निकलेगी। गरीब की हाय का असर तो होना ही है। उसको कोई कैसे रोक सकता है? हाय तो ’ड्रोन’ हमने की तरह सीधे निशाने पर लगती है। लगी इस मामले में। निलम्बन हो गया अधिकारी ।
अधिकारी को सोचना चाहिये था कि माफ़िया बेचारे की कोई पक्की नौकरी तो है नहीं। अनियमित आमदनी। नियमित खतरे। बहुत जोखम उठाना पड़ता है माफ़ियागिरी में। नेता, पुलिस, गुंडो सबको जेब में रखने के बावजूद हमेशा जान का खतरा रहता है। क्या पता कौन कोई दूसरा माफ़िया धंधे पर कब्जा कर ले। न जाने कब सरकार बदल जाये। कब थानेदार का तबादला हो जाये, फ़िर से खर्चा करना पड़े। हमेशा माफ़िया पर तरह-तरह के खतरे मंडराते रहते हैं।
इतनी मेहनत, लगन और समर्पण के साथ अपना पेट पालते हुये बेचारे माफ़िया को अगर कोई सरकारी अधिकारी परेशान करता है तो उसके साथ अन्याय तो है ही। जिस माफ़िया के सैकड़ों डम्पर, जेसीबी, ट्रक जब्त हो चुके हों वह तो माफ़िया तो गरीब के साथ-साथ निरीह, लाचार और अपाहिज भी हो जाता है। ऐसे दीन- हीन, लस्टम-पस्टम माफ़िया की हाय जब निकलेगी तो अधिकारी निलम्बित तो होगा ही।
क्या कहना है आपका इस बारे में?
लेकिन इस निलम्बन पर हल्ला जरा ज्यादा हो रहा है। लोग तरह-तरह की बातें बना रहे हैं। कोई कह रहा है कि किसी छुटभैये ने निलम्बन कराया। कोई कह रहा है कि इसके पीछे माफ़िया की ताकत है। कोई अल्पसंख्यक तुष्टीकरण की बात कर रहा है।
पता नहीं असलियत क्या है। जो होगी जांच में दब जायेगी। आम तौर पर जांच का मकसद ही असलियत पर पर्दा डालना होता है। लेकिन मुझे इसके पीछे ’गरीब माफ़िया की हाय’ का हाथ लग रहा है। बचपन में पढ़ा दोहा याद आ रहा है:
“दुर्बल को न सताइये, जाकी मोटी हाय,एस.डी.एम. ’बेचारे गरीब माफ़िया’ की हाय की शिकार हुई।
मुई खाल की स्वांस सो, लोह भसम हुई जाये।”
माफ़िया बेचारा नदी की जूठन, रेत, को खोद-खाद के, बेंच-बांच के कुछ कमाई-धमाई करता है, लोग इस मेहनती काम को अवैध ठहरा देते हैं तो मजबूरन उसे यह काम अंधेरे-उजाले करना पड़ता है। थोड़ी बहुत जो कमाई होती है उसमें तमाम लोगों को हिस्सा देना पड़ता है। नेता, गुंडा, पुलिस सबका बंधा है। मेहनत माफ़िया की लेकिन कमाई सबकी। जो थोड़ा बहुत बचता है उसमें ही पेट पलता है बेचारा माफ़िया का। पेट पालने के साथ-साथ पकड़े जाने पर जमानत मुकदमें के लिये भी कुछ बचत करनी पड़ती है। माफ़ियागीरी चमकने पर राजनीति में आने की तमन्ना पूरी करने के लिये भी कुछ इंतजाम करना पड़ता है।
अब इसमें भी अगर कोई अधिकारी सिस्टम का उसूल तोड़कर धरपकड़ करेगा तो उसको कष्ट तो होगा न। जब माफ़िया के पेट पर लात पड़ेगी तो न चाहते हुये भी उसके मुंह से हाय निकलेगी। गरीब की हाय का असर तो होना ही है। उसको कोई कैसे रोक सकता है? हाय तो ’ड्रोन’ हमने की तरह सीधे निशाने पर लगती है। लगी इस मामले में। निलम्बन हो गया अधिकारी ।
अधिकारी को सोचना चाहिये था कि माफ़िया बेचारे की कोई पक्की नौकरी तो है नहीं। अनियमित आमदनी। नियमित खतरे। बहुत जोखम उठाना पड़ता है माफ़ियागिरी में। नेता, पुलिस, गुंडो सबको जेब में रखने के बावजूद हमेशा जान का खतरा रहता है। क्या पता कौन कोई दूसरा माफ़िया धंधे पर कब्जा कर ले। न जाने कब सरकार बदल जाये। कब थानेदार का तबादला हो जाये, फ़िर से खर्चा करना पड़े। हमेशा माफ़िया पर तरह-तरह के खतरे मंडराते रहते हैं।
इतनी मेहनत, लगन और समर्पण के साथ अपना पेट पालते हुये बेचारे माफ़िया को अगर कोई सरकारी अधिकारी परेशान करता है तो उसके साथ अन्याय तो है ही। जिस माफ़िया के सैकड़ों डम्पर, जेसीबी, ट्रक जब्त हो चुके हों वह तो माफ़िया तो गरीब के साथ-साथ निरीह, लाचार और अपाहिज भी हो जाता है। ऐसे दीन- हीन, लस्टम-पस्टम माफ़िया की हाय जब निकलेगी तो अधिकारी निलम्बित तो होगा ही।
क्या कहना है आपका इस बारे में?
Posted in बस यूं ही | 15 Responses
हिन्दी के ब्लॉग -व्यंगकारी के कैसे दिन आ गए ये
arvind mishra की हालिया प्रविष्टी..कहीं आप तो पत्नी के साथ ऐसा बर्ताव नहीं कर रहे हैं ?
संतोष त्रिवेदी की हालिया प्रविष्टी..सामयिक दोहे !
और, तीन महीने के बाद आधी नहीं, बल्कि पूरी तीन-चौथाई तनख्वाह मिलती है, और जांच पूरी हो जाने के बाद बाकी जमा रकम भी मिल जाती है. इसीलिए एक बार बैंक के एक बड़े अधिकारी ने खुलासा किया था कि वो कभी भी किसी को भी निलम्बित नहीं करते – बस ट्रांसफर कर देते हैं, नहीं तो बैंक को बैठे-बिठाए एक कर्मचारी को बिना काम किए भुगतान करना पड़ेगा!
रवि की हालिया प्रविष्टी..रिलायन्स 3G, 2G के रेट पर : ये तो बेवकूफ़ बनाने का आइडिया है, सर जी!
प्रवीण पाण्डेय की हालिया प्रविष्टी..मन की थाह
संतोष त्रिवेदी की हालिया प्रविष्टी..सामयिक दोहे !
संतोष त्रिवेदी की हालिया प्रविष्टी..सामयिक दोहे !
राहुल सिंह की हालिया प्रविष्टी..केदारनाथ
वैसे सपह्ल अधिकारी बनाने के कुछ गुर सिखाने की नौबत आन पड़ी है सो जल्दी ही आपके पास भी सलाह्नमा पेश करने वाली हूँ. ताकि सस्पेंड होने से बच कर शान से नौकरी की जा सके.
Rekha Srivastava की हालिया प्रविष्टी..स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या पर !