कल फिर बैंक जाना हुआ। बैंक से फ़ोन आया -'आपके पैसे आ गए हैं। आकर ले लीजिए।'
अपन चल दिए। उबर एप से गाड़ी बुक की। ड्राइवर दस मिनट की दूरी पर था। फ़ोन करके पूछा तो बोला -'आ रहे अभी।'
हमने कहा -'चलो। दस मिनट का ही काम है। साथ में लौट आना।'
लेकिन ड्राइवर तैयार नहीं हुआ। बोला -'बुकिंग कैंसल कर दीजिए।'
हमने बोला -'तुमको नहीं जाना तो तुम करो कैंसल।'
बोला-'आप ही कर दीजिए। नहीं करेंगे तो अपने आप हो जाएगी कुछ देर में।'
हमने इंतज़ार नहीं किया। बुकिंग कैंसल करके दुबारा बुक करने की कोशिश नहीं की। कुछ देर तक झुलाने के बाद उबर ने माफ़ी माँग ली कि गाड़ी नहीं दे पाया। ग़नीमत है कि उसके माफ़ी माँगने में धमकी का भाव नहीं था। लगा कि सब लोग अपने महामहिम की तरह अहंकारी थोड़े ही होते हैं जो माफ़ी भी ऐसे माँगे कि सामने वाला दहल जाए।
क्या पता महामहिम की अदा के क़ायल उनके 'दिव्यभक्त' अपने विरोधियों को धमकाने के लिए कहने लगें -'हमसे ज़्यादा पंगे लिए तो हम डंके की चोट पर माफ़ी माँग लेंगे। '
यह भी लगा कि बताओ ड्राइवर आने-जाने की पक्की सवारी छोड़कर खड़े रहना कैसे पसंद कर रहा है। लेकिन उसकी क्या परेशानी थी बिना जाने कुछ कहना ठीक नहीं होगा।
उबर से निराश होकर रैपिडो पर गाड़ी बुक की। फ़ौरन बुक हो गयी। बात भी हो गयी। ड्राइवर बोला -'अभी आते।'
आठ मिनट की दूरी वाली गाड़ी काफ़ी देर तक आठ मिनट की दूरी पर ही दिखती रही तो फ़ोन किया। पता चला ड्राइवर साहब एक समोसे की दुकान पर खड़े समोसे खा रहे थे। उनकी रेटिंग 5.0 थी। हमने सोचा जब पाँच रेटिंग वाले भाई जी का यह हाल तो बाक़ी क्या करते होंगे।
ख़ैर, गाड़ी आयी। ड्राइवर भी साथ में। चल दिए। रास्ते में तय किया कि थोड़ी देर इंतज़ार करेंगे ड्राइवर साहब। फिर साथ में वापस लौटेंगे।
रास्ते में ड्राइवर ने बताया कि रैपिडो एप वाले हज़ार रुपए की कमाई पर केवल पचास रुपए कमीशन काटते हैं। जबकि ओला/उबर वाले 30% काटते हैं। इसलिए ज़्यादातर ड्राइवर रैपिडो से सवारी उठाते हैं।
यह मेरी पहली बुकिंग थी रैपिडो से। पहले के बार कोशिश की थी तो ड्राइवर की गलती से उसे कैंसल करना पड़ा था।
बैंक पहुँचकर भुगतान की कोशिश की तो नेटवर्क नदारद। एक दिन पहले हमने गंतव्य पहुँचने के पहले ही भुगतान कर दिया था इसलिए हो गया था। वरना शायद उसका उधार भी बचा रहता।
आजकल अपन सारा भुगतान आनलाइन ही करते हैं। इसलिए पर्स छूट भी जाए तो चिंता नहीं करते। कल भी छूट ही गया। बहुत कोशिश की, भुगतान नहीं हुआ। वो तो कहो ड्राइवर इधर का ही था और उसे साथ ही वापस आना था इसलिए चिंता नहीं हुई। ड्राइवर ने कहा -'आप आराम से काम कर लीजिए। हम आपको वापस ले चलेंगे।'
इसके बाद ड्राइवर दोनो गेट पखने की तरह खोलकर सीट पीछे करके सीट पर पसरकर आरामफ़रमा हो गया।
बैंक में शनिवार की शाम का माहौल था। एकाध लोग ही सीट पर थे। ग्राहक भी नहीं थे।
वहाँ मौजूद कर्मचारी ने बताया कि सम्बंधित कैशियर अभी-अभी खाना खाने गए हैं। आधे घंटे बाद आएँगे। पाँच मिनट पहले आते तो मिल जाते।
हमने इंतज़ार करते हुए फिर आनलाइन भुगतान की कोशिश की। नहीं हुआ। सिग्नल में एक डंडी ही दिख रही थी। वह भी शांत पड़ी थी।
बैंक वाले ने बताया -'यहाँ रक्षा प्रतिष्ठान है बग़ल में इसलिए यहाँ मोबाइल जैमर लगा है। आगे पोस्ट आफिस के बाद पुलिया के पास नेटवर्क आता है।
हम पुलिया के पास तक गए। जाते हुए सोचा कि कहीं ड्राइवर यह न सोचे कि अपन बिना भुगतान के फूटे जा रहे हैं। लेकिन ग़नीमत कि उसने देखा नहीं हमको बैंक से बाहर निकालकर पुलिया की तरफ़ जाते।
वहाँ भी नेटवर्क नदारद ही दिखा। क्या पता शनिवार की शाम को नेटवर्क भी वीकएंड पर चला गया हो।
थोड़ी देर बाद वापस आए तो कैशियर ने चेक लेकर दस्तख़त वेरीफ़ाइ किए। फिर आधार कार्ड का नम्बर पूछकर वहाँ रखे स्कैनर से अंगूठे के निशान से वेरीफ़ाई किया क़ि दस्तख़त करने वाला इंसान वही है जिसने चेक दिया है। वेरीफ़ाई हो जाने के बाद उसने प्रिंटआउट निकाला और कहा इसे मैनेजर से वेरीफ़ाई करवाना है। अभी करवाते हैं।
अपन ने फार्म लिया और कहा -'लाओ हम ही करा लाते हैं।' कैशियर ने दे दिया फार्म।
मैनेजर महिला थीं। उन्होंने हमारी तरफ़ उचटती निगाह डाली और काम में लगी रहीं। हमने बताया कि हम यहीं बग़ल के आफिस में थे कुछ दिन पहले। वो हमारी तरफ़ मुख़ातिब हुईं और कम्प्यूटर पर देखकर वेरीफ़ाई करने लगीं। उनके चेहरे पर की भौहें तनी हुईं थीं। मन किया कह दें -'टेशन न लें। आराम से काम करें। हमको कोई हड़बड़ी नहीं है। काम में कोई गड़बड़ी भी नहीं है।' लेकिन कुछ बोले नहीं। क्या पता नाराज़ हो जाएँ और डपट दें -'आप कौन होते हैं मुझे तनाव क्षेत्र से बाहर आने की सलाह देने वाले।'
अपने सेवा काल में तमाम लोगों को मैंने देखा है कि वे बिना तनाव के कोई काम कर ही नहीं पाते थे। जब तक टेशन में न आ जाएँ तब तक काम शूरु ही नहीं कर पाते थे। कभी बिना टेंशन के कोई काम होता देखते तो उनको लगता -' काम के दौरान ज़रा देर भी तनाव नहीं। ज़रूर कोई गड़बड़ हुई है। कहीं काम बिगड़ न जाए।'
हमारे एक सीनियर हमको देखकर इसी बात से टेंसनियाए रहते थे कि हम कभी टेंशन में नहीं रहते। उनको लगता था कि हमारे काम को सही से करने के लिए तनाव ज़रूरी है। लेकिन हमको बिना तनाव में रहे काम करते देखते तो अक्सर तनावग्रस्त हो जाते।
बहरहाल मैडम ने हमारा पैसा पास कर दिया। इस बीच बातचीत के दौरान पता चला कि वे ट्रांसफ़र पर हाल ही में आई हैं। पति मुंबई में हैं। उनका परिवार लखनऊ में है। हमको बैंक वालों पर ग़ुस्सा आया कि बताओ पति-पत्नी को अलग-अलग प्रदेशों में पोस्ट कर दिया। कित्ती ग़लत बात।
वापस कैशियर के पास आकर परचा दिया। उन्होंने पैसे की गड्डी निकालकर मेज़ पर रखी। देने के पहले देखा तो पैसे पास नहीं हुए थे कम्प्यूटर पर। वे उठकर गए और मैडम के कमरे में जाकर उन्होंने कम्प्यूटर पर पैसे पास कराए और हमको पैसे थमा दिए। अपन पैसे झोले ने डालकर निकल आए।
लौटते में टाटमिल चौराहे के पहले लम्बा जाम लगा था। ड्राइवर ने गाड़ी अंदर गली में घुसाई और रेलवे की पटरियों के किनारे बनी सड़क पर चलाते हुए टाटमिल क्रासिंग के पास सड़क पर आ गया। यह रास्ता मुझे बहुत पहले से पता था लेकिन सालों से आए नहीं थे तो याद से उतर गया था। इस बार फिर आए तो फिर याद में चढ़ गया।
ड्राइवर को भुगतान न कर पाने का लफड़ा और पास में पर्स न होने की बात बताई तो उसने ज्ञान दिया -'इसीलिए हम हमेशा पर्स भी साथ में लेकर चलते हैं। पता नहीं कहाँ पेमेंट फँस जाए।'
यह बात अपने यहाँ के डिजिटल पेमेंट के बारे में एकदम सही है। कभी भी भुगतान अटक जाता है। कभी नेट गोल तो कभी सर्वर व्यस्त। कल पूरा दिन यह लफड़ा बना रहा। मोबाइल से भुगतान नहीं हुआ। डिजिटल पेमेंट हर बार फेल हुआ।
डिजिटल पेमेंट के और भी लफड़े हैं। वैसे लफड़े कहाँ नहीं हैं। जहां जीवन है वहाँ लफड़े हैं। लोग तो कहते हैं जीवन अपने आप में एक लफड़ा है। लेकिन अपन ऐसा नहीं मानते मान सकते हैं अगर 'लफड़े' के पहले 'हसीन' लग जाए । अधिक से अधिक इस बात पर राज़ी हो सकते हैं कि 'जीवन एक हसीन लफड़ा है।'
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