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आलोक पुराणिक को सम्मानित किये जाने के पहले उनकी तारीफ़ का इंतजाम भी किया गया था। वैसे तो काम भर की तारीफ़ नीरज बधवार ने कर ही दी थी। लेकिन फ़िर भी यह बताने के लिये आलोक पुराणिक वाकई इनाम के काबिल हैं किसी ऐसे व्यक्ति से तारीफ़ करवाने का सोचा गया जिससे कि आलोक पुराणिक को भी लगे कि वे वाकई इनाम के काबिल हैं। राजधानी में ऐसे काम के लिये सुभाष चन्दर से बेहतर और कौन हो सकता है? नहीं हो सकता न !
तो नीरज बधवार ने आलोक पुराणिक का परिचय कराने के लिये सुभाष जी को बुलाया।
सुभाष जी को बुलाने का कारण एक यह भी था कि नीरज को अच्छी तरह पता था कि पिछले साल सुभाष जी को जब व्यंग्य श्री सम्मान मिला था तो आलोक पुराणिक ने उनकी जमकर और जमाकर तारीफ़ की थी। आप भी देख लीजिये कि आलोक पुराणिक ने सुभाष चन्दर के बारे में गये साल क्या कहा था:
" प्रख्यात व्यंग्यकार और हिंदी व्यंग्य के एकमात्र व्यवस्थित इतिहासकार सुभाष चंदरजी 13 फरवरी, 2016 को व्यंग्य-श्री से सम्मानित होंगे। सुभाषजी को बधाई, शुभकामनाएं। व्यंग्य-श्री सम्मान प्रख्यात हास्य-व्यंग्य व्यक्तित्व स्वर्गीय गोपाल प्रसाद व्यासजी से जुड़ा सम्मान है, इसलिए सम्मानों, पुरस्कारों की भीड़ में इस सम्मान की अलग ही चमक है।
सुभाषजी के हमारे जैसे चाहकों के लिए यह बहुत ही खुशी का अवसर है। हिंदी व्यंग्य के एकमात्र व्यवस्थित इतिहासकार, व्यंग्य की बारीक समझ नयी पीढी तक सौहार्द्रपूर्वक पहुंचानेवाले सुभाषजी व्यंग्य के विलक्षण व्यक्तित्वों में से एक हैं। आदरणीय ज्ञान चतुर्वेदीजी ने अभी कुछ दिन पहले अपने एक वक्तव्य में एक बात कही थी कि लोग बूढ़े हो जाते हैं, बड़े नहीं होते।
व्यंग्य में भी बड़े लोगों की सख्त कमी है। सुभाषजी व्यंग्य में बहुत कम बचे बड़ों में से एक हैं, जिन्होने व्यंग्य की नयी पीढ़ी को बहुत सिखाया है। मैंने व्यक्तिगत तौर पर सुभाषजी से बहुत कुछ सीखा है। व्यंग्य की एक पूरी पीढ़ी ही सुभाषजी के प्रति कृतज्ञता और सम्मान व्यक्त करती है। " बयान खुद देखना चाहें तो इधर पहुंचें। यहां आपको और शुभकामनाओं के फ़ुदने भी दिख जायेंगे: https://www.facebook.com/puranika/posts/10153431183973667
मजे की बात आलोक पुराणिक पिछले साल भी मंच पर मौजूद थे। अलबत्ता कुछ बढे वजन के साथ। उनको लगा होगा इस साल नहीं तो अगले साल नहीं तो अगले साल अपन को भी यह व्यंग्य श्री सम्मान मिलना ही है तो उसके लिये अपने को क्यों न तैयार कर लिया जाये। वजन के चलते मंच पर चढने में होने वाली परेशानी का अंदाज लगाया और बदन का वजन लेखन पर तबादलित करके स्लिम-ट्रिम हीरो टाइप हो गये।
हां तो बात हो रही थी सुभाष जी के वक्तव्य की। सुभाष जी ने माइक संभालते हुये सामने, दायें , बायें और मंच की तरफ़ देखा और आलोक पुराणिक के बारे में बोलने लगे। बोलना क्या शुरु किया एकदम आलोक पुराणिक के लिये धुंआधार तारीफ़ी गोलों की बौछार शुरु कर दी। किसी को संभलने का मौका तक नहीं दिया। ऐसा लगा जैसे मन में बने आलोक पुराणिक की प्रशंसा के बांध के सारे फ़्लड गेट एक साथ खोल दिये हों। तारीफ़ के गेट के साथ मन भी खोल दिया। खुले मन से भरपूर तारीफ़ की।
सुभाष चन्दर ने आलोक पुराणिक के बारे में बोलते हुये कहा : ”आज के समय का समय का व्यंग्य का सबसे लोकप्रिय नाम आलोक पुराणिक है। 150 साल के व्यंग्य के इतिहास में अगर 10 व्यंग्य स्तंभकारों के नाम लिए जाएँ तो आलोक पुराणिक को शामिल किये बिना कोई रह नहीं सकता।
आलोक पुराणिक की खासियत बताते हुये सुभाष जी बोले: “आलोक पुराणिक के सबसे लोकप्रिय व्यंग्यकार होने के तीन कारण हैं:
(1) व्यंग्य में उनका जनोन्मुखी तेवर
(2) भाषा को लेकर बेहद सजगता
(3) और लगातार नए प्रयोग
(1) व्यंग्य में उनका जनोन्मुखी तेवर
(2) भाषा को लेकर बेहद सजगता
(3) और लगातार नए प्रयोग
इन तीन बातों के लिए आलोक को मैं जानता हूँ। ये आलोक की विशेषतायें हैं। यही बातें उनको आज के समय का सबसे लोकप्रिय व्यंग्यकार बनाती हैं।
इसके बाद कल्लू मामा ने सोचा कि अब जब तारीफ़ हो ही रही है तो कायदे से हो जाये। उन्होंने तारीफ़ की पतंग और ऊंची उडाते हुये कहा-“ हममें से अधिकांश लोगों को आलोक पुराणिक की लेखन जलन है।
आलोक पुराणिक कई अखबारों लिखते हैं। आलोक लिखने के पहले खूब सारा पढते हैं। पढे हुये को गुनते हैं। तब लिखते हैं। आलोक में नए प्रयोगों को करने की भरपूर ललक है। आजकल फोटो व्यंग्य लेखन का काम शुरु किया है। नये-नये प्रयोग करना आलोक की खासियत हैं।“
सुभाष चन्दर को आमने-सामने बोलते हुये शायद पहली बार सुना। जिस अवगुंठित और उदार मन से उन्होंने आलोक पुराणिक की तारीफ़ की उसको सुनकर मन खुश हो गया। कोई अगर-मगर नहीं, कोई किन्तु-परन्तु नहीं। जब तारीफ़ हो रही है तो सिर्फ़ तारीफ़ होगी। मानो उन्होंने मन के साफ़ निर्देश दे रखा हो- “प्रसंशा के अलावा और कोई भाव सामने दिख गया तो बोलेंगे तो बाद में पहले खाल खैंच लेंगे वहीं मंच पर खड़े-खड़े।“ मन को जैसा निर्देश दिया था कल्लू मामा ने वैसे ही उदार भाव सप्लाई करता दिमाग को बोलने के लिये।
आलोक पुराणिक के व्यंग्य लेखन की खासियत का जिक्र करते हुये सुभाष जी ने कहा -“व्यंग्य में बाजार की घुसपैठ को सबसे पहले आलोक पुराणिक ने पहचाना। बाजारवाद का ऊंट सबसे बेहतर तरीके से जिस व्यक्ति ने सबसे पहले पकड़ा उसका नाम आलोक पुराणिक है। “
आलोक पुराणिक की भाषा के चुनाव की तारीफ़ करते हुये कहा- “आलोक ने वो भाषा चुनी जिसमें आलोक की विदत्ता हो तो लेकिन उसकी चकाचौंध न हो। आम आदमी की भाषा में लिखा। युवा उनके पाठको में युवाओं की संख्या सबसे ज्यादा है।“
आलोक पुराणिक के बारे में फ़िनिशिंग टिप्पणी करते हुये सुभाष चन्दर ने बोले: “बालमुंकद गुप्त, गोपालप्रसाद व्यास, शरद जोशी की तरह का व्यंग्य लेखन स्तम्भ कार हैं आलोक पुराणिक।“
हम सामने दर्शकों के बीच सर उठाये हुये और आलोक पुराणिक बेचारे विनम्रता से सर झुकाये हुये सुभाष चन्दर को बोलते हुये सुनते रहे। सुभाष जी का आलोक पुराणिक के बारे में बयान एक ईमानदार बयान लगा। लग रहा था दिल से कोई शुभचिंतक बोल रहा है। मन खुश हुआ शुरुआती तारीफ़ सुनकर। अगर रुकना होता तो सुभाष जी के इस वक्तव्य के लिये उनको चाय पिलाते। भले ही पैसे हमारे ही ठुकते।
सुभाष जी के वक्तव्य के बाद आलोक पुराणिक का सम्मान हुआ। तिलक, माला, शाल, वाग्देवी की प्रतिमा और लखटकिया चेक थमाया गया। इसके बाद हरीश नवल जी को आशीर्वाद देने के लिये बुलाया गया।
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