Saturday, February 18, 2017

'व्यंग्य श्री सम्मान-2017' की रपट-2

पिछले रपट बांचने के लिये इधर आयें: https://www.facebook.com/anup.shukla.14/posts/10210586310027428
जैसे-जैसे समय होता गया लोग आते गये। हाल के बाहर की जगह भरती गयी। लोग चाय-नाश्ता करते हुये सम्मान समारोह शुरु होने का इंतजार करते रहे। आलोक पुराणिक लोगों से मिलकर उनके आने का शुक्रिया और इनाम मिलने में उनकी शुभकामनाओं का शुक्रिया अदा करते रहे। जो लोग आते रहे उनसे और लोगों को भी मिलवाते रहे। कुछ इस लिये कि लोग जान लें एक दूसरे को लेकिन बहुत कुछ यह दिखाने के लिये कि -- ’देख लो तुम्हीं एक अकेले नहीं हो। इत्ते बड़े-बड़े लोग आये हैं बधाई देने के लिये।’
पता चला सन्नी लियोनी, राखी सावंत और मल्लिकाजी का भी आने का था लेकिन वे सब सूटिंग में व्यस्त होने के चलते नहीं आ पाईं। उन्होंने यह भी कहा-’आलोक जी आप तो एक बार में ही लेख फ़ाइनल कर लेते हो लेकिन यहां ये डायरेक्टर लोग बार-बार रिटेक करवाते हैं। भले ही फ़ाइनल पहली वाली शूटिंग ही करें। बहुत बदमाश हैं सब। लेकिन क्या करें, करना पड़ता है। पेट के लिये सब करना पड़ता है।’
वहीं समान्तर कोश के रचायिता Arvind Kumar जी से भी मिलने का सुयोग हुआ। समान्तर कोश हिन्दी का पहला थिसारस है। थिसारस भी एक तरह का शब्दकोश होता है क्योंकि इसमें शब्दों का संकलन होता है। वास्तव में थिसारस या समांतर कोश और शब्दकोश एक दूसरे के बिल्कुल विपरीत होते हैं। किसी शब्द का अर्थ जानने के लिये हम शब्दकोश का सहारा लेते हैं। लेकिन जब बात कहने के लिये हमें किसी शब्द की तलाश होती है, तो लाख शब्दों के समाए होने के बावजूद शब्दकोश हमें वह शब्द नहीं दे सकता, जब कि थिसारस यह काम बड़ी आसानी से कर सकता है।
हिन्दी में पहला थिसारस अरविन्द कुमार जी और उनकी पत्नी कुसुम कुमार जी ने मिलकर बनाया। इस काम के लिये माधुरी के सम्पादक की नौकरी छोड़ी। 20 साल काम किया। अपने साधनों से काम करने लेखकद्वय के पास न तो कम्प्यूटर खरीदने के पैसे थे, न उस पर काम के लिये पेशेवर प्रोग्रामरों से प्रोग्राम लिखवा पाने के। इनके बेटे सुमीत ने पेशे से शल्यचिकित्स्क होते हुये भी अपने माता-पिता के उद्देश्य के प्रति निष्ठा से प्रभावित होकर इस कार्य में सहयोग के लिये कम्प्यूट्रर प्रोग्रामिंग सीखी, कंप्यूट्रर खरीदवाया, काम की कार्यविधि ( प्रोग्राम) लिखी, उसे चलाने के लिये आर्थिक संसाधन जुटाये और अंत में डाटा को पाठ में परिवर्तित करने की पेचीदा प्रक्रिया का विशिष्ट समाधान भी निकाला। बिना कंप्यूटरीकरण के समांतर कोश का बनना शायद संभव नहीं हो पाता।
20 वर्षों के अनथक प्रयासों और समर्पण से अंतत: समांतर कोश का निर्माण संभव हुआ और स्वतंत्रता दिवस की स्वर्णजयंती के अवसर पर प्रकाशित हुआ।
समान्तर कोश के बारे में और जानने के लिये मेरा 11 साल पहले लिखा गया लेख बांचिये इस कड़ी पर पहुंचकर http://www.nirantar.org/1006-nidhi-samantar-kosh
समान्तर कोश के रचयिता से मिलने का यह पहला मौका था। उनसे मिलकर बहुत प्रसन्नता हुई। आलोक पुराणिक के लाख टके के इनाम मिलने के मौके पर मुझे भी लाख टके का सुख अरविन्द जी से मिलने का मिल गया। पता चला कि आलोक पुराणिक के घर के पास ही रहते हैं अरविन्द जी। 87 साल की उमर में उनकी चुस्ती-फ़ुर्ती और सक्रियता देखकर ताज्जुब होता है। फ़ेसबुक पर भी नित नयी जानकरी भरी पोस्ट लिखते रहते हैं। उनसे मिलने का भी तय हुआ।
वहीं कार्टूनिस्ट इरफ़ान (Cartoonist Irfan) से भी मिलना हुआ। इरफ़ान जी से पहली मुलाकात जबलपुर में हुई थी। दिल्ली मेले में मिले थे लेकिन दौड़ते-भागते। उनकी पत्रिका ’तीखी-मिर्च’ की सदस्यता लेने से रह गये थे दिल्ली में। यहां मिलते ही सबसे पहला काम हमने सदस्यता शुल्क देने का किया। पहले दो साल का और फ़िर ताव आ गया तो चार साल का सदस्यता शुल्क थमा दिया। लेकिन बाद में सोचा कि यार कहीं ये ’तीखी मिर्च’ पहले ही बन्द हो गयी तो गये काम से। व्यक्तिगत प्रयासों से निकलने वाली पत्रिकायें आर्थिक अभाव के चलते कब बन्द हों जाये पता नहीं लगता। जबलपुर में Rajesh Kumar Dubeyने कार्टून लीला निकाली थी। कुछ महीने निकली भी। फ़िर बन्द हो गयी। कारणों में एक कारण यह भी रहा शायद कि उसमें से कुछ के सम्पादकीय हमने भी लिखे थे। लेकिन फ़िर सोचा कि अब जो हुआ सो हुआ। मुझे इरफ़ान भाई की मेहनत और हुनर पर पूरा भरोसा है कि वे किताब निकालते रहेंगे( अब भरोसा रखने के अलावा और किया भी क्या जा सकता है)
जैसा हमको पता है कि तीखी मिर्च में कार्टून और व्यंग्य लेख निकलते हैं। अभी इन्तजार है। लेकिन पत्रिका तो तब आयेगी जब हम पता भेजेंगे इरफ़ान को। भेजते हैं आज ही।
मिलते-जुलते, लोगों के फ़ोटो लेते हुये हमारी निगाह आलोक पुराणिक पर भी बनी रही। जैसे ही हम किसी को आलोक जी से जरा सा भी ज्यादा मोहब्बत से मिलते देखते फ़ौरन घटनास्थल और मिलनस्थल पर पहुंचकर सीधा-टेढा करके फ़ोटो खैंचने लगते। इसी बहाने जो फ़ोटो जमा हुये कैमरे में वो यहां देखिये तब तक हम अगला किस्सा लिखते हैं:
जारी है अगले अंक में

https://www.facebook.com/anup.shukla.14/posts/10210594888641888

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