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मटरगस्ती के लिये निकले
By फ़ुरसतिया on September 17, 2007
हम लगातार पढ़ते रहते और मजे में रहते अगर ये हफ्ता खतम बीच में न आ जाता। हम सोचे कि पढ़ने का काम अकेले करते रहे सो थोड़ा सामाजिक भी हो जायें। हफ्ता खतम होते ही हम अपना झोरा-झंडा उठा के पहुंच गये आशीष के यहां। आशीष आजकल पुणे में ही हैं। विप्रो कम्पनी को चूना लगा रहे हैं। पिछले दिनों ये कनाडा जाकर समीरलाल को चूना लगा के आये हैं सो हमें लगा कि बबुआ से बदला चुकाने के मौका मुफीद है।
हम पहुंचे तो आशीष हमारा इंतजार कर रहे थे। जिस जगह का पता बताया था वहां तक आ गये लेने भी। घर पहुंचे
तो चाय-साय भी हो गयी। इसके बाद बतकही का दौर चला तो आशीष ने रविरतलामी और समीरलाल के तमाम
लाल-गुलाबी किस्से सुनाये। जिसे हम मौका मुफीद जानकर आपको भी सुनायेंगे। चाय पीते-पीते हम एक किताब पढ़ने लगे कि आशीष ने जाने कौन सा जादू किया कि हमारे चश्में की कमानी पर हमारा ही पैर पड़ गया और कमानी चश्मे से बोली-कर चले हम फिदा जानो तन साथियों।
तो चाय-साय भी हो गयी। इसके बाद बतकही का दौर चला तो आशीष ने रविरतलामी और समीरलाल के तमाम
लाल-गुलाबी किस्से सुनाये। जिसे हम मौका मुफीद जानकर आपको भी सुनायेंगे। चाय पीते-पीते हम एक किताब पढ़ने लगे कि आशीष ने जाने कौन सा जादू किया कि हमारे चश्में की कमानी पर हमारा ही पैर पड़ गया और कमानी चश्मे से बोली-कर चले हम फिदा जानो तन साथियों।
इस बीच आशीष ने अपनी पाक कला के जौहर दिखाने शुरू कर दिये। यह भी बताया कि वे चार मिनट में आटा माड़ने से शुरू करके दस रोटियां सेकने का रिकार्ड बना चुके हैं। दाल,चावल, सब्जी बना लेने के बाद आशीष ने कुछ समा ऐसा बांधा कि हम रोटियां बेलने के लिये खुद खड़े हो गये। हमें लगा कि बालक हमसे उट्घाटन कराके अरे,अरे आप रहने दीजिये करके खुद रोटियां बेलने लगेगा। लेकिन जो सोचा वो हुआ नहीं और आशीष ने पूरी बेशर्मी से हमसे पूरी बारह रोटियां बेलवा लीं और खिलखिलाते हुये सेंकते रहे।
आशीष के साथ रहने वाले साथी युवराज ने बताया कि बताया कि उन लोगों को बहुत दिन बाद रोटियां नसीब हो रहीं
थीं। हमारी कृपा से।
थीं। हमारी कृपा से।
इस बीच आशीष की होने वाली पत्नी के फोन भी आये तो उसके यह पूछने पर कि क्या कर रहे हो आशीष ने कमरे की दीवार को ताकते हुये बताया कि बालकनी में खड़ा लड़कियां ताक रहा हूं।
खा-पीकर हम लोग सो गये। यह तय हुआ कि सबेरे रचना बजाज और उनके घर वालों से मिलने के लिये नासिक
की यात्रा की जायेगी।
की यात्रा की जायेगी।
हमारे पास इस सब बातों के प्रमाण फोटो भी हैं जो कि हम आपको दिखायेंगे। आप संतोष करिये। जब हम कर रहे हैं तो आप भी करिये न!
मुंबई में रहने के दौरान जन्मदिन भी धूम-धाम से मनाया। खूब मजे किये उसके किस्से सुनायेंगे। अभयजी ने तो
लिखा है वो आधा सच है आधे से ज्यादा गप्प। हम आपको बतायेंगे असल बात।
लिखा है वो आधा सच है आधे से ज्यादा गप्प। हम आपको बतायेंगे असल बात।
Posted in बस यूं ही | 12 Responses
लाल-गुलाबी किस्से सुनाये….जिसे हम मौका मुफीद जानकर आपको भी सुनायेंगे।
फ़ुरसतिया जी, मेरा भी प्रणाम स्वीकार करें। आपकी साहित्यिक ब्लॉगरी की महान प्रतिभा को मेरा कोटि कोटि नमन।
विवेक सत्य मित्रम्