Tuesday, February 14, 2017

रेल की पटरी के किनारे वैलेन्टाइन




शहर पहुंचने के पहले ट्रेन के धीमे होते ही शहर ने उसको चारो तरफ़ से घेर लिया। पटरी के दोनों तरफ़ विज्ञापनों के सिपाही तैनात। दीवारों पर अंग्रेजी सिखाने और नामर्दी दूर करने के इश्तहार दिखने लगे। पैसे की चिन्ता दूर करने के लिये का फ़ंदा भी चिपका हुआ था। सबमें मोबाइल नंबर भी दिया था। बस इधर घंटी बजाओ, उधर समस्या भगाओ। पुरानी फ़ुटाओ, नई लाओ।
खरामा-खरामा चलती ट्रेन एक जगह रुक गयी। ट्रेन रुकते ही पटरी के पास निपटता आदमी झाडियों के बीच खड़ा होकर बकौल शुक्लजी गार्ड ऑफ़ ऑनर टाइप देने लगा। ट्रेन कुछ देर तक खड़ी रही। वह बोर होकर सावधान मुद्रा से विश्राम मुद्रा में आया। पास की अपेक्षाकृत घनी झाडी की आड़ में बैठकर निपटने लगा।
मन किया बच्चन साहब को फ़ोन करके कहें -देखिये साहब ये लोग आपके रोज फ़ोन करने के बावजूद खुले में ही जा रहे हैं।
आगे पटरी के किनारे पक्के में दो लोग अपनी मुंडी झुकाये दाढी बना रहे थे। एक घर के सामने जमीन से जरा ऊंचे बैठा एक बकरी को दुलरा रहा था। दूसरी बकरी पास ही एक नाद टाइप बरतन में मुंह घुसाये सुबह का नाश्ता टाइप कर रही थी। उनके बीच एक बकरी की बछिया निर्लिप्त भाव से ऊपर मुंह उठाये शायद देश के हाल पर चिंतित हो रही थी।
आठ दस घर मे बीच कुछ भुजिया के पैकेट लटके हुये उसके दुकान होने का मौन नगाड़ा बजा रहे थे। आगे पटरी के किनारे एक बुजुर्ग पान मसाले की कुछ पुडिया और अपना चेहरा लटकाये -ग्राहक और मौत कभी भी टपक/टपका सकते हैं, की शाश्वत मुनादी कर रहे थे।
रेल की पटरी किनारे मसाले की दुकान देखकर लगा कि जहां भी किसी इंसान के पहुंचने की संभावना होती है वहां बाजार पहले अपना अंगौछा रखकर दुकान खोल लेता है। इस हिसाब से मुहावरों में बदलाव लाना चाहिये। कवि-रवि की जगह अब हल्ला मचना चाहिये- ’जहां न पहुंचा व्यंग्यकार, वहां पहुंच गया बाजार।’ बाजार सर्वव्यापी है, सर्वभूतान्तरात्मा है।
एक बच्ची हैंडपम्प के हैंडलपर उछलती हुयी पानी निकालने की कोशिश में लगी हुई थी। पानी तो निकल नहीं रहा था लेकिन उसका बिनाटिकट झूला झूलने का काम पूरा हो रहा था। हैंडपाइप के सामने बहता पानी आगे एक सीवर तक पहुंचते हुये सूख जाने के बावजूद अपने होने का संदेशा शायद सीवर को दे देता होगा। क्या पता सीवर दुष्यन्त कुमार को शेर को अपने हिसाब से पढता हो-
यहां तक आते-आते निपट जाती है सारी गंदगी
मुझे मालूम है गंदा पानी कहां ठहरा हुआ होगा।
आगे एक झोपड़ी के बाहर एक महिला बर्तन मांजती और राख युक्त पानी को सामने के गढहे में गिराते हुये उसके तालाब बनने की संभावनायें बढा रही थी। क्या पता कल किसी रोजगार योजना वाले इस तालाब की फ़ोटो खैंचकर रोजगार योजना के खाते से पैसा भी खैंचने लगें।
वहीं एक सुअर तालाब के पानी में मंझाता हुआ आगे चला जा रहा था। बीच तालाब में गर्वोन्नत मुद्रा में झूमते, चलते ’वीर सुअर’ को देखकर ऐसा लगा कि शायद वह सुबह-सुबह ही किसी ’सुअर-बाला’ को वैलेंटाइन दिवस की बधाई देने के पक्का इरादा करके निकला है। तालाब से निकले कीचड़ का श्रंगार किये सुअर के शरीर पर गिरती सूरज की किरणें उसके सौंदर्य को बहुगुणित कर रहीं थीं। उसकी भाव भंगिमा से देखकर लग रहा था कि चाहे कुछ भी हो जाये लेकिन वह बिना सुअर सुन्दरी से भेंट किये वह वापस नहीं आने वाला।
मन किया एक कविता खैंच दें - ’एक महिला द्वारा बरतन मांजते हुये बने तालाब में ऐश करता हुआ सुअर जनसेवकों या फ़िर बहुराष्ट्रीय कम्पनियों सरीखा दिख रहा है।’ लेकिन फ़िर अलसा गये। कविता संभावित क्रांति की तरह स्थगित हो गयी।
सूरज की किरणों को देखकर हमने सूरज भाई को वैलेन्टाइन डे की बधाई देने की सोची। फ़ोन इंगेज्ड जा रहा था। कुछ देर बाद पलट के फोन किया #सूरज भाई ने। बोले जरा आराम से आयेंगे आज। ये किरणें, उजाला, रश्मियां , प्रकाश , रोशनी सब कह रहे हैं -"पापा जरा सबको 'वैलेंटाइन डे ' विश कर दें तब चलें। "
सूरज भाई बताने लगे -- "यहां सब तरफ़ रोशनी के पटाखे छूट रहे हैं। तारे एक दूसरे को मुस्कराते हुये देख रहे हैं। आकाश गंगायें इठला रहीं हैं। एक ब्लैक होल ने ऊर्जा और प्रकाश को धृतराष्ट्र की तरह जकड़ लिया है और फ़ुल बेशर्मी उनको "हैप्पी वेलेंटाइन डे" बोल रहे हैं। ऊर्जा को ब्लैक होल की जकड़ में कसमसाते देख आकाशगंगा ने एक बड़ा तारा फ़ेंककर ब्लैकहोल को मार दिया। उसके कई, अनगिन टुकड़े हो गये। ब्लैक होल का पांखड खंड-खंड हो गया है। अनगिनत रोशनी मुक्त होकर चहकने लगी है। क्या तो सीन है भाई! काश हम तुमको इसका वीडियो दिखा पाते।"
हमने कहा - ’सूरज भाई , हमको ये वीडियो न दिखाओ। हमको तो बस इतना बताओ कि ये जो तमाम लोग जीने के लिये रोज मरते दिखे आज सुबह-सुबह इनकी जिन्दगी में कभी कोई वैलेन्टाइन डे आयेगा क्या? ये भी कभी शान से रोशनी की किरणों सरीखे चमक सकेंगे क्या?’
इस पर सूरज भाई बिना कुछ कहे बादलों की ओट में चले गये। शायद उनके पास इसका कोई जबाब नहीं रहा होगा। आपके पास है क्या कौनौ जबाब ? बताइये?
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