श्रीलाल शुक्ल- एक और संस्मरण
By फ़ुरसतिया on September 23, 2007
ज्ञानदत्तजी ने श्रीलाल शुक्ल के सबसे छोटे दामाद सुनील माथुरजी से मुलाकात का जिक्र किया। सुनील जी की मुस्कान देख कर मन प्रमुदित हो गया। प्रियंकरजी ने उनके सेंस आफ़ हुयूमर को जमताऊ बताते हुये अच्छे नंबर दे दिये। जिस किताब की जिक्र ज्ञानजी ने अपनी पोस्ट में किया वह मेरे पास है। यह किताब श्रीलालजी के अस्सीवें जन्मदिन पर उनसे जुड़े रहे लेखकों, मित्रों, आलोचकों,पाठकों ,घरवालों के बेहतरीन संस्मरण हैं। मनोरम फोटो हैं। श्रीलाल शुक्ल जी के कुछ इंटरव्यू तथा लेख भी हैं। श्रीलाल जी के बारे में मेरा भी एक लेख विरल सहजता के मालिक शीर्षक से इसमें शामिल है।
श्रीश ने पूछा है- क्या किसी ने श्रीलाल जी को बताया है कि वे हिन्दी चिट्ठाजगत में कितने लोकप्रिय हैं?श्रीलाल जी को यह जानकारी है कि उनके बारे में नेट, चिट्ठा जगत में लिखा-पढ़ा जाता है। साथ के चित्र में श्रीलाल जी मेरे लैपटाप पर अपने बारे में पोस्ट किये गये लेख को देख रहे हैं। मैंने उनसे रागदरबारी को नेट पर डालने की मौखिक अनुमति भी ली थी।
बहरहाल, बात पाण्डेयजी के बैचमेट रहे सुनीलजी की हो रही थी। सेट स्टीफ़ेन के पढ़े सुनीलजी ने अपने ससुरजी के अस्सीवें जन्मदिन के अवसर पर प्रकाशित
ग्रंथ श्रीलाल शुक्ल- जीवन ही जीवन श्रीलालजी के बारे में जो संस्मरण लिखा था वह जस का तस यहां पेश किया जा रहा है। इसे पढ़कर शायद प्रियंकरजी उनको उनके जमताऊ सेंस आफ ह्यूमर के साथ-साथ उनके संस्मरण लिखताऊ कौशल को भी कुछ नंबर दे दें और शायद तब सुनीलजी का ठहाका कुछ और लंबा खिंच जाये।
ग्रंथ श्रीलाल शुक्ल- जीवन ही जीवन श्रीलालजी के बारे में जो संस्मरण लिखा था वह जस का तस यहां पेश किया जा रहा है। इसे पढ़कर शायद प्रियंकरजी उनको उनके जमताऊ सेंस आफ ह्यूमर के साथ-साथ उनके संस्मरण लिखताऊ कौशल को भी कुछ नंबर दे दें और शायद तब सुनीलजी का ठहाका कुछ और लंबा खिंच जाये।
ग्युन्टर ग्रास, पापा और मैं
जब मेरी शादी की बात श्रीलाल शुक्ल की सबसे छोटी बेटी से चल रही थी तो विनीता ने बताया कि उनके पापा काफ़ी उत्साहित थे। कुछ वर्ष पहले मैं एक
साल जर्मनी में रहकर आया था और वहां पर थोड़ी जर्मन भाषा भी सीख ली थी। विनीता का कहना था कि उनके पापा समझ रहे थे मैंने ग्युन्टर ग्रास को जर्मन
में अवश्य पढ़ ही लिया होगा और वे मुझसे उनके लेखन पर बातचीत करना चाहते हैं। तब तक मैंने ग्युन्टर ग्रास को अंग्रेजी में भी नहीं पढ़ा था, जर्मन में तो दूर।
साल जर्मनी में रहकर आया था और वहां पर थोड़ी जर्मन भाषा भी सीख ली थी। विनीता का कहना था कि उनके पापा समझ रहे थे मैंने ग्युन्टर ग्रास को जर्मन
में अवश्य पढ़ ही लिया होगा और वे मुझसे उनके लेखन पर बातचीत करना चाहते हैं। तब तक मैंने ग्युन्टर ग्रास को अंग्रेजी में भी नहीं पढ़ा था, जर्मन में तो दूर।
वैसे भी मैं उन शातिर लिन्गुइस्ट में से नहीं हूं जो अनेक भाषायें जानते हैं और नई भाषा सीख लेने में समय नहीं लगाते। वर्षों तक मैं लखनूऊ में रहा और पढ़ा,
पर अवधी नहीं बोल सकता। वर्षों तक दिल्ली और अम्बाला रहने के बावजूद मेरी पंजाबी थोड़ी सीमित रह गई। “पैठ“, “की फ़रक पैंदा” , “चक दे फ़ट्टे” और कुछ अपशब्द जो दिल्लीवासियों को आशानी से उगलने आते हैं, मुझे भी आते हैं पर असली गूढ़ पंजाबी नहीं। फिर जर्मन में कैसे पारंगत होता! और ऊपर ग्युन्टर ग्रास जर्मन में। मैंने सोचा इतने इम्तहान जीवन में दिये हैं, एक और सही। अन्तर इतना था कि बाकी में फेल होते भी तो “की फ़रक पैंदा” पर यह मामला थोड़ा गम्भीर था।
पर अवधी नहीं बोल सकता। वर्षों तक दिल्ली और अम्बाला रहने के बावजूद मेरी पंजाबी थोड़ी सीमित रह गई। “पैठ“, “की फ़रक पैंदा” , “चक दे फ़ट्टे” और कुछ अपशब्द जो दिल्लीवासियों को आशानी से उगलने आते हैं, मुझे भी आते हैं पर असली गूढ़ पंजाबी नहीं। फिर जर्मन में कैसे पारंगत होता! और ऊपर ग्युन्टर ग्रास जर्मन में। मैंने सोचा इतने इम्तहान जीवन में दिये हैं, एक और सही। अन्तर इतना था कि बाकी में फेल होते भी तो “की फ़रक पैंदा” पर यह मामला थोड़ा गम्भीर था।
शादी हो गयी। तब तक ग्युन्टर ग्रास से सामना नहीं हुआ पर कुछ दिन बाद हम इंदिरानगर अपनी ससुराल पहुंचे। “यार मैं बहुत दिन से सोच रहा था कि तुमने ग्युन्टर ग्रास को तो जर्मन में पढ़ा ही होगा”, पापा बोले।
मैंने एक बड़ी घूंट ली और सिर कुछ हिलाया सा। जानकार होने की भंगिमा के साथ इधर-उधर देखा और एक पेंटिंग की तरफ़ उंगली उठाकर पूछा,” यह रेम्ब्रान्ट है
क्या?”
क्या?”
“नहीं , पिकासो का प्रिंट” कहकर मेरे श्वसुर ने बहुत प्यार के साथ पिकासो की पेंटिंग, ‘क्यूबिज्म’ इत्यादि पर मेरा ज्ञान बढ़ाया। ग्युन्टर ग्रास तनिक वह भूल गये।
यह ग्युन्टर ग्रास का मामला सालों चला। 22 वर्ष हो गये और पापा शायद अभी भी इसी उम्मीद में हों कि उनका सबसे छोटा दामाद उनके एक प्रिय लेखक के बारे में उनसे बातचीत करेगा। मैं समझता हूं कि मेरी उनसे इतनी दोस्ती तो है कि मैं उनसे कुछ भी बात कर सकूं पर यह बात मैं उनसे कह नहीं पाया। आज कहता हूं कि पापा आपका यह दामाद ग्युन्टर ग्रास को आपसे कभी भी डिस्कस नहीं करेगा।
पापा से ज्यादा बहुपठित व्यक्ति मैंने अपनी जिंदगी में तो कोई नहीं पाया। अंग्रेजी, हिंदी और संस्कृत के उन्होंने पुराण काल से लेकर आज तक के सभी लेखकों को पढ़ा है। आश्चर्य यह है सबके कार्य उन्हें याद भी हैं। आप किसी भी लेखक का नाम लें और वह उसके बारे में, उसके साहित्य के बारे में और उसके लेखन के बारे में आलोचनात्मक विश्लेषण तुरन्त कर सकते हैं। साहित्य, दर्शन, कला, संस्कृति, संगीत उनको बस बोलने से रोकिये मत और आपको विस्तृत भ्ररा पूरा ज्ञान
प्राप्त हो जायेगा। समसामयिक घटनाक्रम , राजनीति कुछ भी वह आपको एक ऐसे दृष्टिकोण से पेश करेंगे कि आप सोचेंगे कि यह पहले क्यों नहीं कहा और यह बात यह संदर्भ अखबारों में क्यों नहीं आता।
प्राप्त हो जायेगा। समसामयिक घटनाक्रम , राजनीति कुछ भी वह आपको एक ऐसे दृष्टिकोण से पेश करेंगे कि आप सोचेंगे कि यह पहले क्यों नहीं कहा और यह बात यह संदर्भ अखबारों में क्यों नहीं आता।
कुछ समय के लिये मैं लखनऊ में तैनात था और ससुराल में ही रह रहा था। पापा बोले,” यार, एक तो तुम्हें शाकाहारी खाना मिलता है, ऊपर से श्वेत श्याम टीवी”। विश्वकप क्रिकेट 1987 का फ़ाइनल था और बिजली का कोई भरोसा नहीं था। एक और अद्भुत सुझाव आया -”चलो तुम्हें गांव( लख्ननऊ से 20 किमी दूर अतरौली) ले चलते हैं ,वहां देखना। मैंने कहा,” पर वहां तो सुना है बिजली ही नहीं आती।” बोले,” हां पर वहां तो टीवी बैटरी से चलता है, ज्यादा भरोसमन्द है।”
एक बार कुछ दफ़्तर की कुछ इधर-उधर की बातें हो रहीं थी और किसी एक व्यक्ति का जिक्र होने लगा। यह चर्चा हुई कि अगर उसकी गोपनीय रिपोर्ट लिखनी होती
तो इस व्यक्ति के बारे में क्या लिखा जाना चाहिये। उन्होंने सलाह दी। बोले, “लिखना चाहिये- जैसा वह दिखता है, वैसा मूर्ख नहीं है।” इससे ज्यादा सही विवरण और कोई नहीं दे सकता था।
तो इस व्यक्ति के बारे में क्या लिखा जाना चाहिये। उन्होंने सलाह दी। बोले, “लिखना चाहिये- जैसा वह दिखता है, वैसा मूर्ख नहीं है।” इससे ज्यादा सही विवरण और कोई नहीं दे सकता था।
अपनी सर्विस के दौरान मैंने अपने साथियों और दोस्तों में उनके अनेक प्रशंसक पाये हैं। ज्यादातर ‘रागदरबारी’ से प्रभावित हैं। कई तो इसे महाकाव्यात्मक उपन्यास के पन्ने और अनुच्छेद दर अनुच्छेद किसी भी समय सुना सकते हैं। पर इस महान उपन्यास के लेखक इस पर किसी भी प्रकार की बहस से हिचकिचाते हैं। इस पर कभी मैंने उनसे कोई टिप्पणी नहीं सुनी। कभी मुझे ऐसा भी आभास होता है कि उनको यह दु:ख सा है कि उनकी इतनी और पुस्तकें और उपन्यास हैं जिनका
साहित्यक महत्व उत्तम श्रेणी का है , पर वह ‘रागदरबारी’ के कारण दब सा जाता है।
साहित्यक महत्व उत्तम श्रेणी का है , पर वह ‘रागदरबारी’ के कारण दब सा जाता है।
मेरा परिवार और इनका परिवार एक-दूसरे को अब लगभग 50 वर्षों से जानते हैं। सुना है कि फैजाबाद में मेरे पिताजी और मेरे होने वाले ससुरजी साथ-साथ साइकिल से दफ़्तर जाते थे। हमारे परिवारों की सबसे बड़ी विपत्ति तब आई जब मम्मी की तबियत खराब हुई। पापा का लिखना-पढ़ना कुछ वर्ष बन्द सा हो गया।
उन दिनों मैंने इनको मम्मी की ऐसी देखभाल करते देखा जो बताया नहीं जा सकता।
उन दिनों मैंने इनको मम्मी की ऐसी देखभाल करते देखा जो बताया नहीं जा सकता।
उनकी 81वी वर्षगांठ का यह कार्यक्रम उनके परिवार ने उन पर थोप सा दिया है। स्वयं तो उन्हें इस पर बहुत संकोच हो रहा था पर बेटे-बेटियों और बहू-दामादों ने
उन्हें ना कहने का अवसर ही नहीं दिया। खास तौर से सबसे बड़े दामाद सुधीर दा ने।
उन्हें ना कहने का अवसर ही नहीं दिया। खास तौर से सबसे बड़े दामाद सुधीर दा ने।
किताब पढ़ने और म्यूजिक का शौक उनके बच्चों में भी है। मेरी पत्नी विनीता जितनी बहुपठित हैं उतना मैंने कम ही अपनी पीढ़ी के लोग पाये हैं। वह गाती भी बहुत अच्छा है। यह सब जेनेटिक ही होगा। यह पापा की ही देन है कि मेरे घर में मेरी पत्नी के कारण लिखने-पढ़ने का माहौल रहता है। शायद एक दिन मैं ग्युन्टर ग्रास को भी पढ़ लूं।
Posted in बस यूं ही | 16 Responses
लिखना चाहिये- जैसा वह दिखता है, वैसा मूर्ख नहीं है।” हा हा
अतुल
तिस पर शुक्ल जी के रागदरबारी के बारे में पड़ कर, हिन्दी साहित्य का मेरा पुराना सोया हुआ कीडा फिर जाग्रत हो गया है.
रागदरबारी ले आया हूँ. पता नहीं मेरी मेडिकल की बुक्स का क्या होगा