हमारी आवश्यकतायें बहुत थोड़ी थीं और मुझे जरूरत के मुताबिक कमा लेने की अपनी शक्ति में विश्वास था। मुझे सबसे बड़ी चिन्ता यह थी कि मेरी माताजी को उनके जीवन के इन अन्तिम दिनों में तकलीफ़ न उठानी पड़े या उनके रहन-सहन के ढंग में कोई खास कमी न आने पाये। मुझे यह भी फ़िक्र थी कि मेरी लड़की की शिक्षा में कोई बाधा न पड़े, जिसके लिये मैं उसका यूरोप रहना आवश्यक समझता था। इन सबके अलावा मुझे या मेरी पत्नी को रुपये की कोई विशेष आवश्यकता नहीं थी। अथवा, इस तरह का हम ख्याल करते थे, क्योंकि हमें उसका कभी अभाव तो था नहीं। मुझे यकीन था कि जब ऐसा समय आयेगा कि हमारे पास रुपये की कमी पड़ेगी तो हमें दु:ख ही होगा। किताबें खरीदने की खर्चीली आदत का छोड़ना मेरे लिये शायद मुश्किल होगा।
-जवाहर लाल नेहरू की आत्मकथा मेरी कहानी से
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