अमेरिका यात्रा की पोस्ट्स पढ़ते हुए मित्रगण टिपियाते भी रहे। कई मित्रों ने कहा -'उनको मुफ्त में घुमा दिया अमेरिका।' कुछ ने लिखते रहने को कहा। किताब छापने के सुझाव भी आये। एक सुझाव यात्रा संस्मरण पर ऑडियो बुक बनाने का भी आया।
संस्मरण अभी बाकी हैं। आएंगे। इस बीच हमारे एक अजीज मित्र Vikram ने अनुरोध किया कि अमेरिका यात्रा में पैसे कैसे ले गए इसपर पोस्ट लिखी जाए।
बता दें कि हमारी अमेरिका यात्रा के पहले हमारे बड़े बेटे सौमित्र अमेरिका में ही पढ़ाई कर रहे थे। उनके लिए पैसे भेजते रहते थे। वही तरीका यहां भी अपनाया गया।
विदेश यात्रा में पैसे ले जाने के कई तरीके हो सकते हैं। जिस देश जा रहे हैं वहां की करेंसी एयरपोर्ट पर खरीद सकते हैं। पैसा किसी बैंक खाते में भेज सकते हैं। लेकिन यात्रा के लिहाज से आमतौर लोग फॉरेक्स कार्ड का प्रयोग करते हैं। क्रेडिट कार्ड भी धडल्ले से चलते हैं।
फॉरेक्स कार्ड लगभग हर बैंक में मिलते हैं। सरकारी बैंकों के कार्ड में पैसा डालने की प्रक्रिया भी सरकारी है। थोड़ा समय ज्यादा लगता है लेकिन थोड़ा सस्ता होता है। बैंकों से जुड़े लफड़े भी होते हैं अपनी तरह के।
बेटा जब गया था तो पैसे भेजने का तरीका पता किया। माल रोड पर एक जगह फॉरेक्स कार्ड का ठीहा है। उनको फोन करने पर वो बता देते हैं कि इतने पैसे में इतने डॉलर मिल जाएंगे। हम बैंक की चेक दे देते हैं वो हमारे कार्ड में पैसे भरकर दे देते हैं। जाओ , ख़र्च करो। जियो बिंदास।
फॉरेक्स कार्ड में पैसे भरने के लिए पासपोर्ट, वीजा और ट्रेवल टिकट आदि सबूत के तौर पर लगता है। यह इसलिए कि सनद रहे कि जिसके नाम पैसे दिए जा रहे हैं वह सही में विदेश जा रहा है । किसी दूसरे के लिए हवाला का काम तो नहीं कर रहा।
फॉरेक्स कार्ड बनवाने में अधिक से अधिक आधा घण्टा लगता है। दो कार्ड मिलते हैं। एक खो जाए तो दूसरे से काम चलाओ। एटीएम कार्ड की तरह प्रयोग किये जाते हैं ये कार्ड।
हम जब अमेरिका गए तो हमारे खाते में पैसे बचे नहीं थे। गृहलक्ष्मी ने चेक दिया फॉरेक्स कार्ड के लिए। 2000 डॉलर खरीदे। 1900 कार्ड में। 100 डालर का नोट। उस समय 72 रुपये करीब चल रहा था डॉलर । कार्ड मिलने के एक दिन बाद एक्टिव हो गया।
एयरपोर्ट पर सुरक्षा जांच के लिए जाने से पहले एक और पैसा बदलने की दुकान दिखी। हमने पास के सारे रुपये डॉलर में बदलवा लिए। सारे रुपयों का डॉलर में दलबदल हो गया। जेब में जहां दो मिनट पहले रुपयों की सरकार थी अब वहां डॉलर का कब्जा हो गया। यहां भी पैसे घरैतिन के नाम ही मिले क्योंकि यहां पैनकार्ड भी चाहिए होता है। वह उनके ही पास था।
फॉरेक्स कार्ड में मोबाइल नम्बर भी सम्बद्ध होता है। इसमें खर्च और बचे हुए पैसों का विवरण आता रहता है। फॉरेक्स कार्ड में श्रीमती जी का जो फोन नंबर था उसको अमेरिका में काम करने के लिए एक्टिवेट नहीं कराया था। लिहाजा खर्च का संदेश आता नहीं था। पता ही नहीं चलता - कितने ख़र्चे, कितने बचे। कहीं किसी एटीएम में देखकर बचे हुए डॉलर की सूचना मिलती।
तमाम होशियारी के बावजूद कार्ड में बचे हुए डालर का हिसाब गड़बड़ा ही गया। दिन बीतने के साथ हम थोड़ा निश्चिन्त और बेपरवाह हो गए खर्च के मामले में। इसके पीछे बेटे का साथ भी कारण रहा। न्यूजर्सी पहुंचते ही उसने अपना क्रेडिट कार्ड हमको भेज दिया। कहा -'अमेरिका में इसी से खर्च करिये।' हम काफी दिन तक अपना ही कार्ड चलाते रहे। पर जब सैनफ्रांसिस्को आये, बेटे के पास तो कभी उसका कार्ड कभी हमारा चला। हिसाब ही न रहा कित्त्ता बैलेंस बचा कार्ड में। इसके चलते आखिर में बेइज्जती भी खराब होने को हुई।
हुआ यह कि चलते समय हमने कहा कि कल हम लोग जा रहे। आज का डिनर हमारी तरफ़ से। हम दोनों, बेटे और उसके दो साथियों के साथ गए खाने। हमारे हिसाब से कार्ड में करीब डेढ़ सौ डालर बचे थे। खाने का बिल आया करीब 125 डॉलर। हमने अपना कार्ड दे दिया भुगतान के लिए। वेटर तुरन्त लौटा लाया कार्ड। बोला -'कार्ड में पैसे ही नहीं।' हमने कहा -'ऐसा कैसे? पैसे तो होने चाहिए।'
लेकिन थे नहीं पैसे कार्ड में तो कहां से मिले? बेटे ने अपने कार्ड से भुगतान किया। बाद में देखा तो पता चला कि केवल 12 डॉलर बचे थे कार्ड में।
देने को को हम जिद करके अपने क्रेडिट कार्ड से दे सकते थे पैसे। लेकिन जब बेटे ने मुझसे मुस्कराते हुए मौज ले ही ली कार्ड में बैलेंस न होने पर तो हमने उसको रोका भी नहीं भुगतान करने से। मौज लेने की कीमत भी तो चुकानी पड़ती है। कीमत तो खैर हर चीज की चुकानी पड़ती है। मौज भी इससे मुक्त थोड़ी है।
फॉरेक्स कार्ड के बैंक से जुड़े लफड़े भी परेशान कर सकते हैं। मेरे बेटे के पंजाब नेशनल बैंक का फॉरेक्स कार्ड कुछ दिन काम नहीं किया। शायद पंजाब नेशनल बैंक में हुए घपले के चलते हुआ था ऐसा।
मेरा क्रेडिट कार्ड भी अमेरिका में बंद हो गया। हुआ यह कि हमने विदेश में चलने के लिए एक्टिवेट नहीं कराया था कार्ड। पहला भुगतान किया क्रेडिट कार्ड से तो स्टेट बैंक वालो को लगा -'लफड़ा है।' कार्ड ब्लाक कर दिया। ऐसा लगा कि आइडेंटिटी कार्ड के बिना खुद के घर में ही घुसने से रोके गए। ठीक भी लगा यह सोचकर कि सुरक्षा है। बाद में फोन करके कार्ड चालू करवाया।
अब तो वापस आ गए। फॉरेक्स कार्ड धर दिया गया तहा के। बाकी के कार्ड हंसते हैं उस पर तो वह ऐंठता हुआ कहता है -'बेट्टे हंसो मती। तुम सब जहां बेकार थे वहां इकलौता मैँ ही था जो काम आ रहा था।'
बाकी के कार्ड चुप हो गए। लेकिन एक कार्ड फुसफुसाते हुए बोला -'काम निकल जाने पर आदमी या तो पूजनीय हो जाता है या फिर मार्गदर्शक मंडल में शामिल हो जाता है।'
इस पर दूसरे कार्ड ने जोर से कहा -'अबे हम कार्ड हैं,कोई आदमी थोड़ी हैं ।'
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