खाये-पिये, चिंता की औ फ़िर थक कर सो गये,
और कितना त्याग करें कोई अपनी भाषा के लिये!
बहुत लगाव है हमको अपनी प्यारी हिंदी से,
रोयेंगे आज जम कर हम इसकी दुर्दशा पर!
वो इतनी ज़ोर से तड़पा, भन्नाया,बड़बड़ाने लगा,
जी किया उसके सर पे हाथ फ़ेर के पुचकार दूं!
-कट्टा कानपुरी
और कितना त्याग करें कोई अपनी भाषा के लिये!
बहुत लगाव है हमको अपनी प्यारी हिंदी से,
रोयेंगे आज जम कर हम इसकी दुर्दशा पर!
वो इतनी ज़ोर से तड़पा, भन्नाया,बड़बड़ाने लगा,
जी किया उसके सर पे हाथ फ़ेर के पुचकार दूं!
-कट्टा कानपुरी
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