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अगले वक्ता Harish Naval जी थे। हरीश जी के व्यंग्य हमने बहुत कम पढे हैं। खुदा झूठ न बुलवाये हमने उनका सबसे प्रसिद्ध लेख ’बागपत के खरबूजे’ तक अभी नहीं पढा है। हम इसे अपने अकेले की जाहिलियत मानते हुये अफ़सोस प्रकट कर सकते हैं लेकिन फ़लक बड़ा करने की नीयत से हिन्दी साहित्य की कमजोरी के मत्थे का मढने का निर्णय किया है। हिन्दी व्यंग्य के सबसे प्रसिद्ध लेखकों में से एक की सबसे पहली किताब का जिक्र नेट पर नहीं है। न ही उसकी सबसे प्रसिद्ध रचना मौजूद है नेट पर। बताइये आज का पाठक कैसे पहुंचेगे लेखक तक। भले ही उसको ’व्यंग्यश्री’ नहीं ज्ञानपीठ मिल जाये।
हिन्दी साहित्य में लेखक की लोकप्रियता और कद और कालान्तर में उसको मिलने वाले इनामों और प्रसिद्ध की मात्रा उसके उचित प्रकाशक होने की मात्रा के समानुपाती है। (शर्तें लागू)
यह लिखने के पहले हरीश जी की किताब ’माफ़िया जिन्दाबाद’ भी पलट ली यह सोचते हुये कि शायद उसमें यह लेख हो। लेकिन बच गये पढने से। लेख था नहीं उसमें। लेकिन अब जल्दी ही, संभव हुआ तो इसी महीने ही , कम से कम यह लेख जुगाड़कर तो बांच ही लेंगे।
हरीश जी का नाम तो मैंने सुन रखा था। यदा-कदा कुछ लेख भी पढे थे। लेकिन नये सिरे से हमने आलोक पुराणिक के मार्फ़त उनका नाम तब सुना और उनके बारे में जाना जब हरीश जी अपने कैंसर की बीमारी से स्वस्थ होकर वापस आये।
हरीश जी व्यंग्य के त्रिदेवों में से एक माने जाते हैं। ज्ञानजी , प्रेम जन्मेजय जी और हरीश जी को व्यंग्य के त्रिदेव के नाम से ख्यात-कुख्यात करके कई लोगों की टिप्पणियां चलती रहती हैं। हिन्दी साहित्य में शायद रचनाकारों के नाम की तिकड़ी बनाने की परम्परा चली आई है। ’पन्त, निराला, बच्चन’, ’रामविलाश शर्मा, अमृतलाल नागर, केदार नाथ अग्रवाल’, ’कमलेश्वर, राजेन्द्र यादव , मोहन राकेश’, ’परसाई, शरदजोशी, रवीन्द्रनाथ त्यागी’ की तिकड़ी की तर्ज पर ही शायद लोगों ने ’ज्ञान,प्रेम,हरीश’ जी की तिकड़ी का अविष्कार किया। मजे की बात इस काल्पनिक तिकड़ी से नाराज रहने वाले लोग भी हरीश जी को सबसे शरीफ़ व्यक्ति और व्यंग्यकार भी मानते हैं।
मुझे लगता है कि हरीश जी इस मामले में संगदोष के हादसे के शिकार हुये। प्रेम जी के साथ अध्यापन करते हुये, उसी समय में लिखते हुये, उनके साथ एक ही कालोनी में रहते हुये उनको जबरियन इन त्रिदेवों में शामिल कर लिया गया। साहित्य सेवा के लिये इतनी जबरदस्ती तो चलती है।
अपने स्तर पर हरीश जी इस काल्पनिक गठबंधन को तोड़ने की हर संभव कोशिश करते रहते हैं। उन्होंने ’परसाई, जोशी, त्यागी ’ का जिक्र करते हुये उसमें श्रीलाल शुक्ल जी को शामिल कर दिया। ’ज्ञान, प्रेम , हरीश के जिक्र में सुरेशकांत आदि को जोड़ा ( कुछ व्यंग्य की/ कुछ व्यंग्यकारों की -हरीश नवल पेज 16-17)|
बहरहाल हिन्दी व्यंग्य के इन बुजुर्गों में से हरीश जी ही हैं जिनसे मैं जब मन आता है फ़ोन पर बात कर लेता हूं। वे भी सहजता से मुझसे बात कर लेते हैं। इसलिये मुझे वे अच्छे लगते हैं। प्यारे भी। जब-तब मेरी किसी भी पोस्ट पर आशीर्वाद भी देते रहते हैं। उनके इसी प्यार के चलते हम उनकी इस बात का भी बिल्कुल बुरा नहीं मान रहे हैं कि उन्होंने इधर के उभरे व्यंग्यकारों में मेरा उल्लेख नहीं किया। मुझे अच्छे से पता है कि जब भी मैं ऐसा कभी लिखूंगा तब ही वे मुझे बता देंगे-’ अरे अनूप भाई, तुम्हारा लेखन तो उन सबसे एकदम अलग तरह का है। तुम्हारे बारे में आदि-इत्यादि में क्या लिखना। अलग से लिखेंगे कभी।’
हरीश जी के मन में आलोक पुराणिक के लिये बेहद स्नेह है। आलोक पुराणिक के कई मामलों में सीनियर हैं हरीश जी। पांच साल पहले 2012 में हरीश जी को भी व्यंग्य श्री सम्मान से सम्मानित किया गया। आज उनके संस्मरण पढते हुये पता चला कि हरीश जी पिता जी को खोने के मामले में भी सीनियर हैं। आलोक जी के पिताजी का जब निधन हुआ था तब वे 8 साल के थे। हरीश जी ने यह हादसा 5 साल की उमर में झेला जब उनके पिताजी 32 साल की उमर में नहीं रहे। समान दुख भी शायद दोनों के बीच स्नेह का एक कारक हो।
बहरहाल यह सब तो ऐसे ही। हरीश जी जब आलोक के बारे में बोलने के लिये खड़े हुये तो उन्होंने व्यंग्य के बारे में अपनी राय से बात शुरु की।
हरीश जी ने कहा: "व्यंग्य लिखना बहुत कठिन काम है। व्यंग्यकार का काम कठिन होता है। हास्य निर्मल होना चहिये। व्यंग्य को ठीक ढर्रे पर चलाने के लिए बहुत सामर्थ्य चाहिए होती है।"
आलोक पुराणिक के बारे में अपनी राय व्यक्त करते हुये हरीश जी ने कहा:
" आलोक पुराणिक आर्थिक विषयों पर समर्थ व्यंग्य लिखते थे। उनके अलग तरह के व्यंग्य जब हमने देखे तब चकित हुए। मिले तो तबसे साथ है। लेखन के लिए निरन्तरता बहुत आवश्यक है। आलोक व्यंग्य निरन्तर लिखते हैं।"
" आलोक पुराणिक आर्थिक विषयों पर समर्थ व्यंग्य लिखते थे। उनके अलग तरह के व्यंग्य जब हमने देखे तब चकित हुए। मिले तो तबसे साथ है। लेखन के लिए निरन्तरता बहुत आवश्यक है। आलोक व्यंग्य निरन्तर लिखते हैं।"
हास्य और व्यंग्य का अंतर रेखांकित करते हुये हरीश जी बोले: "हास्य और व्यंग्य में उतना ही अंतर है जितना लाभ और हानि में, जीवन और मृत्यु में होता है। जिन व्यंग्यकारों के लेखन में हास्य कम होता है वह बोझिल हो जाता है। जिस व्यंग्य में हास्य की अधिक होता है वह व्यंग्य कमजोर हो जाता है। आलोक पुराणिक तकनीकी विषयों पर लिखते हैं। आर्थिक विषयों पर गंगाधर गाडगिल लिखते थे। अब आलोक लिखते हैं। उनका कोई सानी नहीं है।"
रवीन्द्रनाथ त्यागी की यादों को साझा करते हुए हरीश जी ने रोचक किस्से सुनाये। एक बार त्यागी जी का भाषण हरीश जी ने अपने विद्यालय में आयोजित कराया। कालेज गोष्ठी में उन्होंने मुझे (हरीश नवल), प्रेम जन्मेजय, सुभाष चन्दर आलोक पुराणिक सबको कंडम कर दिया। इसका किस्सा सुनाते हुये हरीश जी ने बताया:
" हिन्दी व्यंग्य लेखन पर जब त्यागी जी वक्तव्य देते हुये जब वे हमारी पीढी , जो 1975 से प्रकाश में आई थी , पर बोलने लगे, मैं जो उनके साथ मंच पर बैठा था, पुलकित हो रहा था कि वे मेरे विद्यार्थियों और सहकर्मियों के समक्ष मेरे व्यंग्य-लेखन का प्रशस्ति पत्र पढेंगे, मेरे विगत के पच्चीस वर्षों के अनवरत अवदान की चर्चा करेंगे... परन्तु वे तो हमारी पीढी के विषय पर मात्र एक वाक्य बोलकर हमसे अगली पीढी में पहुंच गये, जहां उन्होंने आलोक (पुराणिक) और सुभाष (चन्दर) के नाम नहीं लिये। वाक्य था-’आपके हरीश नवल की पीढी में केवल ज्ञान चतुर्वेदी लिख रहा है और अच्छा लिख रहा है। इस पीढी में हां थोड़ा बहुत प्रेम जनमेजय और हरीश नवल ने भी लिखा है।
इस वक्तव्य के बाद में एक शोधकत्री को बातचीत में त्यागी ने व्यंग्य की सत्ता स्थापित करने में मेरा (हरीश नवल) , प्रेम जनमेजय, सुभाष चन्दर और आलोक पुराणिक का नाम लिया।
बाद में इसका कारण बताते हुये त्यागी जी ने बताया -’मैं तुमसे और प्रेम से नाराज हूं और ज्ञान से खुश क्योंकि वो निरंतर लिख रहा है। तुम लोग लिख सकते हो लेकिन लिख नहीं रहे इसलिये मैंने ऐसा कहा।"
हरीश जी ने त्यागी जी का जो संस्मरण सुनाया उससे मुझे बुजुर्ग व्यंग्यकारों के सार्वजनिक वक्तव्य में और व्यक्तिगत बातचीत में अन्तर का कारण पता चला। परम्परा चली आ रही है। उसका पालन हो रहा है। तारीफ़ की डबल एकाउंटिंग का मामला है।
हरीश जी ने एक जगह लिखा भी है -" व्यंग्यकार वहां होता है जहां पाखंड है, झूठ है , फ़रेब है।"
इसलिये तारीफ़ के बारे में हमको व्यंग्य बाबा आलोक पुराणिक की बात सही जान पडती है (https://www.facebook.com/shashikantsinghshashi/posts/1491667200852787): "शशिजी चर्चाओं (तारीफ़/बुराई) पर कभी मत जाइये, कभी भी नहीं। अपने काम को अपने हिसाब से बेहतरीन तरीके से अंजाम देते जाइये।"
हरीश जी ने सुभाष चन्दर जी से आह्वान किया कि सुभाष जी जब अगली बार लिखें तो आलोक पुराणिक पर अलग से लिखें। आलोक पुराणिक को आर्थिक लेखक के रूप में जाना जाता है।
अख़बारों में जो लिखा जा रहा है। वह सब साहित्य नहीं हैं। ऐसे ही जो पत्रिकाओं में लिखा जा रहा है वह सब भी साहित्य नहीं है।
हरीश नवल जी ने व्यंग्य श्री सम्मान के कर्ता-धर्ता गोविन्द व्यास जी के बारे में कहा -"गोविन्द व्यास जी गोपाल प्रसाद व्यास की यादों को अच्छे से संजो रहे हैं। "
https://www.facebook.com/anup.shukla.14/posts/10210608601024689
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