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पति क्या होता है सिर्फ़ एक आइटम ही तो
By फ़ुरसतिया on August 3, 2009
[आज डा.अमर कुमार, डा.समीरलाल और ज्ञानगुरु ज्ञानजी ने पत्नी महिमा का दबे-छुपे वर्णन किया है। ऐसे में हम एक बार फ़िर कह रहे हैं जो हम ठीक दो साल ग्यारह महीने पहिले कह चुके हैं कि पतियों को अपनी असलियत का अन्दाजा होना चाहिये। उनको पता होना चाहिये कि पति सिर्फ़ एक आइटम होता है।]
‘पति-पत्नी’ यूँ तो मात्र एक शब्द युग्म है। यदि किसी कविता में प्रयोग हो जाये तो ‘प’ वर्ण की आवृत्ति के कारण इसमें अनुप्रास अलंकार बरामद हो सकता है। तथा इस सत्य का उद्घाटन करने वाला विद्यार्थी परीक्षा में एकाध अंक ज्यादा झटक सकता है बशर्ते कापी जाँचने वाला शिक्षक कापी जाँचते समय देश की शिक्षा व्यवस्था में निरन्तर होती गिरावट पर होने वाली शाश्वत बहस में अपना योगदान (जो कि हमेशा बहुमूल्य होने के लिये अभिशप्त होता है)मत व्यक्त न कर रहा हो।
पत्नी के बारे में शास्त्रों में तमाम बातें कहीं गई हैं लेकिन सबसे नया तथ्य यह सामने आया है कि पत्नी असल में वह प्राणी होती है जो अपने पति को छील-छाल, गढ़-तराश कर आदमी बनाती है।
इससे मुझे यह अहसास हुआ गोया पत्नी कोई बढ़ई हो तथा पति कोई अनगढ़ लकड़ी जिसे छीलछाल कर वह उसे काम लायक बनाती है।
हर नियम के अपवाद की शाश्वत परंपरा के मुताबिक इस नियम के भी अपवाद हैं। जिन मामलों में पतियों को उनकी पत्नियाँ ‘आदमी‘ बनाने में असफल रहती हैं उनमें वे अपनी असफलता का ठीकरा मूल पदार्थ पर ही फोड़कर ,नाच न आवै आंगन ठेढ़ा, उक्ति के पक्ष में मतदान करती हैं।
पत्नियों के लिये पति का इंतजा़म आमतौर पर उनके घरवाले करते हैं। वे सामान्यत: अपनी आर्थिक हैसियत के मुताबिक अपनी कन्या के लिये पति खरीदकर दे देते हैं । पहले इस संबंध में बाजार भाव में गिरावट थी l लेकिन अब आधुनिक जमाने के साथ पति के दामों में काफी उछाल आया है। पति खासकर कमाऊ पतियों के दाम भारत में भ्रष्टाचार तथा विश्व में पेट्रोल की कीमतों की तरह लगातार बढ रहे हैं।
पहले पति खरीदने के लिये सदियों पुरानी लेन-देन की (बार्टर )प्रणाली का प्रचलन था। ‘पति’ साइकिल,स्कूटर,टीवी,पलंग, के बदले में मिल जाते थे। लेकिन आधुनिकता के साथ-साथ हिसाब-किताब में पारदर्शिता रखने के लिये अब सारा हिसाब-किताब नकद रुपयों-पैसों में करने की परंपरा बढ़ रही है। इसका फायदा यह हुआ है कि बिकने के बाद मतभेद की गुंजाइश कम रहती है। लेकिन जैसा कि कहा जाता है कि सब कुछ लुट जाने के बाद भी भविष्य बचा रहता है उसी तरह मुंह-मांगे दाम चुकाये जाने पर भी पति के कौडी का तीन होने की संभावना से इंकार नही किया जा सकता।
बहरहाल, पति खरीद कर जैसे ही पत्नी को सौंप दिया जाता है वह उसको उलट-पुलट कर दायें-बायें,ऊपर-नीचे हर तरफ से देखने-संवारने में जुट जाती है । पत्नियों के लिये पति वास्तव में वह गुड्डा होता है जिसे वे बहुत दिनों से पढ़ाई-लिखाई ,खेल-कूद के चक्कर में सालों तक भूली रहती हैं। शादी की अंगूठी पहनते ही उनको अपना गुड्डा वापस मिल जाता है जिसमें इतने सालों में जान भी आ जाती है। पति उनके लिये जीता-जागता खिलौना होता है,जिसकी चलाने चाबी उनको शादी के बाद मिल जाती है।
पति को बना-संवारकर आदमी बनाने के लिये पत्नी को उसपर अधिकार भावना रखना मजबूरी होती है।आमतौर पर ऐसा देखा गया है कि पति के ऊपर पत्नी का अधिकार भाव पत्नी के घरवालों द्वारा पति को खरीदने के लिये चुकाई गये धन की मात्रा के समानुपाती होती है। अमूमन पति जितना मंहगा खरीदा जाता है उस पर पत्नी का अधिकार उतना ही तगड़ा होता है।
जिन पत्नियों के मायके वाले पतियों की कीमत चुकाने में असमर्थ रहते हैं उनके लिये पति का जुगाड़ करना भारतीय रेलों के सामान्य कूपे में यात्रा करने के समान होता है। अव्वल तो डिब्बे में घुसना नहीं हो पाता और अगर येन-केन-प्रकारेण डिब्बे में धंस गये तो सीट मिलना मुश्किल होता है।
अगर आप इस बात से इत्तफाक रखते हैं तो यह मान लेने में मुझे तो नहीं लगता कुछ हर्ज है कि बिना दहेज के मिले पति पर अधिकार भावना रखना कुछ ऐसा ही प्रयास है जैसे किसी जनरल डिब्बे में घुसकर सफलता पूर्वक कोई सीट जुगाड़ लेना।
बहरहाल यह सब बातें तो किसी पदार्थ के पति बनने से संबंधित हैं। पत्नी का पति को आदमी बनाने का काम तो इसके बाद शुरू होता है।
आमतौर पर पत्नियाँ पति को पाने के बाद अपने सपनों के राजकुमार से पति की तुलना करती हैं।वे पति को टटोल-मटोल कर ,धकिया-मुकिया कर अपने सपनों के ढांचे फिट करती हैं। इस दौरान वे खूब सारी मतलब-बेमतलब की बातें करती हैं। कभी- कभी कुछ न समझ में आने पर :-
इस संबंध में विद्वानों में शाश्वत मतभेद हैं कि पति नामक प्राणी यह गाना गाते हुये अपना अंधे के हाथ बटेर का सुख प्रकट कर रहा होता है या किस्मत में यही बदा था तो क्या कर सकते हैं का मजबूरन संतोष प्रकट कर रहा होता है।
किसी भी पति को आदमी बनाने की प्रक्रिया बड़ी जटिल होती है। इसके लिये पत्नी को अथक प्रयास करने पड़ते हैं। हर पत्री अपनी-अपनी समझ के अनुसार इसके लिये प्रयास करती है।
अपने अतीत वर्णन करते हुये पत्नियाँ अक्सर किसी की हिम्मत नहीं थी कि मेरी तरफ निगाह उठाकर देख ले से लेकर सारे कालेज के लड़के मेरे ऊपर मरते थे तक के संवादों का भाव भंगिमा पूर्ण प्रयोग करती हैं। यह भाव भंगिमायें कुछ इतनी प्रभावी होती हैं कि यदि नाटक वाले देख लें तो उनका नाटकों के लिये नायिकाऒं की कमी का रोना खतम हो जाये।
आमतौर पर किसी की हिम्मत …श्रेणी की पत्नियाँ वे होतीं हैं जिनको देखने के मुकाबले पति लोग अपने घर की सालों पहले पुती दीवार देखना ज्यादा सुकून देह मानने लगते हैं तथा सारे कालेज के लड़के मुझपर मरते थे श्रेणी की पत्नियाँ वे होती हैं जिनका सबसे ज्यादा पैसे का लेन-देन सावन के महीने में राखी भेजने तथा नेग बटोरने में हुआ होता है।
उदार या बेहतर होगा कहें समझदार या और बेहतर कहें तो मजबूर टाइप पति मिल जाने पर पत्नियाँ अपने अतीत का कुछ ज्यादा ही उदारता पूर्वक बखान करती पायी जाती हैं। ‘आई कुड गेस ही वज इन्कलाइंड टुवर्ड्स मी’ मुझे अहसास हो गया था कि वह मेरी तरफ झुका हुआ था। मानो ‘वह ‘ वह न होकर पीसा की मीनार हो गया जो झुक गया तो झुकता ही चला गया।’ ही हैड फीलिंग्स फार मी’ सुनकर लगता है कि भावनायें न होंगी तो क्या साबुन तेल होगा? तमाम लोगों ने मुझे प्रपोज करना चाहा- दुनिया में बेवकूफों की कमी थोड़ी है- एक ढूँढो,हजार मिलते हैं..।
समय के साथ-साथ बढ़ती मंहगाई तथा कन्या भ्रूण हत्या की वजह से मादाओं की संख्या में आती गिरावट के कारण पतियों के लिये ऐसा करना दिन-प्रतिदिन मुश्किल होता जा रहा है तथा पति अपनी पत्नियों के एक अदद सौत तक खोजने में असमर्थ होते जा रहे हैं।
मजबूरन अब पत्नियों ने जहाँ चाह वहाँ राह के नियम का सहारा लेते हुये पति में ही सौत को खोजना शुरू कर दिया है। इसका तरीका भी बहुत सरल है। पति की जो आदतें पत्नियों को भाती नहीं हैं उनको वे अपनी सौत का दर्जा दे देती हैं।
दुनिया की ज्यादातर महिलायें टीवी,कम्प्यूटर,किताबों,सिनेमा आदि में अपनी सौत के दर्शन लाभ करती हैं। इन महिलाओं के पति ,पत्नियों से ज्यादा टीवी / कम्प्यूटर से चिपके रहते हैं,उनसे ज्यादा किताबों को पढ़ते हैं तथा पत्नियों को देखने के मुकाबले सिनेमा ज्यादा चाव से देखते हैं। जिन पत्नियों के पति ब्लागिंग करते हैं उनके लिये यह फायदे का काम हुआ है कि सौतन की तलाश में उन्हें अपना दिमाग नहीं खपाना पड़ता है। पति की ब्लागिंग की आदत को सहज सौतन स्वीकार करके सुख की नींद ले सकती हैं। ऐसी भरोसेमंद सौत और कहाँ!
अपने आइटम-वर्णन की प्रक्रिया में पति को लापरवाह,भुलक्कड़,गैर कामकाजी,बिगड़ैल, मूडी,बीबी कम टीवी चिपकू ज्यादा ,पत्नी की बिल्कुल परवाह न करने वाला,चाय तक बनाने में असमर्थ,निहायत गैर रोमांटिक बताते हुये दुनिया की सबसे नकारात्मक तूलिका से अपने पति का चित्र खींचती रहती हैं। यदि श्रोता ने भूलकर भी इसको नकारने का प्रयास किया तो वे और रंग उड़ेलकर पति-चित्र को और अनाकर्षक बनाने का भरसक प्रयास करती हैं।
ऐसा लगता है कि वे अपने पति का वर्णन न करके किसी आइटम के बारे में किसी ग्राहक को बता रही हों तथा उस आइटम की बिक्री तभी संभव है जबकि वह सबसे खराब साबित हो जाये। आमतौर पर ये प्रयास तभी तक चलते हैं जब तक आप उनसे असहमत रहते हैं। आपकी असहमति के साथ-साथ उनके प्रयासों में तेजी आती जाती है।
यदि आपने भूलकर भी पत्नी के स्व पति निंदा पुराण से सहमति प्रकट करने का प्रयास किया तो वे तुरंत प्रत्यावर्ती विद्युत धारा(ए.सी.करेंट) की तरह दिशा बदलकर अपने पति के दूधिया,उज्जवल चरित्र,आदतों वाले गुण वर्णन करने लगेंगीं। फिर तो उनके वही निहायत बांगडू़ पति धुल-पुंछ कर ऐसा चमचमाता आइटम बन जाता है जिसके बराबर दुनिया में कोई भला,ख्याल रखने वाला, समझदार,उदारहृदय पति और कोई दूसरा नहीं।
एक ही पति में सबसे अच्छे तथा सबसे बांगड़ूपने के गुण तलाशने की आदत (टू इन वन)पति में सब कुछ पाने की स्वाभाविक चाहना का परिणाम है। उनको लगता है कि उनके पास ऐसा आइटम है जिसमें दुनिया के सारे अच्छे -बुरे गुण मौजूद हैं। हर स्त्री का दूसरों के पति से हर मायने में आगे होता है ,चाहे वह अच्छाई हो या बुराई।
पत्नी के सरदर्द से बेखबर खर्राटे भरकर सोते पति की लापरवाही किस्से बखानती पत्नी उसको अच्छा बताने के लिये “आपको पता है ये मुझे इतना चाहते हैं कि मेरे लिये एक दिन खिचखिच दूर करने वाली विक्स की गोली लेने के लिये रात को बारह बजे कार उठाकर दूसरे शहर चले गये फिर तीसरे दिन लौटे” के लड़ियाने वाले मोड में कब आ जाये यह विधाता भी नहीं बता सकते।
कुछ स्त्रियाँ मानती हैं कि उनके पति तथा उनके कोई भी गुण ,विचार नहीं मिलते। गुण नहीं मिलते। उनके लिये यह जानकारी शायद सुकून देह हो कि मर्यादा पुरुषोत्तम राम तथा जगद्जननी माता सीता के ३६ गुण मिलते थे। लेकिन दोनों को अंतत: आत्महत्या ही करनी पड़ी। रामजी ने जलसमाधि ली तथा सीता जी ने भू समाधि।
रुचियाँ एक होना भी बवालेजान है। अब देखिये कि कोई कवियत्री पत्नी लिखती है:-
इससे अच्छा तो वे गैर साहित्यिक पति हैं जो पत्नी का लिखा पढ़ते-पढ़ते सो जाते हैं। पत्नी का लेखन न हो गया नींद की गोली हो गयी।
बहरहाल ,बात हो रही थी पत्नी द्वारा पति को आदमी बनाये जाने के प्रयासों की।
आमतौर पत्नियों को पति जिस हालत में मिला होता है उससे एकदम अलग बनाने का प्रयास करती हैं। सबसे पहला प्रयास उनका यह होता है कि पति की स्वाभाविकता पर लगाम कसी जाये। देर रात तक जगने वाले पति को वह अर्ली टु बेड अर्ली ट राइज सिखाती है। जल्दी सोने वाले से कहती है ये भी कोई समय है सोने का। ठहाका मारकर हंसने वाले पति को क्या गंवारों की तरह मुंह फाड़कर हंसते हो कहकर बोलती बंद करती है। मुस्कराने वाले को क्या लड़कियों की तरह लजाते हो कहकर गँवार पने की तरफ ठेलती है। यार बास पति को घरघुसुआ तथा आंचल से लिपटे रहने वाले मियां को एकदम से सामाजिक बनाने का प्रयास करती है ।
सुरुचि पूर्ण तथा सौंदर्य प्रेमी पत्नियों के पति की हालत तो अमेरिका के हत्थे चढ़ गये सद्दाम हुसैन की तरह होती है। वे उसके बाल खींचते हुये काढ़ती हैं, पाउडर इस तरह लगाती हैं जैसे अमेरिका में भारतीयों की जामा तलाशी होती है। पहने हुये कपड़े उतरवा कर दूसरे पहनाने के बाद इससे अच्छे तो वही पहन लो की प्रक्रिया अक्सर दोहराती हैं। सफेद होते बालों वाले पति की पत्नियाँ तो शायद यमराज को भी डाँट के भगा दें कि अभी रुको उनके बाल डाई करके तैयार कर दें तब ले जाना । ऐसे बिना तैयार हुये इनको कैसे भेज दें।
ऐसी सौंदर्य प्रेमी पत्नियों को झटका देने तथा बेहोश करने के लिये उनकी किसी अंतरंग सहेली का यह जुमला काफी होता है भाईसाहब कितने एजेड ,डल से लग रहे थे कल पार्टी में। अपने आइटम के बारे में नकारात्मक बात सुनते ही उनका खून उसी तरह खौल जाता है जैसे वंदे मातरम का अपमान होते देखकर किसी भी देशभक्त का खून खौलने लगता है।
जिन पतियों पर घर का खर्चा चलाने के लिये कमाई करने बाहर जाने की जिम्मेदारी होती है वे अपने पतियों पर कुछ ज्यादा ही निगाह रखती हैं। आदमी बनाने के लिये पति पर शक बहुत जरूरी आदत है। ऐसे में किसी भी दूसरी अनजान महिला को ऐसे वायरस की तरह समझती हैं जिसके संपर्क में आते ही उनके पति के सिस्टम का ‘कोर डम्प’ (साभार ठेलुहा)हो जायेगा।
वे अपने पति की पर उसी तरह निगाह रखती हैं जिस तरह अमेरिका आतंकवादियों पर नजर रखता है। अपने पति के मोबाइल की आयी-गयीं कालें देखती हैं,कभी खुद न खोल पाने वाली पति की मेलें देखने का प्रयास करती हैं। अचानक आफिस फोन करके पूछती हैं -इतनी देर से फोन इंगेज्ड था किससे बात कर रहे थे? खाने में कद्दू बनाया है कुछ और बना लूं क्या?
ये समझदार पत्नियाँ टेलीमार्केटिंग के लिये किसी कन्या से हुई पांच मिनट की बातचीत का विवरण पति से घंटों कभी कभी हफ्तों पूछती हैं। पाँच मिनट से अधिक उनके पति से बात करने वाली अनजान महिला का नाम कितना भी अनाकर्षक क्यों न हो लेकिन वे उसे बड़े प्यार से चुडै़ल कहकर पुकारती हैं। सारी भाभियाँ,जिनसे वे खुद इठलाकर बोलती हैं ,से उनके पति के ज्यादा बातचीत के प्रयास उनको उसी तरह नागवार लगते हैं जिस तरह भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड को गांगुली के समर्थन में दिये गये वीरेंद्र सहवाग के बयान लगते हैं।
इतना सब लिखने के बाद मैं यह बताना जरूरी समझता हूँ कि ये जो सच लिखे गये वे जितने हमारे हैं उतने ही आपके भी। यह पति से आदमी बनाये जाने की प्रक्रिया अनंत है, लिहाजा इसके किस्से भी अनंत हैं। इनका न आदि है न अंत है। सुनाने बैठो तो फसंत ही फसंत है। लिहाजा इतनी कथा सुनाकर बाकी की आपको खुद समझने तथा हिम्मत करे तो सुनाने के लिये रुकता हूँ।
लेकिन रुकने के पहले यह बताना चाहूँगा कि मुझे लगता है कि महिलाओं की ,जरूरी नहीं कि वे पत्नियाँ ही हों,सहज बुद्धि पुरुषों के मुकाबलें में ,चाहे वे पति भले क्यों न हो जायें , बेहतर होती है। इस संबंध में वर्षोंपहले सारिका में पढ़ी किसी लेखक की कहानी का अंत याद आ रहा है:-
‘पति-पत्नी’ यूँ तो मात्र एक शब्द युग्म है। यदि किसी कविता में प्रयोग हो जाये तो ‘प’ वर्ण की आवृत्ति के कारण इसमें अनुप्रास अलंकार बरामद हो सकता है। तथा इस सत्य का उद्घाटन करने वाला विद्यार्थी परीक्षा में एकाध अंक ज्यादा झटक सकता है बशर्ते कापी जाँचने वाला शिक्षक कापी जाँचते समय देश की शिक्षा व्यवस्था में निरन्तर होती गिरावट पर होने वाली शाश्वत बहस में अपना योगदान (जो कि हमेशा बहुमूल्य होने के लिये अभिशप्त होता है)मत व्यक्त न कर रहा हो।
पत्नी असल में वह प्राणी होती है जो अपने पति को छील-छाल, गढ़-तराश कर आदमी बनाती है।
‘पति-पत्नी’ के अकेलेपन को दूर करने के लिये इनके साथ अक्सर ‘वो’ जोड़ दिया जाता है। लेकिन पिछले कुछ समय से ‘वो’ की जगह ‘वैगपाइपर’ ने ले ली है तथा ‘पति-पत्नी और वो’ की जगह मैं-तुम और वैगपाइपर कहने से आधुनिकता में कुछ इजाफा टाइप होता है।पत्नी के बारे में शास्त्रों में तमाम बातें कहीं गई हैं लेकिन सबसे नया तथ्य यह सामने आया है कि पत्नी असल में वह प्राणी होती है जो अपने पति को छील-छाल, गढ़-तराश कर आदमी बनाती है।
इससे मुझे यह अहसास हुआ गोया पत्नी कोई बढ़ई हो तथा पति कोई अनगढ़ लकड़ी जिसे छीलछाल कर वह उसे काम लायक बनाती है।
दुनिया के सारे ‘कुँवारे’ वे पदार्थ होते हैं जिनमें बरास्ता पति होते हुये आदमी बनने की संभावनायें छिपी होती हैं
इससे यह भी लगता है कि पति वह पदार्थ है जो पत्नी द्वारा संस्कारित किये
जाने पर आदमी बनता है। यदि आप इस बात से सहमत हैं तो यह अपने आप सिद्ध हो
जाता है कि दुनिया के सारे ‘कुँवारे’ वे पदार्थ होते हैं जिनमें बरास्ता पति होते हुये आदमी बनने की संभावनायें छिपी होती हैं।जो ‘कुँवारा’जितनी जल्दी पति बनता है उसके आदमी की मंजिल हासिल करने की संभावनायें उतनी ही अधिक होती हैं।हर नियम के अपवाद की शाश्वत परंपरा के मुताबिक इस नियम के भी अपवाद हैं। जिन मामलों में पतियों को उनकी पत्नियाँ ‘आदमी‘ बनाने में असफल रहती हैं उनमें वे अपनी असफलता का ठीकरा मूल पदार्थ पर ही फोड़कर ,नाच न आवै आंगन ठेढ़ा, उक्ति के पक्ष में मतदान करती हैं।
पत्नियों के लिये पति का इंतजा़म आमतौर पर उनके घरवाले करते हैं। वे सामान्यत: अपनी आर्थिक हैसियत के मुताबिक अपनी कन्या के लिये पति खरीदकर दे देते हैं । पहले इस संबंध में बाजार भाव में गिरावट थी l लेकिन अब आधुनिक जमाने के साथ पति के दामों में काफी उछाल आया है। पति खासकर कमाऊ पतियों के दाम भारत में भ्रष्टाचार तथा विश्व में पेट्रोल की कीमतों की तरह लगातार बढ रहे हैं।
पत्नियों के लिये पति का इंतजा़म आमतौर पर उनके घरवाले करते हैं। वे
सामान्यत: अपनी आर्थिक हैसियत के मुताबिक अपनी कन्या के लिये पति खरीदकर दे
देते हैं ।
पहले जो ‘पति‘कन्या के पिता लोग अपनी एक साल की
तनख्वाह में खरीद लेते थे अब उसी गुणवत्ता का पति खरीदने के लिये लोग अपनी
जिंदगी भर की कमाई दाँव पर लगाकर तथा बाकी जिंदगी भर के लिये कर्जा लेकर
जुगाड़ करने लगे हैं।अपनी जाति,कुल,गोत्र के अनुसार वर खरीदने में लोग अपनी
जान की बाजी लगाकर भी सौदा करने में हिचकिचाते नहीं। जान भले चली जाये
लेकिन लड़की दूसरी जाति में न जाये।पहले पति खरीदने के लिये सदियों पुरानी लेन-देन की (बार्टर )प्रणाली का प्रचलन था। ‘पति’ साइकिल,स्कूटर,टीवी,पलंग, के बदले में मिल जाते थे। लेकिन आधुनिकता के साथ-साथ हिसाब-किताब में पारदर्शिता रखने के लिये अब सारा हिसाब-किताब नकद रुपयों-पैसों में करने की परंपरा बढ़ रही है। इसका फायदा यह हुआ है कि बिकने के बाद मतभेद की गुंजाइश कम रहती है। लेकिन जैसा कि कहा जाता है कि सब कुछ लुट जाने के बाद भी भविष्य बचा रहता है उसी तरह मुंह-मांगे दाम चुकाये जाने पर भी पति के कौडी का तीन होने की संभावना से इंकार नही किया जा सकता।
पति उनके लिये जीता-जागता खिलौना होता है,जिसकी चलाने चाबी उनको शादी के बाद मिल जाती है।
कुछ और आधुनिक वर-पिता सारा पैसा एक साथ न लेकर
किस्तों में भुगतान पसंद करते हैं। समझदार होने के नाते वे ऐसी बहू के रूप
में ऐसी मुर्गी लेना पसंद करते हैं जो ताजिंदगी निरंतर बड़े होते अंडे देती
रहे। ऐसी मुर्गी को लोग काम-काज वाली बहू तथा पति नामक प्राणी ‘वर्किंग वूमैन’ कहते हैं।बहरहाल, पति खरीद कर जैसे ही पत्नी को सौंप दिया जाता है वह उसको उलट-पुलट कर दायें-बायें,ऊपर-नीचे हर तरफ से देखने-संवारने में जुट जाती है । पत्नियों के लिये पति वास्तव में वह गुड्डा होता है जिसे वे बहुत दिनों से पढ़ाई-लिखाई ,खेल-कूद के चक्कर में सालों तक भूली रहती हैं। शादी की अंगूठी पहनते ही उनको अपना गुड्डा वापस मिल जाता है जिसमें इतने सालों में जान भी आ जाती है। पति उनके लिये जीता-जागता खिलौना होता है,जिसकी चलाने चाबी उनको शादी के बाद मिल जाती है।
पति को बना-संवारकर आदमी बनाने के लिये पत्नी को उसपर अधिकार भावना रखना मजबूरी होती है।आमतौर पर ऐसा देखा गया है कि पति के ऊपर पत्नी का अधिकार भाव पत्नी के घरवालों द्वारा पति को खरीदने के लिये चुकाई गये धन की मात्रा के समानुपाती होती है। अमूमन पति जितना मंहगा खरीदा जाता है उस पर पत्नी का अधिकार उतना ही तगड़ा होता है।
पति के ऊपर पत्नी का अधिकार भाव पत्नी के घरवालों द्वारा पति को खरीदने के लिये चुकाई गये धन की मात्रा के समानुपाती होती है।
जिन मामलों में पति खरीदने के लिये एकमुश्त रकम का भुगतान नहीं होता
उनमें पत्नी द्वारा जुटाई गई नियमित किश्त (कमाई)की मात्रा अधिकार भावना की
मात्रा का निर्धारण करती है।जिन पत्नियों के मायके वाले पतियों की कीमत चुकाने में असमर्थ रहते हैं उनके लिये पति का जुगाड़ करना भारतीय रेलों के सामान्य कूपे में यात्रा करने के समान होता है। अव्वल तो डिब्बे में घुसना नहीं हो पाता और अगर येन-केन-प्रकारेण डिब्बे में धंस गये तो सीट मिलना मुश्किल होता है।
अगर आप इस बात से इत्तफाक रखते हैं तो यह मान लेने में मुझे तो नहीं लगता कुछ हर्ज है कि बिना दहेज के मिले पति पर अधिकार भावना रखना कुछ ऐसा ही प्रयास है जैसे किसी जनरल डिब्बे में घुसकर सफलता पूर्वक कोई सीट जुगाड़ लेना।
बहरहाल यह सब बातें तो किसी पदार्थ के पति बनने से संबंधित हैं। पत्नी का पति को आदमी बनाने का काम तो इसके बाद शुरू होता है।
आमतौर पर पत्नियाँ पति को पाने के बाद अपने सपनों के राजकुमार से पति की तुलना करती हैं।वे पति को टटोल-मटोल कर ,धकिया-मुकिया कर अपने सपनों के ढांचे फिट करती हैं। इस दौरान वे खूब सारी मतलब-बेमतलब की बातें करती हैं। कभी- कभी कुछ न समझ में आने पर :-
तुम्हीं मेरी मंजिल,तुम्हीं मेरी पूजाजैसे भावुकता पूर्ण गाने गाने लगती है। पति नामक पदार्थ भी घबड़ाकर:
तुम्हीं प्राण मेरे ,तुम्हीं आत्मा हो।
तुम्हीं मेरी माथे की बिंदिया झिलमिल…
चांद सी महबूबा हो मेरी,कब ऐसा मैंने सोचा थाजैसे गाने गाते हुये पकड़ा जाता है।
हाँ तुम बिल्कुल वैसी हो जैसा मैंने सोचा था।
इस संबंध में विद्वानों में शाश्वत मतभेद हैं कि पति नामक प्राणी यह गाना गाते हुये अपना अंधे के हाथ बटेर का सुख प्रकट कर रहा होता है या किस्मत में यही बदा था तो क्या कर सकते हैं का मजबूरन संतोष प्रकट कर रहा होता है।
किसी भी पति को आदमी बनाने की प्रक्रिया बड़ी जटिल होती है। इसके लिये पत्नी को अथक प्रयास करने पड़ते हैं। हर पत्री अपनी-अपनी समझ के अनुसार इसके लिये प्रयास करती है।
पत्नियों की यह मंशा होती है कि उनके अतीत के शानदार पन्नों को उनका पति पढ़े ताकि उसके आदमी बनने की राह सुगम हो।
पत्नियों की यह मंशा होती है कि उनके अतीत के शानदार पन्नों को उनका पति
पढ़े ताकि उसके आदमी बनने की राह सुगम हो। जिनके पति पढ़ाकू किस्म के नहीं
होते उनकी पत्नियाँ बोल-चीख-चिल्लाकर अपना अतीत वर्णन करती हैं।( यह प्रयास कुछ-कुछ ऐसा ही होता है जिस तरह महिला चिट्ठाकार अपने चिट्ठे ऊंघते हुये पतियों को घेर-घार कर पढातीं हैं।) अपने अतीत वर्णन करते हुये पत्नियाँ अक्सर किसी की हिम्मत नहीं थी कि मेरी तरफ निगाह उठाकर देख ले से लेकर सारे कालेज के लड़के मेरे ऊपर मरते थे तक के संवादों का भाव भंगिमा पूर्ण प्रयोग करती हैं। यह भाव भंगिमायें कुछ इतनी प्रभावी होती हैं कि यदि नाटक वाले देख लें तो उनका नाटकों के लिये नायिकाऒं की कमी का रोना खतम हो जाये।
आमतौर पर किसी की हिम्मत …श्रेणी की पत्नियाँ वे होतीं हैं जिनको देखने के मुकाबले पति लोग अपने घर की सालों पहले पुती दीवार देखना ज्यादा सुकून देह मानने लगते हैं तथा सारे कालेज के लड़के मुझपर मरते थे श्रेणी की पत्नियाँ वे होती हैं जिनका सबसे ज्यादा पैसे का लेन-देन सावन के महीने में राखी भेजने तथा नेग बटोरने में हुआ होता है।
उदार या बेहतर होगा कहें समझदार या और बेहतर कहें तो मजबूर टाइप पति मिल जाने पर पत्नियाँ अपने अतीत का कुछ ज्यादा ही उदारता पूर्वक बखान करती पायी जाती हैं। ‘आई कुड गेस ही वज इन्कलाइंड टुवर्ड्स मी’ मुझे अहसास हो गया था कि वह मेरी तरफ झुका हुआ था। मानो ‘वह ‘ वह न होकर पीसा की मीनार हो गया जो झुक गया तो झुकता ही चला गया।’ ही हैड फीलिंग्स फार मी’ सुनकर लगता है कि भावनायें न होंगी तो क्या साबुन तेल होगा? तमाम लोगों ने मुझे प्रपोज करना चाहा- दुनिया में बेवकूफों की कमी थोड़ी है- एक ढूँढो,हजार मिलते हैं..।
अपनी सांस्कृतिक परंपरा के निर्वाह के चलते हर पत्नी का प्रयास होता है कि जितनी जल्दी हो सके वह अपने लिये एक सौत का जुगाड़ कर ले।
अपनी सांस्कृतिक परंपरा के निर्वाह के चलते हर पत्नी का प्रयास होता है
कि जितनी जल्दी हो सके वह अपने लिये एक सौत का जुगाड़ कर ले। पुराने जमाने
में पति लोग जिम्मेदार होते थे तथा पत्नी के लिये सौत का इंतजाम खुद करते
थे। खासतौर पर जो पति ,राजा होने के साथ-साथ ,पति भी होते थे वे जहाँ कहीं
दौरे पर जाते थे अपनी पत्नियों के लिये एक सौत साथ में लटकाये लिये चले आते
थे।समय के साथ-साथ बढ़ती मंहगाई तथा कन्या भ्रूण हत्या की वजह से मादाओं की संख्या में आती गिरावट के कारण पतियों के लिये ऐसा करना दिन-प्रतिदिन मुश्किल होता जा रहा है तथा पति अपनी पत्नियों के एक अदद सौत तक खोजने में असमर्थ होते जा रहे हैं।
मजबूरन अब पत्नियों ने जहाँ चाह वहाँ राह के नियम का सहारा लेते हुये पति में ही सौत को खोजना शुरू कर दिया है। इसका तरीका भी बहुत सरल है। पति की जो आदतें पत्नियों को भाती नहीं हैं उनको वे अपनी सौत का दर्जा दे देती हैं।
दुनिया की ज्यादातर महिलायें टीवी,कम्प्यूटर,किताबों,सिनेमा आदि में अपनी सौत के दर्शन लाभ करती हैं। इन महिलाओं के पति ,पत्नियों से ज्यादा टीवी / कम्प्यूटर से चिपके रहते हैं,उनसे ज्यादा किताबों को पढ़ते हैं तथा पत्नियों को देखने के मुकाबले सिनेमा ज्यादा चाव से देखते हैं। जिन पत्नियों के पति ब्लागिंग करते हैं उनके लिये यह फायदे का काम हुआ है कि सौतन की तलाश में उन्हें अपना दिमाग नहीं खपाना पड़ता है। पति की ब्लागिंग की आदत को सहज सौतन स्वीकार करके सुख की नींद ले सकती हैं। ऐसी भरोसेमंद सौत और कहाँ!
आमतौर पत्नियों को पति जिस हालत में मिला होता है उससे एकदम अलग बनाने का प्रयास करती हैं।
जैसा कि बताया जा चुका है कि पति बनने के पहले व्यक्ति एक पदार्थ मात्र
होता है। कभी कभी पत्नियाँ अपने पति को भी पदार्थ मानने लगतीं हैं जैसे
किसी भी राज्य का मुख्यमंत्री नाराज होकर किसी भी एस.पी. को वापस दरोगा बना
देता है। ऐसी स्थिति में अपने पदार्थ बोले तो आइटम के हर पहलू का बखान वे ‘सेल्स वूमेन’ की तरह करती हैं।अपने आइटम-वर्णन की प्रक्रिया में पति को लापरवाह,भुलक्कड़,गैर कामकाजी,बिगड़ैल, मूडी,बीबी कम टीवी चिपकू ज्यादा ,पत्नी की बिल्कुल परवाह न करने वाला,चाय तक बनाने में असमर्थ,निहायत गैर रोमांटिक बताते हुये दुनिया की सबसे नकारात्मक तूलिका से अपने पति का चित्र खींचती रहती हैं। यदि श्रोता ने भूलकर भी इसको नकारने का प्रयास किया तो वे और रंग उड़ेलकर पति-चित्र को और अनाकर्षक बनाने का भरसक प्रयास करती हैं।
ऐसा लगता है कि वे अपने पति का वर्णन न करके किसी आइटम के बारे में किसी ग्राहक को बता रही हों तथा उस आइटम की बिक्री तभी संभव है जबकि वह सबसे खराब साबित हो जाये। आमतौर पर ये प्रयास तभी तक चलते हैं जब तक आप उनसे असहमत रहते हैं। आपकी असहमति के साथ-साथ उनके प्रयासों में तेजी आती जाती है।
यदि आपने भूलकर भी पत्नी के स्व पति निंदा पुराण से सहमति प्रकट करने का प्रयास किया तो वे तुरंत प्रत्यावर्ती विद्युत धारा(ए.सी.करेंट) की तरह दिशा बदलकर अपने पति के दूधिया,उज्जवल चरित्र,आदतों वाले गुण वर्णन करने लगेंगीं। फिर तो उनके वही निहायत बांगडू़ पति धुल-पुंछ कर ऐसा चमचमाता आइटम बन जाता है जिसके बराबर दुनिया में कोई भला,ख्याल रखने वाला, समझदार,उदारहृदय पति और कोई दूसरा नहीं।
एक ही पति में सबसे अच्छे तथा सबसे बांगड़ूपने के गुण तलाशने की आदत (टू इन वन)पति में सब कुछ पाने की स्वाभाविक चाहना का परिणाम है। उनको लगता है कि उनके पास ऐसा आइटम है जिसमें दुनिया के सारे अच्छे -बुरे गुण मौजूद हैं। हर स्त्री का दूसरों के पति से हर मायने में आगे होता है ,चाहे वह अच्छाई हो या बुराई।
पत्नी के सरदर्द से बेखबर खर्राटे भरकर सोते पति की लापरवाही किस्से बखानती पत्नी उसको अच्छा बताने के लिये “आपको पता है ये मुझे इतना चाहते हैं कि मेरे लिये एक दिन खिचखिच दूर करने वाली विक्स की गोली लेने के लिये रात को बारह बजे कार उठाकर दूसरे शहर चले गये फिर तीसरे दिन लौटे” के लड़ियाने वाले मोड में कब आ जाये यह विधाता भी नहीं बता सकते।
कुछ स्त्रियाँ मानती हैं कि उनके पति तथा उनके कोई भी गुण ,विचार नहीं मिलते। गुण नहीं मिलते। उनके लिये यह जानकारी शायद सुकून देह हो कि मर्यादा पुरुषोत्तम राम तथा जगद्जननी माता सीता के ३६ गुण मिलते थे। लेकिन दोनों को अंतत: आत्महत्या ही करनी पड़ी। रामजी ने जलसमाधि ली तथा सीता जी ने भू समाधि।
रुचियाँ एक होना भी बवालेजान है। अब देखिये कि कोई कवियत्री पत्नी लिखती है:-
जब आँखों से ओझल होता है वो कोना,अब चूँकि उनके पति की भी रुचियाँ भी साहित्यिक हैं लिहाजा उन्होंने उनको अगरबत्ती सा सुलगा दिया:-
तुम उस मोड़ पर नज़र आते हो.
जब बहुत याद आते हो तुम,
सन्नाटे के शोर में गूँजते नज़र आते हो.
तुम सिर्फ़ एक पँक्ति में कुछ इस तरह समाती होरुचियाँ समान हैं इसका मतलब यह थोड़ी कि उसकी आड़ में उनको सुलगा दिया जाये। सुलगाना तो नकारात्मक विचार है । अगरबत्ती महकाने के लिये सुलगाना जरूरी थोड़ी है भाईसाहब!
स्वयं अगरबत्ती सी सुलगती हो मुझ को महकाती हो ।
इससे अच्छा तो वे गैर साहित्यिक पति हैं जो पत्नी का लिखा पढ़ते-पढ़ते सो जाते हैं। पत्नी का लेखन न हो गया नींद की गोली हो गयी।
बहरहाल ,बात हो रही थी पत्नी द्वारा पति को आदमी बनाये जाने के प्रयासों की।
आमतौर पत्नियों को पति जिस हालत में मिला होता है उससे एकदम अलग बनाने का प्रयास करती हैं। सबसे पहला प्रयास उनका यह होता है कि पति की स्वाभाविकता पर लगाम कसी जाये। देर रात तक जगने वाले पति को वह अर्ली टु बेड अर्ली ट राइज सिखाती है। जल्दी सोने वाले से कहती है ये भी कोई समय है सोने का। ठहाका मारकर हंसने वाले पति को क्या गंवारों की तरह मुंह फाड़कर हंसते हो कहकर बोलती बंद करती है। मुस्कराने वाले को क्या लड़कियों की तरह लजाते हो कहकर गँवार पने की तरफ ठेलती है। यार बास पति को घरघुसुआ तथा आंचल से लिपटे रहने वाले मियां को एकदम से सामाजिक बनाने का प्रयास करती है ।
सुरुचि पूर्ण तथा सौंदर्य प्रेमी पत्नियों के पति की हालत तो अमेरिका के हत्थे चढ़ गये सद्दाम हुसैन की तरह होती है। वे उसके बाल खींचते हुये काढ़ती हैं, पाउडर इस तरह लगाती हैं जैसे अमेरिका में भारतीयों की जामा तलाशी होती है। पहने हुये कपड़े उतरवा कर दूसरे पहनाने के बाद इससे अच्छे तो वही पहन लो की प्रक्रिया अक्सर दोहराती हैं। सफेद होते बालों वाले पति की पत्नियाँ तो शायद यमराज को भी डाँट के भगा दें कि अभी रुको उनके बाल डाई करके तैयार कर दें तब ले जाना । ऐसे बिना तैयार हुये इनको कैसे भेज दें।
ऐसी सौंदर्य प्रेमी पत्नियों को झटका देने तथा बेहोश करने के लिये उनकी किसी अंतरंग सहेली का यह जुमला काफी होता है भाईसाहब कितने एजेड ,डल से लग रहे थे कल पार्टी में। अपने आइटम के बारे में नकारात्मक बात सुनते ही उनका खून उसी तरह खौल जाता है जैसे वंदे मातरम का अपमान होते देखकर किसी भी देशभक्त का खून खौलने लगता है।
जिन पतियों पर घर का खर्चा चलाने के लिये कमाई करने बाहर जाने की जिम्मेदारी होती है वे अपने पतियों पर कुछ ज्यादा ही निगाह रखती हैं। आदमी बनाने के लिये पति पर शक बहुत जरूरी आदत है। ऐसे में किसी भी दूसरी अनजान महिला को ऐसे वायरस की तरह समझती हैं जिसके संपर्क में आते ही उनके पति के सिस्टम का ‘कोर डम्प’ (साभार ठेलुहा)हो जायेगा।
वे अपने पति की पर उसी तरह निगाह रखती हैं जिस तरह अमेरिका आतंकवादियों पर नजर रखता है। अपने पति के मोबाइल की आयी-गयीं कालें देखती हैं,कभी खुद न खोल पाने वाली पति की मेलें देखने का प्रयास करती हैं। अचानक आफिस फोन करके पूछती हैं -इतनी देर से फोन इंगेज्ड था किससे बात कर रहे थे? खाने में कद्दू बनाया है कुछ और बना लूं क्या?
ये समझदार पत्नियाँ टेलीमार्केटिंग के लिये किसी कन्या से हुई पांच मिनट की बातचीत का विवरण पति से घंटों कभी कभी हफ्तों पूछती हैं। पाँच मिनट से अधिक उनके पति से बात करने वाली अनजान महिला का नाम कितना भी अनाकर्षक क्यों न हो लेकिन वे उसे बड़े प्यार से चुडै़ल कहकर पुकारती हैं। सारी भाभियाँ,जिनसे वे खुद इठलाकर बोलती हैं ,से उनके पति के ज्यादा बातचीत के प्रयास उनको उसी तरह नागवार लगते हैं जिस तरह भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड को गांगुली के समर्थन में दिये गये वीरेंद्र सहवाग के बयान लगते हैं।
इतना सब लिखने के बाद मैं यह बताना जरूरी समझता हूँ कि ये जो सच लिखे गये वे जितने हमारे हैं उतने ही आपके भी। यह पति से आदमी बनाये जाने की प्रक्रिया अनंत है, लिहाजा इसके किस्से भी अनंत हैं। इनका न आदि है न अंत है। सुनाने बैठो तो फसंत ही फसंत है। लिहाजा इतनी कथा सुनाकर बाकी की आपको खुद समझने तथा हिम्मत करे तो सुनाने के लिये रुकता हूँ।
लेकिन रुकने के पहले यह बताना चाहूँगा कि मुझे लगता है कि महिलाओं की ,जरूरी नहीं कि वे पत्नियाँ ही हों,सहज बुद्धि पुरुषों के मुकाबलें में ,चाहे वे पति भले क्यों न हो जायें , बेहतर होती है। इस संबंध में वर्षोंपहले सारिका में पढ़ी किसी लेखक की कहानी का अंत याद आ रहा है:-
एक प्रेमी जोड़ा एक ऐसे मंदिर में मानता मांगने गया जहाँ मांगी गयी हर मुराद पूरी होती थी।पदार्थ के पति बनने के पहले ही उसको आदमी बनाने के प्रयास शुरू हो चुके थे।
प्रेमिका ने बेरोजगार प्रेमी से पूछा-तुम क्या मांगोगे?
प्रेमी बोला- मुझे दुनिया में तुम्हारे सिवाय कुछ नहीं चाहिये। मैं तुमको ही मांगूंगी।
प्रेमिका बोली- देखो समझदारी से कामलो।तुम मुझे मांगने की बजाय अपने लिये नौकरी मांग लेना। मैं तुमको मांग लूँगी दोनों काम हो जायेंगे।
प्रेमी बोला -ठीक।
मंदिर से निकलने के बाद प्रेमिका ने देखा प्रेमी खामोश था। उसने कारण पूछा तो प्रेमी ने बतायाकि उसको प्रेमिका के सिवाय कुछ सूझा ही नहीं। सो उसको नौकरी मांगने का ख्याल ही नहीं रहा। उसने उसे ही मांगा। अब वह परेशान है कि गुजारा कैसे होगा!
प्रेमिका ने हंसते हुये कहा-मुझे अच्छी तरह पता था कि तुम ऐसी ही हरकत करोगे। इसीलिये मैंने तुमको न मांगकर
तुम्हारे लिये नौकरी मांगी थी।
मेरी पसंद
आओ हम धूप वृक्ष काटें।-माहेश्वर तिवारी
इधर-उधर हलकापन बाँटें।
अमलतास गहरा कर फूले
हवा नीमगाछों पर झूले,
चुप हैं गाँव,नगर,आदमी
हमको तुमको सबको भूले।
हर तरफ घिरी-घिरी उदासी
आओ हम मिल-जुल कर छाँटें।
परछाईं आ करके सट गयी
एक और गोपनता छँट गयी,
हल्दी के रंग-भरे कटोरे-
किरन फिर इधर-उधर उलट गयी।
वह पीलेपन की गहराई
लाल-लाल हाथों से पाटे।
आओ हम धूप वृक्ष काटें।
देश में एक अर्थशास्त्री की सरकार के होते हुए यह डिमाण्ड-सप्लाई के नियम का उल्लंघन आखिर हो कैसे रहा है ? पतियों की डिमाण्ड कम हो रही है और कीमत बढ़ रही है .
अब हमें यह बताया जाय कि यह पोस्ट-प्रोजेक्ट कितने दिन से पाइप लाइन में था ? अभी गिनीज बुक में नाम लिखवाने के लिए आवेदन किया कि नहीं ?
कम से कम आपने आइटम तो बता दिया, वरना बड़े निराश थे कि हम कुछ है ही नहीं….
एक एक वाक्य लाजवाब !!! हँस हँस कर पेट में बल पर गए…….क्या जबरदस्त विवेचना की है आपने…..उफ़ !!!
सुपर्ब !!! सिम्पली ग्रेट !!!
रामराम.
मतलब पत्नी रन्दा होती है . परिभाषा में दम है . पहले तो पत्नी लगातार यह कहती रहती है कि इनको ये मैंने सिखाया …ये मैंने सिखाया … ये मैंने सिखाया ….ये मैंने सिखाया . और बेचारा जब सीख जाता है तो एक दिन आंख में पानी भर कर शिकायत करती है कि ’ये अब पहले जैसे नहीं रहे’ . अरे पहले जैसा कैसे रहेगा भाई . रन्दा तो खुदै ने चलाया है . पर अब कौन क्या कहे .
अन्तिम सत्य यही कि पत्ना रन्दा होती है .
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सवा सोलह आने सच! हम तो जाने कब से पिसियाते ही चले जा रहे हैं!
वैसे भी पति टाईप प्राणियों के बारे में पढ़ने-सुनने में मजा तो आता ही है..
लेकिन अब हम एक गहन विचार में डूब गये हैं…। अपने को तुर्रम खाँ समझते थे…। सेल्फ़-मेड कहलाते थे…। अपने पर नाज करते थे, लेकिन आपने सारी पोल खोलकर रख दी…। अब तो अपने ‘आइटमपन’ पर मौन से हो गये हैं। सारा भ्रम जाता रहा…। अब हम वास्तव में पहले जैसे नहीं रहे। बताने का शुक्रिया।
इसके साथ ही ,पूरी की पूरी पोस्ट बेहतरीन.
अभी हमारी शादी नहीं हुई : अभी हम लकडी का वो लट्ठा हैं जिसे छिलना और काम के लायक होना बाकी है
हमें तो सत्य का ज्ञान हो गया गुरु देव
वीनस केसरी
दुबारा पढ़ने में आनन्द तो आया ही, साथ ही एक रिवीज़न भी हो गया,
पिछले बार ई-स्वामी ने ग़ज़्ज़ब टिप्पणी दी थी..
इस बार एक बार फिर उनकी प्रतीक्षा है,
इस लेख में व्यंग है, गहरी सौच है, संवेदनशीलता है, दुखती रग है(पतियों की)…
इस लेख के लिए आप को हमारी तरफ़ से डॉक्टरेट की उपाधी से नवाजा जाता है, शानदार लेख
ऐसा पहली बार हुआ है
सत्रह अट्ठरा सालों में…
वरना तो मियां, हम पढ़े न पढ़े- टिप्पणी छूट नहीं सकती. जाने कैसे उल्टी गंगा बह गई.
-आलेख तो मस्त फुरसतिया और माहेश्वर तिवारी जी की रचना..बहुत उम्दा!!
वैसे अभी भी यह समझने में लगा हूँ कि आपने जो लिखा वो कॉमेडी है ये ट्रैज़ेडी?
स्माइली शायद ये वाला ठीक रहेगा
लाजवाब पति पुराण लिखा आपने । मुझको लगता है कि ये न सिर्फ आपबीती है बल्कि जगबीती है । हर पति पर बीती है । पत्नी ऐसी ही होती है । जो भी हो हंस हंस कर पेट में बल पड़ गये । आज अपना ही दुखड़ा पढ़ कर खुब हंसे । आभर ।
तुम उस मोड़ पर नज़र आते हो.
जब बहुत याद आते हो तुम,
सन्नाटे के शोर में गूँजते नज़र आते हो.good
shefali की हालिया प्रविष्टी..ड्राफ्ट के इस क्राफ्ट में एक ड्राफ्ट यह भी ………..
Devanshu Nigam की हालिया प्रविष्टी..मोड़ पे बसा प्यार…