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आपने शुभकामनायें दीं तो हम भी कहते हैं शुक्रिया…
By फ़ुरसतिया on August 23, 2007
हमारे लिखने के तीन साल पूरे हुये तो हमने एक ईमानदार लेखक की तरह सूचना दी- …और ये फ़ुरसतिया के तीन साल
तमाम साथियों ने शुभकामनायें दीं। जो नहीं दे पाये हमने उनके खाते से निकाल के अपने में धर लीं जब कोई टोंकेगा तब जवाब दिया जायेगा।
शुभकामनाऒं के जबाब हमने यथासम्भव विनम्रता से दिये हैं। जवाब देते समय पता लगा कि विनम्रता सही में बहुत नाट्क मांगती है। किया गया। करना पड़ता है भाई। ये जन्मदिन चाहे वो ब्लाग का हो या बच्चे का बड़ी मेहनत मांगता है।
तमाम सावधानियों में अब यह सावधानी और जुड़ गयी है कि कहीं हमारे लिखे को लोग चिन्गारी की तरह इस्तेमाल करके अपने पेट्रोल का सदुपयोग न कर लें।
तब तो भैया सब तरफ़ फ़ैल जायेगी आग ही आग/ हम झुलस जायेंगे/कह भी न पायेंगे/ भाग, बेटा भाग/ नाग पंचमी गयी /लेकिन बचे रह गये नाग!
ये बताइयेगा इस लाइन पर कवितागीरी करें तो कुछ डौल बनेगा वाह-वाही का!
तब तो भैया सब तरफ़ फ़ैल जायेगी आग ही आग/ हम झुलस जायेंगे/कह भी न पायेंगे/ भाग, बेटा भाग/ नाग पंचमी गयी /लेकिन बचे रह गये नाग!
ये बताइयेगा इस लाइन पर कवितागीरी करें तो कुछ डौल बनेगा वाह-वाही का!
कुछ लोगों ने शिकायत की कि हमने सस्ते में निपटा दिया। जो हमारे पोस्ट की लम्बाई देखकर आगे बढ़ लेते हैं वे भी कहते पाये -इत्ता छोटा लेख। ये अच्छी बात नहीं है।
पिछले साल जब दो साल हुये तो हमने खुद ही अपना इंटरव्यू ले डाला था। क्या करें कोई लेता ही नहीं था। इंटरव्यू लेने के लिये जितना प्रसिद्ध होना था उतना हो नहीं पाये थे और बदनामी का स्कोर भी कुछ कम पड़ गया। इनाम / इंटरव्यू हमेशा छंटे हुये लोगों का होता है। हम छंटे हुये लोगों में न आ पाये थे। छंट जाते रहे। इसलिये अपनी तारीफ़ में आत्मनिर्भरता की स्थिति को प्राप्त हुये।
आत्मनिर्भरता का फ़ुरसतिया सिद्धान्त यह है कि जैसे-जैसे व्यक्ति नाकारा होता जाता है वैसे-वैसे अपनी तारीफ़ में उसकी आत्मनिर्भरता बढ़ती जाती है। यह् सच है भाई। हम बता रहे हैं। न हो तो आप अपने से देखना शुरू कर दो। सही न लगे तो ये सिद्धांत वापस लौटा दीजिये , दूसरा आपको मुफ़्त में दिया जायेगा। जल्दी करें। यह आफ़र जन्माष्ट्मी तक ही है।
आप देखियेगा आपकी तमाम बातों से हम अवगत हैं। इसके अलावा और जिन बातों की तरफ़ इशारा हुआ उस पर भी लिखा जायेगा। फिलहाल इत्ता ही। आज तो आप मौज करिये। हम भी जरा आफ़िस टहल आयें। शाम तक लौटेंगे। आप परेशान मत होना। किसी के उकसावे में मत आना। जब गुस्सा आये ,पानी पीकर टहलने निकल जाना। ठीक है न!
Posted in सूचना | 7 Responses
(कयास – जरूर 9 2=11 वाले आलोक होंगे, जो माइक्रो पोस्ट के जनक हैं! )
अनूप जो खुद ही है अप्रतिम अनूप सुंदर
ब्लाग का जन्मदिन मनाते है
बच्चे तो “सबके” होते है
हमने इसी को आधार माना
आप के ब्लोग को अपना समझा
आज भी इंतज़ार है अनूप जी
आप की शुभकामनाऒं का
हमे भी मिले बधाई
बेलगाम के घोड़ों जैसे अब चिट्ठों पर जम कर दौड़ो
धूल फ़ाँकते दिखें किनारे खड़े हुए सब हाथ बजाते
आशा यही काल-मस्तक पर,कर अपने हस्ताक्षर छोड़ो