कल घर से दुकान जाने के लिये निकले आठ बजकर दस मिनट पर! मने रोज से करीब दस मिनट लेट। आज लेट हो गये, सोचते ही एक्सिलेटर पर पड़ा। गाड़ी अचकचा के भागी आगे की तरफ़। स्पीड चालीस से लपककर पहुंच गयी साठ पर। इंजन और चेसिस ने इस अचानक परिरर्तन पर नाखुशी जाहिर की। इंजन हुर्र-हुर्र करके और बाडी ने खड़खड़ाकर आपस में कुछ बातचीत की। अब हम उनकी भाषा तो बूझते नहीं। शायद भुनभुना रहे हों मेरे ऊपर। कह रहे हों दोनों मिलकर -’सुबह टाइम पर निकलता नहीं है। देर करता है। फ़िर सोचता है फ़ौरन पहुंच जाये दफ़्तर- आदमी कहीं का।’
हम कुछ और सोचते तब तक एक गाय सामने आ गयी। गाय बीच सड़क पर खड़ी थी। पहले उसने बायीं तरफ़ सींग दिया मुड़ने को फ़िर मन किया तो दायीं तरफ़ चलने का इशारा किया। हम गाड़ी धीमी कर दिये। लेकिन फ़िर शायद उसका मूड बना नहीं दायें भी चलने का और वह वहीं खड़ी हो गयी। हम चुपचाप अपनी गाड़ी किनारे करके बगलियाते हुये आगे निकल गये। गाय वहीं बीच सड़क पर आराम से खड़ी पगुराती रही। गाड़ियां उसके बगल से चुपचाप निकलती रहीं।
गाय आराम से बीच सड़क पर खड़ी लोगों को अपने दायें-बायें से निकलते देखती रही। कभी-कभी अपने कान और पूंछ फ़टकारकर मक्खियां उड़ाने जैसा कुछ काम करने लगती। फ़िर देश की प्रगति की तरह, दो कदम दायें-बायें, तीन कदम आगे-पीछे होकर , वहीं खड़ी हो जाती। गाय को कोई खतरा नहीं था सड़क पर। वह गाय थी कोई लड़की या महिला थोड़ी जिसका सड़क पर अकेले निकलना खतरे से खाली नहीं होता।
लड़कियां और महिलायें आज देश दुनिया के हर कोने पर जा रही हैं। एवरेस्ट से लेकर अंतरिक्ष पर जा रही हैं। हर जगह अपनी उपस्थिति दर्ज करा रही हैं। आगे बढ़ रही हैं। लेकिन साथ ही साथ हर जगह उनको पीछे भी घसीटने का काम जारी है। हर जगह वे असुरक्षित भी हो रही हैं। विकट बवाल है । औरत का सुरक्षित जिन्दा रहना भी आज के समय की अहम चुनौती है।
आगे सड़क पर एक आदमी अपनी स्कूटी को बीच सड़क पर रोककर किसी से बतियाने लगा। उसके सर ऊपरकर बतियाने के अंदाज से लग रहा था कि उसको मोबाइल कंपनी पर भरोसा नहीं है और वह सीधे सेटेलाइट में अपनी आवाज घुसेड़कर दूसरी तरफ़ भेज देना चाहता हो। हम उसकी बतकही की तन्मयता के प्रति नतमस्तक होकर उसको बतियाता हुये देखने लगे। दो्नों बीच सड़क पर। उसकी ’फ़ोन तपस्या’ शायद हमको पीछे देखकर भंग हो गयी। उसने अपने पैरों के स्टैंड से स्कूटी को उतारा और सरकाते हुये स्कूटी को किनारे किया। इस सब में जरूर उसने कुछ पेट्रोल बचाया होगा। ’हरित क्रांति’ में में संक्षिप्त योगदान देकर वह फ़िर दुबारा सड़क किनारे स्कूटी को अपने दोनों टांगों के बीच फ़ंसाये हुये सर ऊपर करके बतियाने लगा।
आगे फ़जलगंज के पहले एक जगह कूड़े का ढेर लगा था। दो-चार सुअर बड़ी तेजी और तन्मयता से उस कूड़े के ढेर पर पड़े कूड़े को इधर-उधर कर रहे थे। जिस तन्मयता से वे सुअर कूड़े को चिंचियाते हुये खखोर रहे थे उसको देखकर लगा मानों बड़ी-बड़ी राष्ट्रीय-बहु्राष्ट्रीय कम्पनियां देश-दुनिया की प्राकृतिक संपदा हिल्ले लगाने के काम में जुटी हों।
सामने सूरज भाई दिखे। एक उंचे मकान की छत पर बैठे थे। छत पर सरिया निकली हुई थीं। मने मकान ऊंचाई और बढ़ने का इंतजाम हो रखा है। हमने मसखरी करते हुये कहा- ’अरे भाई, सरिया पर मत बैठो। बवाल हो जायेगा।’
लेकिन सूरज भाई उदास टाइप ही बने रहे। किरणें भी दुखी-दुखी दिखीं। लगता है हाल में बच्ची और उसकी मां के साथ हुये अत्याचार का सदमा उनको भी लगा था। हमें कुछ समझ नहीं आया कि क्या कहें उनसे । सूरज भाई के हाल देखकर एकबार फ़िर अजय गुप्त जी की कविता पंक्ति याद आ गई:
सूर्य जब-जब थका हारा ताल के तट पर मिला
सच कहूं मुझे वो बेटियों के बाप सा लगा।
सच कहूं मुझे वो बेटियों के बाप सा लगा।
कल अखबार में कई खबरें पढीं जिनमें लड़कियों को परेशान करने के किस्से थे। एक जगह एक लड़की के साथ जबरियन दुष्कर्म करके उसका वीडियो बनाकर फ़िर महीनों उसके साथ बलात्कार किया गया। लड़की ने मारे डर के घर में बताया नहीं। जब अति हो गयी तब बताया और वह आदमी दबोचा गया। दूसरी जगह एक लड़की के एक विवाहित पुरुष से संबंध हो गये। घर वालों ने जब पकड़ा तो कहा-सुना होगा और लड़की ने आत्महत्या कर ली। दोनों मामलों में लड़कियां दुनिया के छलावे और छद्म का शिकार बनीं।
दुनिया के नैतिक प्रतिमानों के हिसाब से यौन अपराधों में दोष भले ने स्त्री का न हो लेकिन सबसे ज्यादा सजा उसको ही मिलती है। न जाने कितने साल, सदी लगेंगे इस सोच को बदलने में।
इस तरह की घटनायें जिसके साथ होती हैं उनकी मन:स्थिति वही समझ सकती हैं। लेकिन अगर वे समझ सकें कि जीवन से अमूल्य कुछ नहीं होता तो सदमों से उबरना आसान होगा ।
आज रानी का जन्मदिन है। जब यह स्कूल जाती बच्ची थी तब इससे 10 साल बड़े एक आदमी ने इस पर तेजाब फ़ेंका था क्योंकि रानी ने उसके प्रेम प्रस्ताव को ठुकराया था और उसको थप्पड़ मारा था। तेजाब के हमले से रानी की दोनों आंखे चली गयीं थी और बहुत तकलीफ़ में रही। महीनों कोमा में और फ़िर आईसीयू में रही। आज भी रानी की जिन्दगी दूसरों पर निर्भर है लेकिन साथियों ने उसको सदमें से उबारा। जीने की ललक पैदा की। अब तो रानी का उसका हौसला इतना ऊंचा है कि ताज्जुब होता है देखकर।
रानी को उसके जन्मदिन की मंगलकामनायें।
रानी के बारे में लिखा पहले का लेख
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