कल झाँसी जाना हुआ। बच्चा लंबी छुट्टी के बाद वापस लौट रहा था। उसको भेजने के लिए। सड़क के रास्ते गए। सड़क के दोनों तरफ खेत-मैदान 'पानी पटे' थे। लबालब पानी। कोई पूछता खेत और मैदान से -'भैया थोरो पानी और लै लेव' तो शायद जबाब देते -'न भैया, और न चाहिए। अफर गए। मने पेट भर गया।'
बीच-बीच में हवा खेत-मैदान में जमा पानी को हिला सा देती। पानी को गुदगुदी होती होगी। वह सिहरता सा होगा। उसके निशान खेत के पेट पर दीखते। लहरें सी दिखती पानी पर और फिर शांत हो जाती। फिर कुछ देर में अगली लहर चलती।जैसे कोई मुद्दा मिडिया में उछलता है और कुछ दिन बाद शांत हो जाता ताकि अगला मुद्दा उछल सके।
सड़क सावन के मौसम में झूले सी थी। गाड़ी को हलके-हलके झुलाती हुई आगे बढ़ा रही थी। बीच-बीच में कोई गढ्ढा आ जाता तो गाड़ी ज्यादा उछल जाती। तब लगता कि भैया ई सड़क है सावन का झूला नहीं।
जाते समय 4 ठो टोल बूथ पड़े। 220 किलोमीटर की यात्रा में आने जाने का कुल टोल टैक्स 525 रुपया हुआ। मतलब एक रुपया प्रति किलोमीटर से भी अधिक। इत्ते में आदमी रेल से जनरल डिब्बे में दो बार आना-जाना कर ले।
बात खाली पैसे की ही नहीं भाई। लौटते में देखा तो जगह-जगह सड़क कटी-फ़टी, टूटी-फूटी मिली। मानो टोल टैक्स के 525 रूपये लेकर 'एडवेंचर टूरिज्म' कराने की व्यवस्था की गयी हो। गाड़ी जरा-जरा देर में ऐसे उछलती मानो किसी की याद में हिचकी आ रही हों उसे। उछलकर गाड़ी थोड़ा धीमे होती। एकाध घूँट डीजल पीती और आगे चल देती।
इन गढ्ढों युक्त सड़कों से स्पीड कम और दुर्घटना वगैरह होती हैं वो तो है ही। उनके किस्से तो अखबार में आ जाते हैं। पर तमाम लोगों की हड्डी इनकी चपेट में आकर चोटिल हो जाती है उसका कोई हिसाब नहीं मिलता। गाड़ी भगी चली जा रही है। कोई आराम से बैठा है, कोई लेटा है। कोई ऊँचा नीचा हिस्सा मिला सड़क का और गाड़ी उछल गयी। गयी किसी की रीढ़ काम से। दौड़ते रहो न्यूरो डाक्टर के पास। कई तो अपाहिज हो जाते हैं।
यह हाल हाई वे पर ही नहीँ है। शहर की तो हर सड़क रीढ़ की हड्डी की मुफ़्त बीमारी प्रदान करती है। आ तो जाइये आप सड़क पर किसी वाहन में। आपको रीढ़ के दर्द की सुविधा मुफ़्त में गारन्टी सहित मिलेगी।
ऐसा हो भी क्यों न। हाइवे पर जो सड़क बनाने वाले ठेकेदार हैं वे या तो खुद माफिया हैं या फिर माफिया के सताये हुए। कल अख़बार में देखा कि एक हाईवे पर सड़क बनाने का ठेका जिस कम्पनी को मिला है उससे उस इलाके के माफिया ने एक करोड़ रूपये एक मुस्त और शायद 10 लाख रूपये प्रति माह मांगे हैं तब ही वो सड़क बनने देगे। अब जो सड़क उगाही में पैसे देकर बनेगी उसमें गढ्ढे नहीं होंगे तो और क्या होगा।
पिछले दिनों टोल टैक्स भी बढ़ा है। क्या पता वह भी किसी को उगाही देने के लिए बढ़ा हो।
सड़क किनारे ही एक ढाबे में चाय पी। बाद में बताया ड्राइवर ने कि यह ढाबा राज्य के एक मंत्री के साले का है। सब जमीन पर अवैध कब्ज़ा है। ढाबा धक्काडे से चल रहा है। दनादन पैसा पीट रहा है ढाबे वाला।
जो जमीन पर अवैध कब्जा करके ढाबा चलने वाली बात एक आम आदमी को पता है वह आला अधिकारियों को भी पता होगी। लेकिन कोई कुछ कैसे करे। जब मामला अख़बार में उछलेगा तब देखा जाएगा।
एक जगह जाम भी मिला। पता चला कि एक नहर में एक लड़का नहाने गया था। वह डूब गया। गांव वाले उसके शव को सड़क पर धरकर मुवावजे की मांग करते हुए सड़क पर धरना देकर बैठे थे। बाद में पुलिस ने आकर जाम हटवाया।
झांसी में अजित वड़नेरकर से भी मुलाकात हुई।काफी दिन बाद मिलना हुआ। मजा आया। खूब बतकही हुई। 'शब्दों के सफर' के दो भाग आ चुके हैं। तीसरा तैयार है। दस खण्ड तक 'शब्दों का सफर' (http://shabdavali.blogspot.in/ )करने की योजना है अजित भाई की। इसके बाद ' शब्द व्युत्प्तति कोष' आएगा। बढ़िया काम होगा।
’शब्दों का सफ़र’ राजकमल प्रकाशन से प्रकाशित हैं। इसमें शब्दों की जन्मकुंडलियां हैं। कोई शब्द कैसे बना, कहां से चला, कहां तक पहुंचा इसकी चर्चा है। इसको खरीदने के लिये यहां पहुंचिये।
उनके दफ्तर के एक बालक ने कई फोटो खैंचे। उसकी रूचि फोटो टेढ़े करके खींचने में ज्यादा थी। लेकिन हमारा एक सीधा फोटो भी आ ही गया। देखिये।
एक फोटो झांसी के सीपरी बाजार में टोकरी बेचती महिला का। वह आराम से लेट गयी थी जहाँ बेच रही थी टोकरी। लेकिन अचानक पानी आ गया और उसको उठना पड़ा।
बालक अनन्य के साथ सेल्फी भी ली गयी। देखिये। अब तो वह नागपुर पार कर गया होगा। अपन भी चलते हैं दफ्तर की तरफ। आप मजे करिये।
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