Saturday, October 05, 2024

शरद जोशी के पंच -9



1. जीने का दर्शन दूसरे की मृत्यु हो गया है। हमें हर क़िस्म के समाचार पढ़ने और सुनने के लिए तैयार रहना है, जब तक हम स्वयं समाचार न बन जाएँ। जंगल काट गए हैं,जानवर नही हैं शिकार के लिए,पर शस्त्र हैं,इसलिए पूरा देश जंगल हो गया है। आदमी,आदमी का शिकार कर रहा है। मार रहा है।
2. एक छोटे शहर और महानगर बम्बई में एक बड़ा अंतर यह है कि यहाँ काम होने के बाद कोई किसी को नही पूछता। आज जिस गायक,खिलाड़ी या अभिनेता के पीछे बम्बई वाले पागलों की तरह दौड़ते हैं, वे बुझ जाने के बाद कहाँ किस हाल में ज़िंदगी काट रहे हैं,इसका किसी को पता नही रहता है, न फ़िक्र।
3. व्यावसायिक नगर इस मामले में बड़े निर्मम होते हैं। वहाँ आत्मीयता के सारे प्रदर्शन अस्थायी होते हैं। आज अपनी गरज का मारा जो लाँच देता है, वह कल पानी के गिलास के लिए भी नही पूछता।
4. यदि आप पुलिस को आतंकवादी से निपटने का काम सौंप दें तो वे पूरी तौर पर भिड़ जाएँगे। और जिससे भी भिड़ेंगे उसे मंज़ूर करना पड़ेगा कि वह आतंकवादी है। यह काम इतने ज़ोर-शोर से होगा कि हर तीसरा नागरिक आतंकवादी लगने लगेगा और पुलिस के डर से ऐसा दुम दबाए रहेगा कि सारा आतंकवाद भूल जाए। थाने में जब भी कोई पिटता सुनाई दे,समझिए आतंकवादी है।
5. जिस व्यवसायी को एक चढ़ा हुआ भाव लेने की आदत पड़ जाती है वह इस या उस बहाने वही भाव बनाए रखता है।
6. मंत्री के कक्ष में विधायक न्याय की लड़ाई में संघर्षरत हैं अर्थात वे किसी बलात्कारी या भ्रष्टाचारी को बचाने में लगे हैं। वे यथार्थ को समझ रहे हैं अर्थात किसी ठेकेदार या सप्लायर द्वारा वर्णित तथ्यों को समझ रहे हैं। वे प्रश्नकाल में सवाल पूछ रहे हैं अर्थात किसी व्यावसायिक कम्पनी के स्वार्थों की रक्षा कर रहे हैं।
7. हमारे देश की एक सांस्कृतिक ख़ूबसूरती बरसों से यह है कि हम समस्यायों को घटना के रूप में लेते हैं। इससे शासन व्यवस्था को सुविधा रहती है और जिस पर गुजराती है,वह भी प्रभु-इच्छा मान उसे थोड़ा दुखी हो सहन कर लेता है।
8. समस्यायें बनी रहती हैं और घटनायें भूल दी जाती हैं। इसलिए सरकार कभी घटना को समस्या नही बनने देती। हर साल बाढ़ में लोग डूबते हैं, बलात्कार होते रहते हैं, पुराने या नए मकान ढहते हैं और हमारी व्यवस्था उसे भूलती हुई फिर उस घटना की खबर पढ़ने का इंतज़ाम करती है।
9. कुछ लोगों का कहना है कि जो आदिवासी है,वह आदिवासी बना रहे इसी में उसका कल्याण है। कुछ का ख़्याल है कि बेचारा कब तक आदिम अवस्था में पड़ा सड़ता रहेगा, कुछ भी करके हमें इसे आधुनिक बनाया जाए। मज़ेदार बात यह है कि दोनों हालात में हमें आदिवासी के लिए करना क्या है, कोई नही जानता।
10. क्षेत्र का कल्याण आदिवासी का कल्याण नहीं होता। पक्की सड़कें आदिवासियों को कहीं नही ले जातीं। हाँ, शहरी बुराइयाँ और शोषण का प्रपंच उन तक ज़रूर पहुँच जाता है।
11. देश में हर व्यक्ति के पास आदिवासी कल्याण की निजी योजना है। इस सबसे घबराकर आदिवासी सोचता होगा कि मुझे मेरी झोपड़ी और मेरी मुर्गियों को हमारे हाल पर छोड़ दीजिए, इसी में हमारा कल्याण है।

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