कल रात जल्दी सो गए। जल्दी मतलब साढ़े दस बजे क़रीब। सोचा सुबह जल्दी उठ जाएँगे।
सुबह पहली बार नींद खुली क़रीब साढ़े छह बजे। सोचा अभी दो मिनट और सो लें। सोच पर फ़ौरन अमल हुआ। करवट बदल के सो गए। 'दो मिनट' बाद जब जगे तो साढ़े सात बज चुके थे। मतलब 'दो मिनट' पूरा होने में पूरा घंटा लग गया।
ये 'दो मिनट' में 'घंटा' पूरा होने वाली बात मज़ेदार है।'संगत' की एक बातचीत में उदयन बाजपेयी (संगत -34 , लिंक टिप्पणी में ) जी ने एक साथ कई समय चलने की बात कही है। हमारे एक क्षण में कहीं और पूरा जीवन बीत जाता होगा। लेकिन वो किसी दूसरे के साथ होता होगा। यहाँ तो हमारे ही दो मिनट में घंटा बीत गया। हमारे दो मिनट अलसाते हुए सोने की इच्छा ने घंटे का क़त्ल कर दिया। ऐसे ही किसी बात पर शेर बना होगा :
लम्हों ने खता की है
सदियों ने सजा पायी।
ख़ैर, बात दो मिनट में घंटा भर सो लेने की हो रही थी। सोते हुए क्या हुआ मुझे पता नहीं लेकिन जब जागे तो पता चला कि अपन एक सपना देख रहे थे। चूँकि ताज़ा-ताज़ा उठे थे तो सपना याद रहा कुछ देर। पता चला सपने में अपन आइसक्रीम खा रहे थे। 'चोकोबार' आइसक्रीम।
‘चोकोबार’ कभी हमारी पसंदीदा आइसक्रीम होती थी। आइसक्रीम के ऊपर की दानेदार चाकलेट थोड़ी देर तक तो कड़ी रहती। लेकिन कुछ देर बाद वह पिघलती और चारो तरफ़ से गुरुत्वाकर्षण की गिरफ़्त में आकर नीचे की तरफ़ सरकती। भीतर की तरफ़ का दूधिया तामझाम भी गिरती हुई चाकलेट के पीछे भागते हुए , गिरते-पड़ते चल देता। फुर्ती से आइसक्रीम खाने, चूसने के बावजूद कोई न कोई कतरा मेरी क़मीज़ पर कब लैंड करता। उसका भी पता हमको तब चलता जब सुनाई पड़ता-'तुमको आइसक्रीम खाना कब आएगा? सब गिरा ली क़मीज़ पर।'
ये आइसक्रीम वाला सपना आज पहली बार आया। पहले हमारे सपनों में केवल इम्तहान की कहानी आती। तैयारी नहीं हुई है, इम्तहान आ गए हैं, गाड़ी छूट रही है, रास्ते में भीड़ है, समय पर पहुँचने के लिए परेशान हैं। हमारे सपनों में परीक्षा, परीक्षा केंद्र का ही पूर्ण बहुमत रहता। किसी और विषय के सपने नहीं आते।
लेकिन इधर कुछ दिनों में हमारे सपनों में विविधता आई है। सपने बहुरंगी हुए हैं। देश, दुनिया, दफ़्तर और दीगर मामलों के सपने भी आने लगे हैं। मन मानो सपनों का मॉल हो गया है। हर तरह के चमक-दमक वाले सपने आने लगे हैं। एक दिन अलग-अलग दफ़्तरों में साथ काम किए दोस्त, कर्मचारी एक साथ आ गए सपने में। उनसे बात भी नहीं कर पाए ठीक से, उनको चाय पानी भी नहीं करा पाए और सपना खतम हो गया। वो शेर है न :
न जी भर के देखा, न कुछ बात की ,
बड़ी आरज़ू थी मुलाक़ात की।
बड़ी ख़राब सर्विस है ये सपना सप्लाई करने वाले एप की। मनचाहा सपना ब्रेक करके ऊटपटाँग सपने की रील चलाता रहता है। हमको जो सपना देखना होता है उसको कट करके अपना कूड़ा-कबाड़ ठेलता रहता है। तनिक भी सामाजिक शिष्टाचार नहीं। उसको यह भी अंदाज़ा नहीं कि हमारे दोस्तों को बिना चाय पिलाए सपना खतम कर दिया। उनको अगर पता चल गया कि वे सपने में ही सही, हमारे यहाँ से बिना चाय-पानी किए वापस लौट आए तो क्या सोचेंगे हमारे बारे में। बहुत दुष्ट है ये 'सपना सप्लाई मैनेजर।'
ये आइसक्रीम वाला सपना देखकर लगा कि रोज़ आ ज़ाया करे तो अच्छा। मीठे से परहेज़ के चलते आइसक्रीम तो खाना बंद सा हो गया है। सपने में आये तो खाकर तृप्त हो ज़ाया करेंगे। न जेब हल्की होगी न क़मीज़ गंदी होगी। होगी भी तो सपने में होगी। कोई टोकेगा थोड़ी। किसको पता कि हम सपने में आइसक्रीम खा रहे हैं। जब हम सपने में आइसक्रीम खा रहे होंगे, तब वो कुछ और कर रहे होंगे। हरेक के सपने अलग-अलग होते हैं।
आपको ये लग रहा होगा कि हमको सबसे ज़्यादा आइसक्रीम ही पसंद है। लेकिन ऐसा है नहीं। हमको आइसक्रीम से बहुत बहुत ज़्यादा और तमाम चीजें, लोग पसंद हैं। उनमें से अधिकतर हमारे जीवन में साक्षात मौजूद हैं इसलिए उनके सपने देखने की ज़रूरत नहीं। वैसे आ जाएँ सपने में भी तो भी कोई ख़राबी नहीं है। अच्छा ही है। जो आसपास नहीं है उनके बारे में सोचने पर लिस्ट बहुत लम्बी हो जाएगी।
ये तो हमने अपने आज के सपने की बात बताई। आपको भी कोई सपना आया क्या आज? सपने आते हैं क्या? कौन सा सपना सबसे ज़्यादा आता है? कौन सा सपना सबसे ज़्यादा पसंद है?
ये सवाल ऐसे ही लिख दिए। इनके जवाब देना ज़रूरी नहीं। हमारे जीवन में तमाम सवाल होते हैं जिनके कोई जवाब नहीं होते। हों भी तो देना ज़रूरी नहीं। सवाल से प्रसिद्ध गीतकार बलवीर सिंह 'रंग' जी का अपने बारे में कहा गया मुक्तक याद आ गया। इसमें भी सपने की बात आई है। यह मुक्तक हम तक अपने सीनियर Anshuman Agnihotri जी के माध्यम से पहुँचा जिन्होंने 'रंग' जी को आमने-सामने सुना है :
अनेकों प्रश्न ऐसे हैं जो दोहराए नहीं जाते,
बनाना चाहता हूँ स्वर्ग तक सोपान सपनों का
मगर चादर के बाहर पाँव फैलाए नहीं जाते
सितारों में बहुत मतभेद है इस बात को लेकर
धरा पर 'रंग' जैसे आदमी पाए नहीं जाते।
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