न्यूयार्क में अभिषेक के साथ टहलते हुये कई जगहें देखीं। हर इमारत की अलग कहानी। राकफ़ेलर सेंटर के पास ही सेंट पैट्रिक कैथेड्रल चर्च देखा। खूबसूरत, विशालकाय नई गोथिक शैली में निर्मित यह चर्च 1858 में बनना शुरु हुआ। निर्माण का काम सिविल वार के चलते रुक गया। 1865 में लड़ाई निपटने के बाद फ़िर शुरु हुआ। 1878 में बनकर तैयार हुआ यह चर्च 19 मई 1879 को शुरु हुआ।
डेढ सौ साल पहले इतना विशालकाय, खूबसूरत चर्च बनाने में कितनी मेहनत लगी होगी। कैसे इतनी खूबसूरत नक्कासी हुई होगी, देखकर ताज्जुब हुआ। चर्च में लगभग 3000 लोग एक साथ प्रार्थना कर सकते हैं। लोग वहां आ रहे थे। पूजा कर रहे थे। कुछ बैठे थे। हमारे जैसे लोग शायद बहुतायत में थे जो केवल चलते-फ़िरते देखने आये थे।
चर्च से निकलकर हम फ़िर सड़क पर आ गये। एप्पल फ़ोन के शापिंग सेंटर में गये। अपने तरह का अनूठा शापिंग सेंटर। सब कुछ खुले में। काउंटर पर तमाम तरह के गजेट, फ़ोन रखे थे। देखिये, पसंद कीजिये, भुगतान कीजिये ले जाइये। हमने एक नोटबुक पर अपना फ़ुरसतिया ब्लाग खोलकर देखा। फ़ोटो खिंचाया और कम्प्यूटर वहीं धर दिया। एप्पल के लोग वहां मौजूद लोगों को अपने उत्पाद के बारे में बता भी रहे थे।
एप्पल सेंटर के पास ही न्यूयार्क का सेंट्रल पार्क है। दुनिया के सबसे ज्यादा देखे जाने वाले पार्कों में एक है सेंट्रल पार्क। साल भर में 4 करोड़ करीब लोग देखने आते हैं। दुनिया में सबसे ज्यादा फ़िल्माया जाने वाला पार्क है सेंट्रल पार्क। बीच शहर में पार्क बचा हुआ है यह हिन्दुस्तानी लिहाज से अजूबा ही है। अपने यहां होता तो कोई पम्प हाउस बन गया होता यहां। शादी-बारात के लिये तम्बू-कनात लगने लगते। नेताओं की रैली के लिये तो पक्का प्रयोग होने लगता। बहुत ललचाती जगह है उपयोग के लिहाज से।
पार्क में घुसते ही घोड़ा गाडियां दिखीं। लम्बे-चौड़े , स्वस्थ, सुन्दर घोड़े। इतने आकर्षक, हैंडसम घोड़े कि देखते ही किसी भी घोड़ी के मन में घंटियां बचने लगें।
घोड़ा गाड़ी पर बैठकर सैर का किराया इतना ज्यादा था कि अपन उनको देखकर ही तृप्त हो गये। सफ़ाई के लिहाज से घोड़ों के पिछवाड़े कपड़ा इस तरह बंधा था कि अगर वो लीद करें तो सीधे पीछे लीददान में गिरे। एकदम फ़िसलपट्टी की तरह इंतजाम। लीद निकलते ही झूला झूलती हुई अपने गन्तव्य तक पहुंचे।
हमारे वहां टहलते हुये अभिषेक के कुछ हिन्दुस्तानी दोस्त मिले। एकाध कनपुरिया भी। कुछ देर उनसे बतियाये। फ़िर पार्क दर्शन करने लगे।
बेहद खूबसूरत पार्क में तरह-तरह के पेड़, तालाब, ब्यूटी प्वाइंट, लव प्वाइंट और अनेक फ़ोटुआने लायक जगहें थीं। लोग जगह-जगह खड़े होकर फ़ोटू खिंचा रहे थे। हमने भी बेदर्दी से कैमरे का उपयोग किया।
अब कैमरों का कोई ’कैमरा अधिकार आयोग’ तो होता नहीं जो वहां जाकर हमारी शिकायत करता –’देखिये ये नमूने जैसे शक्ल लिये बार-बार खूबसूरत जगहों पर खड़े होकर हमसे फ़ोटू खिंचा रहे हैं। जगहों की खूबसूरती बिगाड़ रहे हैं फ़ोटुओं में। हमारी बदनामी हो रही है।’
पार्क में घुसते ही बर्फ़ का स्केटिंग सेंटर भी दिखा। पता चला वह ट्रम्प का है। ट्रम्प साहब के अमेरिका में तमाम तरह के रोजगार हैं। इमारतें, होटल, कैसीनों, व्यापारिक सेंटर मतलब हर रोजगार में दखल। हालात यह कि लोग मजाक में कहते हैं कि ट्रम्प मूलत: तो व्यापारी ही हैं , अमेरिका के राष्ट्रपति का काम तो उनका साइड बिजनेस है। हाल ही में वासिंगटन डीसी में पुराने पोस्ट आफ़िस को खरीद कर ट्रम्प साहब ने होटल में बदल दिया। दुनिया भर के देशों के आये राष्ट्राध्यक्ष इसी होटल में ठहरते हैं।
पार्क में एक चौड़े रास्ते के दोनों के तरफ़ मशहूर साहित्यकारों की मूर्तियां हैं। परिचय के साथ आकर्षक मूर्तियां। इस रास्ते से गुजरकर फ़ोटो खिंचाते हुये अपन ने उनका सानिध्य महसूस किया।
वहां की खूबसूरती का उपयोग लोग अपने-अपने तरह से कर रहे थे। फ़ोटोग्राफ़ी तो हर मोबाइल धारी का सहज अधिकार है। इसके अतिरिक्त तमाम खूबसूरत लोग माडलिंग के अंदाज में फ़ोटो/वीडियो बाजी भी कर रहे थे। अंगड़ाईयां लेते हुये, अदायें दिखाते हुये। हाल यह कि यह सब देखने में ही लगे रहते अगर आगे का नजारे और आकर्षक न होते।
कछुआ तालाब और आर्नामेंटल पुल पर खड़े होकर तमाम लोग फ़ोटोबाजी कर रहे थे। ऑर्नामेंटल पुल अंगूठी के आकार का बना हुआ है।
एक जगह एक आदमी साबुन के बबल बनाते हुये उड़ा रहा था। हमारे बगल से , ऊपर से भी कुछ साबुन के बादल गुजरे। कुछ से हमने बचने की कोशिश की। बच भी गये। जिनसे नहीं बच पाये वो हमसे भिड़कर हवा में मिल गये। मन में – ’जो हमसे टकरायेगा, चूर-चूर हो जायेगा’ वाले घराने के भाव आयें इसके पहले ही हम आगे बढ गये।
आगे कुछ लोग करतब दिखा रहे। तीन लोगों को सर झुकाकर खड़े करके एक आदमी दूर से दौड़ता आया और तीनों को ऊपर से फ़ांदता चला गया। तालियां बचाकर लोगों ने स्वागत किया। कुछ ने पैसे भी दिये। हमने तालियां बचाकर काम चलाया।
एक ड्रमर वहां ड्रम बजाते हुये रियाज कर रहा था। आगे बेथोडा टेरेस और फ़व्वारे पर तमाम लोग मौजूद थे। लोगों की चहल-पहल और चेहरे जगह को खूबसूरत बना रहे थे। पार्क से टहलकर बाहर आये। बाहर कोलम्बस की बड़ी मूर्ति बनी थी।
कोलम्बस ने अमेरिका की खोज की। दुनिया के साहसी लोगों में शामिल इस नाविक ने यहां के मूल निवासियों को बेदखल करने किया, जनसंहार भी किया। इस अत्याचार को देखते हुये कुछ लोगों यह मांग भी कर रहे हैं कि कोलम्बस को महिमामंडित करने की बजाय उसकी मूर्तियां हटनी चाहिये। आगे क्या होता है यह समय बतायेगा। लेकिन फ़िलहाल तो कोलम्बस अकड़े हुये खड़े हैं तमाम जगह।
चूंकि यहां फोटो खिंचाने के पैसे नहीं पड़ने थे इसलिए हमने कोलम्बस की मूर्ति के पास खड़े होकर फोटो खिंचाया। फोटो का टाइटल - क्रिस्टोफर कोलम्बस के साथ कनपुरिया कोलम्बस।
सेंट्रल पार्क में घूमते हुये अभिषेक ने आसपास की इमारतों की जानकारी भी दी। एक इमारत ऐसी भी जो इतनी पतली थी कि उसका बनना असम्भव बताया गया था। लेकिन असम्भव को सम्भव बनाया उसके बनाने वालों ने।
घूमते-घूमते शाम हो गयी थी। इतना घूमे उस दिन कि पैर के अंगूठे में छाले पड़ गये। हम लौट चले। पास के ही अंडरग्राउंड मेट्रो से न्यूयार्क पेन स्टेशन आये। इसी बहाने न्यूयार्क की मेट्रो भी देख ली। बैठ भी लिये।
चलते समय अभिषेक ने जेब से निकालकर एक ठो शाल भेंट किया कहते हुये- ’लेखक के लिये यही सबसे ठीक लगा मुझे।’ हड़बड़ी में फ़ोटो भी नहीं खिंचा पाये। खिंचाते तो सालों तक लोगों को दिखाते हुये कहते –’यह शाल हमको न्यूयार्क में भेंट की गयी थी।’
लौटकर घर आये तो रात हो गयी थी। अंधेरा हो गया था। लेकिन न्यूयार्क की यादें जगमग कर रहीं थीं। अभी भी यही महसूस हो रहा है।
https://www.facebook.com/anup.shukla.14/posts/10218291604134965
No comments:
Post a Comment