Sunday, August 23, 2009

हरिशंकर परसाई- विषवमन धर्मी रचनाकार (भाग 2)

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29 responses to “हरिशंकर परसाई- विषवमन धर्मी रचनाकार (भाग 2)”

  1. Dr.Arvind Mishra
    ओह यह शराब प्रसंग तो बहुत दुखद रहा !
    हां है तो! लेकिन अब जो है सो है! यह भी परसाईजी के जीवन का एक पहलू रहा!
  2. archana
    गणेश जी हमेशा शुभ कार्यों मे प्रथम पूजनीय हैं—-आज पहली बार हरिशंकर जी के बारे मे पढा ,इससे पहले पढने-लिखने में कोई रुची नही थी,पर रोचकता क्या होती है आज जाना…
    अर्चनाजी , परसाईजी को पढ़ना अपने आप में बेहतरीन है। उनकी रचनायें पढ़िये अच्छा लगेगा।
  3. बी एस पाबला
    कई पुरानी बातें ताज़ा हुई परसाई जी के बारे में.
    कहा भी जाता है कि भगवान कुछ देता है तो बदले में कुछ छीन भी लेता है. :-(
    निश्चित तौर पर शराब प्रसंग दुखद है.
    आभार आपका, मायाराम जी के लेख को यहाँ देने के लिए

    पाबलाजी, वास्तव में प्रसंग दुखद है। अब यह सोचने की बात है कि परसाईजी शराब क्यों पीने लगे। अगर उनकी भी गृहस्थी होती तो वे क्या लिखते/कैसा लिखते?

  4. चिरकुट चिंदी

    एक अनुपम श्रृँखला प्रस्तुत करने के लिये साधुवाद ।
    व्यसन की श्रेणी में तो लेखन भी आया है । ब्लागिंग भी व्यसन ही तो है ।
    शराब पीना दुःखद नहीं, शराब के साथ सदैव नाम जोड़े जाना दुःखद है ।
    मुझे फणीश्वर नाथ ’रेणु’ का यह तँज़ याद आ रहा है कि,
    ” जब मैं रात भर जाग कर कुछ लिखता और सुबह जल्दी सैर को निकल पड़ता तो मेरी बोझिल लाल आँखें देख लोग कह बैठते,’ लगता है कल रात की ठीक से उतरी नहीं है । यदि नशायमान हो पड़ा सोता रहता और देर से उठता तो देर तक सोने से हुई लाल आँखों पर भी उनकी यही टिप्पणी होती । ”

    डा.साहब, कुछ ऐसी ही बातें परसाईजी ने भी अपने बारे में लिखे एक लेख में लिखी हैं।
  5. परसाई- विषवमन धर्मी रचनाकार (भाग 1)
    [...] ……शेष अगली किस्त में [...]
  6. anil pusadkar
    परसाई जी को श्रद्धा सुमन अर्पित करता हूं।
    अनिल पुसदकर: हम भी हैं लाइन में। :)
  7. प्रमेन्‍द्र प्रताप सिंह
    एक ठो और ???
    अब का करे, …………… अरे यार प्रिंट निकालो न और क्‍या करोगे ?
    प्रमेन्द्र: निकाल लिये? कैसा आया है? दिखाओ तो जरा! लेकिन पहिले पढ़ लो।
  8. घोस्ट बस्टर
    ये भी एक पहलू है. मेरा अनुभव है कि साम्यवाद की ओर झुकाव रखने वाले लोग अक्सर इस प्रकार के चिड़चिड़ेपन के शिकार हो ही जाते हैं. सिर्फ़ बौद्धिकता की जुगाली करते रहने से स्वभाव में (और चेहरे पर भी) एक प्रकार की शुष्कता आ जाती है.
    घोस्ट बस्टर: आपके अनुभव सही होंगे लेकिन परसाईजी सिर्फ़ बौद्धिक जुगाली करते थे इस बात से सहमत नहीं होना चाहता मैं।
  9. वन्दना अवस्थी दुबे
    बहुत नेक कार्य कर रहे हैं हैं आप. इससे ज़ाहिर होता है कि आप परसाई जी के कितने बडे प्रशंसक हैं. मायाराम जी(जिन्हें हम बाबूजी कहते थे)के संस्मरण आपने कहां से पाये?
    वन्दनाजी, मायारामजी के संस्मरण मैंने परसाईजी के व्यक्तित्व और कृतित्व पर छपी किताब आंखिन देखी से लिये हैं। उनकी आत्मकथा भी मैंने पढ़ रखी है। :) आप से अनुरोध है कि परसाईजी और मायारामजी (बाबूजी) के बारे में अपने संस्मरण लिखें। बहुत अच्छा लगेगा। :)
  10. Prashant (PD)
    परसाई जी के बारे में अद्भुत बातें पता चली जिससे मैं अभी तक अनभिज्ञ था..
    पीडी: अच्छा लगा कि इसे पढ़कर कुछ जानकारी हुई। :)
  11. ताऊ रामपुरिया
    बस अदभुत खजाना पा रहे हैं यहां.
    रामराम.
    मजे करो ताऊजी! कल पूरा दिन टाइप किये हैं। :)
  12. Shiv Kumar Mishra
    पढ़कर लगता है कि मायाराम जी ने बहुत ही ईमानदारी से लिखा है. उनका लिखा हुआ पढ़कर मुझे परसाई जी के लेख, जो उन्होंने मुक्तिबोध जी के बारे में लिखे थे, उनकी याद आ गई. किसी के बारे में लिखने के लिए, वो चाहे बहुत प्रिय मित्र हो, अगर इतनी ईमानदारी नहीं रहे तो फिर शायद लिखने का कोई विशेष महत्व नहीं रहेगा.
    इस प्रस्तुति के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद.
    शिवजी: सही है। इसी किताब में कुछ और संस्मरण अच्छे हैं। पोस्ट करेंगे कभी। :)
  13. समीर लाल
    मायाराम जी कलम से परसाई जी के बारे में जानना बहुत सुखद लगा.
    उनकी शराब की लत उस जमाने में चर्चा का विषय रही. यह उनके विराट व्यक्तित्व का दुखद पहलु रहा. वहीं राईट टाऊन में सुभद्रा कुमारी जी के घर के पीछे मोहन कुटी में अक्सर अपने मित्र के साथ पीते मिल जाया करते थे, वो उस जमाने का उनको ढ़ूंढ़ने का सुनिश्चित स्थान हुआ करता था.
    सबके बावजूद लेखन का जो स्तर रहा वो बिरला है. नमन उनकी लेखनी को, उनकी याद को.
    प्रस्तुति के लिए बहुत धन्यवाद.
    समीरलालजी: आप अपने संस्मरण परसाईजी के बारे में लिखिये अगर हो सके। :)
  14. dr anurag
    मायाराम जी इस किताब का जिक्र करने के लिए शुक्रिया….कई दिनों से इस किताब को तलाश रहा था .पर यहाँ मेरठ में कई किताबे ऑर्डर देकर मंगानी पड़ती है .किस प्रकाशन से है ..
    परसाई जी अपने आप में एक इश्वर की एक अनूठी रचना है …इसे लोगो में एक समय बाद कुछ न कुछ अवसाद आना शायद प्रकर्ति का ही कोई खेल है… कई बुद्धिजीवियों को इस अवसाद से घिरे देखा है…ताजा मिसाल स्वदेश दीपक जी है..
    एक बात ओर आपने निसंदेह इतने सारे शब्द टाइप किये उसके लिए आपको साधुवाद देता हूँ .
    डा.अनुराग: यह किताब परसाई जी के व्यक्तित्व और कृतित्व पर केन्द्रित है। वाणी प्रकाशन 21, ए, दरियागंज, नयी दिल्ली-110002 द्वारा प्रकाशित है। दूसरे संस्करण का दाम सन 2000 में 425/-रुपये था। 500 पेज की इस किताब में परसाईजी से संबंधित लेख और संस्मरण तथा इंटरव्यू हैं।
    परसाईजी के बारे में और स्वदेश दीपकजी के बारे में आपने सही कहा। टाइपिंग कल ही मैंने आपके ही आग्रह पर कर डाली वर्ना शायद एकाध दिन बाद अगला अंक पोस्ट करता। उसकी भी देखो ज्ञानजी मौज ले रहे हैं। उनसे भी हिसाब बराबर कर लें जरा।
    :)
  15. Gyan Dutt Pandey
    पूरा दिन टाइप किये? क्यों, टाइपिस्ट को छुट्टी दे दी थी क्या?
    खैर अच्छा लगता है जब कभी कभी आप हमारे स्तर पर आ जाते हैं! :-)

    ज्ञानजी: आपके अस्तर तक कौन पहुंच सकता है। रही टाइपिस्ट की बात तो कानपुर के सारे टाइपिस्ट समीरलाल बटोर के ले गये यह कहकर कि टिपियाने का काम बढ़ गया है वहां। आपका मौज लेने का पिकअप घणा धांसू हो लिया है। आपने अब कब्भी अवसाद वाली बात कही तो आपका यह कमेंट दिखाकर सरेब्लाग आपको गलत साबित कर देंगे
    :)
  16. सतीश सक्सेना
    नयी जानकारियाँ मिली ! धन्यवाद !
  17. कविता-फ़विता, ब्लॉगर से मुलाकात और मानहानि
    [...] उनसे तो पता चला कि परसाईजी के बारे में संस्मरण वाली पोस्ट का जिक्र था उसमें। शाम को पत्रिका [...]
  18. सतीश पंचम
    सुबह परसाई…….शाम को फिर परसाई :)
    लगता है अब आपकी बाकी रचनाएं पढनी पडेंगी।
  19. gaurav pandey
    मैं काफी समय से परसाई जी का व्यंग्य ‘चिकित्सा का चक्कर ‘ दूंढ़ रहा हूँ. कृपया मदद करें.
    धन्यवाद्
  20. : फ़ुरसतिया-पुराने लेखhttp//hindini.com/fursatiya/archives/176
    [...] हरिशंकर परसाई- विषवमन धर्मी रचनाकार (भ… [...]
  21. Neeraj Diwan
    :)
  22. Neeraj Diwan
    ‘चिकित्सा का चक्कर‘ मिल गया क्या ?
    Neeraj Diwan की हालिया प्रविष्टी..गड्डी जांदी ए छलांगा मार दी
  23. विवेक रस्तोगी
    लेखक तो अपने दर्द को छिपाकर कागज पर दुनिया का दर्द उतार देता, शायद यही लेखक की परिभाषा है ।
    विवेक रस्तोगी की हालिया प्रविष्टी..बात करने का बहाना चाहिये तो प्रकृति सबसे अच्छा विषय है
  24. : परसाई- विषवमन धर्मी रचनाकार (भाग 1)
    [...] ……शेष अगली किस्त में [...]
  25. प्रमोद सिंह
    मेहनत और मेहनतियों की जय हो.
    प्रमोद सिंह की हालिया प्रविष्टी..लालबहादुर, देवानन्‍द, आसाराम और विश्‍वजीत..
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