http://web.archive.org/web/20140419213749/http://hindini.com/fursatiya/archives/670
…..और मजाक-मजाक में पांच साल निकल लिये! पांच साल ऐसे ही नहीं निकले किसी को धकिया के। पूरी शराफ़त से निकले एक , दो ,तीन , और चार को रास्ता देकर।
पांच साल से ब्लाग-मैदान में नियमित दंड पेल रहे लोग बहुत कम ही बचे हैं। रविरतलामीजी के अलावा बाकी लगभग सभी अनियमित हो गये हैं या लेखन-डायवर्जन कर गये हैं। जहां भी हैं और जिधर भी हैं उनको अपना ब्लागिंग का समय जरूर याद आता होगा। यह भी लगता है कि ये पैरोडी जिसने लिखी और जिनने उसमें और भी जोड़ा वे ब्लाग जगत में दिखते नहीं या दिखते भी हैं तो कभी-कभार!:
आज के दिन की याद रविरतलामी, देबाशीष, जीतेंद्र चौधरी, अतुल अरोरा,आलोक कुमार, पंकज नरुला, इन्द्र अवस्थी ,रमण कौल, ई-स्वामी, शैल, आशीष श्रीवास्तव , शशि सिंह, जगदीश भाटिया, सृजन शिल्पी , निठल्ले तरुण, श्रीष, बेंगाणी बन्धुओं, काकेश ,प्रियंकर, मानोशी, प्रत्यक्षा, रचना बजाज और बेजी के साथ तमाम ब्लागरों की पुरानी याद के साथ शुरू हुई! इनमें से कुछ को छोड़कर बाकी के लोग या तो भूतपूर्व हो चुके हैं या अभूतपूर्व!
जिनके नाम नहीं लिखे वे यह दावा करने का प्रयास न करें कि हम उनको भूल गये। हम सप्रमाण यह साबित कर देंगे कि हम उनको बराबर याद करते रहे लेकिन नाम इसलिये नहीं लिखा कि …….. एक कारण क्या गिनायें पचास गिना देंगे।
ठेल और रिठेल मिलाकर पांच सौ से ऊपर की पोस्ट कर डालीं इन दिनों में। साल भार में एक सौ के लगभग पोस्ट बहुत आतंकित करने वाला आंकड़ा नहीं है मेरे हिसाब से।
हां लंबाई हमारे लेख की जरूरी आतंकवादी टाइप की रही। शुरू में और अभी भी कभी-कभी। केवल नौ शब्द लिखकर हांफ़ते हुये अपनी पहली पोस्ट लिखने वाला लंबी पोस्टों के लिये बदनाम होगा ऐसा तो लिखने वाले न सोचा होगा।
लंबी पोस्टें लिखने का कारण हमने सोचा तो पता लगा कि जैसे दीवाली वगैरह में जब लोग घर की सफ़ाई करते हैं तो कोशिश करते हैं सारा कूड़ा घर के बाहर कर दें वैसेई हमारा भी फ़ुल अटेंशन इस बात पर रहता है कि जो मन में आ रहा है वो सब निकाल दो की-बोर्ड के रास्ते। अपना कूड़ा बाहर फ़ेंककर हम तो निर्द्वन्द हो जाते रहे और झेलना बेचारे पाठकों को पड़ता रहा। कई लोग तो रात को यह वायदा करके सो गये कि अभी नींद आ रही है सुबह पढ़ेंगे लेकिन वो हसीन सुबह, अक्सर, कभी नहीं आई!
हमारी हंसी-मजाक से भरपूर चिरकुटई वाली पोस्टों को भी टिपिकल फ़ुरसतिया पोस्ट से नवाजा गया अक्सर। वैसे हम सच्ची बतायें कि हमें पोस्ट करने तक नहीं पता चलता रहा कभी कि ये टिपिकल फ़ुरसतिया पोस्ट है या टिपिकल चिरकुटिया पोस्ट।रिजल्ट पोस्ट मार्टम के बाद ही पता चला।
वैसे इस हेंहें ठींठीं का फ़ायदा यह हुआ कि हमें कोई सीरियसली नहीं लेता- हमारे समेत! इसका यह फ़ायदा होता है कि जो मन में आता है पोस्ट करके फ़ूट लेते हैं। कोई क्या कर लेगा -टिपियायेगा ही तो।
जैसे बुढौती के चलते लोगों को सीनियर सिटीजनशिप अपने आप मिल जाती है वैसे ही हम पहले से की-बोर्ड काला करते रहने के कारण यदाकदा वरिष्ठ ब्लागर कहलाये जाने लगे। जो लोग की-बोर्ड पर वरिष्ठ लिखने में परेशानी महसूस करते हैं उन्होंने इसकी जगह मठाधीश ब्लागर भी कहा। कई बार लोगों ने जूते-चप्पल भी भेंट किये और लोगों ने यह भी लिखा कि हम मूढ़मति हैं तथा हमको वाक्य बनाना भी नहीं आता। हम भी शातिर लोगों की तरह इन सब सच्चाईं से मुंह फ़िराकर मन को प्रफ़ुल्लित कर देने वाली तारीफ़ की रेत में गरदन छिपाये रहे। बड़ा कूल-कूल लगता रहा।
ब्लाग जगत में अक्सर लोग इस बात से परेशान हो जाते हैं कि यहां वाद-विवाद, लात-जूता, उठा-पटक, गुट-बंदी, गाली-गलौज बहुत है। तो मेरा तो यही मानना और कहना है कि ब्लाग तो सिर्फ़ अभिव्यक्ति का माध्यम है। कोई सोनछड़ी तो है नहीं कि घुमाते ही सब लोग अच्छे-अच्छे हो जायेंगे। जो जैसा है वैसा ही तो व्यवहार करेगा। यहां किसी देवस्थान की तरह की केवल पवित्रता की आशा करना खामख्याली ही है। देवस्थान में भी उठापटक और छीछालेदर तो होती ही है।
ब्लाग जगत में बहसें और विवाद अब बहुत जल्दी दम तोड़ दे रहे हैं। कोई विवाद दो-तीन दिन से आगे खिंचता ही नहीं। दम तोड़ देता है। टेस्ट मैच का लुत्फ़ उठा चुके लोगों के लिये यह 20-20 मैच जैसा है। ज्यादा लोग शामिल भी नहीं होते विवाद में। केवल दो लोग आपस में दोपत्ती टाइप खेलते रहते हैं।
बीच में ब्लाग साहित्य है कि नहीं पर काफ़ी बहस हुई! अब यह तो इस तरह की बहस हुई कि रसोई गैस रोटी है कि नहीं। आदमी रोटी अपने विकास काल के शुरुआती दिनों से बना रहा है। रसोई गैस का प्रचलन अभी हाल के सालों में हुआ। अब आप रसोई गैस में चाय बनाव चाहे रोटी यह आपकी मर्जी पर है। लेकिन रसोई गैस की तुलना रोटी से करने का मतलब तो यही लगता है कि आपको न रोटी की समझ है न गैस की।
नये लोग आ रहे हैं। रोज आते जा रहे हैं। लेकिन ज्यादातर लोग धूमकेतु की तरह आते हैं और उसी की तरह गायब हो जाते हैं। लगातार टिककर कम ही लोग लिख पाते हैं। ऐसे लोग अपनी यादें इकट्ठा उड़ेलकर फ़ूट लेते हैं या फ़िर व्यस्त हो जाते हैं-काम से या बिना काम से।
पांच साल बीतना कोई भौत वीरता का काम नहीं रहा। जैसे पांच बीते वैसे ही सात भी बीत जायेंगे। कम-ज्यादा ठेलना तो होता रहा लेकिन हमें ई कभी नहीं लगा कि हाय टेस्ट ट्यूब खाली हो गयी, या फ़िर थक गये इसलिये योद्धा बन गये। इन ऊंची चीजों पर ज्ञान जी और समीरलाल जी का ही आधिपत्य है। उनकी चीजें, उनके इत्ते पवित्र हथियार , छूना भी हम गुनाह समझते हैं जी। उसके सुपात्र नहीं हैं जी हम!
यहां ज्ञानजी और समीरलाल का उदाहरण हमने उनकी खिंचाई करने की लिये नहीं दिया। खिंचाई करने के लिये बहाने थोड़े चहिये। इनको तो इसी तरह याद कर लिया जैसे हाल में सब कुर्सियां फ़ुल होने पर किसी वीआईपी के आने पर तखत के नीचे से दो कुर्सियां निकाल के बैठा दिया दिया जाता है वी आई पी को! वैसेइच इनकी हसीन अदायें याद आ गयीं। वैसे खतरा ये भी है कि इससे खाली मौज लेने की जगह कहीं ये अपने को वीआईपी न समझने लगें।
अपन तो ऐसेइच ठेलते रहेंगे जबरिया। हमार कोई का करिहै!
…और ये फ़ुरसतिया के पांच साल
By फ़ुरसतिया on August 20, 2009
पांच साल से ब्लाग-मैदान में नियमित दंड पेल रहे लोग बहुत कम ही बचे हैं। रविरतलामीजी के अलावा बाकी लगभग सभी अनियमित हो गये हैं या लेखन-डायवर्जन कर गये हैं। जहां भी हैं और जिधर भी हैं उनको अपना ब्लागिंग का समय जरूर याद आता होगा। यह भी लगता है कि ये पैरोडी जिसने लिखी और जिनने उसमें और भी जोड़ा वे ब्लाग जगत में दिखते नहीं या दिखते भी हैं तो कभी-कभार!:
ब्लॉगिंग बिना चैन कहां रेSSSपांच साल की तमाम यादें रहीं। तमाम पोस्टें ठेल डालीं। उनमें से अच्छी , बहुत अच्छी और सबसे अच्छी छांटना कूड़े में कूड़ा छांटना जैसा होगा।
कॉमेन्टिंग बिना चैन कहां रेSSS
सोना नहीं चांदी नहीं, ब्लॉग तो मिला
अरे ब्लॉगिंग कर लेSSS
आज के दिन की याद रविरतलामी, देबाशीष, जीतेंद्र चौधरी, अतुल अरोरा,आलोक कुमार, पंकज नरुला, इन्द्र अवस्थी ,रमण कौल, ई-स्वामी, शैल, आशीष श्रीवास्तव , शशि सिंह, जगदीश भाटिया, सृजन शिल्पी , निठल्ले तरुण, श्रीष, बेंगाणी बन्धुओं, काकेश ,प्रियंकर, मानोशी, प्रत्यक्षा, रचना बजाज और बेजी के साथ तमाम ब्लागरों की पुरानी याद के साथ शुरू हुई! इनमें से कुछ को छोड़कर बाकी के लोग या तो भूतपूर्व हो चुके हैं या अभूतपूर्व!
जिनके नाम नहीं लिखे वे यह दावा करने का प्रयास न करें कि हम उनको भूल गये। हम सप्रमाण यह साबित कर देंगे कि हम उनको बराबर याद करते रहे लेकिन नाम इसलिये नहीं लिखा कि …….. एक कारण क्या गिनायें पचास गिना देंगे।
ठेल और रिठेल मिलाकर पांच सौ से ऊपर की पोस्ट कर डालीं इन दिनों में। साल भार में एक सौ के लगभग पोस्ट बहुत आतंकित करने वाला आंकड़ा नहीं है मेरे हिसाब से।
हां लंबाई हमारे लेख की जरूरी आतंकवादी टाइप की रही। शुरू में और अभी भी कभी-कभी। केवल नौ शब्द लिखकर हांफ़ते हुये अपनी पहली पोस्ट लिखने वाला लंबी पोस्टों के लिये बदनाम होगा ऐसा तो लिखने वाले न सोचा होगा।
लंबी पोस्टें लिखने का कारण हमने सोचा तो पता लगा कि जैसे दीवाली वगैरह में जब लोग घर की सफ़ाई करते हैं तो कोशिश करते हैं सारा कूड़ा घर के बाहर कर दें वैसेई हमारा भी फ़ुल अटेंशन इस बात पर रहता है कि जो मन में आ रहा है वो सब निकाल दो की-बोर्ड के रास्ते। अपना कूड़ा बाहर फ़ेंककर हम तो निर्द्वन्द हो जाते रहे और झेलना बेचारे पाठकों को पड़ता रहा। कई लोग तो रात को यह वायदा करके सो गये कि अभी नींद आ रही है सुबह पढ़ेंगे लेकिन वो हसीन सुबह, अक्सर, कभी नहीं आई!
हमारी हंसी-मजाक से भरपूर चिरकुटई वाली पोस्टों को भी टिपिकल फ़ुरसतिया पोस्ट से नवाजा गया अक्सर। वैसे हम सच्ची बतायें कि हमें पोस्ट करने तक नहीं पता चलता रहा कभी कि ये टिपिकल फ़ुरसतिया पोस्ट है या टिपिकल चिरकुटिया पोस्ट।रिजल्ट पोस्ट मार्टम के बाद ही पता चला।
वैसे इस हेंहें ठींठीं का फ़ायदा यह हुआ कि हमें कोई सीरियसली नहीं लेता- हमारे समेत! इसका यह फ़ायदा होता है कि जो मन में आता है पोस्ट करके फ़ूट लेते हैं। कोई क्या कर लेगा -टिपियायेगा ही तो।
जैसे बुढौती के चलते लोगों को सीनियर सिटीजनशिप अपने आप मिल जाती है वैसे ही हम पहले से की-बोर्ड काला करते रहने के कारण यदाकदा वरिष्ठ ब्लागर कहलाये जाने लगे। जो लोग की-बोर्ड पर वरिष्ठ लिखने में परेशानी महसूस करते हैं उन्होंने इसकी जगह मठाधीश ब्लागर भी कहा। कई बार लोगों ने जूते-चप्पल भी भेंट किये और लोगों ने यह भी लिखा कि हम मूढ़मति हैं तथा हमको वाक्य बनाना भी नहीं आता। हम भी शातिर लोगों की तरह इन सब सच्चाईं से मुंह फ़िराकर मन को प्रफ़ुल्लित कर देने वाली तारीफ़ की रेत में गरदन छिपाये रहे। बड़ा कूल-कूल लगता रहा।
ब्लाग जगत में अक्सर लोग इस बात से परेशान हो जाते हैं कि यहां वाद-विवाद, लात-जूता, उठा-पटक, गुट-बंदी, गाली-गलौज बहुत है। तो मेरा तो यही मानना और कहना है कि ब्लाग तो सिर्फ़ अभिव्यक्ति का माध्यम है। कोई सोनछड़ी तो है नहीं कि घुमाते ही सब लोग अच्छे-अच्छे हो जायेंगे। जो जैसा है वैसा ही तो व्यवहार करेगा। यहां किसी देवस्थान की तरह की केवल पवित्रता की आशा करना खामख्याली ही है। देवस्थान में भी उठापटक और छीछालेदर तो होती ही है।
ब्लाग जगत में बहसें और विवाद अब बहुत जल्दी दम तोड़ दे रहे हैं। कोई विवाद दो-तीन दिन से आगे खिंचता ही नहीं। दम तोड़ देता है। टेस्ट मैच का लुत्फ़ उठा चुके लोगों के लिये यह 20-20 मैच जैसा है। ज्यादा लोग शामिल भी नहीं होते विवाद में। केवल दो लोग आपस में दोपत्ती टाइप खेलते रहते हैं।
बीच में ब्लाग साहित्य है कि नहीं पर काफ़ी बहस हुई! अब यह तो इस तरह की बहस हुई कि रसोई गैस रोटी है कि नहीं। आदमी रोटी अपने विकास काल के शुरुआती दिनों से बना रहा है। रसोई गैस का प्रचलन अभी हाल के सालों में हुआ। अब आप रसोई गैस में चाय बनाव चाहे रोटी यह आपकी मर्जी पर है। लेकिन रसोई गैस की तुलना रोटी से करने का मतलब तो यही लगता है कि आपको न रोटी की समझ है न गैस की।
नये लोग आ रहे हैं। रोज आते जा रहे हैं। लेकिन ज्यादातर लोग धूमकेतु की तरह आते हैं और उसी की तरह गायब हो जाते हैं। लगातार टिककर कम ही लोग लिख पाते हैं। ऐसे लोग अपनी यादें इकट्ठा उड़ेलकर फ़ूट लेते हैं या फ़िर व्यस्त हो जाते हैं-काम से या बिना काम से।
पांच साल बीतना कोई भौत वीरता का काम नहीं रहा। जैसे पांच बीते वैसे ही सात भी बीत जायेंगे। कम-ज्यादा ठेलना तो होता रहा लेकिन हमें ई कभी नहीं लगा कि हाय टेस्ट ट्यूब खाली हो गयी, या फ़िर थक गये इसलिये योद्धा बन गये। इन ऊंची चीजों पर ज्ञान जी और समीरलाल जी का ही आधिपत्य है। उनकी चीजें, उनके इत्ते पवित्र हथियार , छूना भी हम गुनाह समझते हैं जी। उसके सुपात्र नहीं हैं जी हम!
यहां ज्ञानजी और समीरलाल का उदाहरण हमने उनकी खिंचाई करने की लिये नहीं दिया। खिंचाई करने के लिये बहाने थोड़े चहिये। इनको तो इसी तरह याद कर लिया जैसे हाल में सब कुर्सियां फ़ुल होने पर किसी वीआईपी के आने पर तखत के नीचे से दो कुर्सियां निकाल के बैठा दिया दिया जाता है वी आई पी को! वैसेइच इनकी हसीन अदायें याद आ गयीं। वैसे खतरा ये भी है कि इससे खाली मौज लेने की जगह कहीं ये अपने को वीआईपी न समझने लगें।
अपन तो ऐसेइच ठेलते रहेंगे जबरिया। हमार कोई का करिहै!
भुवनेश:लख लख शुक्रिया।
मन में तो जन्मदिन जैसे शब्द कहने के विचार आ रहे हैं पर उसे बमुश्किल थाम रहा हूँ.
“कई लोग तो रात को यह वायदा करके सो गये कि अभी नींद आ रही है सुबह पढ़ेंगे लेकिन वो हसीन सुबह, अक्सर, कभी नहीं आई!”
बेदर्दी पाठक क्या जानें, कहाँ कहाँ कौन कौन आस लगाये रहता है.
मस्ती एक तरफ़, आप यूँ ही लिखते रहें.
कौतुकजी:मन की बात मन में नहीं रखनी चाहिये। कह देनी चाहिये। आप हमारा दर्द समझे इसके लिये शुक्रिया। लिखते तो रहेंगे इंशाअल्लाह!
सैयद अकबर जी, बहुत बहुत शुक्रिया।
मेरी तरफ़ से ढेरों बधाइयां लीजिये और शुभकामनाएं भी!
सादर
अशोक पाण्डे
अशोक जी: अवांगार्द वाली बात तो अच्छी लगती है लेकिन पांच साल हमने और लोगों ने भी मुझे आवारागर्द की ही/भी नजरों से देखा। आगे जाने वाली बधाइयों और शुभकामनाओं के लिये शुक्रिया।
बिलकुल अद्वितीय है जी — बधाई पंचम वर्ष पूर्ण करने पर
आगे …आगे देखिये होता है क्या …ऊर्जा से भरपूर लेखन जारी रहे
– सादर, स – स्नेह,
- लावण्या
लावण्याजी: आपके स्नेह, शुभकामनाओं और बधाई के लिये शुक्रिया।
बहुत बहुत बधाई एवं ऐसेइच लिखते रहें, इस हेतु शुभकामनाऐं.
वी आई पी सीट पर बैठकर बधाई देने का आनन्द भी अपना एक अलग ही आनन्द है.
समीरलालजी: जिस बात का डर था वही हो लिया। सच में खुद को वीआईपी समझ लिये। शुक्रिया शुभकामनाओं के लिये।
समीरलालजी: इस्माइली में तीन-चार और स्माइली अटैच करके रिटर्न कर रहे हैं। जहां कुछ समझ न आया करे वहां लगा लिया करें!
ई सूखा सूखा ..सेलीब्रेशन…इहाँ सरकार का पांच हफ्ता पूरा होता है ….तो श्वेत पत्र जारी हो जाता ..और ई ब्लॉगजगत में पांच साल तक कुण्डली मार के बैठना कौनो आसान काम है का..ऊपर से सुने हैं..न तो कभी किसी विवाद में फंसे….न ही कभी टंकी पर चढ़े..न ही कौनो को गरियाए..एकदम ओतने सेफ रोल में रहे ..जेतना रामायण में शत्रुघ्न रहे थे…
फुरसतिया कहिये, चिरकुटिया कहिये…झत्पतिया कहिये , खतपतिया कहिये …मुदा ..दिल पर तो राज करिए रहे हैं आप….
ई यात्रा तो अभी शुरू हुई है ..साल ऊल का मुबारकबाद नहीं देंगे..एगो ख़ास गुजारिश है..जब हमरा बिटवा ब्लॉग्गिंग करेगा न अपना जवानी में ..तब ऊको पढ़े के तनिक टिपिया दीजियेगा…आर्शीवाद हो जाएगा ओकरे लिए..
बंकिया प्रणाम ..
अजय झाजी: जय हो! टंकी-शंकी पर चढ़ना बड़े लोगों का काम है। हम ऐसे ही मस्त रहते रहे। बकिया आपके बेटवा के ब्लाग पर अभी टिपिआये देते हैं। बनाइये तो सही! का ऊ खुदै बनायेगा घर में बाप ब्लागर के रहते!
हेमजी: शुक्रिया।
बधाई।
विजय गौर: बधाई शब्द छोटा भले है लेकिन मतलब कित्ते बड़े हैं। शुक्रिया।
पांच साल मजाकै मजाकै में निकल गया ………….यहाँ तो जिन्दगी ही मजाक हुई जा रही है
एक सवाल है (जब सबको जवाब दिए हैं तो हमको भी जवाब चाहिए) आप गजल और बहर से इत्ता घबराते कहे हैं ???
हमको शंका है इसका जवाब भी मजाकै मजाकी में दीजियेगा …….
आज की हमारी आधी ब्लोगिंग तो समीर जी की पोस्ट पढने उन पर आये कमेन्ट पढने, कमेन्ट करने, आपकी पोस्ट पढने, कमेन्ट पढने और कमेट करने में ख़तम हो गई
वीनस केसरी
वीनस भाई: जिन्दगी मजाक में गुजरने वाली बात बड़ा अच्छा मजाक है!
हम गजल से घबराते नहीं , बहर से घबराते हैं। सच तो यह है कि घबराते कम बिदकते ज्यादा हैं। मेरी समझ में बहर का गाना गाकर गजल लिखने वाले गजल के प्रति लगाव कम आतंक ज्यादा पैदा करते हैं। वैसे आप लोग बहर में गजल लिखते हैं तो अच्छा लगता है और हम बिना बहर की तमीज के उसकी तारीफ़ भी करते हैं। हमें बहर की समझ नहीं है और न ही उसको सीखने की ललक पैदा कर पाये। इसका कारण शायद अनुशासन से बिदकने की सहज मन:स्थिति है।
समीरजी के लेख तो मास्टरपीस होते हैं। गजल के भी वे उस्ताद हैं। उनकी पोस्ट पढ़ने और टिपियाने में तो आपको बहुत पुण्य लाभ हुआ होगा। थोड़ा सा पुण्य क्षय हमारे इधर हो गया तो कोई बात नहीं। समीरजी की पोस्ट पढ़कर फ़िर अर्जित कर लीजियेगा।
टिपियाने और बधाई देने के लिये हार्दिक शुक्रिया।
अजितजी: शुक्रिया। आप तो ऐसा काम कर रहे हैं कि वो अकेला काम पचास के मुकाबले भारी है। हम तो खाली ऐं-वैं फ़ुरसतिया फ़ोकटिया खटखटाते रहे। जै हो!
आभाजी: शुक्रिया। पचास साल वाली बधाई के लिये एडवांस में शुक्रिया।
नियमित रूप से पाँच साल तक लिखने के साथ-साथ लगातार आपने टिप्पणियाँ भी बाँटी है. इसलिए ये कुछ ज़्यादा ही बड़ी उपलब्धि है.
हिन्दी ब्लागर: शुक्रिया। आपके लेखन की अनियमितता और लंबा अंतराल अखरता है।
चिट्ठाकारों में विवादो का भाई चारा हमेंशा देखने को मिला है यही कारण है कि अभी भी प्रेम बरकरार है। चेगेड़े जैसी उपधिया आज भी हंसी दिला ही देती है।
प्रमेंन्द्र: शुक्रिया। पुरानी यादे तो बहुत सारी हैं। चेंगड़े वाली भी !
नितिन: शुक्रिया! बस फ़ुरसतिया तो चालू आहे!
यह करीने से लगा बगीचा यहां आपके ब्लॉग पर दिख जाता है , अब इसी पोस्ट को ही लें – पांच साल की टिचन्न चर्चा कर दिये हैं और सब को समेटते हुए अब भी पानी वाला पाईप लेकर छडे हैं कि कहीं कोई पौधा छूट तो नहीं गया जलमग्न करने से
पांच साल पूरे होने पर घणी बधाई।
सतीश जी: घणी बधाई के लिये घणा शुक्रिया। हम भी सिंच रहे हैं आपकी शुभकामना जल से!
मौज मौज में ही इत्ता बखत बीत गया।
अभी और झाड़े रहो।
मसिजीवी: शुक्रिया! मौज तो चलती ही रहेगी।
आपसे बहुतों को प्रेरणा मिलती है !!
सतीश सक्सेना जी: शुक्रिया। अपने बहुत साथियों से हम भी न जाने क्या -क्या ले लेते हैं !
ये समझो कि आपने ब्लॉग्गिंग की मास्टर्स डिग्री हासिल कर ली | गुरु हो गए आप अब हम बच्चों के
प्रवीन भाई: शुक्रिया। बड़ा खतरनाक काम है स्मार्ट लोगों के गुरूजी बनना!
प्रवीन भाई: फोटॊ आपकी ज्यादा हसीन है शायद इसीलिये न आती हो। वैसे स्वामीजी से कह देंगे हम देखने के लिये।
अरे पंचायती भाई: शुक्रिया। चाय वाली पोस्ट को हिन्दी में देखकर बहुत अच्छा लगा। डबल शुक्रिया।
आपको तीन साल पहले मैंने ऐसे ही हिंदी ब्लॉग्गिंग का भीष्म पितामह नहीं कहा था! मुझे याद आता है, आपको “अमिताभ बच्चन” और “सचिन तेंदुलकर” भी कहा गया है.
ठेलने का यह निराला अंदाज़ सतत जारी रहे!
सृजन शिल्पी: शुभकामनाओं के लिये शुक्रिया। भीष्म पितामह, अमिताभ बच्चन और सचिन तेंदुलकर तो ठीक है भाई लेकिन तुम्हारा लिखना म और टिपियाना कम हो गया। फ़िर से आओ मैदान में यार!
…और मैंने तो बताया ही था ..जब रात्रि में मेरी भयानक हंसी से ध्वनि प्रदुषण होता है ..घर वाले कहते हैं फुरसतिया जी को पढ़ रही होगी
लवली: शुक्रिया। ध्वनि प्रदूषण के चलते प्रभावित होता है। आगे आने वाले दिनों में लगता है हमारी खैर नहीं।
अब तक तो पाण्डु, द्रोण और कुंती का काल देखे हैं। असली कौरव पाण्डव तो अब ही मैदान में आए हैं। इनके साथ भी गुथमगुत्था होने का सुख आपको मिल रहा है। कृष्ण भक्तों से लेकर राहू केतू तक हर तरह के व्यक्तित्व मैदान में हैं। आपने इन सबको लंगोटी में घूमते देखा है और अब मल्ल में उलझे भी देख रहे हैं। समीक्षा के लिए आपकी भूमिका महत्वपूर्ण होती जा रही है। लम्बी पोस्टों की तुलना भीष्म पितामह की दाढ़ी से की जा सकती है। और लगातार ब्लॉंगिंग की प्रतिज्ञा महाभारत के अंत तक चलेगी। ऐसा लगता है।
ई वेदव्यास ने आपको संजय का नेत्र यानि चिठ्ठा चर्चा भी दे दिया है। सो इस ब्लॉग अखबार की महती जिम्मेदारी भी आपके है।
इन सबको देखते हुए कहा जा सकता है कि पचासवें साल में आपकी जो पोस्ट होगी उसमें एक हजार से अधिक कमेंट आ सकते हैं। अब तक की उपलब्धि के लिए हृदय से बधाई और अगले पैंतालीस साल के लिए शुभकामनाएं…
सिद्धार्थ जोशी: शुक्रिया। आप ज्योतिष के ज्ञाता हैं। पचास साल वाली आपकी बात सुनकर गुदगुदी हो रही है।
रंजनजी: शुक्रिया। जमे हैं! आज्ञानुसार!
हम बधाई की टोकरियाँ भर भर के लाते रहेंगे आप साल पे साल बढाते रहो…
नीरज
देर से आने का कारण उम्र है भाई…अब इतनी तेज नहीं दौड़ा जाता…सोचा जब सब निपट चुकेंगे तब बधाई दे आयेंगे…बधाई कौन रसमलाई है जो देर से दी तो ख़राब हो जायेगी…बल्कि शराब की बोतल है…जितनी देर से देंगे उतनी ही देर तक सरूर में रक्खेगी…: :))
नीरजजी: आपकी बधाई तो मैंने पहले ही ले ली थीं। आपने तो खाली आकर रेगुलराइज करा दिया मामला। सो देरी का मामला खल्लास। आपकी सारी बधाइयां हम धरे हैं। हर साल किस्तों में और ब्याज सहित वापस करते रहेंगे। हमारी इस पांच साला यात्रा में आपकी गजलों का भी बहुत हाथ रहा जिनकी पैरोडियां मैंने लिखीं। उनके लिये भी शुक्रिया।
सुरेशजी: शुक्रिया! आप भी पांच साल जल्द ही पूरा करेंगे। एक, दो, तीन.चार करते हुये। मिठाई जब आप कहें खिला देंगे।
आशीष: शुक्रिया। थैंक्यूजी!
जितेन्द्र भगत: बधाई के लिये हार्दिक शुक्रिया बिरादर!
आप तो लेखन, विशेष रूप से व्यंग्य के प्रेरणा स्रोत हैं।
बधाइयाँ और शुभकामनाएँ।
अतुल शर्मा: शुक्रिया। ये पंच लाइन ईस्वामी ने हमारे एक से लेकर तय की थी। इसलिये इसका पूरा ईस्वामीजी को ही जाता है। आप पढ़ते रहें यही मेरे लिये बहुत है। टिप्पणियां कोई आवश्यक नहीं है। करी करी न करी।
वीनस केसरी
वीनस: अभी तो और मिलेंगी स्माइली! :):)
मेरी ओर से बधाई के साथ-२ अगले पाँच साल के लिए शुभकामनाएँ टिका लें। जब तक ऐसा लगता रहेगा कि कल ही शुरुआत किए थे तब तक ताज़गी बनी रहेगी और हम पाठक लोग आपकी लेखनी का रसपान करते रहेंगे।
अमित: शुक्रिया! जीतू गोलीबाज है। तुम्हारी शुभकामनायें तो टिका लीं। वैसे यह सच है कि लगता है कि कल ही लिखना शुरू किया।
मीनाक्षीजी: आपका शुक्रिया। अब बस जल्दी बेटे को ठीक करके आइये ब्लाग मैदान में खूब लिखने के लिये।
रामराम, जय हो में तबदील हुआ है। नये के साथ क़दमताल मिलाने में कुछ नाम भूलते अवश्य हैं (५० में से एक कारण)
आपकी लंबी पोस्ट नहीं पर पोस्टस का इंतज़ार तो आज भी रहता है। इसी तरह और ५ साल भी देखते-देखते यूँ ही फ़ुर्सत में पूरे हो जायें, यही कामना है।
मानसी: शुक्रिया! कम से कम तुम तो ई आरोप नहिऐं लगाओ कि हम भूल गये। ब्लाग जगत में बहुत कम लोग हैं जो हमारी खराब पोस्ट को खराब पोस्ट कहते हैं। तुम उन कुछ लोगों में हो जो ऐसा कहती हो। आगे के साल भी ऐसेइच गुजरेंगे।
अभिषेक: शुक्रिया। होगा नोबेल-सोबेल ब्लागिंग में भी होगा। कभी न कभी!
आज ना छोड़ेंगे
निश्चित तौर पर हिंदी ब्लॉगिंग के खट्टे-मीठे अनुभवों का खजाना है आपके पास। जो गाहे बेगाहे झलकता रहता है आपके फुरसतिया लेखन में
निरंतरता बनी रहे, शुभकामनाएँ
बधाई के साथ
यही तो सबसे मुश्किल बात है ….मज़ाक मज़ाक में बहुत कुछ कह -सिखा जाना
जैसे आप बहुत कुछ कह जाते हैं ..:))
बहुत खूब..आप लिखते रहें इसी तरह
बधाई !!
पाँच साल….सोच कर ही सिहर उठता हूँ। अपना तो एक साल ही गुजरा और लगने लगा कि एक जमाने से ब्लौगिया रहे हैं। कितनों को झेला होगा आपने भी…!!!
चरैवेति ! चरैवेति!!
अब आज कोई बीस दिन बाद इन्टरनेट के दर्शन मोबाइल से इतर कहीं हुए तो सोचा की हम भी अहसान जता आयें की भूलना मत हम भी पढ़ते हैं
अब अहसान मानिए या ना मानिये जनता तो जान ही जायेगी
badhiyan humari taraf se..