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पुनि-पुनि चन्दन, पुनि-पुनि पानी
By फ़ुरसतिया on September 3, 2007
आजकल हर तरफ़ ‘गलत फ़ैमिली‘ का जोर है।
हम गलतफ़हमी के आगे की बात कर रहे हैं भाई। आप कोई भीगलतफ़ैमिली देख लो,गलतफ़हमी वहां पहले से रही होगी। बिना गलतफ़हमी के कहीं भी गलतफ़ैमिली नहीं होती यह बात सब जानते हैं, कुंवारे भी और फ़ैमिली वाले भी।
हां भाई, हमें पता है गलत फ़ैमिली नहीं गलतफ़हमी लिखना चाहिये लेकिन हम गलतफ़हमी के आगे की बात कर रहे हैं भाई। आप कोई भीगलतफ़ैमिली देख लो, गलतफ़हमी वहां पहले से रही होगी। बिना गलतफ़हमी के कहीं भी गलतफ़ैमिली नहीं होती यह बात सब जानते हैं, कुंवारे भी और फ़ैमिली वाले भी।
बिना गलतफ़हमी के समर्थन के किसी भी गलतफ़ैमिली की सरकार नहीं बन सकती।:)
अब बतायें गलतफ़ैमिली के पीछे की बात। तो हम देख रहे हैं कि लोग बात को अपने-अपने हिसाब से ले लेते हैं। अब देखिये- आस्तिक-नास्तिक पर कुछ गलतफ़हमी हो गयी तो अनिल रघुराज नित्यानंद जी को ले आयेआध्यात्मिक प्रवचन के लिये। पिछले दिनों जनगणमन पर गलतफ़हमी दूर करने के लिये अभय तिवारीजी ने भी महान लेखकों की बहुत भीड़ इकट्ठा कर ली थी।
अभी यहां भी देखिये ज्ञानदत्त जी के दुख के हमने बात की तो उन्होंने और दुखी कर दिया यह कहते हुये कि अपने ऊपर व्यंग्य करना चाहिये। दूसरों पर नहीं। हम फिर गलतफ़हमी के शिकार हैं कि वे किस पर हंस रहे हैं। अपने पर या हम पर।
मजे की बात समीरलालजी भी अच्छे बच्चे की तरह अपना होमवर्क लेकर पहुंच गये -सरजी, आपने कहा हम हंस लिये अपने पर। राजा बेटा बन गये। अब अगला होमवर्क दे दीजिये।
वैसे ये सब लोग ज्ञानी हैं लेकिन आधुनिक बनने के चक्कर में अपनी संस्कृति से कट जाते हैं कभी-कभी। अब कैसे बतायें कि दूसरों पर हंसने वाला व्यक्ति वास्तव में उदार चरित का होता है। वह जब दूसरों पर व्यंग्य करता है तब सोचता है कि यह व्यंग्य मैं अपने पर ही कर रहा हूं। उनके लिये पूरी धरती ही अपने कुटुम्ब के समान होती है- उदार चरितानाम वैसुधव च कुटुम्बकम। ।
यही गलतफ़हमी हमारे लेख के साथ भी हुयी। हमने ब्लागिंग बंद करने के फ़ायदे बताये तो लोगों ने यह मतलब निकाला कि हम अपनी दुकान समेटने का इरादा रखते हैं। जबकि हमने साफ़-साफ़, सर्फ़ एक्सेल की चमकार में लिखा था-ये फ़ायदे जिसने गिनाये हैं वह खुद नियमित ब्लागर है और निकट भविष्य में ब्लागिंग बंद होने के फ़ायदे उठाने के सहज लोभ से बहुत दूर है।
दूसरों पर हंसने वाला व्यक्ति वास्तव में उदार चरित का होता है। वह जब दूसरों पर व्यंग्य करता है तब सोचता है कि यह व्यंग्य मैं अपने पर ही कर रहा हूं। उनके लिये पूरी धरती ही अपने कुटुम्ब के समान होती है- उदार चरितानाम वैसुधव च कुटुम्बकम। ।
इसके बावजूद कुछ लोगों ने हमसे ब्लागिंग जारी रखने की बात कही। इससे हमें यह सुकून हो रहा है कि हमने केवल ब्लागिंग बंद करने के फ़ायदे बताये। कोई आत्महत्या करने के उपाय के बारे में नहीं लिखा वर्ना अभी तक हमारे दोस्त लोग बाड़मेर पुलिस के ब्लाग पर कमेंट करके हमारे खिलाफ़ दफ़ा ३०९ के तहत मुकदमा काबिज करा दिये होते कि ये देखो आत्मह्त्या, हत्या को उकसा रहा है। कुछ् लोग शायद सहानुभूति भी जताते, अभी मत जाओ भाई। एक पोस्ट लिख रहा हूं, कमेंट करके तब जाना।
बहरहाल, हम कह ये रहे थे कि हमारी पोस्ट प्रभुजी,तुम चन्दन हम पानीऔर अपने-अपने यूरेका पर तमाम पानीदार कमेंट किये गये। कुछ लोगों ने बताया कि हम वास्तव में पानी आने पर उछलकर पोस्ट करने भागे। पाण्डेयजी ने हमें हड़का सा दिया यह कहते हुये-सिर्फ यह बताने के लिये कि आपके घर में पानी आ गया है, नहा लिये हैं सवेरे-सवेरे और मन प्रफुल्लित पुलकितश्च है; इतनी लम्बी पोस्ट झाड़ने की क्या जरूरत है?!
हम तो पोस्ट देख कर समझ गये थे कि रेडियो पर मस्त गाना और भजन “प्रभुजी तुम चंदन हम पानी।” पानी आ जाने की खुशी में ही है!
पाण्डेयजी की ज्यादती देखिये भाई लोग, कल हम पर व्यंग्य कर रहे थे और आज लिखते हैं अपने पर व्यंग्य करना चाहिये। वे भले ही हमारे ऊपर व्यंग्य किये हों लेकिन हम यही मानते हैं कि उदार चरित के हैं और जो बात उन्होंने हमारे लिये कही वह वस्तुत: अपने आप से कह रहे थे। उदारता के मुफ़्तिया उपहार के बाद इतना तो वे मान जायेंगे।
चूंकि हमारी पोस्ट प्रभजी, तुम चंदन हम पानी उनकी पठन स्टार चयन में शामिल है अत: इसी बहाने याद आ गयी एक कथा सुना देते हैं:-
हमें यह सुकून हो रहा है कि हमने केवल ब्लागिंग बंद करने के फ़ायदे बताये। कोई आत्महत्या करने के उपाय के बारे में नहीं लिखा वर्ना अभी तक हमारे दोस्त लोगबाड़मेर पुलिस के ब्लाग पर कमेंट करके हमारे खिलाफ़ दफ़ा ३०९ के तहत मुकदमा काबिज करा दिये होते कि ये देखो आत्मह्त्या, हत्या को उकसा रहा है।
एक शिवभक्त पुजारी था। एक बगीचे में शिवजी की बटिया(छोटा शिवलिंग) स्थापित किये भगवान की पूजा करता था। दिन में कई बार चंदन लगाते, स्नान-ध्यान कराते। एक दिन कहीं गया काम से तो अपने जवान होते बच्चे को पूजा-पाठ का भार सौंप कर चला गया। बाग में ही जामुन, आम आदि के पेड़ थे। पुजारी पिता के जाने पर बालक ढेले से मार-मार कर फ़ल तोड़ कर खाने लगा। जामुन भी खाये होंगे। कुछ देर में आस-पास के सारे ढेले या तो बहुत दूर जाकर गिरे या फिर पेड़ के पास के ही तालाब में। उसका मन और जामुन खाने का हुआ। उसे पास में कोई ढेला न दिखा तो उसने महादेव जी की बटिया उठाकर जामुन गिराये। दुबारा किया। तिबारा भी। जामुन तो काफ़ी हो गये लेकिन अगली बार फिर जब उसने महादेवजी को ऊपर उछाला तो वे अपनी उपेक्षा से रुष्ट होकर पास के तालाब में जा बिराजे। बालक ने बहुत प्रयास किया लेकिन वह शिवलिंग तालाब से खोज न पाये। उसकी कुछ समझ न आया तो उसने पुजारी बाप की मार से बचने के लिये महादेव की बटिया के आकार का ही एक जामुन उनकी जगह रख दिया। रंग भी काला था। लग रहा था सही में शिवजी की बटिया रखी है।
पुजारी जी वापस आये तो श्रद्धापूर्वक पूजा करने बैठे। रगड़-रगड़ के बटिया को धोने-नहलाने लगे। जामुन का गूदा, गुठली का साथ छोड़कर उनके हाथ में आ गया। वे कुछ समझे कुछ न समझे। उन्होंने अपने बेटे की ओर देखा, गुस्से से। बेटा तुरन्त बिना घबराये उनको उलटा दोष देते हुये बोला- पुनि-पुनि चंदन, पुनि-पुनि पानी, गलि के देवता हम का जानी। आप बार-बार इनको चंदन लगाते हो, बार-बार पानी से धोते हो। इससे अगर भगवान गल गये तो इसमें मेरा क्या दोष?
अब इसके बाद हम आसानी से दो-तीन बड़े मार्मिक पैराग्राफ़ ठेल सकते हैं, अनायास, बिना प्रयास। कह सकते हैं कि हमारे देश में लोग भगवान की ऐसी ही बेफ़ालतू में पूजा करने में जुटे हैं। असली भगवान को फ़ेंक दिया है, पूजा का दिखावा कर रहे हैं। इतना पूज रहे हैं उनको कि उनकी भी खाल खिंच गयी है। शरीर और आत्मा अलग-अलग हो गये भगवान के हमारे ढकोसलों से। आदि-इत्यादि।
लेकिन हम ये सब नहीं कहेंगे। क्योंकि हमें लगता है कि यह सब बातें आप जानते हो और हमसे बेहतर जानते हैं। इससे आप पर कोई धांसू इम्पेशन न पड़ेगा। बल्कि हो सकता है आप कहो- बेफ़ालतू में इम्प्रेशन झाड़ रहा है।
संभव है कि कोई हनुमान भक्त इसे अपने अपने आराध्य देव पर ही व्यंग्य समझ बैठे। और जयबजरंगबली बोलते हुये हमारी नली खोजने लगे। इसलिये बात यहीं खतम करते हैं। बात बढ़ाने से कोई फ़ायदा भी नहीं न!
क्या कहते हैं आप!
मेरी पसंद
राह हारी मैं न हार।थक गये पथ-धूल के-
उड़ते हुये रज-कण घनेरे।
पर न अब तक मिट सके हैं,
वायु में पदचिन्ह मेरे।जो प्रकृति के जन्म ही से ले चुके गति का सहारा।राह हारी मैं न हारा।स्वप्न-मग्ना रात्रि सोई,
दिवस संध्या के किनारे।
थक गये वन-विहग, मृगतरु-
थके सूरज-चांद-तारे।पर न अब तक थका मेरे लक्ष्य का ध्रुव ध्येय तारा।राह हारी मैं न हारा।
मन्नू लाल द्विवेदी’शील’
Posted in बस यूं ही | 10 Responses
देखिये न असली कथा तो ठाकुर जी का अण्टा उछल कर जामुन तोड़ने की है; पर सुकुल वैष्णव ठहरे – शालिग्राम को कैसे उछलवाते? उन्होने बदल कर महादेव की बटिया उछलवाई!
शैव और वष्णवों का झगड़ा पुराना है. सुकुल ने उसी झगड़े को उभारने का प्रयास किया है. हमने विश्व हिन्दू परिषद ज्वाइन तो नहीं की है, पर अगर शैव-वैष्णव के आधार पर सुकुल समाज को बांटने का प्रयास करेंगे; तो हमारे पास उनका विरोध करने के सिवाय कोई चारा न बचेगा.
(स्माइली लगाने पर भी अगर सुकुल नाराज होने का प्रयास करें तो यह लें डबल स्माइली – )
एक फुल्ली चिकाईदार पोस्ट होनी चाहिये बहुत दिन से ड्यू है।
या कुछ और ही चल रहा है??
अब क्या करें जी. बिना बात के; आराम से सो कर उठते हैं; तो कोई किसी टोन में गरियाता मिल जाता है. इसलिये स्माइलियों का तो बोरा साथ रखना पड़ता है पोस्ट/टिप्पणी लिखने में!
ये लीजिये तीन स्माइली –