आज समय पर निकले। तसल्ली से ’सड़क नजारा’ देखते हुये। एस.ए.एफ़. फ़ैक्ट्री के सामने सभा हो रही थी। एक व्यक्ति माइक पर कुछ बोल रहा था। उससे पचीस कदम दूरी पर खड़े लोग उसको और आसपास की बातों को सुन रहे थे। सब सावधान मुद्रा में खड़े थे। भाषण देता हुआ आदमी हमेशा चिल्लाता हुआ सा लगता है मुझे। कभी-कभी झल्लाता हुआ भी।
विजय नगर चौराहे के पास फ़ल वाले अपनी-अपनी ठेलियों से बरसाती झाड़कर दुकान सजा रहे थे। एक बुजुर्ग एक टुकनिया में कुछ अमरूद लिये सर झुकाये बैठे थे। शायद सोच रहे हों अमरूद बिक जायें तो कुछ पैसे मिल जायें।
चौराहे के पहले गुमटी पर दो सिपाही बैठे थे। एक डिवाइडर के ऊपर रखी मोटरसाइकिल पर, दूसरा गुमटी की खिड़की पर। दोनों अपने-अपने मोबाइल में झुके कुछ देख रहे थे।
चौराहे के आगे एक कुत्ता अपनी पूंछ उठाये अकड़ा सा चला जा रहा था। पूंछ ऐसे शान से उठाये था मानो उसकी शान की प्रतीक हो। सड़क खाली थी इसलिये उसकी चाल में कुछ वीआईपी पन भी था। मानों कहीं मौका मुआयना करता अधिकारी, या फ़िर किसी परेड का गार्ड आफ़ आनर लेता हुआ कोई राष्ट्राध्यक्ष।
उसको अकेले सड़क पर टहलते देखकर कुछ कुत्ते भौंकने लगे। वह भी जबाब में भौंकने लगा। पहले तो लगा नमस्कारी-नमस्कारा हो रहा हो रहा होगा। लेकिन जब देर तक चला भौंकना तो लगा शायद उनमें आरोप-प्रत्यारोप टाइप कुछ हो गया हो। क्या पता आपस में गाली-गलौज हो गयी भी हो गयी हो। हो तो यह भी सकता है कि किसी कुत्ते ने किसी कुतिया के बारे में कोई गन्दी बात कही तो दूसरे को गुस्सा आ गया और उसने उसको कस के गरियाया हो –’आदमियों की तरह हरकतें करते शर्म नहीं आती।’ दूसरे कुत्ते को भी शायद आदमी से तुलना खल गयी हो और वह भी कुछ ऐसे ही कहने लगा हो।
चौराहे के पार जाने पर दो सिपाही एक आदमी को हथकड़ी पहनाये ले जाते दिखे। हथकड़ी से बंधी लंबी रस्सी सिपाही के हाथ में थी। पकड़ा गया आदमी लम्बा, चौडा, तगड़ा, भरपूर मर्द टाइप था। घनी दाढी मूंछ वाला चेहरा रोआबदार टाइप था। लेकिन हथकड़ी हाथ में देखकर रोआब छुट्टी पर चला गया था और दीनता और मजबूरी ने उसका काम संभाल लिया था।
जरीब चौकी चौराहे पर हल्का जाम लगा था। मेरे बगल में एक रिक्शा वाला एक बैटरी टेम्पो (ई-रिक्शा) की तरफ़ देखकर बोला-’ इनकी भी हवा बस निकलने ही वाली है। साल भार में सबके होश ठिकाने आ जायेंगे।’
हमने पूछा- कैसे ?
उसने विस्तार से बताया-’ अभी कहीं भी घुसा देते हैं अपना आटो, कौनौ गली, सड़क, कुलिया में पिल जाते हैं। जाम लगा देते हैं। कौनौ पूछै वाला नहीं। अब इनका भी परमिट बनने वाला है। जगह तय हो जायेंगी वहीं चलना पड़ेगा तो आ जायेंगे ठिकाने पर।’
आगे आर्थिक दृष्टिकोण समझाते हुये रिक्शावाला- ’ एक लाख दस हजार रुपए का आता है ई-रिक्शा। 24 हजार की बैटरी आती है। छह महीने चलती है। साल में 48 हजार ठुकेंगे तो हुलिया टाइट हो जायेगी।’
और कुछ ज्ञान ले पाते तब तक जाम खुल गया। सब लोग भर्र-भर्र करते हुये निकल लिये।
एक जगह देखा कि एक गंदगी के ढेर पर खड़े होकर सुअर गंदगी को अपने थूथन के सहारे और फ़ैला रहा थे। सड़क किनारे की गंदगी को बीच सड़क तक फ़ैलाने की मंशा से। उनकी हरकतें उन जनप्रतिनिधियों सरीखी लग रही थीं जो अपने बेहूदा बयानों से किसी संवेदनशील मसले को तनावपूर्ण बनाने के लिये मेहनत करते रहते हैं। सुअरों के बीच एक गाय की बछिया एकदम सीधी बच्ची सी खड़ी थी। शायद वह कई सुअरों के बीच अपने को असुरक्षित समझकर सहमी हुई हो। लेकिन सुअर गंदगी फ़ैलाने के काम में ही जुटे इंसान में शायद यही बुनियादी फ़र्क होता हो। सुअर शायद अभी तक आदमी की तरह हरकतें करना नहीं सीखे।
टाट मिल चौराहे पर एक लोडर रुका। कुछ होमगार्ड के सिपाही लपककर उस पर चढे और मवेशियों की तरह पीछे खड़े हो गये। लोडर हिलता डुलता हुआ चल दिया। होमगार्ड के सिपाही ऊपर उठा लोहा पकड़कर आपस में हंसते-बतियाते दूर चले गये।
हमारे आगे की गाड़ी अचानक धीमी हुई। हमने ब्रेक मारा। तब तक हमारे बंपर पर पीछे से किसी ने टक्कर मारी। ’पीठ दिखौआ शीशे’ में देखा तो एक बच्ची मोपेड पर थी। टक्कर बहुत हल्के से लगी थी। बच्ची ने सर हिलाते हुये थोड़ा झटका सा दिया। शायद उसने अपने देर से ब्रेक लगाने के लिये अपने को हल्का हड़काया हो। उसके सर के बाल की लटें हवा में उछलीं। हमने गाड़ी आगे करके उसके लिये जगह दे दी। वह फ़र्राटा मारते हुये आगे निकली। हम उसको आत्मविश्वास के साथ मोपेड लेकर आगे जाते देखते हुये अधबने सीओडी ओवरब्रिज तक आये। पुल पर रोजमर्रा की दुकानें लग गयीं थीं।
हमारी भी दुकान सज गयी है। अब अपना काम किया जाये। आप मस्त रहिये
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