http://web.archive.org/web/20140419215431/http://hindini.com/fursatiya/archives/2195
डा.अमर कुमार पिछले हफ़्ते हमसे हमेशा के लिये विदा
हो गये। उनको गये हफ़्ता होने को आया लेकिन यकीन नहीं होता कि वे अब हमारे
बीच नहीं रहे। इस बीच उनकी कई पोस्टें पढ़ीं। उनकी टिप्पणियां पढ़ीं। उनका इंटरव्यू पढ़ा। हर बार ऐसा लगा कि यहीं किसी मोड़ पर वे आकर कुछ ऐसा टिपियायेंगे जिससे लगेगा कि हां डा.साहब आ गये कोरम पूरा हुआ।
डा.अमर कुमार से पिछले तीन-चार साल से ब्लाग/टिप्पणियों और मेल के माध्यम से नियमित-अनियमित साथ बना रहा। शुरुआत के कुछ दिन बाद अक्सर फोन पर भी बातचीत होती रहती थी। कानपुर में उनकी पढ़ाई-लिखाई होने के चलते वे यहां के बोली-बानी और जुगराफ़िये से भली-भांति परिचित थे। शायद यही कारण रहा होगा कि वे हमारी पोस्टों, खासकर जिनका अंदाज कनपुरिया रहता था, कुछ पसंद करने लगे और बेलौस टिपियाते भी थे।
हमारे ब्लागिंग में आये तीन साल हो चुके थे तब डा.साब आये इस आभासी दुनिया में। उनकी बेबाक टिप्पणियों की चर्चा करते हुये एक चिट्ठाचर्चा में मैंने लिखा:
डा.अमर कुमार बेहतरीन जिंदादिल और उदारमन के बड़े दिलवाले इंसान थे। बहुत पढ़ाई लिखाई किये थे। कई भाषायें जानते थे। उर्दू जानने वालों को कभी-कभी उर्दू में टिपियाते थे। लिखाई-पढ़ाई की रेंज बहुत थी। एच.टी.एम.एल. सीखकर अपने ब्लाग का कलेवर बदलते रहते थे। तमाम तरह के हटमल प्रयोग वे अपने ब्लाग पर करते थे।
ब्लागजगत में डा. साहब का स्नेह बहुत लोगों को मिला। ब्लागजगत में वे भले एक बेबाक और कभी-कभी मुंहफ़ट से लगते थे लेकिन व्यक्तिगत व्यवहार में वे सभी के प्रति बेहद उदार, गर्मजोश थे। उनके व्यवहार से तमाम लोगों को यह एहसास होता था कि वे उनके बहुत खास हैं। यह उनकी खूबी थी। उनकी सहज उदारता और आत्मीयता एक साथ कई लोगों को एहसास दिलाने में सक्षम थी कि वो डा.साहब के बहुत नजदीक हैं।
डा.अमर कुमार हौसला लोगों की आफ़जाई में करने में बहुत उदार थे। जर्रे को आफ़ताब बताने में भी हिचकते नहीं थे। मुझे अभी भी यह सपना सरीखा लगता है कि वे कभी मुझसे कहा करते थे – गुरुदेव, जब मैं आपका लिखा पढ़ता हूं तो मेरा मन आपसे मिलने का होता है। मैं एक बार आपको छुकर देखना चाहता हूं। मुझे इस बारे में कोई शंका नहीं है कि वे इस तरह की हौसला आफ़जाई और तमाम साथियों की करते रहे होंगे। लोगों की खूबियां पहचानकर उसकी तारीफ़ करके स्नेह जताने का उनका अपना अंदाज था।
डा.साहब जिनसे स्नेह रखते थे उनके प्रति बेहद आत्मीय, उदार और अनौपचारिक
हो जाते थे। उनका लगाव उमर दूरियां पाट देता था। आधिकारिक अंदाज। पिछले
साल की ही बात है। हम ( मैं और कुश) लोग कुशीनगर से लौट रहे थे। कुश ने
उनको फ़ोन करके जयपुर के लिये बस की टिकट बुक कराने के लिये कहा। उन्होंने
टिकट तो जयपुर के लिये बुक करा दिया लेकिन कुश से कहा कि पहले रायबरेली
में मुलाकात करके तब जयपुर जायें। कुश और मैं दो दिन से बाहर थे। तुरंत घर
लौटना चाहते थे। डा.साहब से अनुमति लेकर और फ़िर मिलने का वायदा करके वापस
चले आये। डा.साहब ने अपनी पकड़ें उदारतापूर्वक छोड़ दीं।
लेकिन अब उनके चले जाने के बाद उनसे मिले बिना घर वापस चला जाना अफ़सोस के
खाते में दर्ज हो गया- हमेशा के लिये।
अमर कुमार जी ब्लागजगत में काफ़ी देरी से आये। उनके पास कहने को बहुत कुछ था। इसलिये वे टिपियाते जमकर थे। देरी से लिखना शुरु करने की भरपाई वे जमकर टिपियाने और कई ब्लाग बनाकर लिखकर करते थे। अक्सर उनकी टिप्पणियां अमूर्त हो जातीं थीं। बहुतों को समझने में परेशानी होती थी। काफ़ी विद टू होस्ट में उन्होंने अपने बारे में काफ़ी कुछ कहा है। वे कहते हैं:
डा.साहब चिट्ठाचर्चा के नियमित पाठक, प्रशंसक, आलोचक और खैरख्वाह थे। अपनी एक पोस्ट में उन्होंने लिखा -सुबह सुबह अख़बार पढ़ दिन ख़राब करने से बेहतर लत है, चिट्ठाचर्चा !
कुछ दिन चर्चा न होने पर उलाहना आ जाता था कि चर्चा क्यों नहीं हो रही है जी! चिट्ठाचर्चा में माडरेशन के सख्त खिलाफ़ थे वे। यह खिलाफ़त वे सरेब्लाग जाहिर भी करते रहते थे। चर्चा का पुरजोर विरोध भी करते थे। चिट्ठाचर्चा जब अपने ब्लागस्पाट से हटकर अपने डोमेन पर आ गयी तब भी टेम्पलेट के लफ़ड़े के चलते टिप्पणियां माडरेट करनी पड़ रहीं थीं जबकि माडरेशन हटाया हुआ था। व्यस्तता के चलते कुश से हुआ नहीं तो मैंने उनसे कहा- आपको चिट्ठाचर्चा के एडमिन अधिकार भेज रहे हैं। इसका माडरेशन हटाइये। इस पर वे बोले- गुरू हमको चर्चा में फ़ंसा रहे हो? बहरहाल बाद में टेम्पलेट बदला गया और अब चिट्ठाचर्चा में टिप्पणियां माडरेट नहीं करनी पड़ती लेकिन तब तक डा.साहब का ब्लागिंग से संपर्क सिर्फ़ पढ़ने का रह गया था शायद! अब डा.अमर कुमार नहीं हैं टिपियाने के लिये। शायद उलाहना देते हुये कह रहे हों- क्या गुरू हमारे जाते ही माडरेशन हटा दिया।
भाषा के मामले में वे आलराउंडर थे। ज्यादातर बोलचाल की भाषा में अपने को अभिव्यक्त करते। टिप्पणियों में अवधी/भोजपुरी और अन्य बोलियों का पल्ला थाम लेते। कभी-कभी चिट्ठाचर्चा में कविताजी के द्वारा प्रयुक्त भाषा के इस्तेमाल पर वे अपनी तरह से चुहल करते। लेकिन हमेशा फ़िर पलटकर या अगली टिप्पणी में ही वे उनकी मुक्तमन से तारीफ़ करके हिसाब बराबर कर देते। वे यह जाहिर भी करते चलते- कि यह जनभाषा हमका पसंद है वैसे हम कौनौ कम साहित्यिक नाईं हन!
अमरकुमार जी किसी से बहुत दिन तक नाराज नहीं रह पाते थे। संवादहीनता की स्थिति से जल्द से जल्द उबरने की कोशिश करते थे। इस मामले में वे बड़े दिल के आदमी थे। सामने वाले की गलती भूलकर अपनी तरफ़ से संवादहीनता खतम कर लेते थे। जब कोई उनकी टीप से ‘आहत’ होकर कोप-भवन में बैठा होता हो तब डॉ. साहब कोई बात ऐसी कह देते जिससे या तो वह झल्ला जाता या ऐसी गुदगुदी मचाते कि वह बरबस ही सहज हो जाता। परिणाम चाहे जो हो लेकिन ‘संवादहीनता को ख़त्म करने की उनकी ‘साज़िश’ सफल हो जाती थी’! उनकी नाराजगी का पैमाना यह था कि जिसके नाराज होते उसके प्रति ज्यादा औपचारिक हो जाते।
अपने साथ जुड़े लोगों की खैरखबर भी वे लेते रहते थे। पिछले दिनों खुशदीप ने एक बार फ़िर जब ब्लागिंग को अलविदा कहा तो उस समय (इलाज के बाद )उनके बोलने पर पाबंदी थी। उन्होंने मुझसे एस.एम.एस. करके कहा कि मैं खुशदीप को ब्लागिंग छोड़ने से रोकूं। मैंने डा.साहब का संदेशा और अनुरोध खुशदीप को बताया। बाद में जब खुशदीप ने फ़िर से ब्लाग लिखना शुरु कर दिया तो फ़िर डा.साहब ने मुझे शुक्रिया संदेश भेजा जैसे मेरे कहने पर ही खुशदीप वापस लिखने लगे हों।
डा.साहब कभी तटस्थ नहीं रहे। इस तरफ़ या उस तरफ़ या फ़िर किसी और तरफ़। लेकिन ऐसा कभी नहीं हुआ कि कोई बात छिड़े और उनका कोई मत न हो। वे जमकर बहसियाते थे। बहस करने में भाषा का संयम उन्होंने कहीं नहीं खोया और न बहस में व्यक्तिगत हमले कभी किये। अपनी बात रखने में उन्होंने कभी यह नहीं देखा कि इससे कौन नाराज होगा और कौन खुश लेकिन मोटा-मोटी वे कमजोर के पक्ष में अपने तर्क रखने को ज्यादा तरजीह देते। अब यह अलग बात है कि कुछ ऐसे ही लोगों ने उनसे नाराज होकर उनके खिलाफ़ न जाने क्या-क्या कहा। उनको अपने ब्लाग पर बैन तक किया। लेकिन डा.अमर इससे बेपरवाह रहे।
लोग उनकी इस बेबाकी और साफ़गोई का चतुराई से इस्तेमाल भी करते थे। कहीं
मामला फ़ंसा तो डा.साहब के दरबार में शरणागत अर्जी धांस दी। डा.साहब फ़ौरन
शरणागतवत्सल होकर उसकी रक्षा करने निकल पड़ते। लेकिन बात समझने में आने पर
वे अपने को सही भी करने में बहुत देर नहीं लगाते थे।
अपनी मां के बारे उन्होंने जो पोस्ट लिखी है वह एक ऐसे बेटे की अद्भुत पोस्ट है जो मां और बुजुर्गों के बारे में अश्रुविगलित पोस्टें नहीं लिखता लेकिन अपनी अम्मा को नर्सों के सहारे छोड़ने की बजाय खुद उनकी सेवा करना जानता है।
न जाने कितनी यादें हैं डा.अमर कुमार जी के साथ की। मैं उनसे कभी मिला नहीं लेकिन कभी ऐसा लगा नहीं कि उनसे मुलाकात नहीं है। उनके जाने के एक सप्ताह बाद भी लगता है कि अभी कोई मेल उनके यहां से आयेगी जिसमें उलाहना होगा कि बहुत दिन से मैंने कुछ लिखा क्यों नहीं! मेरे ब्लाग पर वे अलग-अलग नामों से टिपियाते थे। लेकिन उनके अंदाज से ही मैं यह समझ जाता था कि यह टिप्पणी डा.अमर कुमार की ही है।
उनके जाने के बाद उनके ब्लाग की तमाम पोस्टें मैं फ़िर से पढ़ीं। पिछले जन्मदिन पर लिखी उनकी पोस्ट, तेल का दाम बढ़ने पर बनाया गया एनीमेशन (जो कि जी न्यूज वालों उनके ब्लाग से लिया लेकिन उनका नाम पचा गये ), बीमारी से उबरने पर ब्लागिंग में लौटने की खबर देने वाली पोस्ट और भी न जाने कितनी पोस्टें उनकी जिंदादिली और खिलंदड़ेपन की अद्भुत मिसाल हैं।
डा.अमर कुमार की एक पोस्ट का शीर्षक है-चले जाना नहीं होश उड़ाय के। यह बात उन्होंने अपने मामले में नहीं निभाई और हमारे होश उड़ा के चले गये। उनके जाने पर रमानाथ अवस्थी जी की कविता याद आती है:
समय की नदी में शायद हमारा उनका साथ इतना ही बदा हो। लेकिन मुझे अभी भी यह विश्वास नहीं होता कि वह बेहतरीन इंसान अब हमारे बीच नहीं है जो हमारे प्रति इतना स्नेह रखता था कि हमको छूकर देखने की बात कहता था। ( ऐसा सोचने वाला मैं अकेला नहीं हूं शायद। न जाने कितने स्नेह भाजन हैं डा.साहब के जिनको उनका अहेतुक स्नेह मिला और उनका असमय जाना सबके लिये विकट दुख का कारण है। )यह भरोसा नहीं होता अटकते हुये बेखटके अपनी बात कहने वाली स्नेहिल आवाज अब केवल स्मृतियों में ही सुनाई देगी।
अब कौन है जो अपनी तारीफ़ होने पर अपने लिये कह सके
डा.अमर कुमार को हमारी विनम्र श्रद्धांजलि।
(बीच वाली फ़ोटो में डा. अमर कुमार , श्रीमती अमर कुमार अजीम शायर कैफ़ी आजमी के साथ! नीचे अमर कुमार द्वारा बनाया एनीमेशन !)
डा.अमर कुमार से पिछले तीन-चार साल से ब्लाग/टिप्पणियों और मेल के माध्यम से नियमित-अनियमित साथ बना रहा। शुरुआत के कुछ दिन बाद अक्सर फोन पर भी बातचीत होती रहती थी। कानपुर में उनकी पढ़ाई-लिखाई होने के चलते वे यहां के बोली-बानी और जुगराफ़िये से भली-भांति परिचित थे। शायद यही कारण रहा होगा कि वे हमारी पोस्टों, खासकर जिनका अंदाज कनपुरिया रहता था, कुछ पसंद करने लगे और बेलौस टिपियाते भी थे।
हमारे ब्लागिंग में आये तीन साल हो चुके थे तब डा.साब आये इस आभासी दुनिया में। उनकी बेबाक टिप्पणियों की चर्चा करते हुये एक चिट्ठाचर्चा में मैंने लिखा:
डा.अमर कुमार ने हमारे इस उलाहने पर जो पोस्ट लिखी उसके लिये ज्ञानदत्त जी ने लिखा:
डा. अमर कुमार जैसी सहज चुटीली बातें कहने वाले ब्लाग जगत में बहुत कम हैं। उनसे इस पोस्ट के माध्यम से अनुरोध है के वे अपने एक ब्लाग पर ध्यान केंद्रित करें और नियमित लिखें। ये सलाह है वे इसके भी धुर्रे बिखेर दें तब भी हमें कोई कष्ट न होगा लेकिन मानेंगे तो बहुत अच्छा लगेगा।
आपकी भाषा में अद्भुत प्रवाह है। सपाट भी चलती है और भंवर भी बहुत हैं बीच में!इसी पोस्ट के बारे में ताऊ रामपुरिया ने लिखा:
ब्लॉगिंग के प्रतिमान से अपने प्रकार की अनूठी पोस्ट।
गुरुदेव आज कबूल ही लेता हूँ की मैं आपकी इस पोस्ट को आज २३वी बार पढ़ रहा हूँ !मुझे ये पोस्ट लिखने की प्रेरणा देती है ! ये एक पूरा इन्साइक्लोपिडिया है ! हर नए नए कबूतर, मेरा मतलब नए मेरे जैसे, अपने आपको लेखक समझने की ख्वाइश रखने वाले को यह अवश्य आत्म सात कर लेना चाहिए ! आपकी यह पोस्ट अमूल्य निधि है !इस अद्भुत पोस्ट को पढ़ने के बाद मेरा मन उनसे बात करने को हुड़कने लगा। फ़िर बात भी हुई। और बहुत दिन तक होती रही जब तक बीमारी के कारण उनका बात करना कम नहीं हो गया।
डा.अमर कुमार बेहतरीन जिंदादिल और उदारमन के बड़े दिलवाले इंसान थे। बहुत पढ़ाई लिखाई किये थे। कई भाषायें जानते थे। उर्दू जानने वालों को कभी-कभी उर्दू में टिपियाते थे। लिखाई-पढ़ाई की रेंज बहुत थी। एच.टी.एम.एल. सीखकर अपने ब्लाग का कलेवर बदलते रहते थे। तमाम तरह के हटमल प्रयोग वे अपने ब्लाग पर करते थे।
ब्लागजगत में डा. साहब का स्नेह बहुत लोगों को मिला। ब्लागजगत में वे भले एक बेबाक और कभी-कभी मुंहफ़ट से लगते थे लेकिन व्यक्तिगत व्यवहार में वे सभी के प्रति बेहद उदार, गर्मजोश थे। उनके व्यवहार से तमाम लोगों को यह एहसास होता था कि वे उनके बहुत खास हैं। यह उनकी खूबी थी। उनकी सहज उदारता और आत्मीयता एक साथ कई लोगों को एहसास दिलाने में सक्षम थी कि वो डा.साहब के बहुत नजदीक हैं।
डा.अमर कुमार हौसला लोगों की आफ़जाई में करने में बहुत उदार थे। जर्रे को आफ़ताब बताने में भी हिचकते नहीं थे। मुझे अभी भी यह सपना सरीखा लगता है कि वे कभी मुझसे कहा करते थे – गुरुदेव, जब मैं आपका लिखा पढ़ता हूं तो मेरा मन आपसे मिलने का होता है। मैं एक बार आपको छुकर देखना चाहता हूं। मुझे इस बारे में कोई शंका नहीं है कि वे इस तरह की हौसला आफ़जाई और तमाम साथियों की करते रहे होंगे। लोगों की खूबियां पहचानकर उसकी तारीफ़ करके स्नेह जताने का उनका अपना अंदाज था।
अमर कुमार जी ब्लागजगत में काफ़ी देरी से आये। उनके पास कहने को बहुत कुछ था। इसलिये वे टिपियाते जमकर थे। देरी से लिखना शुरु करने की भरपाई वे जमकर टिपियाने और कई ब्लाग बनाकर लिखकर करते थे। अक्सर उनकी टिप्पणियां अमूर्त हो जातीं थीं। बहुतों को समझने में परेशानी होती थी। काफ़ी विद टू होस्ट में उन्होंने अपने बारे में काफ़ी कुछ कहा है। वे कहते हैं:
अपने को अभी तक डिस्कवर करने की मश्शकत में हूँ, बड़ा दुरूह है अभी कुछ बताना । एक छोटे उनींदे शहर के चिकित्सक को यहाँ से आकाश का जितना भी टुकड़ा दिख पाता है, उसी के कुछ रंग साझी करने की तलब यहाँ मेरे मौज़ूद होने का सबब है । साहित्य मेरा व्यसन है और संवेदनायें मेरी पूँजी ! कुल मिला कर एक बेचैन आत्मा… और कुछ ?उनके बारे में अपनी राय जाहिर करते हुये मैंने लिखा था:
रात को दो-तीन बजे के बीच पोस्ट लिखने वाले डा.अमर कुमार गजब के टिप्पणीकार हैं। कभी मुंह देखी टिप्पणी नहीं करते। सच को सच कहने का हमेशा प्रयास करते हैं । अब यह अलग बात है कि अक्सर यह पता लगाना मुश्किल हो जाता कि डा.अमर कुमार कह क्या रहे हैं। ऐसे में सच अबूझा रह जाता है। खासकर चिट्ठाचर्चा के मामले में उनके रहते यह खतरा कम रह जाता है कि इसका नोटिस नहीं लिया जा रहा। वे हमेशा चर्चाकारों की क्लास लिया करते हैं। लिखना उनका नियमित रूप से अनियमित है। एच.टी.एम.एल. सीखकर अपने ब्लाग को जिस तरह इतना खूबसूरत बनाये हैं उससे तो लगता है कि उनके अन्दर एक खूबसूरत स्त्री की सौन्दर्य चेतना विद्यमान है जो उनसे उनके ब्लाग निरंतर श्रंगार करवाती रहती है।
डा.साहब चिट्ठाचर्चा के नियमित पाठक, प्रशंसक, आलोचक और खैरख्वाह थे। अपनी एक पोस्ट में उन्होंने लिखा -सुबह सुबह अख़बार पढ़ दिन ख़राब करने से बेहतर लत है, चिट्ठाचर्चा !
कुछ दिन चर्चा न होने पर उलाहना आ जाता था कि चर्चा क्यों नहीं हो रही है जी! चिट्ठाचर्चा में माडरेशन के सख्त खिलाफ़ थे वे। यह खिलाफ़त वे सरेब्लाग जाहिर भी करते रहते थे। चर्चा का पुरजोर विरोध भी करते थे। चिट्ठाचर्चा जब अपने ब्लागस्पाट से हटकर अपने डोमेन पर आ गयी तब भी टेम्पलेट के लफ़ड़े के चलते टिप्पणियां माडरेट करनी पड़ रहीं थीं जबकि माडरेशन हटाया हुआ था। व्यस्तता के चलते कुश से हुआ नहीं तो मैंने उनसे कहा- आपको चिट्ठाचर्चा के एडमिन अधिकार भेज रहे हैं। इसका माडरेशन हटाइये। इस पर वे बोले- गुरू हमको चर्चा में फ़ंसा रहे हो? बहरहाल बाद में टेम्पलेट बदला गया और अब चिट्ठाचर्चा में टिप्पणियां माडरेट नहीं करनी पड़ती लेकिन तब तक डा.साहब का ब्लागिंग से संपर्क सिर्फ़ पढ़ने का रह गया था शायद! अब डा.अमर कुमार नहीं हैं टिपियाने के लिये। शायद उलाहना देते हुये कह रहे हों- क्या गुरू हमारे जाते ही माडरेशन हटा दिया।
भाषा के मामले में वे आलराउंडर थे। ज्यादातर बोलचाल की भाषा में अपने को अभिव्यक्त करते। टिप्पणियों में अवधी/भोजपुरी और अन्य बोलियों का पल्ला थाम लेते। कभी-कभी चिट्ठाचर्चा में कविताजी के द्वारा प्रयुक्त भाषा के इस्तेमाल पर वे अपनी तरह से चुहल करते। लेकिन हमेशा फ़िर पलटकर या अगली टिप्पणी में ही वे उनकी मुक्तमन से तारीफ़ करके हिसाब बराबर कर देते। वे यह जाहिर भी करते चलते- कि यह जनभाषा हमका पसंद है वैसे हम कौनौ कम साहित्यिक नाईं हन!
अमरकुमार जी किसी से बहुत दिन तक नाराज नहीं रह पाते थे। संवादहीनता की स्थिति से जल्द से जल्द उबरने की कोशिश करते थे। इस मामले में वे बड़े दिल के आदमी थे। सामने वाले की गलती भूलकर अपनी तरफ़ से संवादहीनता खतम कर लेते थे। जब कोई उनकी टीप से ‘आहत’ होकर कोप-भवन में बैठा होता हो तब डॉ. साहब कोई बात ऐसी कह देते जिससे या तो वह झल्ला जाता या ऐसी गुदगुदी मचाते कि वह बरबस ही सहज हो जाता। परिणाम चाहे जो हो लेकिन ‘संवादहीनता को ख़त्म करने की उनकी ‘साज़िश’ सफल हो जाती थी’! उनकी नाराजगी का पैमाना यह था कि जिसके नाराज होते उसके प्रति ज्यादा औपचारिक हो जाते।
अपने साथ जुड़े लोगों की खैरखबर भी वे लेते रहते थे। पिछले दिनों खुशदीप ने एक बार फ़िर जब ब्लागिंग को अलविदा कहा तो उस समय (इलाज के बाद )उनके बोलने पर पाबंदी थी। उन्होंने मुझसे एस.एम.एस. करके कहा कि मैं खुशदीप को ब्लागिंग छोड़ने से रोकूं। मैंने डा.साहब का संदेशा और अनुरोध खुशदीप को बताया। बाद में जब खुशदीप ने फ़िर से ब्लाग लिखना शुरु कर दिया तो फ़िर डा.साहब ने मुझे शुक्रिया संदेश भेजा जैसे मेरे कहने पर ही खुशदीप वापस लिखने लगे हों।
डा.साहब कभी तटस्थ नहीं रहे। इस तरफ़ या उस तरफ़ या फ़िर किसी और तरफ़। लेकिन ऐसा कभी नहीं हुआ कि कोई बात छिड़े और उनका कोई मत न हो। वे जमकर बहसियाते थे। बहस करने में भाषा का संयम उन्होंने कहीं नहीं खोया और न बहस में व्यक्तिगत हमले कभी किये। अपनी बात रखने में उन्होंने कभी यह नहीं देखा कि इससे कौन नाराज होगा और कौन खुश लेकिन मोटा-मोटी वे कमजोर के पक्ष में अपने तर्क रखने को ज्यादा तरजीह देते। अब यह अलग बात है कि कुछ ऐसे ही लोगों ने उनसे नाराज होकर उनके खिलाफ़ न जाने क्या-क्या कहा। उनको अपने ब्लाग पर बैन तक किया। लेकिन डा.अमर इससे बेपरवाह रहे।
अपनी मां के बारे उन्होंने जो पोस्ट लिखी है वह एक ऐसे बेटे की अद्भुत पोस्ट है जो मां और बुजुर्गों के बारे में अश्रुविगलित पोस्टें नहीं लिखता लेकिन अपनी अम्मा को नर्सों के सहारे छोड़ने की बजाय खुद उनकी सेवा करना जानता है।
न जाने कितनी यादें हैं डा.अमर कुमार जी के साथ की। मैं उनसे कभी मिला नहीं लेकिन कभी ऐसा लगा नहीं कि उनसे मुलाकात नहीं है। उनके जाने के एक सप्ताह बाद भी लगता है कि अभी कोई मेल उनके यहां से आयेगी जिसमें उलाहना होगा कि बहुत दिन से मैंने कुछ लिखा क्यों नहीं! मेरे ब्लाग पर वे अलग-अलग नामों से टिपियाते थे। लेकिन उनके अंदाज से ही मैं यह समझ जाता था कि यह टिप्पणी डा.अमर कुमार की ही है।
उनके जाने के बाद उनके ब्लाग की तमाम पोस्टें मैं फ़िर से पढ़ीं। पिछले जन्मदिन पर लिखी उनकी पोस्ट, तेल का दाम बढ़ने पर बनाया गया एनीमेशन (जो कि जी न्यूज वालों उनके ब्लाग से लिया लेकिन उनका नाम पचा गये ), बीमारी से उबरने पर ब्लागिंग में लौटने की खबर देने वाली पोस्ट और भी न जाने कितनी पोस्टें उनकी जिंदादिली और खिलंदड़ेपन की अद्भुत मिसाल हैं।
डा.अमर कुमार की एक पोस्ट का शीर्षक है-चले जाना नहीं होश उड़ाय के। यह बात उन्होंने अपने मामले में नहीं निभाई और हमारे होश उड़ा के चले गये। उनके जाने पर रमानाथ अवस्थी जी की कविता याद आती है:
आज इस वक्त आप हैं लेकिन,
कल कहां होंगे कह नहीं सकते।
जिंदगी ऐसी नदी है जिसमें
देर तक साथ बह नहीं सकते।
समय की नदी में शायद हमारा उनका साथ इतना ही बदा हो। लेकिन मुझे अभी भी यह विश्वास नहीं होता कि वह बेहतरीन इंसान अब हमारे बीच नहीं है जो हमारे प्रति इतना स्नेह रखता था कि हमको छूकर देखने की बात कहता था। ( ऐसा सोचने वाला मैं अकेला नहीं हूं शायद। न जाने कितने स्नेह भाजन हैं डा.साहब के जिनको उनका अहेतुक स्नेह मिला और उनका असमय जाना सबके लिये विकट दुख का कारण है। )यह भरोसा नहीं होता अटकते हुये बेखटके अपनी बात कहने वाली स्नेहिल आवाज अब केवल स्मृतियों में ही सुनाई देगी।
अब कौन है जो अपनी तारीफ़ होने पर अपने लिये कह सके
आज मौका भी है, दस्तूर भी.. गरियाओ यारों.. इस निट्ठल्ले को जरा खुल कर गरियाओ मैं भी लौट कर आपका साथ देता हूँ, आज मैं भी ललकारता हूँ इन्हें कि, जरा अपने असली रूप में तो सामने आओ, महाधूर्त अमर कुमार !
डा.अमर कुमार को हमारी विनम्र श्रद्धांजलि।
(बीच वाली फ़ोटो में डा. अमर कुमार , श्रीमती अमर कुमार अजीम शायर कैफ़ी आजमी के साथ! नीचे अमर कुमार द्वारा बनाया एनीमेशन !)
आशीष ‘झालिया नरेश’ विज्ञान विश्व वाले की हालिया प्रविष्टी..द्रव, ठोस ईंधन वाले राकेट इंजिन:राकेट कैसे कार्य करते हैं ? : भाग 2
डा.अमर कुमार को हमारी भी विनम्र श्रद्धांजलि।
कल कहां होंगे कह नहीं सकते।
जिंदगी ऐसी नदी है जिसमें
देर तक साथ बह नहीं सकते।
जितना जान रहा हूँ उनके बारे में उतना ही उन्हें ढूढ़ रहा हूँ।
arvind mishra की हालिया प्रविष्टी..मैकडानेल माल में मियाँ मुहम्मद आजम से मुलाक़ात
कल कहां होंगे कह नहीं सकते।
जिंदगी ऐसी नदी है जिसमें
देर तक साथ बह नहीं सकते।
ब्लॉग जगत में कुछ कम सा हो गया है …
और आशंका ही सच निकल गयी …
” मैं एक नासमझ ब्लागर के नाते, इस बेहतरीन निष्पक्ष ब्लागर को आज तक समझ नहीं पाया , हर जगह और हर महत्वपूर्ण विषय पर आपको यह मिल जाते हैं अपनी विशिष्ट शैली में साफ़ साफ़ बोलते हुए ! शायद ब्लाग जगत के सबसे अच्छे जानकारों में से एक डॉ अमर कुमार को आम ब्लागर समझने में बहुत समय लगाएगा ! मगर निस्संदेह वे उन सर्वश्रेष्ठ ईमानदार लोगों में से एक हैं जिन्हें ब्लाग जगत की सबसे अधिक समझ है ! ”
कहीं इन्हें हमारी नज़र न लग जाए ….
खुदा महफूज़ रखे हर बला से हर बला से
satish saxena की हालिया प्रविष्टी..कौवे की बोली सुननें को, हम कान लगाये बैठे हैं – सतीश सक्सेना
“Dr Amar Kumar, a Graduate in Medicine, is not only one of the most honest,empathetic in nature and a fearless writer of hindi language, but also having dynamic command over vast social subjects and heritage of Indian society and culture, he has the caliber to fight against injustice. Besides managing and practicing own nursing home successfully he is also able to devote time to serve his own national language with great zeal”
satish saxena की हालिया प्रविष्टी..कौवे की बोली सुननें को, हम कान लगाये बैठे हैं – सतीश सक्सेना
http://satish-saxena.blogspot.com/2010/08/blog-post_30.हटमल
http://satish-saxena.blogspot.com/2010/12/blog-post_22.html
satish saxena की हालिया प्रविष्टी..कौवे की बोली सुननें को, हम कान लगाये बैठे हैं – सतीश सक्सेना
जय हिंद…
सतीश पंचम की हालिया प्रविष्टी..छुई-मुई सांसदगिरी बजरिये चच्चा जेम्स वॉट
इसी लिये तो आज उनके लिये हर आदमी की आंखों मे आंसु है.
आज मौका भी है, दस्तूर भी.. गरियाओ यारों.. इस निट्ठल्ले को जरा खुल कर गरियाओ मैं भी लौट कर आपका साथ देता हूँ, आज मैं भी ललकारता हूँ इन्हें कि, जरा अपने असली रूप में तो सामने आओ, महाधूर्त अमर कुमार !
अफ़्सोस अब ये वाक्य और नही पढने को मिलेंगे.
डाक्टर साबह को अश्रूपूरित विनम्र श्रद्धांजलि.
sushma Naithani की हालिया प्रविष्टी..तारा
एक पारदर्शी व्यक्तित्व के मालिक की अनमोल यादों को प्रस्तुत किया है आपने.. हमारी श्रद्धांजलि!!
सलिल वर्मा – चैतन्य आलोक की हालिया प्रविष्टी..अन्ना हजारे और पीसी बाबू!!
संजय @ मो सम कौन? की हालिया प्रविष्टी..पाले उस्तादजी
उन के जीवन के विभिन्न पहलुओं से अवगत कराने के लिये बहुत बहुत शुक्रिया
अर्कजेश की हालिया प्रविष्टी..एक गैर जिम्मेदाराना कविता
समीर लाल की हालिया प्रविष्टी..एडिनबर्ग नहीं एडनबरा, स्कॉटलैण्ड: एक ऐतिहासिक नगरी की सैर
Smart Indian – स्मार्ट इंडियन की हालिया प्रविष्टी..नायक किस मिट्टी से बनते हैं?
और उनके यादों को समग्र चर्चा के लिए आपको हार्दिक अबाहर.
प्रणाम.
विनर्म श्रधांजलि.
घनश्याम मौर्य की हालिया प्रविष्टी..मेरे घर आई एक नन्हीं परी
डॉ. साहब एक सामान्य ब्लॉगर की तरह नहीं थे.वह इस आभासी-दुनिया में भी वास्तविक-रिश्ते तलाशते और बनाते थे.इसलिए वे इस मामले में कई बार अनौपचारिक भी होकर टीपते थे.यह उनका सौभाग्य था,जिन्होंने उनकी टीपों की मार झेली.आज उनके न रहने पर वह ‘झेलना’ कितना ‘अझेल’ बन गया है,यह कोई ‘चोट’ खाए लोगों से पूछे!
आपको गिला है कि आप उनसे मिल न पाए पर यह मेरा परम सौभाग्य था कि मैं बहुत बाद में उनसे जुड़ा और उनके हाथों का स्पर्श भी पाया.वे संक्षिप्त मुलाकात में ही मुझे प्यारे और अनोखे लगे.एक ऐसा ब्लॉगर जो इंसानी ज़ज्बात को पहले तरजीह देता था और लिखने-लिखाने की औपचारिकता बाद में !
अभी दो दिन पहले मैं और प्रवीण त्रिवेदी डॉ. साहब के परिवार से मिलकर आये हैं.जहाँ उनकी पत्नी उनके जाने से विचलित दिखीं,वहीँ एक तरह से उनके प्रति गर्व और चेहरे पर तोष का भाव था.डॉ. साहब लेखकीय जिम्मेदारी के साथ-साथ पारिवारिक दायित्व भी बखूबी निभाना जानते थे !
आपकी इस पोस्ट ने डॉ. अमर कुमार जैसे रहस्यमयी व्यक्तित्व की एक और परत भर निकाली है क्योंकि उनको पूरा समझ पाना इतना आसान भी नहीं है !
@डॉ. अरविन्द मिश्र अपने संकेत किया है की कोई डॉ.साहब का बहुत ‘नजदीकी’ उनके प्रति श्रद्धांजलि हठात रोके है तो इससे उसका बौनापन उजागर होता है .डॉ. साहब का कद आज इस तरह की औपचारिकता का मोहताज़ भी नहीं है !
संतोष त्रिवेदी की हालिया प्रविष्टी..डॉ.अमर कुमार :एक इंसानी-ब्लॉगर !
विनम्र श्रद्धांजलि।
मनोज कुमार की हालिया प्रविष्टी..चिठियाना-टिपियाना संवाद
बालक को दुखी कर रहा है……………..
प्रणाम.
श्रद्धांजलि उन्हें…
बेहद दुख:पूर्ण और संत्रासदायक।
कुछ लोग जो हमारे आसपास रहते हैं, समय रहते हम उनसे वह सब नहीं कह पाते जो उनके लिए मन में कहीं दुबका-भरा होता है।
उनके जाने के बाद बस मसोस बाकी है। कई बार आँसू जो आए हैं, यह उन्हीं के प्रति एक अनाम-सी आत्मीयता के किसी छुपे हुए भाव के वशीभूत।
ईश्वर उनकी आत्मा को सद्गति और परम शांति दे। उनके परिवार को धैर्य।
और क्या कह सकती हूँ…………….
डॉ। कविता वाचक्नवी की हालिया प्रविष्टी..ब्रिटेन में बवाल की गुत्थियाँ : कविता वाचक्नवी
और तब यह किसे मालुम था कि दिये में तेल कम बचा है!
dr.anurag की हालिया प्रविष्टी..उस जानिब से जब उतरोगे तुम !!
PD की हालिया प्रविष्टी..दादू बन्तल, दादू बन्तल, छू
aradhana की हालिया प्रविष्टी..दिल्ली पुस्तक मेले से लौटकर
shefali की हालिया प्रविष्टी..ड्राफ्ट के इस क्राफ्ट में एक ड्राफ्ट यह भी ………..
चंदन कुमार मिश्र की हालिया प्रविष्टी..नीतीश कुमार के ब्लॉग से गायब कर दी गई मेरी टिप्पणी (हिन्दी दिवस आयोजन से लौटकर)