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आइडिये ही आइडिये लिख तो लें
By फ़ुरसतिया on August 12, 2009
सुबह से बैठे हैं नेट पर और कुच्छ टाइप नहीं किये अभी तक। सोचते हैं ये
लिखें कि वो। फ़िर मन करता है न ये न वो। पचीस-तीस आइडिया उछल-उछल के कह रहे
हैं -“फ़ुरसतिया जी हमारे बारे में लिखिये, अंकल जी हम पर माउस फ़िराइये, भाई साहब हम खड़े-खड़ें थक गये हैं हमें निपटा दीजिये पहिले!
लेडी आइडिये जेन्टस आइडिये की साइड से आगे बढ़े जा रहे हैं, कुछ जेन्ट्स आइडिये उनसे अनुरोध कर रहे हैं -”बहनजी , जरा हमारा नम्बर भी अपने साथ लगवा लीजिये एक के साथ एक फ़्री स्कीम में आपके साथ रहेंगे तो हमारा भी कल्याण हो जायेगा वर्ना कौन पूछता है आजकल मर्द इरादों को । ”
कुछ आइडिया तो भीड़-भाड़ में दब-कुचल के रोने गाने भी लगे हैं। कुछ छुई-मुई मर्द आइडिये तो औरताना आइडियों से भिड़ से गये हैं और टसुये बहाते हुये भुनभुना रहे हैं- ” जरा देख के धक्का दीजिये जी! थोडा सा इंतजार नहीं कर सकती। ऊपर चढ़ी चली आ रही हो। घर में कोई बाप-भाई नहीं है क्या? ”
इस पर एक मादा इरादे ने अदायें दिखाते हुये कह भी दिया -” बाप- भाई बेचारे मंहगाई के कारण परेशान हैं, उनको कित्ता परेशान करें? आप लोग जरा सा हमारे लिये पेन नहीं ले सकते क्या? खाली नाम के मर्द इरादे हो? ” सारे इरादे इस डायलाग पर हंस दिये।
एक बालिका आइडिया दूसरी बालिका आइडिया के कान में अपना मुंह माइक्रोफ़ोन की तरह घुसा दिया और इत्ती धीमे से फ़ुसफ़ुसाते हुये बोली ताकि सबको साफ़ सुनाई दे सके- “वो जो कोने में क्यूट सा आइडिया खड़ा है न जो मोबाइल से खेलने का नाटक कर रहा है उसने बहुत स्मार्ट बनने की कोशिश की। महीने भर आगे पीछे घूमता रहा बहाने से राखी बंधवाने के लिये ताकि आराम से आना-जाना , मिलना-जुलना हो सके। मैंने उसे घास तक नहीं डाली लिफ़्ट की तो बात दूर।”
“अरे आजकल के ब्याय आइडियों का कोई भरोसा नहीं। निगोड़े सब शार्टकट मारना चाहते हैं। न कोई मेहनत करना चाहता है न कोई खर्चा। बड़ा हालत खराब है। देखकर तरस आता है। क्या जमाना आ गया है। एक भी बालक आइडिया नहीं दिखता जिससे दिल का गठबंधन किया जाये कुछ समय के लिये ही सही।” – अनुभवी गर्ल आइडियानी ने फ़रमाया।
उधर एक कोने में एक बालक आइडिया एक बालिका आइडिया से सुरक्षित दूरी पर झुका हुआ प्रणय निवेदन सा कर रहा है:
कुछ आइडिये तो एकदम स्वयंसेवक से हो गये हैं। बांहे चढ़ाये बकैती कर रहे हैं। स्वाभाविक भी है। वे देशभक्त आइडिये हैं। पन्द्रह अगस्त आ रहा है। उनकी दुकान चलनी स्वाभाविक है।
देश के बारे में आइडिये जो आते हैं वे सब एक-दूसरे के खिलाफ़ लगते हैं। सब देशभक्त आइडिये हैं। शाकाहारी भी हैं लेकिन भिड़ते ऐसा हैं मानों एक-दूसरे को कच्चा चबा जायेंगे। कच्चा चबाने की बात से ध्यान आया कि अगर कच्चा चबाने का फ़ैशन चल निकले तो देश में जनसंख्या और रसोई गैस की समस्या एक झटके से कम हो जायेगी। लेकिन फ़िर एकता, अखण्डता, भाईचारे और इनकी-उनकी और न जाने किनकी-किनकी तो वाट लग जायेगी।
तमाम हम उम्र आइडिये तो आपस में दोस्ती कर बैठे हैं। बतिया रहे हैं। एक बालक आइडिये ने तो बालिका आइडिये की बांह पकड़कर थोड़ा शरमाते और बकिया हकलाते हुये कह भी दिया- चल भाग चले पूरब की ओर।
बालिका आइडिया ने उसका हाथ झटक दिया – “अरे छोड़ यार, कोई देख तो रहा नहीं है! ऐसे में हाथ थामने से क्या फ़ायदा। और आज मैं पूरब में भागने के मूड में नहीं हूं। उधर कोई कायदे का रेस्टोरेन्ट नहीं दिखा मुझे जब पिछली बार गयी थी एक क्यूट से आइडिये के साथ। धूल में सारा मेकअप खराब हो गया अलग से! वैसे बाय द वे आज तुमने कौन सा डियो लगया है- बड़ा महक रहा है! हमको भी गिफ़्ट करोगे न! ”
एक आइडिया बीच लाइन में अपने कपड़े फ़ाड़ने लगा ताकि लोग उसकी तरफ़ भी देखें। दूसरे आइडियों ने उसको आड़े हाथों ले लिया( भीड़ में इती जगह नहीं होती कि हर चीज सीधे हाथ ली जा सके) –”क्या ज्ञानियों की तरह हरकते कर रहे हो? सरे राह बनियाइन दिखा रहे जैसे तुम्हारी रूपा फ़्रन्टलाइन की बनियाइन सबसे अच्छी होती हो। कभी सैंडो बनियाइन भी पहने के देखो जी। क्या झकास बनियाइन है ! शोले में धर्मेन्दर उसी को पहन के गब्बरसिंह को कुत्ते कमीने बोला था। ये सैन्डो बनियाइन का ही कमाल है था कि वो इत्ता सब बोल गया वर्ना उसके पहले पच्चीस टेक-रिटेक में -सरदार, आपका नमक खाया है ही बोलता रहा। जैसे ही उसने सैन्डो बनियाइन पहनी भड़ से कुत्ते कमीने बोलने लगा।”
वैसे तो भ्रष्टाचार भी एवरग्रीन आइडिया आईटम है। अदालत वाली ग्रीन प्लाई की तरह है चलता रहे , चलता रहे। आप भ्रष्टाचार को पकड़ लो और सालों लेक्चर फ़टकारते रहो। कभी इसकी सप्लाई खतम नहीं होती। लोग अपना काम छोड़ कर दिन भर भ्रष्टाचार की निन्दा कर सकते हैं। एक बार किसी ने टोका भी कि काम को छोड़कर भ्रष्टाचार की निन्दा करना भी तो भ्रष्टाचार है। लोगों ने उसे खड़े-खड़े दौड़ा लिया। -हमको काम के नाम पर भ्रष्टाचार की बुराई करने से रोकते हो। ईमानदार कहीं के। वह वहीं खड़ा-खड़ा अपना सा मुंह लेकर रह गया- और किसका लेता? भ्रष्टाचार की बुराई करने वालों के हौसलें बहुत ऊंचे होते हैं।
लेकिन आपको बतायें कि ईमानदारी पर लिखना तो समझदारी की बातें करने जैसा है। जैसे समझदार की मौत है वैसे ही ईमानदारी जिन्दगी की सौत है। ईमानदारी में आजकल वो पहले वाली बरक्कत रही नहीं। लोग कमजोर समझते हैं। वैसे भी ईमानदारी तो किसी भी व्यवस्था के गाल ब्लेडर में पथरी की तरह हैं। जहां दिखी वहां या तो लोग निकलवा देते हैं या गलवा देते हैं। बहुत तकलीफ़ होती है इसके रहते सिस्टम को।
सोचा तो यह भी कि समीरलालजी के दर्द का पोस्ट मार्टम किया जाये लेकिन फ़िर नहीं किया। काहे से कि पोस्टमार्टम तो गो-वेन्ट-गान हो चुकी चीजों का किया जाता है। दर्द तो अभी कई बार उठेगा उनका। दर्द ही नहीं रहेगा तो फ़िर इलाज किसका किया जायेगा। वैसे भी सतीश सक्सेनाजी के इलाज से काफ़ी आराम है उनको। लेकिन समीरजी के दर्द की गुणवत्ता बहुत ऊंची है। निकलता है तो कविता साथ में लिये आता है। बनियाइन के साथ रूमाल फ़्री वाले अंदाज में।
ढेर सारे आइडिये और उछल रहे हैं लेकिन दफ़्तर जाना है। इसलिये अब यहीं रुक जाते हैं फ़िर आगे कभी सुनाया जायेगा आइडिया का किस्सा।
दु:खी मत होऒ
मणिकर्णिका,
दु:ख तुम्हें शोभा नहीं देता
ऐसे भी श्मशान हैं
जहां एक भी शव नहीं आता
आता भी है,
तो गंगा में नहलाया नहीं जाता।
डोम् इसके सिवा कह भी
क्या सकता है,
एक अकेला
डोम ही तो है
मणिकर्णिका में अकेले
रह सकता है।
दु:खी मत होऒ, मणिकर्णिका,
दु:ख मणिकर्णिका के
विधान में नहीं
दु:ख उनके माथे है
जो पहुंचाने आते हैं
दु:ख उनके माथे था
जिसे वे छोड़ चले जाते हैं।
भाग्यशाली हैं, वे
जो लदकर या लादकर
काशी आते हैं
दु:ख मणिकर्णिका को सौंप जाते हैं।
दु:खी मत होऒ
मणिकर्णिका,
दु:ख हमें शोभा नहीं देता।
ऐसे भी डोम हैं
शव की बाट जोहते
पथरा जाती हैं जिनकी आंखे,
शव् नहीं आता-
इसके सिवा डोम कह भी क्या सकता है!
श्रीकांत वर्मा
लेडी आइडिये जेन्टस आइडिये की साइड से आगे बढ़े जा रहे हैं, कुछ जेन्ट्स आइडिये उनसे अनुरोध कर रहे हैं -”बहनजी , जरा हमारा नम्बर भी अपने साथ लगवा लीजिये एक के साथ एक फ़्री स्कीम में आपके साथ रहेंगे तो हमारा भी कल्याण हो जायेगा वर्ना कौन पूछता है आजकल मर्द इरादों को । ”
कुछ आइडिया तो भीड़-भाड़ में दब-कुचल के रोने गाने भी लगे हैं। कुछ छुई-मुई मर्द आइडिये तो औरताना आइडियों से भिड़ से गये हैं और टसुये बहाते हुये भुनभुना रहे हैं- ” जरा देख के धक्का दीजिये जी! थोडा सा इंतजार नहीं कर सकती। ऊपर चढ़ी चली आ रही हो। घर में कोई बाप-भाई नहीं है क्या? ”
इस पर एक मादा इरादे ने अदायें दिखाते हुये कह भी दिया -” बाप- भाई बेचारे मंहगाई के कारण परेशान हैं, उनको कित्ता परेशान करें? आप लोग जरा सा हमारे लिये पेन नहीं ले सकते क्या? खाली नाम के मर्द इरादे हो? ” सारे इरादे इस डायलाग पर हंस दिये।
एक बालिका आइडिया दूसरी बालिका आइडिया के कान में अपना मुंह माइक्रोफ़ोन की तरह घुसा दिया और इत्ती धीमे से फ़ुसफ़ुसाते हुये बोली ताकि सबको साफ़ सुनाई दे सके- “वो जो कोने में क्यूट सा आइडिया खड़ा है न जो मोबाइल से खेलने का नाटक कर रहा है उसने बहुत स्मार्ट बनने की कोशिश की। महीने भर आगे पीछे घूमता रहा बहाने से राखी बंधवाने के लिये ताकि आराम से आना-जाना , मिलना-जुलना हो सके। मैंने उसे घास तक नहीं डाली लिफ़्ट की तो बात दूर।”
“अरे आजकल के ब्याय आइडियों का कोई भरोसा नहीं। निगोड़े सब शार्टकट मारना चाहते हैं। न कोई मेहनत करना चाहता है न कोई खर्चा। बड़ा हालत खराब है। देखकर तरस आता है। क्या जमाना आ गया है। एक भी बालक आइडिया नहीं दिखता जिससे दिल का गठबंधन किया जाये कुछ समय के लिये ही सही।” – अनुभवी गर्ल आइडियानी ने फ़रमाया।
उधर एक कोने में एक बालक आइडिया एक बालिका आइडिया से सुरक्षित दूरी पर झुका हुआ प्रणय निवेदन सा कर रहा है:
तू मेरी कली, मैं तेरा कांटाबालिका आइडिया ने उसके निवेदन को बीच में ही माडरेट कर दिया और कहा- “जो कहना है वो कायदे से बहर में कहना सीख के आओ सलीके के। बिना बहर के मैं कोई बेवकूफ़ी इन्टरटेन नहीं करती। ”
मैं तेरा ज्वार, तू मेरी भाटा
कुछ आइडिये तो एकदम स्वयंसेवक से हो गये हैं। बांहे चढ़ाये बकैती कर रहे हैं। स्वाभाविक भी है। वे देशभक्त आइडिये हैं। पन्द्रह अगस्त आ रहा है। उनकी दुकान चलनी स्वाभाविक है।
देश के बारे में आइडिये जो आते हैं वे सब एक-दूसरे के खिलाफ़ लगते हैं। सब देशभक्त आइडिये हैं। शाकाहारी भी हैं लेकिन भिड़ते ऐसा हैं मानों एक-दूसरे को कच्चा चबा जायेंगे। कच्चा चबाने की बात से ध्यान आया कि अगर कच्चा चबाने का फ़ैशन चल निकले तो देश में जनसंख्या और रसोई गैस की समस्या एक झटके से कम हो जायेगी। लेकिन फ़िर एकता, अखण्डता, भाईचारे और इनकी-उनकी और न जाने किनकी-किनकी तो वाट लग जायेगी।
तमाम हम उम्र आइडिये तो आपस में दोस्ती कर बैठे हैं। बतिया रहे हैं। एक बालक आइडिये ने तो बालिका आइडिये की बांह पकड़कर थोड़ा शरमाते और बकिया हकलाते हुये कह भी दिया- चल भाग चले पूरब की ओर।
बालिका आइडिया ने उसका हाथ झटक दिया – “अरे छोड़ यार, कोई देख तो रहा नहीं है! ऐसे में हाथ थामने से क्या फ़ायदा। और आज मैं पूरब में भागने के मूड में नहीं हूं। उधर कोई कायदे का रेस्टोरेन्ट नहीं दिखा मुझे जब पिछली बार गयी थी एक क्यूट से आइडिये के साथ। धूल में सारा मेकअप खराब हो गया अलग से! वैसे बाय द वे आज तुमने कौन सा डियो लगया है- बड़ा महक रहा है! हमको भी गिफ़्ट करोगे न! ”
एक आइडिया बीच लाइन में अपने कपड़े फ़ाड़ने लगा ताकि लोग उसकी तरफ़ भी देखें। दूसरे आइडियों ने उसको आड़े हाथों ले लिया( भीड़ में इती जगह नहीं होती कि हर चीज सीधे हाथ ली जा सके) –”क्या ज्ञानियों की तरह हरकते कर रहे हो? सरे राह बनियाइन दिखा रहे जैसे तुम्हारी रूपा फ़्रन्टलाइन की बनियाइन सबसे अच्छी होती हो। कभी सैंडो बनियाइन भी पहने के देखो जी। क्या झकास बनियाइन है ! शोले में धर्मेन्दर उसी को पहन के गब्बरसिंह को कुत्ते कमीने बोला था। ये सैन्डो बनियाइन का ही कमाल है था कि वो इत्ता सब बोल गया वर्ना उसके पहले पच्चीस टेक-रिटेक में -सरदार, आपका नमक खाया है ही बोलता रहा। जैसे ही उसने सैन्डो बनियाइन पहनी भड़ से कुत्ते कमीने बोलने लगा।”
वैसे तो भ्रष्टाचार भी एवरग्रीन आइडिया आईटम है। अदालत वाली ग्रीन प्लाई की तरह है चलता रहे , चलता रहे। आप भ्रष्टाचार को पकड़ लो और सालों लेक्चर फ़टकारते रहो। कभी इसकी सप्लाई खतम नहीं होती। लोग अपना काम छोड़ कर दिन भर भ्रष्टाचार की निन्दा कर सकते हैं। एक बार किसी ने टोका भी कि काम को छोड़कर भ्रष्टाचार की निन्दा करना भी तो भ्रष्टाचार है। लोगों ने उसे खड़े-खड़े दौड़ा लिया। -हमको काम के नाम पर भ्रष्टाचार की बुराई करने से रोकते हो। ईमानदार कहीं के। वह वहीं खड़ा-खड़ा अपना सा मुंह लेकर रह गया- और किसका लेता? भ्रष्टाचार की बुराई करने वालों के हौसलें बहुत ऊंचे होते हैं।
लेकिन आपको बतायें कि ईमानदारी पर लिखना तो समझदारी की बातें करने जैसा है। जैसे समझदार की मौत है वैसे ही ईमानदारी जिन्दगी की सौत है। ईमानदारी में आजकल वो पहले वाली बरक्कत रही नहीं। लोग कमजोर समझते हैं। वैसे भी ईमानदारी तो किसी भी व्यवस्था के गाल ब्लेडर में पथरी की तरह हैं। जहां दिखी वहां या तो लोग निकलवा देते हैं या गलवा देते हैं। बहुत तकलीफ़ होती है इसके रहते सिस्टम को।
सोचा तो यह भी कि समीरलालजी के दर्द का पोस्ट मार्टम किया जाये लेकिन फ़िर नहीं किया। काहे से कि पोस्टमार्टम तो गो-वेन्ट-गान हो चुकी चीजों का किया जाता है। दर्द तो अभी कई बार उठेगा उनका। दर्द ही नहीं रहेगा तो फ़िर इलाज किसका किया जायेगा। वैसे भी सतीश सक्सेनाजी के इलाज से काफ़ी आराम है उनको। लेकिन समीरजी के दर्द की गुणवत्ता बहुत ऊंची है। निकलता है तो कविता साथ में लिये आता है। बनियाइन के साथ रूमाल फ़्री वाले अंदाज में।
ढेर सारे आइडिये और उछल रहे हैं लेकिन दफ़्तर जाना है। इसलिये अब यहीं रुक जाते हैं फ़िर आगे कभी सुनाया जायेगा आइडिया का किस्सा।
मेरी पसन्द
डोम मणिकर्णिका से अक्सर कहता है,दु:खी मत होऒ
मणिकर्णिका,
दु:ख तुम्हें शोभा नहीं देता
ऐसे भी श्मशान हैं
जहां एक भी शव नहीं आता
आता भी है,
तो गंगा में नहलाया नहीं जाता।
डोम् इसके सिवा कह भी
क्या सकता है,
एक अकेला
डोम ही तो है
मणिकर्णिका में अकेले
रह सकता है।
दु:खी मत होऒ, मणिकर्णिका,
दु:ख मणिकर्णिका के
विधान में नहीं
दु:ख उनके माथे है
जो पहुंचाने आते हैं
दु:ख उनके माथे था
जिसे वे छोड़ चले जाते हैं।
भाग्यशाली हैं, वे
जो लदकर या लादकर
काशी आते हैं
दु:ख मणिकर्णिका को सौंप जाते हैं।
दु:खी मत होऒ
मणिकर्णिका,
दु:ख हमें शोभा नहीं देता।
ऐसे भी डोम हैं
शव की बाट जोहते
पथरा जाती हैं जिनकी आंखे,
शव् नहीं आता-
इसके सिवा डोम कह भी क्या सकता है!
श्रीकांत वर्मा
उनका मूड एकदम बमचिक है और बची खुची कसार हमने उन्हें ह्यूस्टन का चक्कर लगाकर पूरी कर दी,
स्थिति एकदम नियंत्रण में है,
खैर इधर आईडिया की बम्पर सेल भी लगी है…इतने गिर पड़ रहे है अब समझ आया .कानपूर से इंपोर्ट किये गए है …
कुछ आईडियों को इधर पार्सल करवाया जाये..:)
समीरजी की खबर जानकर दिल को चैन मिला…धन्यवाद नीरज जी.
रामराम.
…………………………………………….
बहुत अच्छा लिखा। मजा आ गया (समझ भी आया)
{ Treasurer-S, T }
आइडिया का किस्सा बहुत अच्छा है…
आदमी में आईडिया रहते हैं आपने आईडिया में मानुष घुसेड दिया | बढ़िया प्रयोग है |
और सभी आइडियों का मार्केट वैल्यू बता दिया |
पहले बादलों का अब विचारों का मानवीकरण |
छायावाद ?
और वो जो शख्श बनियायिन में बैठा है न वो पटरियाँ का सलमान खान है -अभी बनियान भी उतार देगा ज्यादा बोले तो !
मगर यह आप ही हैं जिसने समीर लाल को भी हंसाया जरूर होगा, ऐसा मेरा विश्वास है !
जिस तरह आप अपने अहसास छिपा कर भिन्न भिन्न शक्तियों को झेलते हो, उससे आपका एक प्रसंशक मैं भी हूँ ! इस ज्ञान को बाँटने में कोई बुराई नहीं है आशा है आपके अगले लेखों ( आइडिया ) में इस पर कुछ प्रकाश डाल कर कृतार्थ करोगे !
एक बार फ़िर हंसी हंसी में बड़ी गंभीर बात कह गये…हैट्स ऑफ़ टू यू
पर.. जनता यह जानना चाहती है कि, इस पोस्ट को लिखवाने वाले आइडिया भाई साहब बाकी आइडियनों पर कैसे भारी पड़गे ?
पढ़ तो लिया था लेकिन टिप्पणी करने का आईडिया आज आया. बोला; “तुमने भी तो आज पोस्ट ठेली है. फुरसतिया जी को कल कमेन्ट नहीं देने का जो आईडिया था, उसे खारिज करते हुए आज दे डालो. कमेन्ट.”
सो दे रहा हूँ.
एसे सह्रदय कवि के बेटे ने जो गुल खिलाए हैं..आए दिन जानकर दु:ख होता है
और हमेशा से मेरी पसंद में आपकी पसंद ने मन मोहा