Monday, December 13, 2021

कैलाश मंडलेकर जी से खंडवा रेलवे स्टेशन पर मुलाक़ात

 


आज खंडवा रेलवे स्टेशन पर मुलाक़ात हुई Kailash Mandlekar जी से । कैलाश जी से पहली बार मुलाक़ात हुई थी भोपाल में जब उनको पहले ‘ ज्ञान चतुर्वेदी व्यंग्य सम्मान' से नवाजा हुआ था। उस समय तक मेरी जानकारी इतनी सीमित थी कि जब उनके नाम की घोषणा हुई तब मेरा अपने से पहला सवाल था -‘ ये कैलाश मंडलेकर जी कौन हैं?’ बाद में जब उनके लेखन से परिचित हुआ तो अपनी ‘पठनमंडूकता’ का फिर से पता चला।
वैसे ऐसा पहली बार नहीं हुआ। इसके पहले अरविंद तिवारी Arvind Tiwari जी के लेखन के बारे में तब जाना जब उनको उप्र हिंदी संस्थान से श्रीनारायण चतुर्वेदी सम्मान मिला। इससे यह चलता है कि लोगों को लेखक से परिचित कराने के लिए उनको सम्मानित करते रहना चाहिए।
वैसे यह तो मज़ाक़ की बात। सच तो यह है कि अपने यहाँ पढ़ने का चलन इतना कम है कि अच्छे-अच्छे लेखक के बारे में लोग नहीं जानते। परसों ही एक पाठक सेंट्रल स्टेशन पर किताब खोज रहा था। बातचीत से बहुपाठी लगा । कई मशहूर किताबों की चर्चा की उसने। वहीं रखी ज्ञान चतुर्वेदी Gyan Chaturvedi जी की किताब के बारे में भी दुकान वाले ने बताया तो उसने पूछा -‘ ये कैसे लेखक हैं? क्या लिखते हैं?’
दुकान वाले ने ज्ञान जी का विस्तार से परिचय दिया। भेल अस्पताल के दिल के डाक्टर वाली बात तफ़सील से बताते हुए किताबों का जिक्र क़िया। नरक यात्रा ख़रीदने की सिफ़ारिश की। हमने उसने बरामासी जुड़वाई। स्वांग के बारे में दुकान वाले ने कोई सिफारिश नहीं की यह कहते हुए कि -'अभी पढ़ी नहीं।'
लब्बोलुआब यह कि जब बक़ौल Alok Puranik आलोक पुराणिक जी‘ व्यंग्य के कुलाधिपति’ ( कल Pankaj Subeer पंकज सुबीर जी ने भी ज्ञान जी को व्यंग्य का कुलाधिपति बताया। आलोक जी देख लें अपनी दी उपाधि के कापीराइट का हिसाब) ज्ञान जी के बारे में एक बहुपाठी पाठक पूछ सकता है ‘ये कौन हैं ? क्या लिखते हैं ?’ तो हमारा कैलाश मंडलेकर जी के बारे में अज्ञान उतना अक्षम्य नहीं है।
बहरहाल बाद में कैलाश जी के लेखन से परिचित हुआ। उनके लेख पढ़े। हाल ही में उनको व्यंग्य लेखन के लिए मप्र का प्रसिद्द शरद जोशी सम्मान भी मिला। इंशाल्लाह आगे और मिलेंगे। मिलने चाहिये। वे नियमित लिख रहे हैं। रिटायरमेंट के बाद और मौके मिलेंगे। ढाई साल तक नियमित सुबह-सबेरे में लिखा। अब फिर शुरु करेंगे।
वैसे इनाम भी चक्रव्रद्धी ब्याज की तरह होते हैं। जैसे किसी पेड़ पर बँधे धागे देखकर आते-जाते लोग और धागे बांधते चलते हैं वैसे ही जिसको दो-चार इनाम मिल जाते हैं उनको और भी मिलते रहते हैं, बशर्ते लिखना जारी रहे, लेखक चर्चा में बना रहे। मेरी समझ में ‘साहित्य के जड़त्व का नियम’ आम बात है।
बात फिर कैलाश जी की। हुआ यह कि हमारे परिवार में एक वैवाहिक कार्यक्रम के सिलसिले में अपन बुरहानपुर आये थे। रास्ते में खंडवा पड़ता है। कैलाश जी वहीं के रहवासी हैं। हमने मिलने की बात कही तो पता चला वे भोपाल जा रहे हैं 'ज्ञान चतुर्वेदी व्यंग्य सम्मान' में भाग लेने, जहां हमको भी जाना था लेकिन कार्यक्रम की वजह से जा नहीं पाए। लौटने पर मिलने की बात तय हुई।
वायदे के मुताबिक मिलना हुआ। कैलाश जी स्टेशन आये। साथ में गुलदस्ता भी और गजक भी। गजक तो डब्बे और लिफाफे में थी, लेकिन गुलदस्ता खुले में था। गुलाब के फूल हमसे मजे लेते हुए खिलखिला रहे थे। मुंह चिढ़ा रहे थे।हमने कैलाश जी से कहा भी -'ये क्यों लाये आप? इत्ते में तो एक किताब आ जाती'
असल में अपन बुके के आदी नहीं हुए। असहज हो गए कि इतने वरिष्ठ और सिद्ध लेखक जो लेखन और उम्र दोनों के लिहाज से वरिष्ठ नागरिक हो वो मेरी जैसे नौसिखिए के लिए बुके लाये। हमने मजाक में कहा भी -'अच्छा हम फोटो लेकर लिख देंगे -'अनूप शुक्ल , कैलाश जी को पुष्प गुच्छ देकर सम्मानित करते हुए।'
इस पर कैलाश जी ने कहा कि अगर ऐसा लिखा जाएगा तो हम भी लिखेंगे। हमने सोचा यह तो पोलपट्टी खुलने जैसा मामला हो जाएगा। हमने इरादे के कदम वापस खींचते हुए बुके के साथ फोटो खिंचाई। गजक बैग के हवाले की। बतियाना हुआ।
करीब पौन घण्टे की बातचीत में जल्दी-जल्दी खूब सारी बातें हुईं। लेखन, घर परिवार, इधर-उधर की। वहीं से अरविंद तिवारी जी से भी बातें हुईं। हमने भोपाल के किस्से सुने। कैलाश जी ने बताये। यह भी हमको वहां मिस किया गया। हमको यह सुनकर लगा कि वहां जाना होता तो अच्छा होता।
जाते समय हालांकि विजी श्रीवास्तव Viji Shrivastava को बधाई थी तो इन्होंने बहुत इशरार किया था रुकने का। अगर गाडी भोपाल से निकल न गई होती तो क्या पता वो स्टेशन आकर गाड़ी से उतार लेते।बात तो शांतिलाल जी से और DrAtul Chaturvedi डॉ अतुल चतुर्वेदी जी से भी हुई। शांतिलाल जी ने भी उतरकर कार्यक्रम में शामिल होने की बात कही। डॉ अतुल चतुर्वेदी जी से क्या बात हुई यह हम न बताएंगे। निजता का मामला है। 🙂
ट्रेन का समय हो गया तो कैलाश जी विदा हुए। गाड़ी में बैठते ही सबसे पहला काम अपन ने कैलाश जी की दो किताबें ऑनलाइन खरीदने का किया। 'बाबाओं के देश में' और 'जांच अभी जारी है'।
कैलाश जी मिलना एक सुखद अनुभूति रही। आशा है कि उनका उपन्यास (जिसके सौ पन्ने करीब वो लिख चुके हैं)और व्यंग्य संकलन जल्द ही आएगा।

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