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जो तटस्थ हैं समय लिखेगा उनके भी अपराध…
By फ़ुरसतिया on April 30, 2007
जिस समय हम चुंबन चर्चामें जुटे हुये थे उसी समय किसी ने मुझसे पूछा- बरखुरदार तुम किस तरफ़ हो? होठ की तरफ़ या गाल की पार्टी में। हम किसी भी तरफ़ होने की बात सोचकर ही शर्मा से गये। कुछ बच्चे हमारे गाल का रंग देखकर कविता याद करने लगे- सूरज निकला चिड़ियां बोली। हमने बमुश्किल जवाब दिया- हट हम किसी भी तरफ़ नहीं हैं। हम तटस्थ हैं।
खुदा झूठ न बुलाये ये बात हम सच्ची-सच्ची कह रहे हैं कि ये ऊपर की लाइने हमने तीन दिन पहले लिखीं थीं। आगे लिखने का मन नहीं हुआ काहे से कि उधर चुम्बनवीर रिचर्ड गेरे कहा भाई हमसे जो हुआ अन्जाने में हुआ। हम भारतीय संस्कृति के बारे में कुछ जानते नहीं थे। ज्यादा बुरा लगा होय तो कहो माफ़ी माग लें-किया धरा सब माफ़ करो।
लेकिन आज जब हमने नितिन बागला का चोरी वाला पर्चा देखा तो हम सनाका खा गये। हमें ऐसा महसूस सा होने लगा कि हमारे खिलाफ़ कोई साजिश रची जा रही हो। हमें चूंकि चुंबन प्रकरण में तटस्थ रहे इसलिये समय को हुसका दिया गया ये भाई समय इनका अपराध भी लिख लो।
आपको विश्वास न हो रहा हो तो आप आंख खोलकर सवाल नंबर तीन देखिये:-“जो तटस्थ हैं समय लिखेगा उनके भी अपराध” – वर्ष २००७ और चिट्ठाकारिता के संदर्भ में इस कथन की समीक्षा कीजिये। ’जो’ कौन था, वो तटस्थ क्यों था? क्या वो वाकई तटस्थ था? समय ने क्या क्या अपराध लिखे , ये भी बताइये।
देखिये क्या दिन आ गये समय के भी। जो समय कभी इतना बलशाली माना जाता था कि लोग कहते थे-
पुरुष बली नहिं होत है, समय होत बलवान,
भीलन लूटी गोपिका, बहि अर्जुन वहि बान!
जिस समय के प्रभाव के चलते अर्जुन जैसे बलशाली योद्धा की ये हालत हो गये कि भीलों ने गोपिकाओं को लूट लिया और वे अपना धनुष-बाण लिये देखते रहे उसी समय की अब यह हालत हो गयी है कि बेचारा समय मुंशी बना तटस्थ लोगों के अपराध लिख रहा है। समय की इससे बड़ी दुर्गति क्या होगी कि वह बेचारा
बैठे-बैठे तटस्थ लोगों के अपराध का रोजनामचा बनाये। यह सारा किया-धरा दिनकर जी है जो कहते हैं:-
बैठे-बैठे तटस्थ लोगों के अपराध का रोजनामचा बनाये। यह सारा किया-धरा दिनकर जी है जो कहते हैं:-
-समर शेष है, नहीं पाप का भागी केवल व्याध,
जो तटस्थ हैं, समय लिखेगा उनके भी अपराध।
दिनकरजी राष्ट्रकवि थे। साथ ही विभागाध्यक्ष, कुलपति आदि भी थे। माने करेला ऊपर से नीम चढ़ा! उनको अपने इलाके में समय दिखा होगा। दिनकरजी किसी कवि सम्मेलन में कवितायें पढ़ रहे होंगे। कुछ लोग तालियां बजा रहे होंगे कुछ लोग चुप भी होंगे। बाद में उनके चमचे-चेलों ने बताया होगा -पता है गुरुवर कुछ लोग आपकी कविताओं से उबलने के बजाय तटस्थ बैठे थे। तालियां पीटने की जगह सर पीट रहे थे। इनके बारे में क्या आज्ञा है? इस पर दिनकरजी ने कहा होगा- चिंता न करो समय को लगा दिया है- इस काम में। जो तटस्थ हैं उनके भी अपराध लिख लेगा। फिर बाद में उनका हिसाब किया जायेगा।
हम तो यह जानकर ही परेशान हो गये कि हाय अब हमारी तटस्थता भी अपराध हो गयी। हमें अब या तो उधौ से कुछ लेना पड़ेगा या माधौ को कुछ देना पड़ेगा। लेन-देन नहीं करेंगे तो हम अपराधी कहलायेंगे। ये बाजार की साजिश है कि कुछ लेते-देते रहें। जहां लेने-देने में चूक हुयी वहीं समय ने अपराधियों की कतार में खड़ा कर दिया। न उधौ से लेना न माधौ को देना की गैल भी अंतत: बाजार में ही मिलती है। उधौ-माधौ दोनों शापिंग माल में दिखते हैं।
हम इतना परेशान हुये कि इस बारे में सोचने लगे। सोचते-सोचते हमारी दशा शोचनीय हो गयी। फिर हमें अंधेरे में उजाले की किरण दिखी और हमें इन कविता पंक्तियों में गलतियां नजर आने लगीं। हमने अपने क्षुद्र वैचारिक चिंतन की गदा प्रहार से कविता पंक्तियों का अर्थ भंजन किया और उनको उलट-पुलट कर उसी भांति देखने लगे जिस भांति हनुमानजी माला को तोड़-फोड़ कर देख रहे थे कि इनमें सीताराम लिखा है कि नहीं।(हनुमान भक्त माफ़ करें। केवल आज के लिये उनके नाम का उपयोग किया है कल वे अपने-अपने मंदिर में विराजने चले जायेंगे)।
सबसे पहले हमें अहसास हुआ कि अर्जुन, भील. गोपी मामले में समय को जबरियन हीरो बनाया गया। जैसे पुलिस वाले दो बदमासों की आपसी गोलीबारी में मारे गये बदमाश की लाश के पास बंदूक पकड़कर फोटो खिंचाकर त्वरित प्रोन्नति, जबरदस्त इनाम झटक लेते हैं वैसे भीलों के द्वारा अर्जुन हो हराने का श्रेय समय को दिया जाये। भीलों ने गोपियां लूट लीं तो भील बलवान हुये। इसमें समय कहां से टपक पड़ा।
यही बात दूसरी कविता पंक्ति में हुयी। इसमें तो और ज्यादा समझ का घपला हुआ। कवि कहते हैं-जो तटस्थ हैं, समय लिखेगा उनके भी अपराध।
इससे ऐसा लगा है कि जैसे जो तटस्थ होगा समय उसको अपराधी मान कर उसके खिलाफ़ अपराध दर्ज कर लेगा। लेकिन यही तो समझ का फ़ेर है। यहां कवि बड़े साफ़ शब्दों में कहता है कि भाई जो तटस्थ हैं अब समय उनके भी अपराध नोट करेगा। इससे लगता है कि पहले तटस्थ लोगों के अपराध नहीं लिखे जाते होंगे लेकिन अब व्यवस्था हो गयी कि समय तटस्थ लोगों के अपराध भी लिखेगा। इससे लगता है कि अपराध लिखने वाले समय की नजर ‘लीस्ट काउन्ट’ बढ़ गया है और अब उसको तटस्थ लोगों के अपराध भी दिखने लगे होंगे। इसका मतलब यह नहीं कि जो तटस्थ हैं वे अपराधी हैं। केवल तटस्थ लोगों के अपराध लिखे नहीं जाते थे अब लिखे जायेंगे।
इससे ऐसा लगा है कि जैसे जो तटस्थ होगा समय उसको अपराधी मान कर उसके खिलाफ़ अपराध दर्ज कर लेगा। लेकिन यही तो समझ का फ़ेर है। यहां कवि बड़े साफ़ शब्दों में कहता है कि भाई जो तटस्थ हैं अब समय उनके भी अपराध नोट करेगा। इससे लगता है कि पहले तटस्थ लोगों के अपराध नहीं लिखे जाते होंगे लेकिन अब व्यवस्था हो गयी कि समय तटस्थ लोगों के अपराध भी लिखेगा। इससे लगता है कि अपराध लिखने वाले समय की नजर ‘लीस्ट काउन्ट’ बढ़ गया है और अब उसको तटस्थ लोगों के अपराध भी दिखने लगे होंगे। इसका मतलब यह नहीं कि जो तटस्थ हैं वे अपराधी हैं। केवल तटस्थ लोगों के अपराध लिखे नहीं जाते थे अब लिखे जायेंगे।
वैसे यह भी कुछ ऐसा ही है जैसा कि तमाम बड़े लोग बयान देते हैं कि अपराध की प्रथम सूचना रिपोर्ट तुरन्त लिखी जायेगी लेकिन वह लिखी न्यायालय के हस्तक्षेप के बाद ही जाये।
या फिर अगर आपको भारतीय कर व्यवस्था का अंदाजा हो तो इसे इस तरह से ग्रहण करें कि पहले आयकर के दायरे में बड़ी-बड़ी आय वाले लोग हों और एक दिन अचानक देश के लिये धन जुटाने की मंशा से कोई वित्त मंत्री आये और कहे कि अब रेहड़ी-खोमचे वाले, पान वाले लैया चना वाले सब आयकर के दायरे में आयेंगे। अभी तक ये इनकी आय को नजर अंदाज किया जाता रहा लेकिन अब इन्हें बक्शा नहीं जायेगा। इन्हें भी सरल फार्म भरना पड़ेगा।
आपको लैया चना वालों पर आयकर की मार अगर नागवार गुजर रही हो और आप हमारे ऊपर ‘दुर्बल को न सताइये…’ की मिसाइल छोड़ने वाले हैं तो आप इस घटना को सेवाकर के चश्में से देख लीजिये। तमाम सेवाकरों के कुकुरमुत्तों की तरह उगे जंगल के बीच पता लगा आप किसी दिन सोकर उठे और आपकी ब्लागिंग भी सेवाकर के दायरे में आ गयी। आपको बताया जायेगा अब ब्लागिंग पर भी सेवाकार की गाज गिरेगी। समीरलाल की पोस्ट पढ़कर किसी के मुस्कान आई नहीं कि उसके चेहरे पर मनोरंजन कर की रसीद चिपक गयी। पता लगा आपने रत्नाजी की रसोई के स्वाद चखकर जहां डकार ली उधर से आपका आठ प्रतिशत पर पच्चीस प्रतिशत का डिस्क्लेमर लगाकर बिल चला आ रहा है। खरामा-खरामा। आप भी कहोगे कहां फंस गये।
बहरहाल समय पर कुछ और तवज्जो दे ली जाये। लेकिन उसके पहले तट्स्थता पर कुछ ‘गुफ़्तगुआ’ लिया जाये। तट्स्थ माने होता है तट पर स्थित होना। कवि अगर कहता है कि तट पर रहने वालों के अपराध लिखे जायेंगे तो उसे सोचना चाहिये कि लोग ऐसा क्यों कर रहे हैं। लोग किनारे पर इसलिये नहीं बैठे हैं कि वे डूबने से डरते हैं। डूबने का डर है ही कहां जब नदियों का पानी कम हो रहा है। बात नदियों में गंदगी की है। नदियां इतनी गंदी हैं कि उनमें उतरने का मन ही नहीं करता। न जाने कौन सा चर्म रोग हो जाये। लिखने दो समय को अपराध। बाद में कुछ ले-देकर बात दबवाई जायेगी।
अब बात समय की। समय के बारे में बहुत भ्रम हैं। कुछ ऐसे जैसे भारत के पिछड़ेपन के कारणों के बारे में। कुछ लोग कहते हैं कि समय बड़ा बलवान होता है लेकिन ऐसा लगता नहीं है।
समय बलवान कैसे हो सकता है जब टुइयां से टुइयां आदमी तक अपने साथ अनेक तरह के समय लेकर चलता है। हर व्यक्ति के कम से कम दो समय तो होते ही हैं। एक अच्छा समय दूसरा बुरा समय। इसके अलावा तमाम और तरह समय बटोरता सहेजता चलता है। मतलब अगर दुनिया में पांच अरब लोग हैं तो कम से कम दस अरब तरह के समय तो होंगे ही। जब इतने आइटम हैं तो कोई समय अकेले कैसे इतना ताकतवर हो जायेगा कि वह इतना जुलुम कर सके। अब चूंकि अच्छा समय और बुरा समय तो साथ-साथ रह नहीं सकते, जैसे आमतौर पर छ्दम ज्ञान और विनम्रता में छ्त्तीस का आंकड़ा होता है, लिहाजा करीब पांच अरब समय ही एक साथ मिल सकते हैं। अब चूंकि ये मनुष्यों के समय होते हैं लिहाजा वे मानवीय हरकतें भी जाहिर है करेंगे हीं। संगठित नहीं हो सकते। अकेले-अकेले उछलते रहेंगे। ऐसे में इनके पास बल कहां से आयेगा।
तो हे नितिन बागला जी ‘जो तटस्थ हैं समय लिखेगा उनके भी अपराध’ में जो कोई भी हो सकता है जो कि किसी तट के किनारे स्थित है। आप भी और आपके दोस्त भी। वो वाकई तट्स्थ था कि नहीं इसके लिये तटस्थता परीक्षण कराना पड़ेगा। इसके लिये पहले तट्स्थ होने की तैयारी करनी पड़ती है। इसके लिये नियम से नारद पर प्रकाशित चिट्ठों की सामग्री के प्रति तट्स्थ रहते हुये बहुत खूब, वाह, मजा आ गया टाइप टिप्पणियां करें। जितनी ज्यादा करेंगे उतनी अच्छी तैयारी होगी आपकी तट्स्थता परीक्षण के लिये। समय ने अपनी तरफ से कोई अपराध नहीं लिया हां लेकिन उसने यह अपराध जरूर किया कि जिस समय उसके बारे में तमाम भ्रमपूर्ण बयान जारी किये जा रहे थे तब वह तटस्त रहा। सही गलत के बारे में जनता जनार्दन में अफरा-तफरी मचते देखता रहा लेकिन मुंह में दही जमाये रहा। भारतीय दंड विधान के अनुसार यह संज्ञेय अपराध है। इसके लिये समय को दंडित किया जा सकता है। लेकिन अब बिल्ली के गले में घंटी कौन बांधे!
लिहाजा हम तटस्थ हैं। देखें समय हमारे कौन से अपराध नोट करता है! जब समय लिखते-लिखते थक जायेगा तो हम उसकी सहायता करने के बहाने अपने सारे अपराध रिसाइकिल बिन में डाल देंगे और उसके बाद सब कुछ मिटा देंगे। इसके बाद चुपके से रत्नाजी के यहां पार्टी में चले जायेंगे-ठग्गू के लड्डू लेकर जिनकी दुकान और डिब्बों पर लिखा रहता है – ऐसा कोई सगा नहीं जिसको हमने ठगा नहीं!
मेरी पसंद
शब्दों के भी
होते हैं सींग
तभी तो कुछ शब्द
बहुत मारते हैं डींग
जी हां
शब्दों के भी होते हैं सींग
पैने-पैने नुकीले सींग
कलेजे में घुस जाते हैं तो
कलेजा फाड़ देते हैं
लहू-लुहान हो जाती हैं सम्वेदनायें
दम तोड़ देते हैं संस्कार
और वे सींग
प्रेम को घृणा की ज़मीन में कहीं गहरे गाड़ देते हैं।फिर भी,
आपने उगा रखे हैं ये सींग
अरे!
जु़बान पर भी लगा रखे हैं सींग
माना कि
इन सींगों से आप
बड़े-बड़े काम करते हैं
क्योंकि
इनसे इज्जतदार
बहुत डरते हैं
पर सोचो,
कभी जुबान पर लगे ये सींग
गले के रास्ते
अपने ही भीतर उतर गये तो
अपने आपसे डर गये तो!सच जानिये
ऐसे में आप
खुद से भी मिल नहीं पायेंगे
खून की तरह बिखर जायेगा वजूद
जिसे आप समेट नहीं पायेंगे
इसलिये,
रच सकते हो तो
जुबान पर
मिश्री की अल्पना रचो,
और शब्दों को सींग बनाने से बचो।
डा.कमल मुसद्दी
प्रवक्ता राजकीय आयुध निर्माणी इंटर कालेज,अर्मापुर
सद्य प्रकाशित और दिनांक २९.०४.०७ को लोकार्पित
कविता संग्रह कटे हाथों के हस्ताक्षर से साभार!
प्रवक्ता राजकीय आयुध निर्माणी इंटर कालेज,अर्मापुर
सद्य प्रकाशित और दिनांक २९.०४.०७ को लोकार्पित
कविता संग्रह कटे हाथों के हस्ताक्षर से साभार!
Posted in बस यूं ही | 26 Responses
हैं । लिखते रहिये, कर देना पड़ा तो दे देंगे ।
घुघूती बासूती
हमेशा की तरह अद्वितीय
और आपका धन्यवाद इसे पेश करने को!!
रच सकते हो तो
जुबान पर
मिश्री की अल्पना रचो,
और शब्दों को सींग बनाने से बचो।
तटस्थ रहकर इतनी अच्छी सीख देने के लिए बधाई स्वीकारें। पोस्ट लाजवाब है वैसे हम लिखना चाहते थे कि इसे पढ़ कर, हम निशब्द हो गए पर बुरा हो अमिताभ और रामू का जिन्होंने सीधे सादे शब्द के अर्थ ही बदल दिए है।
दीप की लौ भी ,उसे जो रोशनी दे न सकी है
हर लहर जिसने डुबोयी नाव, है सहभागिनी उस
एक ही पतवार की ,धारा नहीं जो खे सकी है
कूचियों के साथ शामिल व्यूह में हैं रंग सारे
जो क्षितिज के कैनवस को चित्र कोई दे न पाये
पुष्प की अक्षम्यता का ज़िक्र करना है जरूरी
प्रिय अधर के पाटलों पर जो न आकर मुस्कुराये
और हाँ, जवाब देते समय मुझे संबोधित किया गया! मैं तो पर्चा आउट करवा के लाया था…मुझे परीक्षक समझ लिया….हे भगवान…
उम्दा ! बहुत उम्दा!
http://shabdashilp.blogspot.com/2007/04/my-pick-from-todays-basket-of-hindi.html
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हमेशा की तरह अच्छा लिखा, बधाई
grt blog, played with words, out of box analysis.. i enjoyed!