जब से सुना उन्होंने, गुस्से में लगते हैं हसीन लोग
बात-बेबात झल्ला के पूछती हैं-कैसी लग रही हूं मैं!
अंधविश्वास के खिलाफ़, उनको लिखनी है एक गजल
सुबह से कर रहे इंतजार, पंडित का मुहूरत के लिये।
मेरे जिस खत का जबाब भेजा है तूने मु्झे तफ़सील से,
उसको लिख के तुझे भेजने की मुझे फ़ुरसत ही नहीं मिली ॥
-कट्टा कानपुरी
बात-बेबात झल्ला के पूछती हैं-कैसी लग रही हूं मैं!
अंधविश्वास के खिलाफ़, उनको लिखनी है एक गजल
सुबह से कर रहे इंतजार, पंडित का मुहूरत के लिये।
मेरे जिस खत का जबाब भेजा है तूने मु्झे तफ़सील से,
उसको लिख के तुझे भेजने की मुझे फ़ुरसत ही नहीं मिली ॥
-कट्टा कानपुरी
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