Sunday, December 26, 2021

वक्त से गुजरते हुए- मनोज अग्रवाल



आज सुबह फ़ोन आया। कोरियर वाले का । सोचा -“कोई किताब होगी।” अक्सर कोई न कोई किताब आर्डर कर देते हैं , पढ़ भले न पाएँ। कोरियर वाले ने थोड़ी देर बाद आने को कहा। हम इंतज़ार करने लगे , कौन किताब होगी! उत्सुकता बनाए रखने के लिए हमने खाता और मेल चेक नहीं किया कि कौन किताब है।
थोड़ी देर बाद कोरीयर वाला किताब दे गया। मनोज अग्रवाल की कविताओं की किताब थी -वक्त से गुजरते हुए। किताब देखकर हंसी आई अपने पर । यह किताब तो तीन दिन पहले भी आ चुकी थी अपने पास। अब यह फिर कैसे आ गई। लगता है गफ़लत में दो बार आर्डर हो हुई। बहरहाल आ गई तो यह भी अच्छा ही हुआ। किसी को उपहार में देने के लिए हो गई एक किताब।
मनोज हमारे कालेज के सहपाठी रहे हैं। 1981 से 85 तक हम साथ पढ़े मोतीलाल नेहरु इंजीनियरिंग कालेज, इलाहाबाद में। फ़िलहाल मनोज रेलवे में उच्च पदस्थ अधिकारी हैं।
संवेदनशील मन होने के चलते मनोज शुरू से ही छुटपुट कविताएँ लिखते थे। कालेज मैगज़ीन में छपी मनोज की कविताओं के बिम्ब से “पीले पत्तों” की मुझे याद है। बाद के दिनों में रेलवे की नौकरी में आने के बाद उनका लेखन जारी था।
मनोज की कविताएँ एक ऐसे संवेदनशील मन की कविताएँ हैं जो तंत्र का हिस्सा होने के कारण व्यवस्था और समाज की अनेक विसंगतियों देखता है, उनके कारण समझने की कोशिश करता है, उसकी संवेदना पीड़ित के साथ है लेकिन अक्सर इससे अधिक कुछ करने की स्थिति में नहीं होता।
अपने आसपास की ज़िंदगी को देखते हुए उनके हृदयग्राही चित्रण मौजूद हैं मनोज की कविताओं में । बहुत दिन पहले मनोज ने यह कविता पढ़ने को भेजी थी :
मेरे घर के सामने
हुआ करता था एक सूखा पेड़
पेड़ पर बैठता था
एक उल्लू रोज़
एक दिन
वो
पेड़ कट गया।
और उसकी लकड़ी से बनी
एक सुविधा जनक कुर्सी
अजीब इत्तफ़ाक़ है
पेड़ पर उल्लू आज भी बैठा।
हमको याद है इस कविता की तारीफ़ करते हुए हमने मनोज से कविता संग्रह छपवाने को कहा था। अब जब यह छपा तो देखा यह कविता इस संग्रह में मौजूद है।
छोटी-छोटी नोट्स नुमा , एक बार में पढ़ ली जाने वाली 74 कविताएँ हैं इस संग्रह में। इन कविताओं में मनोज के जीवन के आसपास के लोग हैं। दफ़्तर, दोस्त , माँ , बेटी , पत्नी और साथ के तमाम लोग जिनका उनसे साबिका पड़ता है , इन कविताओं में बिना कैसी मुखौटे के शामिल हैं । बिना चौकाने की कोशिश के अपनी बात रखने का प्रयास है ये कविताएँ।
बेटियों के साथ कविता में मनोज लिखते हैं :
कभी पिता का अनुशासन
कभी माँ की ममता
कभी बहन सा दुलार
तो कभी दोस्त की मस्ती और फटकार
बेटियाँ
हर रूप में मौजूद रहती हैं
ज़िंदगी में
थोड़ा थोड़ा हर रिश्ता जीती हुई सी
वो
जब तक संग होती हैं
रहती हैं खाने में नमक सी
जब
उड़ कर कहीं दूर चली जाती हैं
तो भी
मौजूद रहती हैं
अपने तमाम प्रतिबंधों के रूप में
परछाई सी।
मनोज की यह कविता पढ़ते हुए मुझे मुकेश कुमार तिवारी जी की कविता याद आती है जिसका यादगार अंश हैं :
“लड़कियाँ अपने आप में मुकम्मल जहाँ होती हैं “
कई तरह के मुखौटों में जीते समाज की बानगी है कविता -“नक़ाब के पीछे छिपी ज़िंदगी” में दफ़्तरों के दोहरेपन का चित्रण देखिए :
‘एक नक़ाब दयनीयता का
बॉस के सामने पेश करता हुआ
एक डरे सहमे ग़ुलाम की मानसिकता का
एक नक़ाब कड़क , निष्ठुर , अमानवीयता का
जो
दिखता अधीनस्थों के साथ किसी भी तरह की
सम्वेदना का संपूर्ण अभाव।’
पहनावे और चाल-ढाल के हिसाब से पहचान और भेदभाव का बढ़ते चलन का स्केच है कविता -‘भीड़-तंत्र के व्याकरण में’:
“उसने मेरी हरी कमीज
से मेरे मुसलमान होने का
अनुमान लगाया ही था
कि क़िसी ने देख लिया
मेरी जेब का केसरिया रूमाल
और फिर
मेरे हाथ का कड़ा
या
हाथ में पकड़ी हुई अंग्रेज़ी किताब
यह सब बहस का मुद्दा थे
मेरे धर्म के निर्धारण में।”
इन कविताओं में जिजीविषा के उद्घोष भी हैं :
‘मुझे उड़ने दो अभी कि मैं एक परिंदा हूँ,
घायल हूँ , थका हूँ पर अभी तलक ज़िंदा हूँ।’
कवि के मन का बच्चा भी कविताओं में अपनी बात कहता है:
कभी चाहता हूँ कि मैं भी
बचपन के साथियों से गप्पें लड़ाना
शरारत करना फिर भाग जाना
बिना स्वार्थ के रिश्ते बनाना
बे मक़सद ही कहीं आना जाना
मेरा झूठा अहम मेरे सामने खड़ा हो हुआ है
लगता है मेरे अंदर का बच्चा अब बड़ा हो गया है।
बक़ौल मनोज -“विगत तीस वर्षों के अविराम तनावों और संवेदनाओं की अभिव्यक्ति हैं ये कविताएँ।”
सम्भावना प्रकाशन से प्रकाशित मनोज का कविता संग्रह -‘वक्त से गुजरते हुए’ मेरे लिए एक प्रीतिकर उपलब्धि है मेरे और मेरे जैसे मनोज के मित्रों के लिए। मनोज का कविता संग्रह देर से आया लेकिन आया यह ख़ुशी की बात है। शायद मनोज को अपने मित्रों की ख़ुशी का महत्व पता चलते ही यह संग्रह लाने की याद आई:
जब
जीवन भर ख़ुशी की
एक
अंधी दौड़ में
दौड़ते-दौड़ते थक गया
तो
पता चला
कि
अपनी ख़ुशी के लिए
ज़रूरी है तुम्हारी ख़ुशी।
इस पहले कविता संग्रह की बधाई देते हुए आशा है मनोज की लघु कथाओं का संकलन भी जल्द ही आएगा।
किताब खरीदने का लिंक:

https://www.facebook.com/share/p/iwXQtXLLD3LCbf1p/

No comments:

Post a Comment