Sunday, August 23, 2009

परसाई- विषवमन धर्मी रचनाकार (भाग 1)

http://web.archive.org/web/20140419214417/http://hindini.com/fursatiya/archives/672

19 responses to “परसाई- विषवमन धर्मी रचनाकार (भाग 1)”

  1. dr anurag
    दिलचस्प रहा ….पर ऊपर वाले भाग को एक ही बार में दे देते तो पठनीयता का क्रम बना रहता …स्नेह वाला डाइलोग अच्छा है …
    डा.अनुराग: आपके आग्रह् पर अगली पोस्ट फ़िर कल ही टाइप कर दी। यह अपने सुकून के लिये भी था कि परसाईजी के जीवन के बारे में बहुत कम लोग् जानते हैं। :)
  2. mahendra mishra
    सुन्दर लेखन बधाई
    गणेश उत्सव पर्व की हार्दिक शुभकामना
    महेन्द्र मिश्र: शुक्रिया।
  3. बी एस पाबला
    मन प्रसन्न हुआ, वर्षों पहले का पढ़ कर दुबारा।
    आभार आपका चेहरे पर मुस्कान लाने के लिए
    वैसे देशब्न्धु अब अवसान के दौर में है। दुख होता है।

    पाबला: आपकी प्रतिक्रिया देखकर दिन भर की टाइपिंग की मेहनत सार्थक हो गयी।

  4. समीर लाल
    बहुत अच्छी लगी यह प्रस्तुति.
    और भी लाईये.
    आपका आभार.
    समीरलाल: ले आये हैं अगली पोस्ट में। उधर देखो।
  5. हे प्रभु यह तेरा-पथ"
    क्या आठ आने का स्नेह नहीं हो गया!
    आभार सुन्दर एवम लम्ब्ब्ब्ब्ब्ब्ब्ब्ब्ब्ब्ब्ब्ब्बा पढवाने के लिऍ
    गणेशचतुर्ती पर हार्दिक मगलकामनाऍ।यह पढने के लिये किल्क करे।
    हिन्दी ब्लोग जगत के चहूमुखी विकास की कामना सिद्धिविनायक से
    मुम्बई-टाईगर
    SELECTION & COLLECTION
    मुम्बई टाइगर: शुक्रिया। हम तो ऐसे ही पढ़ते हैं जी। ई जबरियन काहे पढ़वाते हो भैये!
  6. Dr.Arvind Mishra
    आपकी पसंद सुभान अल्लाह -प्रसंगवश बताता चलूँ हरिवंश राय बच्चन जी हमेशा फर्स्ट क्लास में सफ़र करते थे !
    रचनाधर्मियों की मत पूँछिये ! हाँ सही है पत्नियां कर्कशा पतियों को शायद न झेल पाए पर कर्कशा नारियों को आजीवन शांत भाव से साहित्यकारों को झेलता हुआ देखा पाया गया है ! आगे बात बहुत पर्सनल हो जायेगी !
    डा.अरविन्द मिश्र: बच्चनजी की प्राथमिकतायें अलग रही होंगी। उन्होंने नौकरी पाने के लिये जतन किये। परसाईजी ने लिखने के लिये नौकरी छोड़ी। उनको अपने लिखे का मसाला फ़र्स्ट क्लास में मिलता होगा। परसाईजी को जनता के पास। बात पर्सनल हो जाने के डर से भले ही आपने अपना दर्द नहीं बताया लेकिन हम कुछ-कुछ समझ रहे हैं। :)
  7. ताऊ रामपुरिया
    एक लाजवाब पोस्ट. बस इतनी शानदार पोस्ट पढने का मौका मिला है, आपको नमन करता हूं.
    रामराम.
    ताऊजी: अगली किस्त भी लगा दी है नमन करने के लिये।
  8. हरिशंकर परसाई- विषवमन धर्मी रचनाकार (भाग 2)
    [...] से लिखा है। इसके पहली वाली किस्त आप इधर पढ़ सकते [...]
  9. shefali pande
    बाप रे पढ़ते पढ़ते चश्मा लग गया ….लेकिन परसाईं जी मेरे प्रिय लेखक हैं ….उनकी याद दिलाने के लिए शुक्रिया…..
    शेफ़ाली जी: प्रिय लेखक को तो ध्यान से ही पढ़ना चाहिये। चश्मा लगाकर! :)
  10. प्रमेन्‍द्र प्रताप सिंह
    आप भी किताब छपवा ही दो – परसाई और फुरसतिया हम लेगें, बहुत प्रिंट करना पड़ता है। :)
    प्रमेन्द्र: किताब तो अब तुम्ही छपवाओ हमारी। सब लेख वहां हैं ही नेट पर।
  11. Shiv Kumar Mishra
    इस प्रस्तुति के लिए धन्यवाद.
    प्रश्न: जिद्दी व्यक्ति का कोई इलाज……?
    उत्तर: जिद्दी व्यक्ति में अक्सर विटामिन बी की कमी होती है। इसी कमी से वह जिद्दी हो जाता है। मोहम्मद अली जिन्ना के शरीर में भी विटामिन बी की कमी थी, इसी कारण पाकिस्तान बनवाने की जिद पर वे अड़ गये थे। पर उनके मरने के बाद यह तथ्य उनके डाक्टर ने बताया। अगर पहले मालूम हो जाता तो महात्मा गांधी किसी तरह जिन्ना को विटामिन बी खिलवा देते या इन्जेक्शन लगवा देते। लार्ड माउन्टबेटन भी जिन्ना को बार बार विटामिन बी दिला पाते। शायद जिन्ना पाकिस्तान की जिद छोड़ देते।
    जसवंत सिंह जी ने यह पढ़ा होता तो आज इस तरह के हालात नहीं होते. वे अपने शरीर में विटामिन-बी की कमी करवाकर जिद्दी हो लेते और पार्टी से नहीं निकलते.

    शिवजी: प्रस्तुति के लिये धन्यवाद का हकदार वो भाई है जिसने परसाईजी से यह सवाल पूछा था और परसाईजी हैं। वैसे विटामिन बी की खपत तो ब्लाग जगत में भी बहुत हो जायेगी।
    :)
  12. puja
    आगे पीछे सब एक साथ पढ़ के आये हैं…परसाई जी का लिखा मुझे भी बहुत पसंद आता है..आज उनके कुछ सवाल जवाब देख कर बहुत अच्छा लगा…इन्हें ढूंढ़ना तो मेरे बस का नहीं था…कमाल के जवाब देते थे परसाई जी…खास तौर से आखिरी सवाल लाजवाब है :)
    धन्यवाद अनूप जी इस श्रृंखला के लिए
  13. Smart Indian - अनुराग शर्मा
    लाजवाब! मोहम्मद अली जिन्ना के शरीर में भी विटामिन बी की कमी का रहस्य उजागर करने का धन्यवाद.
  14. चंदन कुमार मिश्र
    बी फार बेवकूफ़ी? लगता है आप परसाई जी को हमसे पढ़वा लेंगे पूरा…
    चंदन कुमार मिश्र की हालिया प्रविष्टी..एक बार फ़िर आ जाओ (गाँधी जी पर एक गीत)
  15. : नित नमन मां नर्मदे
    [...] मायाराम सुरजन को डेढ रुपये की किताब स्नेह के बहाने दो रुपये में टिका दी थी। स्नेह के चलते [...]
  16. फ़ुरसतिया-पुराने लेख
    [...] परसाई- विषवमन धर्मी रचनाकार (भाग 1) [...]
  17. गिरीश बिल्लोरे
    यानी परसाई जी के शहर वालों की नाकों में पुंगड़िया डाल रहे हो पंडिज्जी
    चलो चलेगा बहुत उम्दा , छा गये महाराज
    गिरीश बिल्लोरे की हालिया प्रविष्टी..तुम परसाई जी के शहर से हो..?
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