और ये मजाक-मजाक में ग्यारह साल हो गये ब्लॉगिग करते हुये।
जब ब्लॉगिंग शुरु की थी तब इंटरनेट किर्र-किर्र करके शुरु होता था। फ़ोन या नेट में से एक ही चालू रह सकता था। डेस्कटॉप का जमाना। फ़िर लैपटॉप आया तो हमारी सबसे बड़ी तमन्ना यह थी कि बगीचे की धूप में बैठकर ब्लॉगिंग कर सकें।
अब स्मार्टफ़ोन आ गया है। तो कहीं से भी बैठकर या खडे होकर लिखा जा सकता है। लेकिन ब्लॉग पर लिखना कम हो गया है। फ़ेसबुक पर लिखते हैं फ़िर उसको मय टिप्पणी ब्लॉग पर सहेज लेते हैं। पर एक बात है कि हम भले ही फ़ेसबुक पर लेकिन मन मूलत: ब्लॉगर वाला ही है। लम्बी पोस्ट न लिखें तो लगता ही नहीं कि लिखा गया कुछ। कभी-कभी फ़ेसबुक पर वनलाइनर भी ठेल देते हैं लेकिन जब तक पोस्ट न लिखें तो मजा नहीं आता।
जब ब्लॉग शुरु किया था तो लगता था कि हफ़्ते में एक पोस्ट लिख दी तो बहुत हुआ। आज हाल यह है कि कभी-कभी चार पोस्ट्स भी ठेल देते हैं। कुछ पाठक दोस्तों ने शिकायत भी की है कि उनकी भलमनसाहत का नाजायज फ़ायदा उठा रहे हैं हम।
शुरुआत में व्यंग्य लेख ही लिखने की सोचते थे। फ़िर कट्टा कानपुरी आये। इसके बाद सूरज भाई। फ़िर पुलिया पुराण और अब रोजनामचा। हरेक को पसंद करने वाले अलग-अलग पाठक हैं। कुछ को सूरज की नामौजूदगी से शिकायत, कुछ कहते हैं पुलिया किधर गयी। मेरे व्यंग्य लेख पसंद करने वाले अजीज दोस्त कहते हैं -ये जो पुलिया-फ़ुलिया, साइकिल बाजी है न यह सब लफ़्फ़ाजी है। टाइम पास। इसको लेखक मत समझें शुक्ला जी। बहुत दिन हुई मटरगस्ती। अब कुछ लिखना भी हो जाये।
पिछले साल कुछ व्यंग्य लेख अखबारों में छपे भी। सोचते थे कि कम से कम एक व्यंग्य लेख रोज लिखें। बाकायदा शाम को अखबार लेकर टेलिविजन के सामने बैठते थे। तीन-चार विषयों पर लिखने की सोचने थे। कभी तो शुरु भी कर देते थे। लेकिन फ़िर दिन की कोई घटना सारे विषयों को फ़ुटा देती और सामने खड़े होकर कहती- पहले मुझ पर लिखो। क्या करते -मानना पड़ता।
लेकिन अब मन करता है कि हफ़्ते में कम से कम एक व्यंग्य लेख लिखकर अखबारों में भेजना चाहिये। न छपे तो उसको ब्लॉग में डाल देंगे इस सूचना के साथ कि इसको अखबार में भेजा था। छपा नहीं तो यहां पोस्ट कर रहे हैं। आप बांच लो।
गतवर्ष दिसम्बर ’पुलिया पर दुनिया’ किताब प्रकाशित की। पहले ’ई बुक’ फ़िर प्रिंट आन डिमांड भी। ये किताबें आन लाइन आर्डर करके यहां से ले सकते हैं:
1. पुलिया पर दुनिया - ई-बुक
2. पुलिया पर दुनिया- श्वेत श्याम मतलब ब्लैक एंड व्हाइट
3. पुलिया पर दुनिया - रंगीन
कुल जमा 48 किताबें बिकीं अब तक। 46 ई-बुक, 1 ब्लैक एंड व्हाइट और एक रंगीन। रंगीन हमने खुद खरीदी है देखने के लिये कि कैसी लगती है किताब। कुछ मिलाकर रॉयल्टी के बने 1753 रुपये (इसे भी मंगाने के लिये हमने अपने खाते का विवरण नहीं भेजा है) । इसमें 28 रुपये ब्लैक एंड व्हाइट के और बाकी सब ई-बुक के। रंगीन वाली हमने खुद खरीदी इसलिये उसमें कोई रायल्टी नहीं।
किताबें खरीदने वालों में मेरे मित्र और नियमित पाठक ही हैं। जो लोग मेरा लिखा पढते हैं और तथाकथित रूप से पसंद भी करते हैं उन लोगों ने किताब न खरीदने के ये कारण बताये:
1. क्या खरीदें किताब। सब तो पढ़ लेते हैं फ़ेसबुक पर।
2. पचास बिक जायें फ़िर खरीदेंगे आपकी किताब।
3. कम्प्यूटर ठीक हो जाये फ़िर खरीदकर आराम से पढेंगे।
4. यार बहुत कोशिश की लेकिन खरीद नहीं पाये।
5. यार हमको भी खरीदकर पढ़नी पडी तब तो हो चुका।
यह सब ऐसे ही। वैसे भी हिन्दी का आम पाठक बहुत समझदार होता है। वही किताबें खरीदता है जो कई लोग बता चुके हैं कि बहुत अच्छी है। फ़िर मेरी किताब तो सिवाय भूमिका और समर्पण के नेट पर मौजूद है। फ़िर क्यों पैसे खर्च करे कोई।
बहरहाल जितना कुछ लिखा अब तक उसको संजोकर उनको किताब की शक्ल देने का मन है। कुछ इस तरह:
1. व्यंग्य लेख
2. सूरज भाई पर लिखी पोस्ट्स- ’सूरज की मिस्ड काल’ शीर्षक से
3.पुलिया पर दुनिया भाग 2
4. पलपल इंडिया में छपे लेख- ’लोकतंत्र का वीरगाथा काल’ शीर्षक से
5. शेर- तुकबंदियां - ’कट्टा कानपुरी’ के नाम से।
6. साइकिलिंग के किस्से- ’रोजनामचा' या किसी और नाम से।
7. ब्लॉगिंग से जुडे किस्सों पर एक किताब।
यह सब पता नहीं कब होगा। अभी तो सबसे पहले काम यह करना है कि फ़ेसबुक पर जो लिखा उनको उठाकर ब्लॉग में सहेजना है। फ़ेसबुक पर पोस्ट खोजे मिलती नहीं।
ब्लॉगिंग के दरम्यान तमाम दोस्त, प्रशंसक मिले। बहुत प्यारे रिश्ते बने। फ़ेसबुक में लिखने के दौरान भी कई बहुत प्यारे दोस्त बने। उनसे जुड़कर लगता है तमाम कमियों के बावजूद दुनिया बहुत खूबसूरत और हसीन है। यह एहसास ही अपने आप में बहुत प्यारा है।
ब्लॉगिंग से जड़े अपने तमाम पुराने दोस्तों को भी याद करता हूं जिनके साथ हमने शुरुआत की थी लिखने की।
रविरतलामी का एक बार फ़िर से शुक्रिया जिन्होंने बताया ब्लॉग क्या होता है।
ई-स्वामी का भी शुक्रिया जो करीब दस साल हिन्दिनी के माध्यम से मेरे लिखने की व्यवस्था की।
फ़ुरसतिया ब्लॉग के 11 साल पूरे होने मौके पर अपने तमाम पाठकों का शुक्रिया टाइप अदा करता हूं जो मेरे लिखे को पढते रहे। उनको भी जिनकी प्रतिक्रियां से मुझे यह भ्रम बना रहा हम कितना भी बुरा लिखते हों लेकिन कुछ लोग हमारे लिखे का इंतजार करते हैं।
बाकी और बहुत सारे लोग याद आ रहे हैं जो समय,समय पर साथ रहे। पाठक के रूप में प्रशंसक के रूप में, निदक के रूप में और न जाने किस-किस रूप में। सब मिलाकर जो एहसास बन रहा है वह बड़ा हसीन टाइप है।खूबसूरत, मनमोहक और न जाने कैसा-कैसा। लेकिन उसके बारे में फ़िर कभी। अभी चला जाये।:)
मेरी पसंद
(ब्लॉग के दिनों में कुछ लोगों के हिसाब से हम ऐसे थे)
भये छियालिस के फ़ुरसतिया
ठेलत अपना ब्लाग जबरिया।
मौज मजे की बाते करते
अकल-फ़कल से दूरी रखते।
लम्बी-लम्बी पोस्ट ठेलते
टोंकों तो भी कभी न सुनते॥
कभी सीरियस ही न दिखते,
हर दम हाहा ठीठी करते।
पांच साल से पिले पड़े हैं
ब्लाग बना लफ़्फ़ाजी करते॥
मठाधीश हैं नारि विरोधी
बेवकूफ़ी की बातें करते।
हिन्दी की न कोई डिगरी
बड़े सूरमा बनते फ़िरते॥
गुटबाजी भीषण करवाते
विद्वतजन की हंसी उड़ाते।
साधु बेचारे आजिज आकर
सुबह-सुबह क्षमा फ़र्माते॥
चर्चा में भी लफ़ड़ा करते
अपने गुट के ब्लाग देखते।
काबिल जन की करें उपेक्षा
कूड़ा-कचरा आगे करते॥
एक बात हो तो बतलावैं
कितने इनके अवगुन भईया।
कब तक इनको झेलेंगे हम
कब अपनी पार लगेगी नैया॥
भये छियालिस के फ़ुरसतिया
ठेलत अपना ब्लाग जबरिया।
अनूप शुक्ल
सूचना:1. एक , दो , तीन , चार , पांच , छह , सात , आठ नौ और दस साल पूरे होने के किस्से।
2. फ़ुरसतिया के पुराने लेख
अरे वाह, आपने तो हर साल पूरे होने के किस्से लिख मारे हैं!
ReplyDeleteएक बारहवां साल शुरू होने का भी लिख ही डालिए,
:)
samarthan hai............
Deletepranam.
हार्दिक बधाई और शुभकामनायें
ReplyDeleteआप 111 वर्ष तक लिखते रहें
कुछ समय (2-3 वर्ष) पहले तक इंतजार था कि कोई ऐसी डिवाईस आये जिस पर ब्लॉग्स पढना और कमेंट करना आसानी से हो और जब सबकुछ मिल गया तो ब्लॉग्स में रूचि कम हो गई :-)
फिर से बधाई। झाडे रहिए ढिंचक यूँ ही।
ReplyDeleteHimmatwale ho miyan....Himmatwala film agar Sajid Khan aapko lekar banata to superhit hoti...Himmat wale nahin hote to blogging pe 11 salon se tike rehte? Kab ke bhag chuke hote baki logon ki tarah...ab to blog hum aap jaise ikke dukke logon ki badaulat hi chal raha hai...din lad gaye bichare ke lekin hum jaise abhi bhi sawaari kar rahe hain...
ReplyDeletelage raho Anup Bhai...kyun ki isi men aanand hai...
वाह वाह ! बधाई :)
ReplyDeleteआपका लिखा हमेशा से बहुत अच्छा लगता है।
11 सालों में 11 पोस्ट भी मिस नहीं हुई होगी आपकी।
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन ब्लॉग बुलेटिन - उस्ताद बिस्मिल्ला ख़ाँ साहब की नौवीं पुण्यतिथि में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
ReplyDeleteआपके 12वें बरस के ब्लॉग कुम्भ में हम पिरापत कर पाये आपको। हौले हौले पूरा ही निपटा देंगे। फिकर नहीं। मजा आना शुरू हो गिया है हमको।
ReplyDeleteआपके 12वें बरस के ब्लॉग कुम्भ में हम पिरापत कर पाये आपको। हौले हौले पूरा ही निपटा देंगे। फिकर नहीं। मजा आना शुरू हो गिया है हमको।
ReplyDeleteआपके 12वें बरस के ब्लॉग कुम्भ में हम पिरापत कर पाये आपको। हौले हौले पूरा ही निपटा देंगे। फिकर नहीं। मजा आना शुरू हो गिया है हमको।
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