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अब तो कुछ कर गुजरने को दिल मचलता है
By फ़ुरसतिया on August 7, 2009
पिछ्ली पोस्ट में वीनस केशरी ने टिपियाया था-कुछ पल्लें नै पड़ा
हमें पता है कि वीनस हमसे मौज लेते रहते हैं। असल में वे चाहते हैं कि
हम जब भी शेर-ऊर, गजल-उजल टाइप कुछ लिखें तो ब़हर में लिखें। लेकिन ऊ सब
पल्ले नहीं पड़ता भैया हमरे। अब आप ई मत कहियेगा भाई कि सीख लीजिये। हम नई
चीज सीखने के चक्कर में अपने जिगरी यार ,आलस्य को, नाराज नहीं न कर सकते
हैं!
और रही बात समझने की तो हमें खुद बहुत कुछ समझ में नहीं आता अपना लिखा लेकिन हम कभी मुंह लटकाते हैं अपनी पोस्ट पर? नहीं न! जबकि हम तो उसको कई-कई बार देखते हैं! टाइप करते हुये, पोस्ट करते हुये, गलती ठीक करते हुये, टिप्पणी माडरेट करते हुये, पोस्ट को कूड़ा सोचकर डिलीट करने के प्रयास से अपने को रोकते हुये। जबकि आपको तो एक्कै बार देखना पड़ा इसे। आप तो खाली आये, पढ़े न पढ़े , टिपियाये और आगे बढ़ लिये (बहुत काम रहता है ब्लागर को भी हम समझते हैं भाई) तब फ़िर आप क्यों दुखी हो गये? इत्ते परेशान काहे हो गये? दुख आपको शोभा नहीं देता। हम आपको सच्ची बतायें भैया वीनस!,किसी से कहना नहीं, कि तमाम पोस्टें हम कई-कई बार पढ़ते हैं। जब नहीं समझ में आता तो पोस्ट के सबसे अबूझ अंश को कापी-पेस्ट करके टिपिया देते हैं- बहुत अच्छा लिखा। मजा आ गया (समझने से बच गये)। तो भैया पल्लै नै पड़ने दुखी मत हुआ करो। मुस्कराते हुये टिपिया दिया करो अच्छा सा समीरलाल की तरह। इलाहाबाद जब आयेंगे तब ज्ञानजी से पैसे लेकर चाय पिलायेंगे।
वैसे एक बात ये देखो कि अगर हम बहर-वहर के हिसाब से बहुत अच्छी ,अनुशासित,रानी बिटिया टाइप गजल लिखे होते तो जो तमाम साथी जबाबी लाइने ठेले हैं वो भला ठेलते कहीं। सब जाते पहले अपने-अपने गुरुजी के पास आशीर्वाद लेने। बहर में होता तब जबाब लिखते। इस चक्कर में इत्ती झकास लाइनें कभी सामने न आतीं। ये सब देहाती बहुरिया की तरह अपने-अपने कम्पयूटर घूंघट में मुंह छिपाये बैठी रहतीं गठरी सरीखी। लेकिन बहर से आजादी पाते ही ज्ञान जी जैसे ज्ञानी लोग तक शायरी कर बैठे! किसी ज्ञानी और अनुशासित व्यक्ति को जरा सा अनुशासनहीनता का मौका मिलते ही उसकी प्रतिभा भड़ से जाग जाती है!
अर्कजेश जी ने लिखा:
ज्ञानजी ने हमारे खराब लेखन का फ़ायदा उठाते हुये शेर ठेल दिया:
सतीश सक्सेनाजी ने कहा- फिर पंगा ले रहे हो अनूप भाई , आप भी नहीं सुधर सकते…. छेड़ने में कई बार पिट चुके हो ….शुभकामनायें !!
अब सतीश जी , डरने में धरा क्या है। डर में कोई बरक्कत नहीं रही अब। इसलिये डरना छोड़ दिया। अब आपने शुभकामनायें भी दे ही दीं इसलिये और डर कम हो गया। अब अगर कोई कहेगा कि डर क्यों नहीं लगता तो इसका दोष हम आपकी शुभकामनाओं के मत्थे मढ़ देंगे। ठीक है न!
कुश ने लिखा-अभी ना जाओ छेड़कर.. मेरा मतलब है.. छोड़कर..कि दिल अभी भरा नही! तो भैया कुश के दिल का ख्याल करते हुये कुछ और खराब लाइने पेश कर रहा हूं। ये लाइनें कल शाम को दो घण्टे की मीटिंग के दौरान जमुहाई से बचने के प्रयास में लिखीं गयीं। शायद विवेक को अपनी दुकान चमकाने के कुछ और मौके मिलें इससे!
अरे हां मुख्य बात तो रह ही गयी। ये खुराफ़ाती लाइने लिखने का आइडिया हमें नीरज गोस्वामी जी की पोस्ट पढ़कर आया। पहले भी उनकी तर्ज पर हम तुकबंदिया कर चुके हैं। तब उन्होंने हमें आदेश भी दिया था कि ऐसा मैं अक्सर करता रहूं। लेकिन बहुत दिन से मैं ऐसा कर नहीं पाया।आशा है वे बुरा नहीं मानें होंगे काहे से कि वे बड़े भले हैं और बड़े दिल के मालिक हैं।
चूंकि लाइनें नीरज जी की पोस्ट से प्रेरणा बोले तो इन्सपीरेशन लेकर लिखीं जा रही हैं लिहाजा अगर बहुत खराब लगें ये लाइनें तो थोड़ी देर उनको कोसियेगा। इसके बाद टिपिया के निकल लीजियेगा। और बहुत सारे अच्छे ब्लाग पढ़ने होंगे न आपको।
रोक लो यार तुम हमको किसी बहाने से ।
कुछ करने लगे कहीं तो घर के रहेंगे न घाट के,
बचा लो यार मुझे बस एक बार बहक जाने से।
बदल तो दूं मैं अभी, आज ही इस दुनिया को,
पर जरा डर सा लगता है मुझको इस जमाने से।
वैसे तो अलाने जब भी दुरदुराने लगते हैं मुझको,
मैं भिड़ जाता हूं जाकर फ़ौरन फ़िर फ़लाने से।
अल्लाह ही मालिक है दुनिया का मैं भी सोचता हूं
लगता है अपनी भी अकल खिसक गई ठिकाने से।
हरदम नुमाइश भी करता है खुद की बौड़म,
शरमाता भी है मुआ दुनिया के रूबरू आने से।
बाहर निकलने पर बंदिश लगाई गई है जब से ,
बच्चे घर से फ़ूटने लगे लगे अब बहाने से।
चोर ने धमकाया है पुलिस को घसीटेगा अदालत में ,
उल्लंघन किया है निजता का, छापामारी के बहाने से।
और रही बात समझने की तो हमें खुद बहुत कुछ समझ में नहीं आता अपना लिखा लेकिन हम कभी मुंह लटकाते हैं अपनी पोस्ट पर? नहीं न! जबकि हम तो उसको कई-कई बार देखते हैं! टाइप करते हुये, पोस्ट करते हुये, गलती ठीक करते हुये, टिप्पणी माडरेट करते हुये, पोस्ट को कूड़ा सोचकर डिलीट करने के प्रयास से अपने को रोकते हुये। जबकि आपको तो एक्कै बार देखना पड़ा इसे। आप तो खाली आये, पढ़े न पढ़े , टिपियाये और आगे बढ़ लिये (बहुत काम रहता है ब्लागर को भी हम समझते हैं भाई) तब फ़िर आप क्यों दुखी हो गये? इत्ते परेशान काहे हो गये? दुख आपको शोभा नहीं देता। हम आपको सच्ची बतायें भैया वीनस!,किसी से कहना नहीं, कि तमाम पोस्टें हम कई-कई बार पढ़ते हैं। जब नहीं समझ में आता तो पोस्ट के सबसे अबूझ अंश को कापी-पेस्ट करके टिपिया देते हैं- बहुत अच्छा लिखा। मजा आ गया (समझने से बच गये)। तो भैया पल्लै नै पड़ने दुखी मत हुआ करो। मुस्कराते हुये टिपिया दिया करो अच्छा सा समीरलाल की तरह। इलाहाबाद जब आयेंगे तब ज्ञानजी से पैसे लेकर चाय पिलायेंगे।
वैसे एक बात ये देखो कि अगर हम बहर-वहर के हिसाब से बहुत अच्छी ,अनुशासित,रानी बिटिया टाइप गजल लिखे होते तो जो तमाम साथी जबाबी लाइने ठेले हैं वो भला ठेलते कहीं। सब जाते पहले अपने-अपने गुरुजी के पास आशीर्वाद लेने। बहर में होता तब जबाब लिखते। इस चक्कर में इत्ती झकास लाइनें कभी सामने न आतीं। ये सब देहाती बहुरिया की तरह अपने-अपने कम्पयूटर घूंघट में मुंह छिपाये बैठी रहतीं गठरी सरीखी। लेकिन बहर से आजादी पाते ही ज्ञान जी जैसे ज्ञानी लोग तक शायरी कर बैठे! किसी ज्ञानी और अनुशासित व्यक्ति को जरा सा अनुशासनहीनता का मौका मिलते ही उसकी प्रतिभा भड़ से जाग जाती है!
अर्कजेश जी ने लिखा:
ब्लोगरी की मूल भावना बचाए रखने के लिए अच्छा चेताया आपने | ब्लोगिंग की मूल भावना है क्या इसके बारे में भी बताने का कष्ट करें | ब्लॉग्गिंग में प्रतिभा पलायन का खतरा पैदा हो रहा है क्या |तो भाई ब्लागिंग की मूल भावना बताने के लिये ही विनीतकुमार के लेख का लिंक दिया था। ब्लागिंग अभिव्यक्ति का एक माध्यम है। बस्स। बहुत सजग होकर ब्लागियाने से इसकी सहजता पर असर पड़ता है। लोग अच्छा लिखने के चक्कर में ब्लागिंग की मूल भावना से हट जाते हैं। खराब लिखने के फ़ायदे भूल जाते हैं। ब्लागिंग का प्रतिभा या प्रतिभा पलायन से कोई लेना-देना नहीं है। अगर ब्लागिंग का प्रतिभा से कुछ लेना-देना होता तो हम इत्ते दिन ब्लागिंग कैसे कर पाते। ब्लागिंग के कुछ मूल सूत्र यहां दिये हैं।
ज्ञानजी ने हमारे खराब लेखन का फ़ायदा उठाते हुये शेर ठेल दिया:
अब ज्ञानजी बहाने से कहना चाहते हैं कि वे चूंकि अंग्रेजी में लिखते हैं इसलिये उनका लेखन अच्छा माना जाये। लेकिन जनता यहां सब समझदार है। वो सब जानती है। हम इस बारे में ज्यादा कुछ नहीं कहेंगे वर्ना ज्ञानजी कहेंगे कि हमसे मौज ले रहे हैं फ़ुरसतिया। हम आजकल मौज लेने के मूड में नहीं हैं वर्ना हम शास्त्रीजी से मौज न लेते जिनका रुझान आजकल समलैंगिकता की तरफ़ बढ़ता सा रहा। मौज ही लेना होता तो रक्तचाप शरणागच्छत समीरलाल क्या बुरे हैं?
उनका “खराब” लिखना भी कौंधाता है बिजली।
यहां “अंग्रेजी” के बटन से भी लाइट नहीं जलती!
सतीश सक्सेनाजी ने कहा- फिर पंगा ले रहे हो अनूप भाई , आप भी नहीं सुधर सकते…. छेड़ने में कई बार पिट चुके हो ….शुभकामनायें !!
अब सतीश जी , डरने में धरा क्या है। डर में कोई बरक्कत नहीं रही अब। इसलिये डरना छोड़ दिया। अब आपने शुभकामनायें भी दे ही दीं इसलिये और डर कम हो गया। अब अगर कोई कहेगा कि डर क्यों नहीं लगता तो इसका दोष हम आपकी शुभकामनाओं के मत्थे मढ़ देंगे। ठीक है न!
कुश ने लिखा-अभी ना जाओ छेड़कर.. मेरा मतलब है.. छोड़कर..कि दिल अभी भरा नही! तो भैया कुश के दिल का ख्याल करते हुये कुछ और खराब लाइने पेश कर रहा हूं। ये लाइनें कल शाम को दो घण्टे की मीटिंग के दौरान जमुहाई से बचने के प्रयास में लिखीं गयीं। शायद विवेक को अपनी दुकान चमकाने के कुछ और मौके मिलें इससे!
अरे हां मुख्य बात तो रह ही गयी। ये खुराफ़ाती लाइने लिखने का आइडिया हमें नीरज गोस्वामी जी की पोस्ट पढ़कर आया। पहले भी उनकी तर्ज पर हम तुकबंदिया कर चुके हैं। तब उन्होंने हमें आदेश भी दिया था कि ऐसा मैं अक्सर करता रहूं। लेकिन बहुत दिन से मैं ऐसा कर नहीं पाया।आशा है वे बुरा नहीं मानें होंगे काहे से कि वे बड़े भले हैं और बड़े दिल के मालिक हैं।
चूंकि लाइनें नीरज जी की पोस्ट से प्रेरणा बोले तो इन्सपीरेशन लेकर लिखीं जा रही हैं लिहाजा अगर बहुत खराब लगें ये लाइनें तो थोड़ी देर उनको कोसियेगा। इसके बाद टिपिया के निकल लीजियेगा। और बहुत सारे अच्छे ब्लाग पढ़ने होंगे न आपको।
अब तो कुछ कर गुजरने को दिल मचलता है
अब तो कुछ कर गुजरने को दिल मचलता है,रोक लो यार तुम हमको किसी बहाने से ।
कुछ करने लगे कहीं तो घर के रहेंगे न घाट के,
बचा लो यार मुझे बस एक बार बहक जाने से।
बदल तो दूं मैं अभी, आज ही इस दुनिया को,
पर जरा डर सा लगता है मुझको इस जमाने से।
वैसे तो अलाने जब भी दुरदुराने लगते हैं मुझको,
मैं भिड़ जाता हूं जाकर फ़ौरन फ़िर फ़लाने से।
अल्लाह ही मालिक है दुनिया का मैं भी सोचता हूं
लगता है अपनी भी अकल खिसक गई ठिकाने से।
हरदम नुमाइश भी करता है खुद की बौड़म,
शरमाता भी है मुआ दुनिया के रूबरू आने से।
बाहर निकलने पर बंदिश लगाई गई है जब से ,
बच्चे घर से फ़ूटने लगे लगे अब बहाने से।
चोर ने धमकाया है पुलिस को घसीटेगा अदालत में ,
उल्लंघन किया है निजता का, छापामारी के बहाने से।
पर जरा डर सा लगता है मुझको इस जमाने से।
बड़िया मौंजू पोस्ट
यहां “अंग्रेजी” के बटन से भी लाइट नहीं जलती!
लाइट जल गयी
वीनस केसरी
मैं भिड़ जाता हूं जाकर फ़ौरन फ़िर फ़लाने से।
जय हो जय जो :):)
(एक स्माइली लगाने से ऊ पीला पीला हो जाता है इ लिए ठेर सारा स्माइली लगा दिए की लाल पीला ना हो और अपनी औकात में रहे
वीनस केसरी
raat bhar bahana sochte hain, subah aayenge aapko us khas soche gaye bahane se rokne ke liye…ummid hai aap itne der me kuch kar nahin gujarenge
अब तो कुछ कर गुजरने को दिल मचलता है,
रोक लो यार तुम हमको किसी बहाने से ।
हमको ई भी पता है कि आप डरने वालों में से नहीं हैं.. पांडे जी(ज्ञान जी नहीं, अशोक जी) का लपूझन्ना के लफत्तू महाराज बोल गये हैं “जो डल गया, वो मल गया.. थमदा बेते..”
वईसे मिटिंगवा का अच्छा (सदु,दुरू)पयोग कर लेते हैं.. भगवान करे आपको बहुते सारा मिटिंगवा देते रहें, अऊर आप भकुवाईल मुद्रा में लिखते रहें..
चलते-चलते आज का शेर -
आज फिर शायर का शेर जागा है आपके इस पोस्ट के जगाने से..
मगर अभी प्रेसर जोड़ का आया है, सो हम अभी आते हैं पे*** से..
जब ब्लागर सुधार गृह से भागा हुआ डाक्टर टिका भया है, तो आप भी निश्चिन्त रहो ।
अपनी समझदानी की चाभी वाइफ़ जी को पकड़ा देते हैं , लेयो धरो एहिका एक दू घँटा.. हम अभी ब्लागर से होकर लौटते हैं । वह भी जलभुन कर तुर्रम ज़वाब फेंकती है.. देखना कोई अच्छी पोस्ट दिक्खै तो बँधवाते लाना, नमक मिर्च अँदाज़ का हो.. चटनी वाली पोस्ट सब मत बटोर लाना ।
हम का समझते नहीं हैं का जी ? हम सब समझते हैं, ब्लागिंग पर होम डिपाट नराज है । एतना बुरबक नहिंये हैं.. फिरौ टिके भये हैं । बीच बीच में ब्लागिंग का दौरा पड़िये जाता है !
अब हीन्दि में करिये चाहे अँग्रेज़ी में.. करते तो आख़िर वही है, जो दुनिया करती है.. तो पछताना काहे भाई ?
अगली बार से जब तक दिन भर क सेमिनार न हो, मत लिखना.
वैसे तो अलाने जब भी दुरदुराने लगते हैं मुझको,
मैं भिड़ जाता हूं जाकर फ़ौरन फ़िर फ़लाने से।
बहर ये है क्या?? :
फुरसतिया फुरसतिया फुरसतिया फुरसत!!
याने आखिरी वाली में एक मात्रा गिरानी थी, आप तो खुद ही गिर गये.
कठिन शब्द के अर्थ भी नीचे दिया करिये. शब्द कुछ भी हो मगर इससे गज़ल मंहगी होती है. जैसे इसमें अलाने का अर्थ दे सकते : अलाने = फलाने का भाई
खैर, गंभीर बातें फिर कभी …
अभी तो इतना ही:
बहुत मजा आया.
फ़ायदा नहीं दुकान को अब तो सजाने से ..
जय हो भोले बाबा…
बाबा समीरानंद की परवाह ना करें …
हम भी आ गए हैं इहाँ!
उल्लंघन किया है निजता का, छापामारी के बहाने से।
आपकी पुलिस ज्यादा सीधी है क्या?:)
रामराम.
————-
बहुत अच्छा लिखा। मजा आ गया (समझ गये)।
अरे भईय्या हमारे पत्नी-बच्चों को यह बात पता चल जायगी तो खटिया खडी कर देंगे. आप क्यों प्राईवेट बातों को पब्लिक में कहते फिरते हैं. कुछ गडबड हुआ तो मैं भी लिख दूँगा कि हमारे समलैंगिक “संगी” फुरसतिया हैं तो आप कुछ नहीं कह पायेंगे.
आपके आलेखों में हास्य का पुट पढ के मजा आ जाता है.
सस्नेह — शास्त्री
हिन्दी ही हिन्दुस्तान को एक सूत्र में पिरो सकती है
http://www.Sarathi.info
———————————————–
जब आप ही कहते है कि “हम तो जबरिया लिखबे यार हमार कोई का करिहै?”
फ़िर काहे कि फ़िकर भाई.
लगे रहो.
हम पढेंगे औ टिपिया के जायेंगे किसी बहाने से
और इसी बात पर एक बहर-रहित, भावना-सहित शेर बोनस में लें…(एक के साथ एक फ्री टाइप)
जब मैल बैठा हो कपड़े के साथ मन में भी
वो तो जाएगा नहीं रगड़ कर नहाने से
नीरज
हा..हा…लेकिन सचमुच मज़ा आया…अब तो ये लिखने में भी डर लगेगा, कि कहीं कोई हमें बौडम न समझ ले…
चलिए हमारा भी जिक्र हुआ इसी बहाने से |
बात ka जवाब देने का शुक्रिया दिल के तहखाने से |
ब्लोगिंग की मूल भावना बनाए रखने कि पूरी कोशिश करेंगे |
हमने देखा है कि आपको टिप्पणिया भी बिलकुल आपके अंदाज में मिलती हैं |
आपके पोस्ट की तरह मजेदार |
वही बात कि मियाँ कि जूती मियाँ का ……..
आम के आम गुठलियों के दाम |
{ Treasurer-T & S }
ब्लोगिंग में अगर ऐसी कोई समीति बने गई तो इसकी बहुत फायदे होंगे मगर फायदे के साथ साथ कुछ नुक्सान भी होंगे और पहला सबसे बड़ा नुक्सान ये होगा की ब्लोगिंग में राजनीति शुरू हो जायेगी क्योकि इसके लिए कोई भी चुनाव मतदान से होगा और जहाँ चुनाव और मतदान हो वहा राजनीति (गंदी राजनीति ) से बचना संभव नहीं है
और ब्लोगिंग में राजनीति (गंदी राजनीति) की शुरुआत कोई भी ब्लॉगर नहीं चाहेगा इस लिए मै तो आपके विचार से सहमत नहीं हूँ जी
आगे अन्य लोगों की राय जो होगी उसका अनुपालन मैं भी करने को तैयार हूँ
वीनस केसरी
sachmuch
aaj toh balle balle ho gayi……………..
abhinandan aapka !
इसे संग लिये जा रहे हैं “वैसे तो अलाने जब भी दुरदुराने लगते हैं मुझको / मैं भिड़ जाता हूं जाकर फ़ौरन फ़िर फ़लाने से”..इधर बहुत दरकार है इस वैली में।
फिर भी बहुत अच्छा लिखा। मजा आ गया (समझने से बच गये)
(समझने से बच गये लिखना है या नहीं)
“बहुत अच्छा लिखा। मजा आ गया (समझने से बच गये)”
ऐसी जबरदस्त टिप्पणी लिखने का कलेजा अपने पास है ही नहीं, क्या करें?
बड़ा लफ़ड़ा है भाई। कोई बचाओ मुझे।
फिर मजाक और हंसी के बहाने से
मालूम है आपको नहीं पसंद तारीफ
पर हम क्यों बाज आयें टिपियाने से
मुझे मत भूल जाइयेगा । जब ज्ञान काका फाइनेंस कर रहे हों तब चाय के साथ पकोड़े भी होने चाहिये । कब आ रहे हैं । इंतजार में हूं ।
लाजवाब पोस्ट । एक दम बम्फाट ।