न्यूयार्क स्टॉक एक्सचेंज के सांड को देखते हुए शाम हो गयी थी। सूरज भाई अपना शटर गिराकर निकल लिए थे। बत्तियां जल गयीं थी। हम आगे बढ़े। हमारी अगली मंजिल 'ब्रुकलिन ब्रिज' थी।
'ब्रुकलिन ब्रिज' न्यूयार्क के प्रमुख दर्शनीय स्थलों में शामिल है। कहते हैं जिन्होंने 'ब्रुकलिन ब्रिज' नहीं देखा उन्होंने न्यूयार्क नहीं देखा। मैनहट्टन और ब्रुकलिन के बीच ईस्ट रिवर बना यह पुल दुनिया के सबसे प्रसिद्द पुलों में शामिल है। दुनिया का पहला लटकता ब्रिज था। 1869 में बनना शुरू होकर 1883 में पूरा हो गया।
पुल बनने के पहले ब्रुकलिन और न्यूयार्क में आवाजाही फेरी से होती थी। पुल बनने की बात सन 1800 से सोची जा रही थी। सोच को अमल में लाने में 83 साल लग गए।
ब्रुकलिन पुल को बनाने की संकल्पना 1852 में जर्मनी से अमेरिका आये इंजीनियर जान अगस्त रोबलिंग ने की थी। पुल बनने के दौरान एक जंग लगी पिन चुभ जाने से पैदा टिटनेस से 1869 में जान अगस्त रोबलिंग की मौत हो गयी। उनके निधन के बाद उनके बेटे वासिंगटन रोबलिंग ने काम संभाला। वासिंगटन को भी पैरालिसिस हो गया। उनका चलना-फिरना दूभर हो गया। इसके बाद कमान संभाली उसकी पत्नी एमली वारेन रोबलिंग ने। वासिंगटन घर में काम करते, एमली उसको इंजीनियरों तक पहुंचाती।
11 साल तक यह सिलसिला चला। पुल बनकर तैयार हुआ तो 24 अगस्त, 1883 को । एमली वारेन रोबलिंग ने सबसे पहले चलकर पुल पार किया। चलने-फिरने में असमर्थ वासिंगटन रोबलिंग ने घर में गुलदस्ता ग्रहण करके पुल की शुरुआत का उत्सव मनाया। ब्रुकलिन पुल के निर्माण में रोबलिंग परिवार का अहम योगदान था। पहले दिन 1800 गाड़ियां और 150,300 लोग गुजरे पुल से।
जब बना था पुल तब इस पर घोडेगाड़ियाँ और ट्रेन चलती थीं। आज के दिन गाड़ियां, साइकिल और पैदल यात्रियों के लिए है यह पुल।
'ब्रुकलिन ब्रिज' हम टैक्सी से गये। उसका भी मजेदार किस्सा। पहले हमने टैक्सी बुक करने में होशियारी दिखाई। पैसे कम लगेंगे यह सोचकर साझे की टैक्सी की। सूचना आई कि 4 मिनट में टैक्सी फलानी जगह पहुंचेगी। हम वह जगह तलाशते रहे। लेकिन जगह जिंदगी में सुकून की तरह दिखी नहीं।इस बीच सूचना भी आ गयी कि टैक्सी का समय हो गया। वह चली गयी। 5 डॉलर जुर्माना ठोंक कर। होशियारी की हवा निकल गयी।
होशियारी की हवा निकलने के बाद अपन ने समझदारी का दामन थामा। जिस जगह खड़े थे वहां आने के लिए पूरी टैक्सी की। टैक्सी आई । बैठने के बाद याद आया कि अपन को ब्रुकलिन ब्रिज के पार तक जाने की टैक्सी करनी थी ताकि उधर से इधर आने के दौरान खूबसूरत रोशनी का दीदार कर सकें। सोचा कि टैक्सी वाले को कहेंगे कि भईया उधर उतार देव। जो पैसा लगेंगे देंगे। लेकिन सोच को अमल में लाने के लिए जब तक अंग्रेजी बनाएं तब तक ड्रॉइवर न गाड़ी 'ब्रुकलिन ब्रिज' के सामने गाड़ी खड़ी कर दी।
मन की बात को हिंदी से अंग्रेजी में करने में हुई देरी की सजा हमको पुल पर देर तक पैदल चलने के रूप में मिली। हिंदी से अंग्रेजी के चक्कर पूरा देश न जाने कब से सजा भुगत रहा है। ऐसे में अपना रोना रोना ठीक नहीं।
पुल पर पहुंचते ही तेज ठंडी हवाओं ने कंटाप मारते हुए हमको देरी से आने की सजा सुनाई। हमने कनटोप लगाकर सजा का प्रभाव कम करने की कोशिश की। लेकिन ठंड पूर्ण बहुमत की सरकार की तरह मनमानी पर उतारू थी।
जैसे बिना ड्राइविंग लाइसेंस गाड़ी चलाते बपकड़े जाने पर बच्चे पुलिस और ट्रांसपोर्ट के अपने अंकल का हवाला देकर जुर्माने से बचने की कोशिश करते हैं उसी तर्ज पर सोचा कि बता दें कि सूरज जी हमारे भाई हैं। लेकिन यह सोच जितनी तेजी से हमारे दिमाग में आई , उससे दूनी तेजी से हमने उसे दबा दिया। डर था कि ठंड कहीं विरोधी पार्टी से सम्बन्ध सोचकर और प्रताड़ित न करने लगे।
ब्रुकलिज ब्रिज की शुरुआत में जमीन पर कई तरह का सामान बेंचते लोग देखकर लगा कि हमारा कानपुर बिना पासपोर्ट, वीसा, टिकट खाली अंग्रेजी बोलने का अभ्यास करके न्यूयार्क आ गया है।
बीहड़ ठंड और तेज हवाओं के बावजूद सैलानी पुल पर आ रहे थे। तरह-तरह से फोटो खिंचाने में लगे थे। जगमगाती यादों को कैमरे में कैद कर रहे थे। हमने भी खूब फोटो खींची। अकेले खींची, सेल्फ़ियाये और वहां गुजरते लोगों से भी खिंचाए।
लोगों से फोटो खिंचाने के बाद मोबाइल वापस लेने से पहले ही जोर से 'थैंक्यू वेरी मच' भी बोला। इसमें हमने कब्भी कोई कंजूसी नहीं की। बिना शार्टकट के पूरा 'थैंक्यू वेरी मच' बोला। यह नहीं कि काम निकल जाने के बाद अद्धे-गुममें की तरह , मुंह फेरते हुए, थैंक्स बोलकर फूट लें। विश्वास न होय तो किसी भी अमेरिकी को रोक के पूछ लो।
हमारे जोर से 'थैंक्यू वेरी मच' को हवाओं न अपने लिए भी समझ लिया। उनकी ठंडक कम सी हो गयी। लेकिन जहां हम देर तक सर खोलते, हाथ बाहर करते हवाएं टोंक देतीं-'सर ढंक लो, हाथ अंदर करो। '
पुल पर चलते हुए बीच तक गए हम। नदी में नावें , छोटे जहाज तैर रहे थे। नीचे गाड़ियां धड़ाधड़ गुजर रहीं थीं। सबको घर वापस जाने की जल्दी। हमको याद आई अपनी कविता पंक्तियां :
घर से बाहर जाता आदमी
घर वापस लौटने के बारे में सोचता है।
यहां लोग सोच ही नहीं रहे थे, घर वापस जा भी रहे थे। दूर दिखती सड़क पर ट्रैफिक किसी जगमगाती नदी सा बह रहा था। अंगड़ाई लेते हुए , इठलाता , इतराता मोटरों का काफिला शायद मुस्कराता हुआ भी गुजर रहा हो।
न्यूयार्क की इमारतें रोशनी में चमचमा रहीं थी। हमको देखकर शायद और जगमगाने लगी होंगी। मन किया कि कह दें कि भाई हम ऐसे ही प्रभावित हैं काहे को वाटेज फूंक रहे हो। लेकिन मन की बात कहने में फिर अंग्रेजी का अनुवाद आड़े आ गया। नहीं कह पाए। मन तो यह भी किया कि न्यूयार्क की तमाम जगर-मगर का कुछ हिस्सा चुराकर कानपुर लें आएं और उन इलाकों में फैला दें जहां अभी भी अंधेरा है। लेकिन इम्मीग्रेशन में पकड़े जाने के डर से हमने इरादा फौरन मुल्तवी कर दिया।
पुल से गुजरते हुए हर अगला मोड़ पिछले से ज्यादा क्यूट, स्वीट और खूबसूरत तथा आकर्षक लगता। इतना कि पुल को 'लव यू' बोलने का मन किया। लेकिन फिर सोचा कि बवाल होगा। रोशनी बोलेगी हमको क्यों नहीं बोला, हवाएं बोलेंगे -क्या हम इत्ते बुरे हैं,नदी अलग भन्नायेगी। इसके अलावा न जाने कौन बुरा मान जाए। मुंह फुला ले। अबोला हो जाये। पता ही न चले। पता चलने पर तो मना भी सकते हैं लेकिन कोई मौन हो जाये तो कैसे मनाया जाए।
लेकिन अब लग रहा कि सबको बोल देना चाहिए। जिसका नाम याद आये उसको नाम लेकर, जो न याद आये उसको बिना नाम लिए। अब तो लौट आये। यही कह सकते हैं जो नहीं कहा वह कहा हुआ समझना। खूब खुश रहना।
ब्रुकलिन पुल से गुजरते हुए हमको नरेश सक्सेना जी याद आये:
पुल पार करने से
पुल पार होता है
पुल पार करने से नदी नहीं पार होती।
नदी तो नहीं पार हुई लेकिन ब्रुकलिन ब्रिज से गुजरते हुए 1800 से लेकर 2019 के बीच के 219 साल कल्पनाओं में गुजर गए। जबसे पुल की कल्पना हुई तब से बनने और आज तक के बीच का समय इंसान की कल्पना को अमल में लाने की कहानी है।
लौटते हुए रात हो गयी थी। पुल से उतरते हुए टैक्सी करने के पहले ही एक बस दिख गयी। उसी में बैठकर लौट लिए। उसकी कहानी पहले ही बता चुके हैं।
स्टेशन लौटकर ट्रेन पकड़ी। घर आये। न्यूयार्क में घुमाई का यह हमारा दूसरा दिन था।
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