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कन्हैयालाल नंदन
ब्लागर मीट बोले तो जनवासे में बरात
By फ़ुरसतिया on September 12, 2007
नंदनजीके घर से मुझे लेने के लिये मैथिलीजी के सुपुत्र सिरिल और अरुण अरोरा आ गये। हम उनके साथ मैथिलीजी के आफिस की तरफ चल दिये। पास ही उनका आफिस था। इतवार को वैसे बंद रहता है लेकिन वे मुझसे मिलने आये। मुझे कुछ अफसोस भी हुआ कि मेरे चक्कर में सबका इतवार खराब हो गया।
आफिस पहुंचते ही पंगेबाज अपनी इक दिन पहले की कहानी सुनाने लगे। हम सुनते रहे। पंगेबाज को अपनी पूरी रौ में बोलते देखना भी मजेदार अनुभव है। मेरे एक मित्र हैं वे भी काफी मन लगाकार बोलते हैं। मैं उनसे कहा करता हूं- यार तुम्हारे बोलने में जितनी ऊर्जा खर्च होती है उसको यदि बिजली में बदला जा सके तो सारे शहर की बिजली की समस्या हल हो सकती है। अरुण अरोरा के साथ मैं चंद घंटे ही रहा इसलिये इस बारे में कुछ कह नहीं सकता कि
उनमें इसकी कितनी संभावनायें हैं। बहरहाल, अरुण अरोरा को जब यह बताया गया कि उनके लिये कानपुर से ठग्गू के लडडू आये हैं तो उन्होंने पिंडारियों की तरह डिब्बे को अपने कब्जे में किया और हर कोण से उसके फोटो खीचने लगे। उनकी तन्मयता से लग रहा था गोया वे मिठाई के डिब्बे के फोटो न खींचकर किसी रैंप-सुंदरी का फोटो सेशन कर रहे हों।
उनमें इसकी कितनी संभावनायें हैं। बहरहाल, अरुण अरोरा को जब यह बताया गया कि उनके लिये कानपुर से ठग्गू के लडडू आये हैं तो उन्होंने पिंडारियों की तरह डिब्बे को अपने कब्जे में किया और हर कोण से उसके फोटो खीचने लगे। उनकी तन्मयता से लग रहा था गोया वे मिठाई के डिब्बे के फोटो न खींचकर किसी रैंप-सुंदरी का फोटो सेशन कर रहे हों।
मिठाई के बारे में वे इतना गाना गा चुके हैं इतवार से कि अगर को डायबिटीज का मरीज पढ़ लेता तो अस्पताल में
भर्ती हो जाता। उनका मन बार-बार डिब्बे की तरफ लौट जाता है- उधौ मोहि ब्रज बिसरत नाहीं वाले अंदाज में।
भर्ती हो जाता। उनका मन बार-बार डिब्बे की तरफ लौट जाता है- उधौ मोहि ब्रज बिसरत नाहीं वाले अंदाज में।
वहां आलोक पुराणिक और काकेश भी आ गये थे। उनसे गुफ्तगू होती रही। आलोक पुराणिक ने अरुण अरोरा की फोटुओं की तारीफ करते हुये अनुरोध किया कि वे अपनी धांसू च फांसू फोटुओं तक ही सीमित रहें वर्ना उनके व्यंग्य के पाठक कम हो जायेंगे।
मौके का फायदा उठाते हुये हमने पंगेबाज से मौज लेने की कोशिश की कि देखो देबू तुमको बेवकूफ बनाकर एक टिप्पणी
करता है और उसके जवाब में तुमसे तीन बड़ी-बड़ी पोस्ट लिखवा लेता है। वे भी तुम गोलमोल लिखते हो जिनको एक दो लोगों के अलावा और कोई समझ नहीं पाता। देबू की इफिसिएन्सी कितनी गजब की है। लेकिन मेरे इस तर्क को अरुण अरोरा ने खारिज कर दिया यह कहते हुये कि उनको कोई दूसरा बेवकूफ नहीं बना सकता। वे जब बनेगें अपने मन से बनेंगे। बेवकूफी के मामले में वे किसी दूसरे पर निर्भर नहीं हैं, आत्मनिर्भरता की स्थिति को प्राप्त हो चुके हैं। अरुण अरोरा ने यह भी कहा कि वे जो लिखते हैं अपने मजे के लिये लिखते हैं।यह सुनकर हमें भी काफी मजा आया।:)
करता है और उसके जवाब में तुमसे तीन बड़ी-बड़ी पोस्ट लिखवा लेता है। वे भी तुम गोलमोल लिखते हो जिनको एक दो लोगों के अलावा और कोई समझ नहीं पाता। देबू की इफिसिएन्सी कितनी गजब की है। लेकिन मेरे इस तर्क को अरुण अरोरा ने खारिज कर दिया यह कहते हुये कि उनको कोई दूसरा बेवकूफ नहीं बना सकता। वे जब बनेगें अपने मन से बनेंगे। बेवकूफी के मामले में वे किसी दूसरे पर निर्भर नहीं हैं, आत्मनिर्भरता की स्थिति को प्राप्त हो चुके हैं। अरुण अरोरा ने यह भी कहा कि वे जो लिखते हैं अपने मजे के लिये लिखते हैं।यह सुनकर हमें भी काफी मजा आया।:)
वैसे जितना हम देबाशीष को जानते हैं उतने से हम यह कह सकते हैं कि वे चोरी-छिपे टिप्पणी करने में यकीन नहीं करते। बाकी शक की दवा तो हकीम लुकमान के पास भी नहीं है तो हमारे पास क्या होगी।
इस बीच और लोग आते गये। सुनीता चोटिया अकेली महिला ब्लागर थीं जो अपने पति जी के साथ आई थीं। उनकी
आकाशवाणी में जो कविता प्रसारित हुयी उसको उन्होंने जनता की बेहद मांग पर दुबारा सुनाया। कविता की वीडियो रिकार्डिंग अरुण अरोरा ने की थी। लेकिन जैसी की थी उससे यही लगा कि उनसे पंगे के अलावा और कोई काम ठीक
से नहीं हो पाता। फोटो भी जो उन्होंने बहुत सारे लिये थे लेकिन उनमें से कुछ ही पोस्ट किये। वे भी बस नेचुरल
आये हैं। ऐसे कैसे चलेगा जी।
आकाशवाणी में जो कविता प्रसारित हुयी उसको उन्होंने जनता की बेहद मांग पर दुबारा सुनाया। कविता की वीडियो रिकार्डिंग अरुण अरोरा ने की थी। लेकिन जैसी की थी उससे यही लगा कि उनसे पंगे के अलावा और कोई काम ठीक
से नहीं हो पाता। फोटो भी जो उन्होंने बहुत सारे लिये थे लेकिन उनमें से कुछ ही पोस्ट किये। वे भी बस नेचुरल
आये हैं। ऐसे कैसे चलेगा जी।
मसिजीवी जब आये तो अकेले आये। शायद पहली बार । कारण बताते हुये उन्होंने बताया कि बच्चों के इम्तहान
हैं। हमारी उनसे पूरे पांच माह बाद इसी बहाने मुलाकात हुई। बातचीत के दौरान यह प्रस्ताव उछला कि उनको अपना
नाम मसिजीवी की जगह माउसजीवी रख लेना चाहिये। लेकिन जब आदमी सलाह मानने के लिये तैयार नहीं होते तो
किसी अच्छे सुझाव के बरक्स तीन-चार और बेतुके सुझाव उछाल देता है ताकि मामला उलझ सके। इसी तर्ज पर मसिजीवी ने कुछ की बोर्ड से जुड़े नाम उछाल दिये। हमारी मसिजीवी को माउसजीवी बनाने की पुण्यकामना अधूरी रह गयी। चलते समय मसिजीवी ने मुझे रवीन्द्र कालिया की किताब गालिब छुटी शराब दी। यह किताब मेरे पास पहले से थी। लेकिन मसिजीवी से यह किताब मुझे मिलने से दो फायदे हुये। एक तो अब मेरे पास जो किताब है उसे मैं किसी को भेंट कर सकता हूं दूसरे उनकी दी किताब अब मेरे पास से कोई मार के नहीं ले जा पायेगा क्योंकि उस पर भेंटकर्ता का नाम लिखा है।
हैं। हमारी उनसे पूरे पांच माह बाद इसी बहाने मुलाकात हुई। बातचीत के दौरान यह प्रस्ताव उछला कि उनको अपना
नाम मसिजीवी की जगह माउसजीवी रख लेना चाहिये। लेकिन जब आदमी सलाह मानने के लिये तैयार नहीं होते तो
किसी अच्छे सुझाव के बरक्स तीन-चार और बेतुके सुझाव उछाल देता है ताकि मामला उलझ सके। इसी तर्ज पर मसिजीवी ने कुछ की बोर्ड से जुड़े नाम उछाल दिये। हमारी मसिजीवी को माउसजीवी बनाने की पुण्यकामना अधूरी रह गयी। चलते समय मसिजीवी ने मुझे रवीन्द्र कालिया की किताब गालिब छुटी शराब दी। यह किताब मेरे पास पहले से थी। लेकिन मसिजीवी से यह किताब मुझे मिलने से दो फायदे हुये। एक तो अब मेरे पास जो किताब है उसे मैं किसी को भेंट कर सकता हूं दूसरे उनकी दी किताब अब मेरे पास से कोई मार के नहीं ले जा पायेगा क्योंकि उस पर भेंटकर्ता का नाम लिखा है।
मसिजीवी के साथ पीएचडी करने में अरुण अरोरा काफी उत्सुक दिखे। मसिजीवी ने सूचना दी कि कुछ दिन में ही
नीलिमाजी भी पीएचडी कराने के लिये अधिकृत हो जायेंगीं। यह जानकारी मिलते ही उन्होंने अपना गाइड बदल लिया।
नीलिमाजी भी पीएचडी कराने के लिये अधिकृत हो जायेंगीं। यह जानकारी मिलते ही उन्होंने अपना गाइड बदल लिया।
संजय तिवारी जब आये तो वे न तो अपने ब्लाग नाम विस्फोट की तरह विस्फोटक दिखे न ही फोटो के अनुरूप लहीम
सहीम। इसका भी वहां कुछ जिक्र हुआ।
सहीम। इसका भी वहां कुछ जिक्र हुआ।
इस सब के दौरान चाय-नाश्ते का अबाध क्रम चलता रहा। मैथिलीजी और उनके बेटे सिरिलको इस सब के चक्कर में बहुत मेहनत पड़ जाती है। इतने लोगों का इंतजाम करना वाकई मेहनत का और खर्चीला काम है। हम हैं कि मुंह उठाये चले गये। हम सच में मैथिली जी का आभार व्यक्त करते हैं कि उनके कारण इतने सारे दोस्तों से मिलना हो गया।
आते-आते जगदीश भाटिया और नीरज दीवान की सवारी भी पधारी। संजय तिवारी और यशवंत भी आ ही गये थे।
राजेश रोशन और अविनाश भी घटनास्थल पर पहुंच चुके थे। सृजन शिल्पी भी तो थे अपनी रानी मुखर्जी वाली आवाज के साथ। और जो साथी थे उनका भी जिक्र आयेगा आगे उचित समय पर।
राजेश रोशन और अविनाश भी घटनास्थल पर पहुंच चुके थे। सृजन शिल्पी भी तो थे अपनी रानी मुखर्जी वाली आवाज के साथ। और जो साथी थे उनका भी जिक्र आयेगा आगे उचित समय पर।
जब लोग ज्यादा हो गये तो लोग अपने-अपने मन के हिसाब से लोगों से बतियाने लगे। ऐसा लग रहा था कि हम सब लोग किसी बारात में जाने के लिये जनवासे में इकट्ठा हुये हों। अलग-अलग एक-एक, दो-दो ,तीन-तीन साथी आपस में बतियाने में मशगूल हो गये।
कुछ देर हम यशवंत से बतियाये। हमने कहना चाहा कि यह सही है कि आप लोगों का उद्देश्य अपनी भड़ास निकालना है और उसके लिये आप स्वतंत्र हैं जैसे मन आये वैसे लिखने के लिये। लेकिन यह भी सोचना चाहिये कि भड़ासियों के अलावा भी लोग इसे पढ़ते हैं। अगर भाषा इतनी भदेश होगी तो आम लोग जो इतने खुले नहीं हो पाते वे इससे जुड़ने में हिचकेंगे।
इस पर यशवंत का कहना था कि उनके टारगेट पाठक वे नहीं हैं जो ऐसी भाषा से परहेज करते हैं। वरन वे दूर-दराज के गांव-कस्बों के पत्रकार हैं।अपने मन की बात जिस भाषा में विचार आयें उसी में व्यक्त करना ही उनका उद्देश्य है। इसके आगे मेरे पास कहने को कुछ था नहीं। जब वे स्वयं मानते हैं कि हम जैसे लोग उनके टारगेट पाठक नहीं हैं तो इसमें दखल देने के लिये कुछ रह नही जाता।
भड़ास के नाम को लेकर भी कुछ मजेदार बाते हुईं। किसी ने बताया भड़ास माने मन की भड़ास। मन की सारी कुंठा व्यक्त करने से संबंधित तमाम परिभाषाओं पर चर्चा हुई। मैंने भी सुझाया। भड़ास माने भड़+आस। मतलब जो आशा भड़ से मतलब तुरंत जगे वह हुई भड़ास। भड़ास की यह आशावादी व्याख्या शायद भड़ास के लोगों को पसन्द नहीं आई इसलिये उन्होंने अपनी पोस्टों में इसका जिक्र नहीं किया।
राजेश रोशन ने अपनी एक पोस्ट में हड़काते हुये लिखा था कि हिंदी के ब्लागर विकिपीडिया में कुछ योगदान नहींकरते। हमने उनसे पूछा -भाई, इतना कस के हड़का दिया। बताओ उस पोस्ट का मतलब क्या था? तुम्हारा योगदान अब तक क्या है? तो इस पर राजेश रोशन ने बताया कि वे विंडोज ९८ में काम करते हैं। इस बारे में उनको कुछ ज्यादा पता नहीं है। मुझे लगा कि भाईजी को पता नहीं है तब इतना हड़का दिया। अगर कहीं पता होता तो क्या गति करते।
एक शेर भी याद आया भड़ से अभी-अभी। देखें मौंजू हो तो वाह-वाह कहिये,
जब वो बेवफा है तब दिल उस पर इतना मरता है,
इलाही गर वो बावफा होता तो क्या सितम होता।
इलाही गर वो बावफा होता तो क्या सितम होता।
जानकारी के लिये बता दूं तमाम ब्लागर साथी विकिपीडिया में अपनी-अपनी रुचि के पन्ने अपडेट करते रहते हैं। यह अभी से नहीं है, पिछले दो-तीन सालों से कर रहे हैं। अब और साथी भी इसमें योगदान दें तो अच्छा है। इस बारे में मैंने एक लेख भी लिखा था जिसमें यह बताया गया है कि विकिपीडिया में कैसे योगदान कर सकते हैं।
अविनाश से बहुत कम बात हो पायी। मैंने अविनाश से कहा कि मोहल्ला में जो बहस का आयोजन करते हो वो कई
बार इतना उलझाऊ हो जाता है कि समझ में नहीं आता, खिचड़ी हो जाता है। इस पर अविनाश ने तुरंत कहा -जो खिचड़ी लगता है,उसे आप मत पढ़िये। अब इसके आगे उनसे कुछ कहा नहीं जा सकता था। अलबत्ता उनकी दरभंगा
वाले चिट्ठे की हम लोगों ने तारीफ की।
बार इतना उलझाऊ हो जाता है कि समझ में नहीं आता, खिचड़ी हो जाता है। इस पर अविनाश ने तुरंत कहा -जो खिचड़ी लगता है,उसे आप मत पढ़िये। अब इसके आगे उनसे कुछ कहा नहीं जा सकता था। अलबत्ता उनकी दरभंगा
वाले चिट्ठे की हम लोगों ने तारीफ की।
नीरज दीवान से कुछ अंतरंग गुफ्तगू भी हुई जिसे बताना उनके साथ वायदा खिलाफी होगी। जगदीश भाटिया ने वायदा
किया कि जल्द ही वे मुन्ना भाई सीरीज दुबारा शुरू करेंगे। काकेश ने भी जल्द ही दुबारा बैटिंग शुरू करने का वायदा
किया।
किया कि जल्द ही वे मुन्ना भाई सीरीज दुबारा शुरू करेंगे। काकेश ने भी जल्द ही दुबारा बैटिंग शुरू करने का वायदा
किया।
इसी झटके में हमारी निगाह आलोक पुराणिक की शर्ट की पाकेट से झांकती डायरी पर पड़ी। देखा निकलवाकर तो
उसमें तमाम लेखों के बीज तत्व बिखरे पड़े थे। कुछ वे लिख चुके थे कुछ अभी लिखे जाने हैं। इसके अलावा समय
विभाजन की योजनायें यह बता रहीं थीं कि वे अपने को जितना अगड़म-बगड़म बताते हैं उतने हैं नहीं। वे बहुत जिम्मेदारी से अपना टाइम बरबाद करते हैं। उनसे जलने का एक और मसाला मिला।
उसमें तमाम लेखों के बीज तत्व बिखरे पड़े थे। कुछ वे लिख चुके थे कुछ अभी लिखे जाने हैं। इसके अलावा समय
विभाजन की योजनायें यह बता रहीं थीं कि वे अपने को जितना अगड़म-बगड़म बताते हैं उतने हैं नहीं। वे बहुत जिम्मेदारी से अपना टाइम बरबाद करते हैं। उनसे जलने का एक और मसाला मिला।
मीटिंग को औपचारिकता का जामा पहनाने की भी कोशिश की गयी। सभी ब्लागरों ने अपने परिचय दिये। एक बार
परिचय शमा मेरे पास आकर बुझ गयी। उसे दुबारा जलाया गया।
परिचय शमा मेरे पास आकर बुझ गयी। उसे दुबारा जलाया गया।
जिस तरह का मूड -माहौल बन गया था उसके चलते मुझे लग रहा था कि नंदनजी को वहां न ही बुलाना अच्छा रहता। लोग अपने-अपने में बतिया रहे थे। पंगेबाज ,अविनाश के साथ अलग बतिया रहे थे। आलोक पुराणिक स्मार्ट निवेश करा रहे थे। मैथिलीजी सबको खिलाने-पिलाने में लगे थे। हम इधर-उधर उचक-बैठकर लोगों से बतियाने के चक्कर में जुटे थे।
बाद में मैथिलीजी से सलाह करके हम मामाजी को ले आये। आते ही मैथिलीजी ने उनका बड़े आदर से सत्कार किया
और गुलदस्ता ,न जाने कब आ गया था, भेंट किया।
और गुलदस्ता ,न जाने कब आ गया था, भेंट किया।
उनके आने पर साथियों का मैंने परिचय कराया, कुछ लोगों ने खुद दिया। इसके बाद बाकायदे भारत के परमाणु
समझौते पर पत्रकार वार्ता शुरू हो गयी। संजय तिवारी और यशवंत ने सवालिया मिसाइलें दागना शुरू किया। उन्होंने
अपनी समझ से जैसा ठीक लगा वैसे जवाब दिये। लेकिन विद्वान पत्रकार उनके जबाब से संतुष्ट नहीं हुये। उनके
जबाब उस सांचे में सही नहीं बैठ पाये जो उन साथियों ने अपने ज्ञान के हिसाब से बनाये थे। इसके बाद सृजन शिल्पी
ने ब्लागिंग से संबंधित सवाल दागने शुरू कर दिये। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता से जुड़े संवैधानिक सवाल उछाले।
समझौते पर पत्रकार वार्ता शुरू हो गयी। संजय तिवारी और यशवंत ने सवालिया मिसाइलें दागना शुरू किया। उन्होंने
अपनी समझ से जैसा ठीक लगा वैसे जवाब दिये। लेकिन विद्वान पत्रकार उनके जबाब से संतुष्ट नहीं हुये। उनके
जबाब उस सांचे में सही नहीं बैठ पाये जो उन साथियों ने अपने ज्ञान के हिसाब से बनाये थे। इसके बाद सृजन शिल्पी
ने ब्लागिंग से संबंधित सवाल दागने शुरू कर दिये। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता से जुड़े संवैधानिक सवाल उछाले।
वो तो कहो कि नंदनजी ने अभी तक कोई ब्लाग पढ़ा,देखा नहीं है इसलिये इसमें उनको ज्यादा उलझना नहीं पड़ा वर्ना
वे भी किसी झमेले में पड़ जाते।
वे भी किसी झमेले में पड़ जाते।
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के बारे में उनका जबाब जहां तक मुझे याद है वह यह था कि इसका निर्धारण खुद आपको
करना होगा। एक समय बाद आपको खुद अपनी बात खराब लगेगी अगर आपने इसे सही तरीके से कहा नहीं है।
इसी तरह बतियाते हुये समय कब गुजर गया पता नहीं चला।
करना होगा। एक समय बाद आपको खुद अपनी बात खराब लगेगी अगर आपने इसे सही तरीके से कहा नहीं है।
इसी तरह बतियाते हुये समय कब गुजर गया पता नहीं चला।
अरुण अरोरा हमारे जाने के समय की याद दिलाते हुये हमें फुटाने की व्यवस्था करने में जुट गये। आखिर में वे हमें
मैथिलीजी के आफिस से निकाल कर ही माने। हम मामाजी को उनके घर के लिये विदा करके जगदीश भाटिया के साथ हवाई अड्डे की तरफ चल दिये।
मैथिलीजी के आफिस से निकाल कर ही माने। हम मामाजी को उनके घर के लिये विदा करके जगदीश भाटिया के साथ हवाई अड्डे की तरफ चल दिये।
रास्ते से अमित गुप्ता को फोन किया। बताया कौन-कौन लोग आये थे। वे बोले सारी बरात तो इकट्ठा हो गयी थी।
हम बोले कि हां बरात तो थी लेकिन दूल्हा नदारद था। दूल्हे ने अगली बार जनवासे में मिलने का वायदा किया है।
हम बोले कि हां बरात तो थी लेकिन दूल्हा नदारद था। दूल्हे ने अगली बार जनवासे में मिलने का वायदा किया है।
मैथिलीजी और सिरिल का एक बार फिर से आभार। आभार उन तमाम साथियों का भी जो छुट्टी के दिन दूर-दूर से मुझसे मिलने आये।
आज देबाशीष का जन्मदिन है। मैं अपनी तरफ से उनको शुभकामनायें देता हूं।
मेरी पसंद
परवरदिगार से एक गुफ़्तगू
मेरी पसंद
परवरदिगार से एक गुफ़्तगू
मुहब्बत का सौदा है यह
मुहब्बत जो मेरे पूरे जनम की कमाई है
जिसे पाने में , और फ़िर ?
फ़िर उसकी अदा को
स्कूल के पहाड़े की तरह याद करनें
सांसों में बसानें में
आधी से ज्यादा उमर गँवाई है
धड़कन की तरह जिसे लगाकर
रखना पड़ता है सीने से
जिसे छुपा कर हर साँस के साथ
जीता रहा करीने से ।
**
आप को याद दिलाऊँ
कि आपको मंदिर में एक बार
घेर कर देर तक स्तुति गाई थी
आप चाहें तो कह लें की थी चापलूसी
परसाद-वरसाद भी चढाया था
तब जाकर आपको थोड़ा तरस आया था
और आपनें मुहब्बत का ये जज़्बा मुझ पर अता फ़रमाया था
***थोड़ा सा जेहन पर जोर डालें
तो याद आ जायेगी सारी बात
उसी से जुड़ी हुई दिख जायेगी मेरी यह सौगात
जिससे जुड़ गई है अब पूरी ये कायनात !
दर्ज होगी ज़रूर दर्ज होगी
आपके यहाँ रजिस्टर में
यह सारी वारदात
सच मानो, इतना खुश था मैं ..
इतना खुश था कि
नहीं सो पाया था सारी रात ।
**
होगी आपके लिये यह घटना मामूली
मगर मुझे तो आज तक नहीं भूली
**
अब देखो कि ..
जिसे इतना लम्बा समय लगा हो पाने में
कम से कम उतना समय तो लगेगा
उसे भुलानें में
**
हिसाब लगायें
कि इसके लिये साँसो का सिर्फ़ एक झटका
और पूरी स्लेट साफ़ ! ..
यह हिसाब नाकाफ़ी है !
इसे शिकायत न समझें परवरदिगार
यह बराबर का सौदा नहीं हुआ
पानें और भुलानें का अनुपात
सचमुच में नाकाफ़ी है
इसे सुधारिये !
ये न्यायप्रियता ईश्वरीयता में दाग़ है
सरासर नाइंसाफ़ी हैचलनें को तो जब कहोगे, चल दूँगा
मुसाफ़िर हूँ , मुसलसल सफ़र में हूँ
लेकिन पहले हिसाब तो बराबर करो
जब बराबर हो जायें तो बता देना
ज़ल्दी क्या है, अभी तो सुकून से अपनें घर में हूँ ।
कन्हैयालाल नंदन
Posted in बस यूं ही | 18 Responses
इस तरह की ब्लॉगर मीट को सिर्फ़ मीट ना रखकर, इसे वैचारिक मंच का भी स्थान दिया जाना चाहिए। यदि हो सके तो जरुरी मेल-मुलाकात के बाद किसी विषय विशेष पर चर्चा/बहस हो। सिर्फ़ वैचारिक रुप से भिड़ें, कोई लफ़ड़ा झगड़ा ना हो इसके लिए अमित जैसे भारी भरकम बन्दो का होना भी जरुरी है। भड़ासियों को ब्लॉगर मीट मे आना अच्छा रहा, आमने सामने मिलने से काफी मतभेद दूर होते है और लोगो को एक दूसरे को समझने का मौका मिलता है। हम दिल्ली मे मैथिली जी, के आतिथ्य से चूक गए, चलो अगली बार सही।
पता नहीं चर्चा खतम हो गयी है या फ़िर एक पोस्ट और आने वाली है
लेकिन टिप्पणी देने में और देर लगाना उचित नहीं होगा । मेरी समझ में ये अब तक की सबसे लम्बी ब्लागर मीट चर्चा है । इसी से एक विचार आया है कि क्यों न हम भी अपने शहर में कुछ हिन्दी ब्लागर बनवा दें, इसी बहाने ब्लागर मीट करने का मौका मिलेगा
इलाही गर वो बावफा होता तो क्या सितम होता।
सही तरह से मिलना भी नहीं हो पाया इतने समय में आपसे।
अगले मिलन का इंतजार रहेगा।