शाहजहांपुर आने के बाद तमाम पुराने लोगों से मुलाकात हुई। इतवार को अख्तर साहब आये। अस्सी की उम्र में चुस्त, दुरुस्त। साइकिल चलाते हुए आये। वृंदावनलाल वर्मा जी की किताब साथ लाये। उसमें गढ़ कुंडार उपन्यास भी है। साथ में मिठाई का डब्बा भी।
अख्तर शाहजहापुरी इस बीच 11 किताबें निकाल चुके हैं। देश से ज्यादा विदेश में प्रसिद्ध। खूब किस्से सुनाए शायरों के। कैसे बड़े-बड़े शायरों को 100-100 रुपये में पढ़वाया। मेराज फैजाबादी केवल शाहजहापुर में संचालन करते थे -अख्तर शाहजहाँपुरी के चलते। इनके रिटायर होने के बाद उन्होंने यहां आना छोड़ दिया।
मेराज साहब के शेर याद आये:
मुझे थकने नहीं देता ये जरूरत का पहाड़
मेरे बच्चे मुझे बूढ़ा नहीं होने देते।
यह भी :
पहले पागल भीड़ में शोला बयानी बेचना
फिर जलते हुए शहरों में पानी बेंचना।
कृष्णआधार मिश्र जी तमाम पुरानी यादों के साथ मिले। यादों से जितना पीछा छुटाना चाहते हैं , उतनी ही तेजी से जकड़ती हैं। साथ में शर्मा जी भी थे।
शाहिद रजा , राजेश्वर पाठक, अब्दुल लतीफ , रजनीश और तमाम पुराने लोगों से मिलना हुआ। हफ्ते भर में ही लगता है कि कहीं और गए ही नहीं थे। इतवार को नबी साहब के यहां जाना हुआ। भरे-पूरे परिवार , लगभग पूरे खानदान से मुलाकात हुई। लगा अपने ही परिवार में बरसों बाद आये हैं।
सरोज मिश्र की दी हुई कलम का उपयोग कर सकूं तो अच्छा लगेगा।
कल मजहर मसूद जी से मुलाकात हुई। 14 साल बाद वो फैक्ट्री आये। बताया दस रुपये पड़ते हैं ई रिक्शे के। आज बीस मांगे। हमने कहा -चल यार।
बीस रुपये में शहर से फैक्ट्री आ जाना। मतलब शहर मंहगा नहीं हुआ। आगे और मुलाकातें होंगीं।
एक पुराने साथी सड़क पर मिले। बोले -'मिलना है।' हमने कहा -'मिल तो लिए। काम बताओ।'
बोले -'काम कोई नहीं। बस मिलना है।'
कल आये। बच्चे के साथ। मिठाई, नमकीन और न जाने क्या-क्या दे गए। खाने पर बुलाया है।
और भी तमाम लोगों से मिलना हुआ। घर छूट गया कानपुर में। लेकिन लगता है यहां भी अपनों के बीच आया हूँ।
इतवार को शहर निकले। शहर पूरी तरह तसल्ली में जी रहा है। उतनी ही कम चौड़ी सड़क। उतने ही खुले दिल। मोंगा की दुकान गए। 1992 में उनकी दुकान से खरीदे स्वेटर अभी उतने ही गर्म जितना उनका व्यवहार। बगल की मिठाई की दुकान चांदना जी की। बच्चे ने 20 साल बाद पहचान लिया। अच्छा लगा।
लौटते में गुड़ खरीदा। भेली का गुड़। 40 रुपये किलो। सलीम के दो लड़के हैं। पहले की उम्र 11 साल । दूसरे की दस महीने। इतना अंतर उम्र में? बोले -'जब बड़ा बड़ा हो गया तब दूसरा किया।' और बच्चे के सवाल पर बोले -' मंहगाई में बच्चे पालना मुश्किल। यही पल जाएं , बहुत हैं।'
कमाई की बात पर बोले -' गुजारा हो जाता है। अभी जाड़े में गुड़ बेंच रहे। फिर कुछ और बेचेंगे।'
काम बहुत है यहां। जिम्मेदारी और ज्यादा। देखते हैं कैसे पूरी करते हैं। होंगी । पक्का होंगी। करेंगे तो झक मार के होंगीं।
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