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अथ मुंबई मिलन कथा
By फ़ुरसतिया on September 19, 2007
हम नासिक से बड़े सबेरे ही उठकर ,रचनाजी के हाथ की बनी चाय पीकर मुंबई के लिये चल दिये। नासिक से बाहर निकलते ही काम भर का सबेरा होने लगा था। शुभचिंतकों के शुभकामना संदेश बरसने लगे। जे एन यू में पढ़ रही अन्विता का संदेश आया- मौसाजी, कहां मटरगस्ती कर रहे हो? जन्मदिन मुबारक हो!
हमने धन्यवाद देते हुये बताया- मुंबई जा रहे हैं हीरो बनने। मुरारी भी साथ में है।
तुरंत जबाव भी आ गया- ओये, मौसा इस शकल और उमर में विलेन का रोल भी नसीब नहीं होगा।
हमने इसे सकारात्मक रूप में ग्रहण करते हुये सोचा कि हमारी शकल उतनी खराब नहीं है जितनी विलेन के लिये चाहिये। उमर की बात का हमने ज्यादा ख्याल नहीं किया| ये सब अभय तिवारी के चोचले हैं जो उमर को हसीनात्मकता का पैमाना मानते हैं तब भी जबकि हमने उनको उनके दिल को दिलासा देने वाला शेर दो बार सुनाया,बिना वाह-वाह की अपेक्षा किये-
हमने धन्यवाद देते हुये बताया- मुंबई जा रहे हैं हीरो बनने। मुरारी भी साथ में है।
तुरंत जबाव भी आ गया- ओये, मौसा इस शकल और उमर में विलेन का रोल भी नसीब नहीं होगा।
हमने इसे सकारात्मक रूप में ग्रहण करते हुये सोचा कि हमारी शकल उतनी खराब नहीं है जितनी विलेन के लिये चाहिये। उमर की बात का हमने ज्यादा ख्याल नहीं किया| ये सब अभय तिवारी के चोचले हैं जो उमर को हसीनात्मकता का पैमाना मानते हैं तब भी जबकि हमने उनको उनके दिल को दिलासा देने वाला शेर दो बार सुनाया,बिना वाह-वाह की अपेक्षा किये-
जवानी ढल चुकी खलिशे मोहब्बत आज भी लेकिन,
वहीं महसूस होती है जहां महसूस होती थी।
बहरहाल, हम मुंबई करीब दस बजे पहुंच गये। मिलने का समय तय हुआ था दो बजे। इसके लिये भी हमें अभयजी ने कड़क संदेश दिया था। दो दिन पहले फोन पर पूछा कि क्या प्रोग्राम है?
हमने कहा- प्रोग्राम क्या आयेंगे और मिलेंगे।
इस पर वे बोले- ऐसे नहीं चलेगा। हम दिल्ली की तरह कोई झाम नहीं चाहते।
हम हड़क गये इस बात से। हमने कहा- मालिक आप जब बताओ, जहां बताओ हम पहुंच जायेंगे। सो समय तय हुआ दोपहर को दो बजे। जगह भी तय हो गई- गोरेगांव!
यहां साफ कर दें कि दिल्ली में हमें कोई कटु अनुभव नहीं हुआ था। सबसे मौज-मजे में बाते हुईं। अब लोगों ने इस मिलन-जुलन को अपने-अपने नजरिये से देखा। इसके लिये हम का कहें भाई जब तुलसीदास जी ही कह गये हैं-जाकी रही भावना जैसी। ब्लागर मीटिंग तिन्ह देखी तैसी।
हम दस जब बजे पहुंच गये तो एक रिश्तेदार से मिलने चले गये। मजे की बात हम चौकीदार को जो नाम बताये उसके लिये वो बोला इस नाम का यहां कोई नहीं रहता। हम बोले कैसे नहीं रहता? ये पता है। वो तो कहो तब तक वे खुद वहां आ गये। सो मामला सुलट गया। पता चला हम उनके घर के नाम से उनको वहां खोज रहे थे, जबकि वे वहां अपने आफिस के नाम से रहते हैं।
शशि हमें लेने समय से आ गये। मिलना गोरेगांव में तय हुआ था। शशि ने हमें रास्ते में प्रमोदसिंह का आशियाना इशारे से दिखाया। उनके बारे में तमाम बातें लोग सुना चुके हैं। कोई कह रहा था कि वे दिल्ली लड़की देखने गये हैं,किसी ने कहा कि किसी काम-तमाम के चक्कर में पधारे हैं राजधानी। कोई बोला कि यह बोल कर मिकल लिये कि मुंबई में या तो फुरसतिया रहेंगे या अजदक। लेकिन हमें उनकी बात ही सच के सबसे ज्यादा नजदीक लगती है कि वे वहीं कहीं थे और वे यह सवाल मुंबई से ही उछाल रहे थेमैं इन भले व बेशऊर लोगों से बस इतना पूछना चाहता हूं कि हमें आपने दिल्ली में नैन-मटक्का करता ताड़ लिया तो वह अज़दक कौन है जो मुंबई में अनूप शुक्ला की ब्लॉगर्स मीट और अनपेड बिलों के भुगतान से सिर छिपाता-जान बचाता भागता फिर रहा है?
हम रास्ते में ही थे तब तक अभय तिवारी का दो बार फोन आया। शशि ने बताया कि पहुंच रहे हैं लेकिन हेडमास्टर की तरह वे बार-बार पूछते रहे जब तक हम पहुंच नहीं गये। अभय जी ने अपने कड़क इंतजामी पुरुष होने का सुबूत देने में कोई कसर नहीं छोड़ी।
घटनास्थल पर पहुंचते ही सबने अपनी-अपनी कुर्सियां संभाल ली और सब अपनी-अपनी हांकने लगे। इसमें सूत्रधार की भूमिका जबरियन अभय तिवारी ने संभाल ली कुछ उसी तरह जिस तरह रूस में गोर्बाचोव के जाने के बाद बोरिस येल्तसिन ने टैंक पर चढ़कर रूस का नेतृत्व संभाल लिया था। वे बार-बार लगातार हम लोगों को भटकने से रोक रहे थे। मौज-मजे का स्टियरिंग बार-बार एक सवाल की तरफ मोड़ दे रहे थे- ब्लागिंग से आपका क्या मतलब है? आप किस तरह लेते हैं इसे? आपके जीवन में इसका क्या महत्व है?
इस चैप्टर के सवाल के जवाब हम बहुत बार दे चुके हैं इसलिये जवाब रटा था। हमने बताया कि यह सब रविरतलामी के चलते हुआ। वे ही इसके लिये दोषी हैं कि एक अच्छा-खासा जिम्मेदार सा लगने वाला गृहस्थ ब्लागिंग के मैदान में कूद पड़ा। पता लगा कि वहां हम ही अकेले रविरतलामी के शिकार नहीं थे। युनुस भाई और आशीष भी उनके शिकार थे। इसी सिलसिले में यह भी बात चली की नेट पर हिंदी को लोकप्रिय बनाने में अभिव्यक्ति और वेबदुनिया का सराहनीय योगदान है।
हमने मौका मुफीद जानकर ब्लागिंग जगत के पुराने तमाम किस्से सुना डाले जिससे बोर होने के बावजूद लोग ध्यान से सुनने का अच्छा मुजाहिरा करते रहे। बोरियत को दूर करने के लिये चाय -वाय का भी चौकस इंतजाम था इसलिये बोरियत ज्यादा महसूस नहीं हुई। लोगों ने चाय में चीनी मिलाने में मशगूल होने के बहाने हमारे किस्सों को अनसुना करने में सफलता हासिल की । बाद में इस सबसे आजिज आकर मेरे मुंह में केक ठूंसकर मुंह बंद करने की बात भी बोधसत्व ने बताई। बड़ी बात नहीं कि इस वीरता पर उनको मुंबई के ब्लागार भाई मुंबई ब्लागर वीरता पुरस्कार से नवाजने का प्रोग्राम बना रहे हों।
ब्लागिंग पुराण के बीच में बोधिसत्वजी ने एक सवाल हमारी तरफ उछाल दिया। आज जब नित नये लिखने वाले ब्लागर बढ़ रहे हैं तो ऐसी स्थिति में आप अपने लिये क्या चुनौती महसूस करते हैं? वैसे तो हम आशानी से इसे आउट आफ कोर्स कहकर बच सकते थे क्योंकि इस सवाल का मतलब कुछ यह था कि अभी तक तो आप अंधों में काने राजा बने वाह-वाही पाते रहे अपने जबरिया लेखन से । अब जब नित नये तमाम धांसू च फांसू लेखक आते जा रहे हैं तो ऐसे में अपने फुरसतिया लेखन के बारे में क्या सोचते हैं आप फुरसतियाजी?
लेकिन हमें तभी हाल ही में पढ़ा नामवर सिंह का एक इंटरव्यू याद आ गया। उसमें काशीनाथ सिंह ने नामवरजी से पूछा था- आपको किसी के लेखन से जलन होती है?
इस पर नामवर सिंह का जवाब था- मुझे उन लोगों से ईर्ष्या होती है जो वह बात मुझसे पहले और मुझसे अच्छी तरह कह देते हैं जिसको कहने के लिये मैं बेचैन रहा ।
हमने भी यही जवाब दोहरा दिया( कभी-कभी पढ़ाई कितना काम देती है) यह जोड़ते हुये कि आजकल ऐसे ब्लागर लगातार बढ़ते जा रहे हैं जिनका लिखा पढ़कर मुझे ईर्ष्या होती है कि काश हम भी ऐसा लिख पाते। यह संयोग ही है मुंबई में इस तरह की जलन पैदा करने तमाम ब्लागर वहां मौजूद थे।
रागदरबारी में अंधेरे-उजाले भरत मिलाप करवाने का किस्सा है। कुछ उसी अंदाज में मुंबई में हमारा ब्लागर भाइयों दिन दहाड़े जनमदिन मना डाला। हम ब्लागरों से घिरे थे। हमें जन्मदिन मनाने की साजिश की सुगबुगाहट हुई लेकिन जब तक हम संभले तब तक हमारे सामने ,एकदम सामने , चाकू आ गया था। हमारे सामने इसके अलावा कोई चारा नहीं बचा था कि हम केक काट के सबको खिलाने का हिसाब करें।
इस मुई ब्लागरी के चक्कर में हमें वह करना पड़ा जो जिंदगी में हमने पहले कभी नहीं किया। अपने जन्मदिन का हम पहली बार काट रहे थे। कानपुर हमारी माताजी गुलगुला बना रहीं थीं और हम मुंबई में गुलगुल होते हुये केक काट रहे थे। केक कटते ही बोधिसत्व ने हमारे मुंह में केक ठूंस दिया दिया ताकि उनके मुंह का रास्ता खुले। साथ ही हाथ मेंअमृतलाल नागर की किताब मानस का हंस का गुटका संस्करण थमा दिया सप्रेम मुंबई के ब्लागर साथियों की तरफ से।
इसके बाद के कुछ किस्से अभयजी अपनी पोस्ट में बता चुके हैं। बात यह भी चली कि ब्लागरों को तमाम तकनीकी समस्यायें होती हैं जिनके समाधान के लिये कोई ब्लाग होना चाहिये। हम लोगों ने बताया जो-जो साथी मुफ्तिया सलाह देने के लिये सदा तत्पर रहते हैं , मात्र एक ई-मेल की दूरी पर रहते हैं। इस पर वहां लोगों ने बताया कि कभी-कभी जबाब नहीं आता लोगों से। वहां आशीष को मौजूद पाकर सबने उनके कंधे पर यह भार डाल दिया कि भाई आशीष अब आप ही इस गुरुतर भार को वहन करो। चूंकिं आशीष के यहां अभी कंप्यूटर घर में है नहीं और आफिस में यह सब बैन है लिहाजा उन्होंने सहर्ष इसके लिये हामी भर दी।
जो आया है सो जायेगा राजा रंक फकीर की तर्ज पर जो मीटिंग शुरू हुई थी वह खतम भी होने को आ गई। सबसे पहले विदा हुये -विमल भाई। हमने उनसे अनुरोध किया वे अपनीठुमरी का नियमित आयोजन किया करें। विमल भाई आप ठुमरी लिखते रहें आपको जीवन रक्षक दवायें मिलती रहेंगीं।
युनुस भाई परसाईजी के शहर,जबलपुर में रहे। रेडियो के बारे में तमाम जानकारियां दीं। हमने फरमाइश की परसाईजी का कोई इंटरव्यू या वार्ता सुनायें। अभयजी की फरमाइश थी कि उनको लड़ाइ लेव अंखियां हो लौंडे राजा / मिलाइ लेव छतियां हो लौंडे राजा सुनवाया जाये। युनुस जी ने दोनों फरमाइशें पूरी करने का आश्वासन दिया।
अनिल रघुराज अपने ब्लाग के माध्यम से तमाम मौलिक सवाल उठाते रहते हैं। मैंने उनको सुझाव दिया कि वे अपने लेखों की किताब छपवाने की जुगत करें। उन्होंने हमारे चेहरे में अपने मित्र का चेहरा देख लिया यह हम अभी-अभी देख पाये।
शशिसिंह ने खुद बताया कि वे सबसे कम लिख कर सबसे ज्यादा चर्चित होने वाले ब्लागर हैं। हम इस बात से इत्तफाक रखते हैं। उनकी बात का खंडन हम इसलिये भी नहीं कर रहे हैं ताकि वे उन टाफियों के पैसों की बात भूल जायें या याद करने की जहमत ही न उठायें जो वे हमारे कहने पर हमारे रिश्तेदार के बच्चों के लिये ले आये थे क्योंकि हम दुकान न खोज पाये थे अंधेरी में।
अजय ब्रह्मात्मजकी चवन्नी चैप की सलाह न मानने का खामियाजा हम भुगत चुके हैं। उन्होंने रामगोपाल वर्मा की आग न देखने की सलाह दी थी। हम फिर भी देखने गये। खामियाजा भुगता। तबसे हम उनकी सलाहें गंभीरता से लेने लगे हैं। उन्होंने किस्सा सुनाया कि कैसे अंग्रेजी और टाइपिंग की कृपा से उनका ब्लाग चवन्नी छाप बनने की बजायचवन्नी चैप बन गया।
विदा होने के पहले द्वाराचार हुआ। काफी जरूरी बातें सड़क पर खड़े होकर हुयीं। फिर अभयजी हम लोगों को जबरियन घर ले गये। वहां तमाम बाते हुयीं। ब्लाग संकलक, नारद, चिट्ठाजगत, ब्लागवाणी आदि के बारे में। दो बार चाय हुयी। हम चलने को हुये तब तक पता चला कि रविरतलांमी का इंटरव्यू आने वाला हैं। हम फिर एक घंटा बैठे रहे। दो मिनट दिखे रवि रतलामी। चमकते हुये चेहरे पर चमकती हुई चांद। मुंह से सरकती हुई ब्लागिंग के बारे में जानकारी। हम जी भर के देख भी न पाये थे कि रवि भाई सीन से बाहर हो गये। हम टीवी वालों को कोसते हुये पूना के लिये बस पकड़ने को चल दिये।
किस्सा-ए-मुंबई लिखने को अभी और है लेकिन फिलहाल अभी इतना ही। ये जो अभय भाई ने फुरसतिया की आंखो में खून उतरने की बात कही उसका किस्सा भी सुन लिया जाये। हुआ कि हमारा दिल सबसे मिलकर बहुत पुलकित च किलकित हो गया। दिल में खून का प्रवाह बढ़ गया। दिल बोला ये खून कहां ले जायें। हम बोले आंखों को सप्लाई कर दो। दिल बताया कि सब लोग देखकर डर न जायें। हमने कहा सब भारत का क्रिकेट मैच देख रहे हैं कोई हमारी आंख नहीं देखेगा। लेकिन अभयजी हमारी आंख ही देखते रहे और डरने का बहाना करते रहे। जबकि हमारा खून बजरिये गालिब कह रहा था-
सिर्फ रगो में दौड़ते- फिरने के हम नहीं कायल
जो आंख से न टपका तो लहू क्या है?
बकिया फोटो यहां देखिये।
Posted in बस यूं ही | 24 Responses
हां आलोक भाई हम मल्लिका सहरावात और राखी सावंत से भी गये थे मिलने लेकिन वे बोलीं कि उनका सारा हिसाब किताब , मिलना-जुलना सब आलोक पुराणिक के मार्फत होता है। वे जब साथ आयेंगे तभी मुलाकात होगी। हम बहुत कहे कि हम उनके दोस्त हैं लेकिन उन्होंने मान के नहीं दिया।
जलन पैदा करने वाले तमाम तत्व मुंबई में मौजूद थे. इससे राहत देने वाले तत्व कहां हैं ये तो देशभर के ब्लागियों से मिलने के बाद पता चलेगा भैये.
बढ़िया रोचक विश्लेषण
वहीं महसूस होती है जहां महसूस होती थी।
अभी तो वापस कानपुर के पहले कुछ ठौर और भी हैं , देखते चलते हैं ।
चलो कोई नही, जब भारत आएंगे तो फिर से सुन लेंगे।
बडे ही विस्तार से आपने पूरा विवरण दिया है। इसके लिए शुक्रिया।
(आप शायद सबसे ज़्यादा ब्लॉगरों से मुलाक़ात करने वाले ब्लॉगर बन गए होंगे.)
Pankaj Upadhyay की हालिया प्रविष्टी..नोट्स…