कल लखनऊ में अपनी किताब 'घुमक्कड़ी की दिहाड़ी' पर वर्ष 2018 का बाबू गुलाब राय सर्जना सम्मान मिला। Amit को बताया हुआ था। उनको आना था। कार्यक्रम 1100 बजे होना था। लेकिन अचानक साढ़े नौ हो गया। उनको न आने का पक्का बहाना मिल गया। समय न बदलता तो भी बहाना तो मिल ही जाता। सरकारी कामकाज में बहानों की कमी नहीं होती, एक ढूंढो हजार मिलते हैं।
सम्मानित होने के बाद वापस निकले तो अमित का संदेश आया कि 2 से 0 230 पर आएंगे। हम बोले -'अब क्या आना। सब खल्लास हो गया यहां।' इस पर कहा गया -'आइये फिर यहीं। दस मिनट का रास्ता है।'
गए हम। नया मिला इनाम भी दिखाना था। शक्ति भवन पर अमित का ड्रॉइवर नीचे ही चुस्टैद था । फौरन गाड़ी अंदर करवाई। अमित से मुलाकात हुई। पहुंचते ही काफी वाली चाय आई। गपियाते , बतियाते तमाम बातें साझा हुई।
इसके पहले कि भूल जाये यह कहना है कि अमित अपने रहन-सहन और पहनावे के चलते दिन पर दिन जवानी की तरफ ही टिके हुए हैं। कल भी क्यूट, स्मार्ट, हैंडसम टाइप लग रहे थे। उनकी लोकप्रियता में उनकी 'इततु सी' घराने की पोस्ट्स के अलावा उनकी इस स्मार्टनेस का भी योगदान है। कल ध्यान नहीं रहा कहने का। सोचा अब बता दें।
अमित के कमरे के ऊपर ही हमारे साझा सीनियर Ashok Srivastava जी का चैंबर है। बहुत बड़े अधिकारी हैं बिजली विभाग में। पता चला कि आज ही विदेश से लौटे हैं। हमने उनसे भी मुलाकात कर ली।
अशोक श्रीवास्तव जी , अमित और हम लोग कालेज में एक ही विंग में रहते थे। तिलक हॉस्टल के बी ब्लॉक के ग्राउंड फ्लोर में। गोरखपुर के होने के चलते अशोक श्रीवास्तव जी को उनके मित्रों ने नाम दिया 'फिराक'। मोतीलाल के उनके जितने भी दोस्त, जूनियर, सीनियर हैं सब उनको फिराक के ही नाम से जानते हैं। शायद ही कोई अशोक श्रीवास्तव कहता हो। ऐसे ही अमित अपने दोस्तों में 'बमबम' ही हैं। हम ' सुकुल'। बचपने के, कॉलेज के निकनेम बहुत दूर तक , देर तक चलते हैं।
फिराक साहब हम लोगों का हमेशा बड़े भाई की तरह ख्याल रखते थे। वे छोटे से ही बड़े भाई जैसे लगे हमको। हमारे बड़े भाई का नाम भी अशोक था। इसलिए भी ऐसा ही लगता रहा मुझे।
कल जब इनाम मिला तो अशोक जी के पास जाने का कारण एक और भी था। मुझे याद आया कि कॉलेज में क्लब सेकेट्री हुआ करते थे वो। मुझे तमाम इनाम मिले उनके क्लब सेकेट्री रहते। लेखन, कैरम, शतरंज, जैम आदि के सर्टिफिकेट में अशोक श्रीवास्तव के हस्ताक्षर हैं।
बी ग्राउंड में हनारे अलावा और भी लोग इनामी थे। स्व. त्रिनाथ धावला सर, विनय अवस्थी और खुद अशोक श्रीवास्तव जी। कई बार लगातार इनाम मिलते हमारी विंग के लोगों को तो हम नारा लगाते - 'बी ग्राउंड अगेन एट द टॉप।'
कल जब इनाम मिला तो फिर से यह याद आया तो हम लपककर फिराक साहब से मिलने गए। उन्होंने भी देखते ही दफ्तर के सब लोगों से तखलिया कह दिया। बी ग्राउंड के लोगों साथ बैठकर फिर चाय पी। तमाम यादें साझा हुई।
जल्दी के चक्कर में तमाम दोस्तों से मुलाकात रह गई। तिलक हास्टल के ही मनजीत सर Manjeet Arora से भी मिलना रह गया। आजकल वे मोनेरेको के लोगों को साथ रखने वाले सूत्रधार हैं। जल्दी ही मिलेंगे। फिर से सभी का शुक्रिया।
Note: टिप्पणी का जबाब देने से फेसबुक ने हमको रोक दिया है इसलिए किसी टिप्पणी का जबाब न दे पाए तो बुरा न माना जाए।
https://www.facebook.com/anup.shukla.14/posts/10218465100432264
No comments:
Post a Comment