युदृ की भाषा का सौन्दर्य
By फ़ुरसतिया on September 13, 2007
युदृ की समाप्ति युदृ के द्वारा ही होती है- माओ।
आजकल हम तकनीकी के लिये पूना के तकनीकी प्रशिक्षण कालेज में हैं। तमाम युदृ से जुड़े हथियार और तकनीक की जानकारी हासिल कर रहे हैं।
जब भी युदृ की बात होती है तब इसके बारे में एक भयावह तस्वीर सामने आती है। सैकड़ों हजारों मरे अधमरे लोग।
लाशों से पटे मैदान। ताजा खंडहरों में बदली इमारतें। मतलब सब तरफ भयानक, खौफनाक मंजर।
लाशों से पटे मैदान। ताजा खंडहरों में बदली इमारतें। मतलब सब तरफ भयानक, खौफनाक मंजर।
लेकिन परिभाषाओं में युदृ इतना भयानक नहीं है। परिभाषायें जब देखते हैं तो ऐसा लगता है कि ये युदृ न होकर
कोई मजेदार काम हो रहा हो। आत्मिक शांति के लिये अनुष्ठान जैसा कुछ।
कोई मजेदार काम हो रहा हो। आत्मिक शांति के लिये अनुष्ठान जैसा कुछ।
आपको पता है कि अमेरिका में जब दो टावर गिरे थे तो बड़ा बवाल मचा था। दुनिया भर में ऐसी-तैसी कर दी अमेरिका जी ने गुस्से में आकर। जबकि युदृ की भाषा में जानते हैं उस इमारत का क्या हुआ था? उसका केवल संतुलन बिगड़ा था। जरा सा एक इमारत का संतुलन बिगड़ जाने अमेरिका वालों के दिमाग का संतुलन बिगड़ गया। तदनंतर विश्व के तमाम देशों का।
युदृ की भाषा में ट्विन टावर की इमारत एक स्ट्रक्चर मात्र थी। उसका जमीदोंज हो जाना महज उसका संतुलन बिगड़ जाना था जिसके पीछे इतना हाय-तोबा हो गया।
आपको कारगिल की लड़ाई में हजारों लोगों के शहीद हो जाने का गम होगा। लेकिन युदृ की भाषा में अगर कहें तो उन शहीदों का केवल जीवन कम हुआ और कुछ खास बात नहीं हुई।
यह युदृ की भाषा का सौन्दर्य है। विनाश को खूबसूरत अंदाज में पैक करके पेश करने का अंदाज है यह।
परसाईजी ने लिखा है- अमेरिका जब किसी देश पर बमबारी करता है तो लगता है वहां सभ्यता बरस रही है।
पहले की बात रही होगी जब युदृ भयावह रहे होंगे। तब पता नहीं लगता था कि कौन धरासायी होगा और किसकी विजय
पताका फहरायेगी। अब तो लोग युदृ का सजीव प्रसारण देखते हैं। बगदाद युदृ के समय लोगों ने इराक पर बम गिरते
हुये देखे। चाय पीते, गपियाते हुये सीएनएन टेलीविजन देखते युदृ में मरते हुये लोगों को देखना प्रफुल्ललित होना अभी
भी लोगों को याद होगा।
पताका फहरायेगी। अब तो लोग युदृ का सजीव प्रसारण देखते हैं। बगदाद युदृ के समय लोगों ने इराक पर बम गिरते
हुये देखे। चाय पीते, गपियाते हुये सीएनएन टेलीविजन देखते युदृ में मरते हुये लोगों को देखना प्रफुल्ललित होना अभी
भी लोगों को याद होगा।
इसी खूबसूरती के चलते बता दें कि अब सामूहिक विनाश के हथियार बन भले रहे हों लेकिन रिसर्च में लोग उन हथियारों पर काम कर रहे हैं जो अंधे होकर पूरा इलाका तबाह करने के बजाय काम भर का विनाश करें। मनचाही
जगह का संतुलन बिगाड़ें। ये नहीं कि मारना , गिराना एक इमारत है और शहर भर को जमीदोज कर दिया सिवाय उस
इमारत को छोड़कर। जैसे एक ओसामा बिन लादेन को मारने के लिये अमेरिकाजी ने तमाम लोगों को मार दिया और ओसामा अब भी खिजाब लगाकर अपने भाषणों के टेप जारी कर रहा है।
जगह का संतुलन बिगाड़ें। ये नहीं कि मारना , गिराना एक इमारत है और शहर भर को जमीदोज कर दिया सिवाय उस
इमारत को छोड़कर। जैसे एक ओसामा बिन लादेन को मारने के लिये अमेरिकाजी ने तमाम लोगों को मार दिया और ओसामा अब भी खिजाब लगाकर अपने भाषणों के टेप जारी कर रहा है।
ये बहुत पुराने जमाने की बात मानी जाती है आजकल। आजकल सीधे निशाने पर बार करने वाले हथियारों का मौसम है जिन्हें ‘स्मार्ट मुनीशन’ कहते हैं।हां भाई. हथियारों में भी स्मार्टनेस के लिये गलाकाट प्रतियोगिता होती है।
लोगों को खून खराबे से चिढ़ सी हो गयी है इसलिये आजकल ऐसे हथियार बन रहे हैं जिससे लोग मरे भले कम लेकिन
दुश्मन का नुकसान ज्यादा हो। एक सैनिक को मारने से ज्यादा एक सैनिक को घायल करना ज्यादा फायदे मंद माना
जाता है क्योंकि अगर आदमी मर गया तो उसे छोड़कर जवान आगे बढ़ जायेगा। बदला लेने या लड़ने के लिये।जबकि
घायल होने की दशा में एक साथ दो लोग बेकार हो जायेंगे। एक घायल और दूसरा उसको संभालने वाला। हत्या का
पाप भी नहीं लगा और लड़ाई में आगे भी हो गये। इसे कहते हैं- आम के आम, गुठलियों के दाम।
दुश्मन का नुकसान ज्यादा हो। एक सैनिक को मारने से ज्यादा एक सैनिक को घायल करना ज्यादा फायदे मंद माना
जाता है क्योंकि अगर आदमी मर गया तो उसे छोड़कर जवान आगे बढ़ जायेगा। बदला लेने या लड़ने के लिये।जबकि
घायल होने की दशा में एक साथ दो लोग बेकार हो जायेंगे। एक घायल और दूसरा उसको संभालने वाला। हत्या का
पाप भी नहीं लगा और लड़ाई में आगे भी हो गये। इसे कहते हैं- आम के आम, गुठलियों के दाम।
कल जिस बम का जिक्र किया संजय बेंगाणी ने वो दरअसल एक ऐसा बम होगा जिसमें ऐसा विस्फोटक भरा होगा जिसको सुलगने के लिये बहुत आक्सीजन चाहिये होगी। जब आक्सीजन चाहिये होगी तो जहां बम गिरेगा वहां की सारी आक्सीजन बम पी जायेगा। आक्सीजन की कमी होगी तो लोग मर जायेंगे, पेड़-पौधे बचे रहेंगे क्योंकि वे कार्बन डाई आक्साइड पीते हैं-सर उठा के। इसे निर्वात बम इसीलिये कहा गया है क्योंकि जब यह आक्सीजन पी जायेगा तब वहां निर्वात पैदा हो जायेगा।
यह कुछ ऐसा ही कि जिस इलाके में कोकाकोला के प्लांट लगते हैं वहां के पानी का स्तर नीचे चला जाता है। प्लांट सारा पानी पी जाता है। इलाके के लोग प्यासे मर जाते हैं। निर्वात बम तो जब बनेगा, चलेगा तब देखा जायेगा। वो भी तब चलेगा जब हमारी रूस से भिड़ंत होगी। वाटर बम तो अभी प्रेम पूर्ण माहौल में चल रहा है।
जब निर्वात बम बना है तो उसकी काट भी होगी। तात्कालिक काट यह हो सकती है कि आप देर तक सांस रोककर
जीने का अभ्यास करें। बाबा रामदेव की शरण में जायें। आक्सीजन सिलिंडर हमेशा नाक से सटा कर रखें।
जीने का अभ्यास करें। बाबा रामदेव की शरण में जायें। आक्सीजन सिलिंडर हमेशा नाक से सटा कर रखें।
आक्सीजन सिलिंडर के दाम बढ़ाने का बहाना तो नहीं है यह बम!
Posted in बस यूं ही | 17 Responses
यहां भी लोग कलम से मारते हैं कि मरे न; पायं-पांय भी न कर पाये पर दर्द बहुत हो!